Monday, 30 September 2013

♥♥♥बड़ी मुश्किल से...♥♥♥♥

♥♥♥बड़ी मुश्किल से...♥♥♥♥
बड़ी मुश्किल से सांस आती है!
जिंदगी इस कदर सताती है!

जाने सूरज को क्या शिकायत है,
रौशनी घर से लौट जाती है!

आसमां में सितारे देखूं तो,
बिछड़े लोगों की याद आती है!

तेरे खत आज तक संभाले हैं,
उनकी खुशबू हमें लुभाती है!

तेरी तस्वीर से करूँ बातें,
आज कल नींद नहीं आती है!

दर्द के गहरे इस अँधेरे में,
न ही दीया है, नहीं बाती है!

"देव" अपनों के ये बड़ी दुनिया,
देखो अपनों का घर जलाती है!"

……चेतन रामकिशन "देव"…।
दिनांक-३०.०९.२०१३

Sunday, 29 September 2013

♥प्यार का इम्तहान..

♥♥प्यार का इम्तहान...♥♥
प्यार में इम्तहान दे देंगे!
मांग लो तुमको जान दे देंगे!

तेरे आंगन की छाँव की खातिर,
प्यार का आसमान दे देंगे!

आखिरी सांस तक निभाएंगे,
हम तुझे जो जुबान दे देंगे!

पास आ हम तुझे निशानी में,
अपने दिल का जहान दे देंगे!

तुझको हम भाव में वसाकर के,
अपने लफ्जों की शान दे देंगे!

प्यार में दिल न तोड़ देना तू,
लोग संगदिल का नाम दे देंगे!

"देव" तुम हमसे दूर न जाना,
हम जुदाई में जान दे देंगे!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२९.०९.२०१३

♥♥विस्फोटक..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विस्फोटक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब अपनों की नीति देखो, द्वेष राग पर आधारित हो!
प्रेम के बदले जीवनपथ पर, विरह भाव जब संचारित हो!
जब नयनों का नीर देखकर, अपना सम्बन्धी सो जाये,
रूपये, पैसे और दौलत से, जब अपनायत निर्धारित हो!

जब मिथ्या आरोप लगाकर, दुनिया निंदा प्रेषित करती!
जब दुनिया अपने ही सुख का, आलेखन आरेखित करती!
उस अवधि में कोमलता भी, विस्फोटक बनना चाहती है,
जब ये दुनिया निर्दोषों को, दंड भाव संप्रेषित करती!

अंतर्मन का करुण निवेदन, अपने जब जब ठुकराते हैं!
तब मानव की मनोदशा पर, कुंठित छाले खिल जाते हैं!
"देव" यहाँ पर वो अपनायत, कहाँ भला है किसी काम की,
जब अपनों के हाथों देखो, अपनों के घर जल जाते हैं!

इतनी सारी पीड़ा लेकर, लोग यहाँ पर जीते तो हैं!
वे अपनों हाथों से अपने, घाव यहाँ पर सीते तो हों!
लेकिन काश यदि वो अपने, अपनायत का सार समझते!
तो दुनिया से अपनायत के, दीपक देखो कभी न बुझते!

जो अपनों को दण्डित करके, सुखी भाव से मुस्काते हैं!
उन लोगों के जीवन में भी, दुःख के गहरे दिन आते हैं!
जब अपनों के मुख से केवल, द्वेष भावना प्रचारित हो!
जब अपनों की नीति देखो, द्वेष राग पर आधारित हो!

तब तक देखो इस दुनिया से, ये विस्फोटक  बह नहीं सकता!
जब तक मानव अपनायत के संग, दुनिया में रह नहीं सकता!"

........................चेतन रामकिशन "देव"...............................
दिनांक-२९.०९.२०१३

Friday, 27 September 2013

♥♥पुष्पों का अर्पण..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥पुष्पों का अर्पण..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पुष्पों का अर्पण करता हूँ, वीर भगत सिंह तेरे चित्र पर,
सही अर्थ में तुम ही देखो, इन पुष्पों के अधिकारी हो!

तुमने अपने रक्त से सींचा, इस भारत की इस धरती को,
तुम हर क्षण ही नमन योग्य हो, तुम वंदन के अधिकारी हो!

आज देश के देह जल रही, लोगों ने फिर तुझे पुकारा!
तू ही आकर बो सकता है, आज़ादी का अंकुर प्यारा!
आज देश के भीतर दुश्मन, अंग्रेजों से पनप रहे हैं,
आकर उनका वध करना है, झुलस रहा है भारत सारा!

तुमने जुल्म की बेड़ी काटी, अपना लहू बहाकर के भी!
तुमने सबको दिया उजाला, खुद को यहाँ जलाकर के भी!
"भगत" तुम्हारे कद के आगे, "देव" भला ये क्या लिख पाए,
एक आह भी नहीं निकली, तुमने प्राण लुटाकर के भी!

तुम रहते हो स्मृति में, तुम प्यारे और मनोहारी हो,
सही अर्थ में तुम ही देखो, इन पुष्पों के अधिकारी हो!"

(आजादी के महानायक वीर भगत सिंह को नमन)

...................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२८.०९.२०१३ —

♥♥रेशम जैसी रात..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रेशम जैसी रात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सपनों में मिलने आ जाना, प्यार की मीठी बात करेंगे!
फूलों जैसी रंग बिरंगी, रेशम जैसी रात करेंगे!
हम दोनों को साथ देखकर, चाँद भी देखो पुलकित होगा,
और गगन के तारे हमपर, खुशियों की बरसात करेंगे! 

दुनिया सारी सो जाएगी, हाल तू अपना बतला देना!
और प्यार के ढाई अक्षर, सखी मुझे तू सिखला देना!

एक दूजे का हाथ थामकर, हर मुश्किल को मात करेंगे! 
सपनों में मिलने आ जाना, प्यार की मीठी बात करेंगे…।

मुझे देखकर गजलें पढना, मुझे देखकर गीत सुनाना!
मुझे देखना जी भरकर के, नजरें अपनी नहीं चुराना!
"देव" अगर जो नींद का झोंका, आपकी आँखों से टकराए,
तो मेरे पहलु में आकर, चुपके चुपके तुम सो जाना!

सखी तुम्हारे चंहुओर हम, मखमल की सौगात करेंगे!
सपनों में मिलने आ जाना, प्यार की मीठी बात करेंगे!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२८.०९.२०१३ 

Thursday, 26 September 2013

♥♥भावों का जल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भावों का जल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है!
दर्द मिला है इतना सारा, अब खुशियों की कमी नहीं है!
नहीं पता के गमों का सागर, कितना गहरा, कितना व्यापक,
एक अरसे से चाल गमों की, देखो बिल्कुल थमी नहीं है!

लेकिन फिर भी आशाओं की, मिटटी से घर बना रहा हूँ!
अपने मन को अनुभूति की, कोमल सरगम सुना रहा हूँ!
कुछ सपने हाथों में लेकर, पाल रहा हूँ बड़े जतन से,
मैं दिल के टूटे हिस्सों को, फिर जुड़ने को मना रहा हूँ!

साँसों की गर्मी है किन्तु, हिम पीड़ा की जमी नहीं है!
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है.....

नहीं वेदना सुनती दुनिया, लेकिन फिर भी जीना तो है!
विष की तरह अपने आंसू, हर्षित होकर पीना तो है!
"देव" हमेशा मौत से डरकर, नहीं मांद में हम छुप सकते,
हमको अपने हाथों से ही, घाव गमों का सीना तो है!

दर्द से जड़वत हुआ बदन पर, उम्मीदों की कमी नहीं है!
भावों का जल सूख रहा है, अब आँखों में नमी नहीं है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२७.०९.२०१३

Wednesday, 25 September 2013

♥♥जब भी मिलने..♥♥


♥♥♥♥♥जब भी मिलने..♥♥♥♥♥♥
जब भी मिलने मेरे घर आया करो!
चांदनी बनके बिखर जाया करो!

प्यार की रात, खत्म न हो कभी,
रात का वो वजूद लाया करो!

तेरी आँखों में, डूबना भाये,
मुझसे नजरें नहीं चुराया करो!

जिस्म तो खाक में मिल जायेगा,
रूह में मेरी तुम, समाया करो!

काट लेंगे के सफर, काँटों का,
मेरे संग संग कदम, बढाया करो!

न जुदाई, न आंसुओं की तड़प,
गीत खुशियों के, सिर्फ गाया करो!

"देव" तुम बिन नहीं वजूद मेरा,
छोड़के मुझको नहीं जाया करो!"

....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-२५.०९.२०१३

Tuesday, 24 September 2013

♥♥बेघर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेघर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं!
भला कैसे कहें हम, देश के हालात बेहतर हैं!
बड़ा मायूस है निर्धन, कोई सुनता नहीं उसकी,
यहाँ तो उसके हिस्से में, महज आंसू के जेवर हैं!

खुले आकाश में भूखे पड़े, न नींद आती है!
यहाँ नेता, नहीं अफसर कोई, निर्धन का साथी है!

यहाँ देखो सभी रहजन, नहीं दिखते के रहबर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं….

यहाँ बेकारी है इतनी, युवाओं में हताशा है!
नहीं उम्मीद बाकी है, बड़ी ही क्षीण आशा है!
यहाँ निर्धन दवाओं के बिना, मर जाते हैं पल में,
भरा निर्धन के जीवन, गमों का बस कुहासा है!

कभी रुखी, कभी सूखी ही, रोटी से गुजारा है!
बहे निर्धन की आँखों से, यहाँ आंसू की धारा है!

यहाँ निर्धन की राहों में, के कांटे हैं, के नश्तर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं...

यहाँ निर्धन के चेहरे पर, हताशा है, उदासी है!
नहीं निर्धन के जीवन में, खुशी देखो जरा सी है!
सुनो तुम "देव" क्यूँ निर्धन से, ऐसे पेश आते हो,
ये निर्धन भी तो अपना है, इसी धरती का वासी है!

नहीं मालूम के निर्धन के, ये हालात कब तक हों!
नहीं मालूम उसके दुख भरे, दिन रात कब तक हों!

यहाँ निर्धन अँधेरे में, वहां खुशियों के अवसर हैं!
करोड़ों हाथ खाली हैं, करोड़ों लोग बेघर हैं!"


"
निर्धन, इस शब्द का बोध मन को होते ही एक तस्वीर सामने आती है, जो तस्वीर फटे पुराने चिथड़ों में रुखी सूखी खाकर जीने की मार सहती है! अगर वो निर्धन है तो ये उसका अपराध नहीं है, देश के शासक वर्ग का ये दायित्व है कि, वो अपनी अच्छी नीतियों के द्वारा देशवासियों को उनकी मौलिक आवश्यकतायें दे, तो आइये चिंतन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२५.०९.२०१३

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Monday, 23 September 2013

♥♥कागजी फूल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥कागजी फूल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कागजी फूलों से खुश्बू की, आस क्या रखनी!
सूखती झील से पानी की, प्यास क्या रखनी!
दर्द में भी हमें रहना है, बनके जिंदादिल,
दर्द को देखके सूरत, उदास क्या रखनी!

लोग मेहनत से यहाँ जब भी काम करते हैं!
हार का देखो वो किस्सा, तमाम करते हैं!

सोच नाकामी की जीवन के, पास क्या रखनी!
कागजी फूलों से खुश्बू की, आस क्या रखनी!

लूटकर घर न किसी का, कभी दौलत जोड़ो!
भूलकर भी न कभी, सच का साथ तुम छोड़ो!
"देव" जीवन में नहीं, टूटे दिल जुड़ा करते,
अपने हाथों से कभी, तुम न कोई दिल तोड़ो!

सारी दुनिया को यहाँ, प्यार तुम सिखाते रहो!
अपने दिल से चलो, नफरत को तुम मिटाते रहो!

सोच नफरत की भला, दिल के पास क्या रखनी!
कागजी फूलों से खुश्बू की, आस क्या रखनी!"

..............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२३.०९.२०१३

Friday, 20 September 2013

♥ग़मों की नदी..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ग़मों की नदी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!
फूलों की हसरत थी लेकिन, काँटों जैसी चुभन हुयी है!
आँखों से अश्कों की बूंदें, गिरती हैं बारिश के जैसी,
हुयी सांस भी भारी भारी, दिल में इतनी दुखन हुयी है!

झूठमूठ की हंसी को हंसकर, मैं पीड़ा को कम करता हूँ!
अपने आंसू पी पीकर ही, मैं अधरों को नम करता हूँ!

चंदन भूल गया शीतलता, अब उसमें भी अगन हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है....

दिल के सब जज्बात मिट गए, सपने सारे बिखर गए हैं!
मिट गयी खुशियों की हर रेखा, दुख के बिंदु उभर गए हैं!
"देव" गिला अब किससे करना, तकदीरों की रंजिश है ये,
अश्कों से मुंह मांज मांज कर, हम भी देखो निखर गए हैं!

करो निवेदन चाहें कितना, दुनिया लेकिन मूक बधिर है!
नहीं पसीजे "देव" यहाँ वो, मेरा कितना बहा रुधिर है!

आज न जाने क्यूँ मानवता, इस तरह से दफ़न हुयी है!
डूब गया पुल संबंधों का, नदी ग़मों की उफन गयी है!"

......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२०.०९.२०१३

Saturday, 14 September 2013

♥मूल पथों से छिटकी कविता ♥

♥मूल पथों से छिटकी कविता ♥
************************
मूल पथों से छिटकी कविता!
दर्पण जैसी चटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!

ये कविता की कमी नहीं है,
आज भाव ही सुप्त हो रहे!

आज काव्य से दिशा ज्ञान के,
भाव सभी वो लुप्त हो रहे!

जो कविता के मापदंड को,
कभी नहीं पूरित करते हों,

आज वो सारे तत्व देखिये,
कविता में प्रयुक्त हो रहे!

अभिव्यक्ति पे हुआ है हमला,
द्वेष राग में, अटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!

काव्य आत्मा की ज्योति है,
इसे लक्ष्य से दूर न करना!

ममता पूरित काव्य नदी को,
अभिमान से चूर न करना!

"देव" कभी तुम कलम पे अपने,
मिथ्या का श्रंगार न करना!

मानवता को प्रेम सिखाना,
हिंसा का प्रचार न करना!

आज मानवीय संदर्भों के,
अनुकरण से भटकी कविता!
कभी भास्कर सी उजली थी,
आज तिमिर में भटकी कविता!"

......चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-१५.०९.२०१३

♥♥तुम यदि हो...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम यदि हो...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम सुगन्धित फूल जैसी, तुम समर्पित एक नदी हो!
अब मैं तुमसे क्या छुपाऊं, तुम हमारी जिंदगी हो!
मैंने जाना है तेरे संग, प्रेम का क्या अर्थ होता,
मुझको धरती पे दिखे रब, सामने जो तुम यदि हो!

प्रेम की प्रतीक हो तुम, प्रेम की तुम भावना हो!
प्रेम का सिंगर तुमसे, प्रेम की तुम साधना हो!

तुम हमारी आस्था हो, वंदना हो, बंदिगी हो!
तुम सुगन्धित फूल जैसी, तुम समर्पित एक नदी हो…

प्रेम उस नक्षत्र जैसा, जो बनाये जल को मोती!
प्रेम से पत्थर की पूजा, प्रेम से है हर मनौती!
"देव" तुमसे प्रेम का संवाद, मन को भा गया है!
प्रेम का सुन्दर उजाला, मेरे मन पर छा गया है!

प्रेम की सुन्दर छटा से, जिंदगी भी है मनोरम!
बारह मासों से मधुर है, प्रेम का रंगीन मौसम!

तुम न हिंसा, न ही रंजिश, और न कोई बदी हो!
तुम सुगन्धित फूल जैसी, तुम समर्पित एक नदी हो!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१४.०९.२०१३

Thursday, 12 September 2013

♥♥♥गुजरे पल....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गुजरे पल....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!
घर के आँगन के पौधों को, मैं अपनायत सिखा रहा था!
मगर वक़्त के तूफानों ने, सब कुछ तहस नहस कर डाला,
अभी तलक तो मैं सपनों को, सीढ़ी एक एक गिना रहा था!

नहीं पता था इस जीवन में, मंजर ऐसे भी आयेंगे!
नाम हथेली पे लिखे जो, वो लम्हों में मिट जायेंगे!
जो हमको अपना कहकर के, देते थे अपनायत हर पल,
वही लोग खंजर लेकर के, मुझको दुश्मन बतलायेंगे!

मैं अपनी रोती आँखों को, चुप चुप होना सिखा रहा था!
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!

हाँ पर ऐसे द्रश्य देखकर, मुझे तजुर्बा बहुत मिला है!
टूटे फूटे गुलदस्ते में, सपनों का फिर फूल खिला है!
"देव" मेरे इस दर्द ने मुझको, मंत्र दिया फिर से जीने का,
इसीलिए आगे बढ़ने को, मैंने खुद का घाव सिला है!

फिर जीवन में आस जगी जब, मैं गुजरे पल भुला रहा था!
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!"

................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१३.०९.२०१३

Wednesday, 11 September 2013

♥♥जीवन का नियम.♥♥

♥♥♥जीवन का नियम.♥♥♥
कभी जहर तो कभी दवा है!
कभी घुटन तो कभी हवा है!

कभी दर्द तो कभी खुशी है,
कभी हैं आंसू, कभी हंसी है!

कभी हार तो कभी जीत है,
कभी है रंजिश, कभी प्रीत है!

कभी रिक्त है, कभी भरा है!
कभी है धुंधला, कभी खरा है!

कभी सुमन है, कभी खार है,
कभी दिलासा, कभी मार है!

कभी दंड है, कभी है मुक्ति!
कभी है उलझन, कभी है युक्ति!

कभी है कोमल, कभी चुभन है!
कभी है ज्वाला, कभी अमन है!

कभी सरल है, कभी विषम है!
इस जीवन का यही नियम है!

हंसकर चाहें,
रोकर चाहें,
इसी नियम पर चलते जाओ!

याद करेगी,
"देव" ये दुनिया,
दीपक बनकर जलते जाओ!"

…चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१२.०९.२०१३

Tuesday, 10 September 2013

♥♥एहसासों का रिश्ता....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥एहसासों का रिश्ता....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन के दर्पण पर अंकित है, छवि तुम्हारी प्यारी प्यारी!
एहसासों का रिश्ता तुमसे, तुमसे दिल की नातेदारी!
अपनी छाया देकर के तुम, मन को शीतल कर देती हो,
सखी तेरे बिन सूनी लगती, मुझको तो ये दुनियादारी!

जब तुम हंसती मुस्काती हो, तो सरसों के फूल बरसते!
सखी तेरे दर्शन पाने को, हर पल मेरे नैन तरसते!
और जब दर्शन हो जाते हैं, तो मन पुलकित हो जाता है!
तेरी सोच में, तेरे ख्वाब में, मेरा ये दिल खो जाता है!

तुमको पाकर झूम रहा मैं, महक रही है ये फुलवारी!
मन के दर्पण पर अंकित है, छवि तुम्हारी प्यारी प्यारी…।

हर पीड़ा की दवा तुम्हीं हो, एहसासों की खान तुम्ही हो!
इस दुनिया में मेरे प्रेम की, एक सुन्दर पहचान तुम्ही हो!
"देव" तुम्हारी प्यारी सूरत, मेरी रूह में समा रही है!
प्यार बिना सब कुछ सूना है, मुझको वो ये बता रही है!

तुमको पाकर सूख गयी है, वो आंसू की नदिया खारी!
मन के दर्पण पर अंकित है, छवि तुम्हारी प्यारी प्यारी!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१०.०९.२०१३

Monday, 9 September 2013

♥पीड़ा का विध्वंस.

♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा का विध्वंस...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है!
जिसको बहुत निकट समझा था, वही भीड़ में क्यूँ खोया है!
अनुभूति की फसल पकेगी, कैसे अपने मन से कह दूँ,
मिटटी ने भी उगला उसको, मैंने जो अंकुर बोया है!

बहुत निवेदन किया था मैंने, और आस्था बतलाई थी!
और दशा इस पीड़ित मन की, मैंने उसको दिखलाई थी!
एक क्षण को भी उसने देखो, नीर नहीं सोखा आँखों से,
मैंने जिसकी अभिवादन में, सुख की दौलत ठुकराई थी!

तन की दशा हुयी जड़वत है, न जागा ये, न सोया है!
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है….

कभी भूल से भी न उसको, तनिक क्षति भी पहुंचाई थी!
जिसको मैंने सही गलत की, व्यापक नीति समझाई थी!
"देव" मगर उस अपने ने ही, मार दिया है अनुभूति को,
जिसको मैंने अपनी पीड़ा और व्याकुलता बतलाई थी!

नहीं मिला कोई भी अपना, स्वयं ही अपना शव ढ़ोया है!
भाव पक्ष अश्रु से भीगा, करुण पक्ष में मन रोया है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-०९.०९.२०१३

Sunday, 8 September 2013

♥♥♥तेरी मूरत....♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी मूरत....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दूर न जाना पल भर को भी, मेरे साथ सदा रहना है!
सखी पूजकर तेरी मूरत, तुझको अपना रब कहना है!
अपने मन के एहसासों में, वसा लिया है तुझको मैंने,
नहीं हमें विरह भावों का, दर्द यहाँ एक पल सहना है!

प्यार भरे ढाई अक्षर से, मन पे तेरा नाम लिखा है!
सखी तेरे पावन चिंतन को, मैंने अपना धाम लिखा है!

नहीं थमेगा प्यार ये अपना, हमको जल बनकर बहना है!
दूर न जाना पल भर को भी, मेरे साथ सदा रहना है…।

सखी प्यार की सुन्दर किरणें, पावन ज्योति के जैसी हैं!
बनें आत्मा का आभूषण, सुन्दर मोती के जैसी हैं!
जब से सखी हमारे मन पर, प्यार भरे बादल छाये हैं!
तब से देखो द्वेष, न इर्ष्या, कभी हमारे घर आये हैं!

सखी प्यार का हम दोनों को, जग में परचम लहराना है!
साथ बहायेंगे हम आंसू, साथ साथ में मुस्काना है!
"देव" कभी जब अपनी आयु, पूरी हो जाये जीवन की,
एक दूजे की खातिर हमको, नया जन्म फिर से पाना है!

सखी तुम्हारे आदर्शों से, मुझको सच को सच कहना है!
दूर न जाना पल भर को भी, मेरे साथ सदा रहना है!"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०९.०९.२०१३

"
प्रेम-एक ऐसा शब्द, जिसमे अपनत्व का सागर छुपा है, प्रेम जिस सम्बन्ध के साथ भी हो, चाहें सखी के संग, चाहें समाज, चाहें परिवार, चाहें मानवता के संग, यदि वो समर्पण भावना से निहित है तो निश्चित रूप से गहरे आत्मिक सुख की अनुभूति देता है, तो आइये समर्पित भावों के साथ प्रेम का विस्तार करें!"

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Saturday, 7 September 2013

♥♥प्रेम का दीपक....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥प्रेम का दीपक....♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चित्त में तेरी छवि है, आत्मा में तू वसी है!
प्रेम का तू दिव्य दीपक, तू बड़ी सुन्दर सखी है!
हर घड़ी तेरा ये जीवन, हर्ष के पथ पे रहे बस,
तू ही आशा, तू ही उर्जा, और तुझसे हर खुशी है!

तुमसे शब्दों की तरंगे, तुमसे भावों की मधुरता!
जो न मिलता साथ तेरा, तो नहीं जीवन सुधरता!

मेरे हाथों में तुम्हारे, प्रेम की मेहंदी रची है!
चित्त में तेरी छवि है, आत्मा में तू वसी है…

तुम जहाँ हो खुश रहो बस, आंख को आंसू मिले न!
दर्द की तपती अगन से, ये तुम्हारा दिल जले न!
"देव" तुझको जिंदगी में, कोई उलझन न सताए,
कोई तुझको ठेस न दे, और तेरा दिल छले न!

तुम लगन हो, आस्था हो, रूह का नाता तुम्हीं से!
और व्याकुल मन को मेरे, चैन भी आता तुम्हीं से!

तुमसे पथ में हैं सुमन और तुमसे ही दुनिया सजी है!
चित्त में तेरी छवि है, आत्मा में तू वसी है!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-०७.०९.२०१३

Friday, 6 September 2013

♥♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल में हो दुख भले, चेहरे पे हंसी रख लेना,
कोई सुनता ही नहीं, दुख यहाँ ज़माने में,

बड़ी मुश्किल से यहाँ मिलती, जिंदगी देखो,
एक पल लगता है पर, जिंदगी गंवाने में!

नहीं मालूम है उसने, मुझे छोड़ा कैसे,
उम्र बीती मेरी जिस शख्स को, भुलाने में!

कैसे मुफ़लिस को बीमारी से, मिले छुटकारा,
दवा मिलती नहीं अश्कों से, दवाखाने में!

मेरे एहसास को आखिर वो समझता कैसे,
मेरे रिश्ते को लगा रस्म, जो बनाने में!

देखो उन लोगों के दिल भी, बड़े छोटे निकले,
नोट छपते हैं यहाँ, जिनके कारखाने में!

"देव" बेरंग जिंदगी है, मगर जीता हूँ,
अपनी तन्हाई के संग गुम हूँ, मुस्कुराने में!"

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०७.०९.२०१३

Thursday, 5 September 2013

♥♥जुगनू..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥जुगनू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वक़्त के साथ कोई दांव, नया चलते हैं!
हम वो जुगनू हैं जो, दीपक की तरह जलते हैं!

ये यकीं है मेरा, तुम इसको न गुरुर कहो,
हम तो गम सहके भी, फूलों की तरह खिलते हैं!

गैर तो गैर हैं, मैं उनसे क्या शिकवा रखूं,
लोग अपने भी, रकीबों की तरह मिलते हैं!

लोग आते हैं बहुत, देखने हुनर मेरा,
हम जो हाथों से अपने, ज़ख्म कभी सिलते हैं!

आदमी तो बहुत हैं "देव", मगर इन्सां कम,
बड़ी मुश्किल से यहाँ, नेक बशर मिलते हैं!"

...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-०६.०९.२०१३

Tuesday, 3 September 2013

♥♥एहसास की खुश्बू ..♥♥

♥♥♥♥एहसास की खुश्बू ..♥♥♥♥♥♥♥
मेरे एहसास की खुश्बू में, समाई है तू!
मेरी पाकीजा इबादत की, कमाई है तू!

तुझसे मिलकर मेरी आँखों में खुशी दिखती है,
मेरी बेचैन कराहों की, दवाई है तू!

थामकर हाथ तेरा मुझको, मिली है राहत,
घिरे तूफान से, बाहर मुझे लाई है तू!

तुझसा कोई भी सखी, है नहीं ज़माने में,
देख कुदरत ने तसल्ली से, बनाई है तू!

"देव" एहसास तेरे, दिल से न जुदा होंगे,
मेरे लफ्जों में ग़ज़ल बनके, समाई है तू!"

..........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०३.०९.२०१३

Monday, 2 September 2013

♥♥♥हंसने का हुनर..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥हंसने का हुनर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गम में हंसने का हुनर, मेरे दिल ने पाया है!
दर्द ने मुझको भले, रोज ही सताया है!

आदमी आदमी का दर्द, समझता ही नहीं,
आदमी है या खुदा, तूने बुत बनाया है!

अपनी आँखों में जिसके ख्वाब, वसाये मैंने,
उसने शीशे की तरह, ख्वाब हर गिराया है!

ज़ख्म भी बख्शे मगर, उसको दुआ देता हूँ,
मेरे माँ बाप ने मुझको, यही सिखाया है!

"देव" है खुद पे यकीं, मंजिलों का पाने का,
आज बेशक ही महल, रेत का बनाया है!"

...........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०२.०९.२०१३

Sunday, 1 September 2013

♥♥एक गीत..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥एक गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूठ जाऊं मैं अगर, मुझको मनाने आना!
चांदनी रात में एक, गीत सुनाने आने!

बिन तेरे चुभते हैं, काँटों मेरे पैरों में सखी,
मेरी राहों में जरा, फूल बिछाने आना!

मेरी सूरत को न दुनिया की नजर लग जाये,
मेरी मूरत को जरा दिल में, छुपाने आना!

तुमसे दूरी न सही जाये, एक पल को भी,
आखिरी सांस तलक प्यार, निभाने आना!

"देव" ये जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जायेगा,
रूह में मेरी सखी, खुद को समाने आना!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-०१.०९.२०१३