Saturday, 20 August 2011

♥ माँ तू कहाँ है... ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥ माँ तू कहाँ है... ♥♥♥♥♥♥♥♥
"माँ तू कहाँ है?
माँ तू कहाँ है?

आज माँ तेरी कमी का हो रहा एहसास है!
यूँ तो धन भी है बहुत और घर भी मेरे पास है!
आज पर जाना ये मैंने, माँ तेरे बिन कुछ नहीं,
उससे ज्यादा क्या अमीरी, माँ जो जिसके पास है!

उन घरों में रहती रौनक,
तेरे पग जहाँ हैं!
माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है.....

तेरा दिल मैंने दुखाया, आज मुझको दुःख बड़ा!
तेरी आँखों को रुलाया, आज मुझको दुःख बड़ा!
माँ तेरा अपमान करके, मैं भी अब बेनूर हूँ,
माँ मुझे अपना ले फिर से, तेरा दर पर हूँ खड़ा!

तेरे कदमों में है जन्नत,
मेरे तो जहां है!
माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है.....

मैं यहाँ हूँ लाल मेरे, आज मेरे पास तू!
न बहा आँखों से आंसू, न हो अब उदास तू!
माँ के दिल जैसा कहीं होता नहीं है दूसरा,
तोड़ना न फिर दुबारा, एक माँ की आस तू!

माँ का मन होता वहीं हैं,
लाल उसका जहाँ है!

माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है....."


"माँ- बिना उसके कुछ भी नहीं, लाल से ये न समझना की लाली कुछ नहीं, माँ की आँखों में कोई भेद नहीं, समान ममता! आओ माँ का सम्मान करें- चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 18 August 2011

♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

"डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!
 हवस के भेड़ियों ने उसकी हालत की बड़ी बदतर!
 फटे कपड़े, फटी चुनरी, हैं फूटे आंख से आंसू,
 नहीं सुनता मगर कोई, भटक के थक गयी दर दर!

हवस के भेड़िये करके भी ऐसा मुस्कुराते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर हमेशा याद आते हैं!

हवस के भेड़ियों को अब नहीं कानून का भी डर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़िये तो ये कहानी रोज लिखते हैं!
यहाँ कानून के रक्षक भी उनके हाथ बिकते हैं!
बड़ी मुश्किल से होती है जमा उस लड़की की अर्जी,
सिफारिश करके नेताओं की वो आजाद फिरते हैं!

हवस के भेड़िये कानून को ठेंगा दिखाते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर, हमेशा याद आते हैं!

नहीं भगवान भी बिजली गिराता भेड़ियों के घर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़ियों मानव का चोला ओढ़कर देखो!
हर लड़की भी मानव है, जरा तुम सोचकर देखो!
किसी पे जुल्म करने का तुम्हे तब होगा अंदाजा,
किसी हवसी को अपनी माँ बहन को सोंपकर देखो!

ऐसे पल किसी लड़की को जब भी याद आते हैं!
बदन बेजान होकर के, इरादे टूट जाते हैं!

निकलकर आंख से आंसू है करते गाल उसके तर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!"


"बलात्कार/ छेड़ छाड़ की घटना, एक लड़की के जीवन को इतना दुखी करती हैं की वो,
कितने भी प्रयास करके, उस मंजर को भुला नहीं पाती है! हवस के भेड़ियों को भी अधिकांशत कानून का रक्षक भी सराहता है!-चेतन रामकिशन "देव"

Monday, 15 August 2011

♥♥प्रेमिका( पथ प्रदर्शक)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेमिका( पथ प्रदर्शक)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

'मैंने प्यार किया है जिससे, वो अनमोल परी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है!

वो मेरे सपनो में वसती , मन में है इठलाती!
कौन गलत है, कौन सही है मुझको है समझाती!
दिवा स्वप्न बनकर आँखों में मकसद पूरा करती!
मेहनत से मिलती है मंजिल मुझको है बतलाती!

मिश्री सी मीठी है वो, चंदा जैसी निखरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

अभिमान का शब्द नहीं है, कोमल हृदय रखती!
तेज गमों की धूप में वो, बनकर साया है ढकती!
कैसे होता है आदर, सम्मान मुझे दिखलाती!
मेरे आने की आहट में भरी दोपहरी जलती!

चन्दन सी शीतल है वो, चांदी जैसी उजरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

अंधकार का नाम नहीं है, हर पल है वो ज्योति!
मेरे मन की सोच कलुषित, गंगाजल से धोती!
मेरे जीवन की पुष्पा है, "देव" की रात सुनहरी,
जुल्फें उसकी घनी मुलायम, आंखें जैसी मोती!

शबनम की बूंदों के जैसे, फूल फूल बिखरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

"शुद्ध प्रेम मानव की सोच को उन्नत करते हुए, जीवन को आदर्शवादी अस्तित्व प्रदान करता है! तो,आइये  तो प्रेम करें और इन पलों की अनुभूति करें!-चेतन रामकिशन(देव)"

Sunday, 14 August 2011

***हम खुद अपराधी हैं....**

**************हम खुद अपराधी हैं....**************
"  परिवर्तन की बात करें हम, नहीं मगर संकल्प!
   अपनी अपनी करना चाहें, यहाँ तो कायाकल्प!
   जात धर्म के नाम पे देते, नेताओं का साथ,
   बड़े गर्व से कहते हैं फिर, नहीं था कोई विकल्प!

  पहले खुद का करो आंकलन, हम भी हैं अपराधी!
  खुद देते हैं रिश्वत उनको, हम भी हैं सहभागी!

  पाषाणों के नाम पे लड़ते, सोच हमारी अल्प!
  परिवर्तन की बात करें हम, नहीं मगर संकल्प.....

  आजादी के दिन भी घर में, करते हैं मधपान!
  अपने बच्चो को सिखलाते, केवल झूठी शान!
  महापुरुषों के चित्र के सम्मुख नहीं दिए में तेल,
  तेल में बेशक बने पकोड़ी या कोई पकवान!

  अपने मन की सोच है दूषित, करते पर प्रहार!
  अपने मतलब में देते खुद, अफसर को उपहार!

  परिवर्तन की बात व्यर्थ है, यदि नहीं संकल्प!
 अपनी अपनी करना चाहें, यहाँ तो कायाकल्प!"


"सब कह रहे हैं कि, आजादी नहीं है, सही बात है पर क्या कभी अपना आंकलन किया? परिवर्तन की बात कथनी से नहीं करनी से होती है! यदि आजादी का स्वप्न देखना है तो "परिवर्तन का संकल्प लीजिये- चेतन रामकिशन "देव"

 
  

Saturday, 13 August 2011

♥---आने वाला कुछ घंटो में♥

♥♥♥♥♥♥---आने वाला कुछ घंटो में♥♥♥♥♥♥♥♥
"आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व!
भारत वासी होने पर हम, करेंगे खासा गर्व!
न जननी के चीरहरण से, फर्क हमे पड़ता है,
सत्ताधारी अम्बर बेचें, या बेचें भूगर्भ!

अपने मतलब सिद्ध करें हम, न माटी का मोल!
हम मानव की रूह नहीं हैं, केवल खाली खोल!

अपने मन में भरें जरा, हम जननी से अपनत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......

घरों से अपने हटा रहें हैं, महापुरुषों के चित्र!
देश प्रेम की घटी भावना, आलम बड़ा विचित्र!
नहीं बजा करते हैं अब तो, देश प्रेम के गीत,
गली गली हर चौराहे पर, चलें दुरित चलचित्र!

भुला चले मनमथ गुप्ता को, नहीं रहे आजाद!
विस्मृत हुयी शहादत उनकी, देशप्रेम बरबाद!

देश हितों की गर्मी आए, भरो लहू में तत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......

आजादी के दिन को हमने, बना दिया एक रस्म!
देशप्रेम तो हमने जाने, किया कभी का भस्म!
देश में शत्रु पनप रहे पर, "देव" है चिंता हीन,
इससे तो अच्छा हम पाते, पाषाणों का जन्म!

खद्दरधारी पहन के खद्दर, करें देश का अंत!
देख तमाशा खुश होते हम, बनकर बहरे संत!

सबक नहीं ले सकते जिनसे, बदलो वो क्रतत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व"


"अगली सुबह आजादी की भोर की स्मृति लेकर आएगी! किन्तु सच्चे अर्थों में देश की व्यवस्था ने देश की बहुसंख्यक आबादी को गुलाम बना दिया है! देश को फिर से महासंग्राम की जरुरत है! ये महासंग्राम हर हाल में लड़ना ही है तो फिर देर क्यूँ? - चेतन रामकिशन "देव"

Friday, 12 August 2011

**राखी-तब बंधवाना डोर----**

*************राखी-तब बंधवाना डोर----**************
        भाई बहिन तक सिमट न पाए, रक्षा का त्यौहार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!
        अपनी बहन को बहन कहो तुम, और पे अत्याचार,
        ऐसे में ये बंधन झूठा, जब हों दुरित विचार!

        खून के रिश्तों से ही बनते, यदि बहिन या भाई!
        व्यर्थ है देनी मानवता की, मिथ्या भरी दुहाई!

        डोर तभी बंधवाना तुम जब, मन का करो निखार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......

        सगी बहिन को देते हो तुम, रुपयों का उपहार!
        वहीँ किसी अबला पे करते, हिंसा की बोछार!
        कहाँ चला जाता है जब वो, नार का रक्षा बंधन,
        क्यूँ उसको पाषाण समझ कर, करते हो प्रहार!

       रक्षा बंधन हमे सिखाता, नारी का सम्मान!
       रक्षा बंधन हमे सिखाता, समरसता का ज्ञान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, बदल सको व्यवहार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......
     
       रक्षा बंधन पर बांधो तुम, राष्ट्र एकता डोर!
       मानव को मानव से जोड़ो, मिल जायें दो छोर!
       शत्रु का अब अंत करो तुम, "देव" जुटाओ जोश,
       देश बचाना चाहते हो तो, भरो भुजा में जोर!

       रक्षा बंधन पर देना है, राष्ट्र को जीवनदान!
       एक सूत्र में बंध जाओ तुम, राम हो या रहमान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, सोच में करो सुधार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!"


"आज रक्षा बंधन के पर्व पर, हमे राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बंधना है! मन से गंदे विचारों से मुक्ति देनी है! एक दूसरे को मानव से मानव को जोड़ने का संकल्प लेना है, तभी सही मायने में ये एक सार्थक रक्षा बंधन होगा, अन्यथा सिर्फ और सिर्फ एक रस्म!- चेतन रामकिशन "देव"
       




Monday, 8 August 2011

♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत!
 ऐसी सोच का धारक कहता, दलित को काला भूत!
 इनको मंदिर जाने पर भी कर देते पाबन्दी,
 खुद को किन्तु कहते हैं वो ईश्वर का एक दूत!

पशु यदि पीता है पानी, नहीं कहीं कोई बात!
दलित यदि पीना चाहे तो, मिलते डंडे लात!

धन दौलत की ताक़त से वो, करते नष्ट सबूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

कहने को आज़ादी पाए, हुए अनेकों साल!
नहीं कटा है छुआछूत का, अब तक किन्तु जाल!
नहीं पटी है खाई अभी भी, सुलग रही चिंगारी,
नहीं एकता आ पायेगी, रहा यदि ये हाल!

ऐसी घटनाओं से अब भी, रंगता है अख़बार!
मानव होकर भी मानव से, नहीं पनपता प्यार!

भेद भाव की उड़ा रहे हैं, अब भी दुरित भभूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

एक ही जैसे मानव हैं हम, एक लहू का रंग!
एक ही जैसी आकृति है, एक ही जैसा अंग!
"देव" मिटा दो अब ये दूरी, सबको गले लगाओ,
मन में रहे विकार न कोई, प्रेम की बजे तरंग!

एक मंच पर आ जाओ तो तुम, नहीं रहेगा खेद!
मानव को मानव से जोड़ो, नहीं रखो तुम भेद!

खद्दरधारी भेद न पाए, व्यूह करो मजबूत!
एक दूजे के हो जायें हम, मिट जाये ये छूत!"


हम जात धर्म, वर्ग भेद से पहले मानव हैं! हमे अपने मन से इस दुरित सोच को मिटाना होगा, तभी राष्ट्रीय एकता बन सकती है! यदि हम लोग जात धर्म के इसी जंजाल में फंसे रहे तो देश, खंडित खंडित होकर बिखर जायेगा और इस देश का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा!- चेतन रामकिशन "देव"







♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥♥♥♥♥♥
"शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो!
आस्था की भावना है, फूल का अधिवास है वो!
ना चरण की धूल है वो, रेत की भूमि नहीं,
साहसी है, निष्कपट है, सत्य का आभास है वो!

नारी बनके संगिनी, प्रेम का उपहार दे!
खुद करे पीड़ा सहन, हर्ष का व्यवहार दे!

वो रचित करती सफलता, जीत का इतिहास है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी का मन गंगाजल सा, होता नहीं विकार!
माँ बनकर के नारी देती, मधु सा मीठा प्यार!
नारी हमको देती साहस, हमको दिशा दिखाए,
नारी करती  है जीवन में, उर्जा का संचार!

नारी पुत्री रूप रचकर, हर्ष का श्रंगार दे!
वो बहन के रूप आकर, मित्रता का सार दे!

जाग्रत करती हैं चिंतन, हार का अवकाश है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी न पूजन की भूखी, वो रखती सम्मान की आशा!
नारी न वंदन की भूखी, उसको दे दो मीठी भाषा!
"देव" नहीं वो धन की भूखी, न ही उसकी सोच कलुषित,
नारी केवल ये चाहती है, भेद रहित बस हो परिभाषा!

नारी है निर्माता किन्तु, फिर भी वो आभार दे!
वो करे सम्मान सबको, वो सदा सत्कार दे!




♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥♥♥♥♥♥
"प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!
प्रेम,
चिकित्सा का रूपक है, है न कोई रोग!
प्रेम,
न कोई दुरित भावना, न लालच की रीत,
प्रेम,
वासना से उठकर है, न है कोई भोग!

प्रेम तिमिर को दूर भगाता, ऐसा है प्रदीप!
प्रेम भावना होती है तो घर घर जलते दीप!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन, केवल रहे अधूरा!
प्रेम सजाता है रंगों से, नाचे मगन मयूरा!

प्रेम,
भावना सदभावों की, न हिंसा का योग!
प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!"


"तो आइये प्रेम के रंगों से जीवन को सजायें, क्यूंकि अकेले प्रेम से ही जात, धर्म, हिंसा जैसे अनेको दुरित विचार समाप्त हो जाते हैं! प्रेम के साथ रहें-चेतन रामकिशन "देव"



Saturday, 6 August 2011

♥♥♥♥♥♥मित्रता ♥♥♥♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मित्रता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मित्रता निष्कपट, छल रहित काम है!
मित्रता एक दूजे का सम्मान है!
मित्रता एक सरस, एक सुधि भावना,
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है!

मित्रता के बिना व्यर्थ है जिंदगी!
मित्रता वंदना, मित्रता बन्दिगी!

मित्रता जीत का एक आह्वान है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है......

मित्रता फूल है, मित्रता है कली!
काली रातों में बनके धवल है खिली!
हैं मेरे सतकर्म, या है माँ की दुआ,
मित्रता आप सबकी हमे है मिली!

मित्रता के बिना सूनी है हर ख़ुशी!
मित्रता के बिना जिंदगी है बुझी!

मित्रता क्रोध हिंसा का अवसान है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है......

मित्रता धनरहित एक सम्बन्ध है!
मित्रता अपनेपन की मधुर गंध है!
मित्रता जात धर्मो की जननी नहीं,
ये मनुज से मनुज का अनुबंध है!

मित्रता के बिना धुंधली है रौशनी!
मित्रता के बिना बेअसर चांदनी!

मित्रता है सुदामा,तो घनश्याम है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है"


"मित्रता, एक ऐसा सम्बन्ध जो, जात, धर्म, सबसे ऊपर! एक मनुज को मनुज से जोड़ता है! हिंसा का अवसान करता है! आप सभी को मित्र दिवस की शुभ कामना, और ईश से प्रार्थना की सबको आप जैसे मित्र दिलायें!- चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 4 August 2011

♥श्रमिक( अब जाग जाओ ) ♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥श्रमिक( अब जाग जाओ ) ♥♥♥♥♥♥♥
"कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा!
भूख प्यास से पीड़ित है वो, उसका हर छण ह्रदय रो रहा!
श्रमिक अपने मनोभाव में, नहीं बुरा चाहता है किन्तु,
श्रमिक पर करके उत्पीडन, सत्ताधारी अदय हो रहा!

चलो बदलने नियति अपनी, उत्पीड़न का तोड़ो दर्पण!
उत्पीड़न के बनो विरोधी, तुम शत्रु का कर दो मर्दन!

सत्ताधारी आनंदित हैं, श्रमिक जीवन प्रलय हो रहा!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा.......

अपने रक्त पसीने से, श्रमिक देश को सिंचित करते!
और देश के सत्ताधारी, उन्हें सुखों से वंचित करते!
धनिक कुबेरों के हाथों में, बिकती रहती हैं सरकारें,
निर्धन के सारे स्वपनों को, सत्ताधारी खंडित करते!

सोच गुलामी की त्यागो अब, सिंह गर्जना करना सीखो!
है लड़ने का जोश नहीं तो, ख़ामोशी से मरना सीखो!

आम आदमी कांप रहा है, सत्ताधारी अभय हो रहा!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा.......

आम आदमी अब तुम जागो, अपने साहस को पहचानो!
खुद चिंतन भी करना सीखो, इनकी कथनी को न मानो!
अब सहने की आदत छोड़ो,"देव" चलो तुम रण भूमि में,
है शत्रु से मुक्ति पानी, तो लड़ने की मन में ठानो!

भय से नाता तोड़ चलो अब, शत्रु को जाकर ललकारो!
मद में चूर हुए हैं नेता, इन सबका तुम नशा उतारो!

आम आदमी दफ़न हुआ है, सत्ताधारी उदय हो रहा है!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा!"


" आम आदमी को, वंचित वर्ग को, श्रमिक को और हर उस अभावों से पीड़ित वर्ग को अपने हाथों में शक्ति का संचार करना होगा! क्यूंकि ये अभाव उनके भाग्य के नहीं हैं, इस देश की वर्तमान व्यवस्था के हैं! इस व्यवस्था को बदलना होगा! नहीं तो इस वर्ग को इसी बेबसी और भूख के अलावा कुछ नहीं मिल सकता!- चेतन रामकिशन "देव"

Tuesday, 2 August 2011

♥प्रेम की पीड़ा ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
"एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले!
 तस्वीरें सब जला चुके हैं, हमको अपना कहने वाले!
 सारे रिश्ते तोड़ चुके हैं, तोड़ गए बंधन और नाते,
 छोड़ गए सागर में तनहा, मेरे संग में बहने वाले!

आशाओं के दीप बुझाकर, शोक भरा संगीत बजाकर,
प्यार को कदमों तले दबाकर, चले गए हैं गैर बताकर!

लहू बहाके चले गए वो, संग संग पीड़ा सहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले.....

ना सोचा था कच्ची होगी, उनके प्रेम की डोर!
पहले सुख देकर के हमको, गम देंगे घनघोर!
किन्तु हम उनकी चाहत को दफ़न नहीं कर सकते,
हमने प्रेम किया है सच्चा, मेरे मन ना चोर!

जीते जी वो लाश बनाकर, अरमानों का गला दबाकर!
प्यार के सारे गीत भुलाकर, चले गए हैं गैर बताकर!

अग्नि जैसे दहक रहे हैं, खुद को चन्दन कहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले......

ना ही उनका बुरा सोचता, "देव" ना  देता श्राप!
एक दिन होगा उनको अपने, कर्म का पश्चाताप!
उनकी दुरित भावना उनको, छोड़ नहीं पायगी,
कितनी भी वो करें इबादत, कितने करलें जाप!

मुझको वो पाषाण बताकर, मेरे ह्रदय में शूल चुभाकर!
दुश्मन जैसा मुझे सताकर, चले गए हैं गैर बताकर!

कंटक जैसे बने नुकीले, खुद को उपवन कहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले!"

"प्रेम, की पीड़ा व्यक्ति को हतौत्साहित करती है और उसके आत्मविश्वास और कार्य शैली पर भी प्रभाव पड़ता है! व्यक्ति इस पीड़ा में न चाहते हुए भी समाज से अलग थलग हो जाता है! तो आइये किसी को इस पीड़ा को देने से पहले चिंतन करें-चेतन रामकिशन "देव"





Sunday, 31 July 2011

♥♥बेटी की विदाई ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेटी की  विदाई ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!
 विदा जब हो रही बेटी, तो ख़ामोशी पसर आई!
 समूचे द्रश्य नयनों के पटल पे, आ गए झट से,
कभी जिद करती थी बेटी, कभी रोई थी, मुस्काई!

जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
खड़ा कुछ दूर कोने में, उसी का भाई रोता है!

कलाई देखता अपनी, जहाँ राखी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....

विदाई के समय बेटी का भी, ये हाल होता है!
जो पल थे साथ में काटे, उन्ही का ख्याल होता है!
माँ उसके सर पे रखकर हाथ ये समझाती है उसको,
हर एक बेटी का दूजा घर, वही ससुराल होता है!

जहाँ बेटी विदा होती, विरह का काल होता है!
धरा भी घूमना रोके ,ये नभ भी लाल होता है!

नरम हाथों से माता के, कभी चोटी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....

सभी आशीष दे बेटी को, फिर डोली बिठाते हैं!
निभाना सात वचनों को, यही उसको सिखाते हैं!
किसी सम्बन्ध में बेटी कभी तू भेद ना करना,
सहज व्यवहार रखने की, उसे बातें बताते हैं!

जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
नया एक जन्म होता है, नया संसार होता है!

हंसाने, बोलने वाली सभी सखियाँ हैं मुरझाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!"

"जब बेटी की विदाई होती है, तो बड़ी पीड़ा होती है! मंडप में अश्रु बहते हैं और चरों और ख़ामोशी ! किन्तु विवाह के दायित्व का निर्वहन करना बेटी का दायित्व भी होता है! इसी विदाई के पलों को जोड़ने का प्रयास किया है!-चेतन रामकिशन "देव"



Saturday, 23 July 2011

♥शीतल रक्त धार ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥शीतल रक्त धार ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"नहीं है रक्त की बूंदों में अब तो चिपचिपाहट सी!
है प्रीति देश से लगती महज कोरी दिखावट सी!
नहीं माटी की पीड़ा से उन्हें पीड़ा की अनुभूति,
हुआ है रक्त भी शीतल, नहीं है गुनगुनाहट सी!

यहाँ "आजाद" के जैसी नहीं कोई जवानी है!
शहीदों की शहादत भी उन्हें लगती कहानी है!

नहीं संवेदना मन में, रखेंगे मुस्कराहट सी!
नहीं है रक्त की बूंदों में अब तो चिपचिपाहट सी.....

यदि जलता है भारत तो जलन इनको नहीं होती!
यदि आतंक भी फैले, तपन इनको नहीं होती!
नहीं है देशभक्ति की मनों में धारणा अब तो,
वतन को चोट लग जाये, दुखन इनको नहीं होती!

नहीं विस्मिल के जैसा साहसी, ना शौर्यवानी है!
शहीदों की शहादत भी उन्हें लगती कहानी है!

शहीदों के मरण दिन पे भी करते हैं सजावट सी!
नहीं है रक्त की बूंदों में अब तो चिपचिपाहट सी.....

यहाँ सत्ता के भक्षक भी नहीं अंग्रेज से कम हैं!
उन्ही के घर में है ज्योति, गरीबों के यहाँ तम है!
यहाँ सब "देव" का वंदन करें पाषाण मूरत में,
भरोसे भाग्य के रहते, नहीं पर हाथ में दम है!

नहीं अशफाक के जैसा कोई प्राणों का दानी है !
शहीदों की शहादत भी उन्हें लगती कहानी है!

नहीं अब रक्त में रहती है किंचित भी ललावट सी!
नहीं है रक्त की बूंदों में अब तो चिपचिपाहट सी!"

"आइये अपने रक्त में शहीदों की शहादत से उर्जा भरें, जिस माटी पे जन्म लिया यदि उसके लिए प्रेम और त्याग की भावना नहीं जगाई, तो मानव होना व्यर्थ है!-चेतन रामकिशन "देव"


Thursday, 21 July 2011

♥मेरी प्रेरणा(पथ प्रदर्शक)♥♥

♥♥♥♥♥♥♥मेरी प्रेरणा(पथ प्रदर्शक)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!
हरियाली सी सुन्दर है वो, संतो की मीठी वाणी!
मेरे भावों की अनुभूति, मेरी कविता की पहचान,
रानी जैसी मर्यादित वो, किंचित भी ना अभिमानी!

मेरी प्रेरणा इतनी सुन्दर, जैसे धवल चांदनी हो!
घनी अमावस भी ढल जाये, उसकी जहाँ रौशनी हो!

वो है ज्ञान का जलता दीपक, मैं तो केवल अज्ञानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................

शीतल है वो चन्दन जैसी, दयापूर्ण उसका व्यवहार!
दुःख की धूप में करती है, प्रेम रसों की मधुर फुहार!
समझाती शिक्षक बनकर, सही गलत की दे पहचान,
सत्य वचन का पाठ पढ़ाती, वो है मेरी रचनाधार!

मेरी प्रेरणा इतनी प्यारी, जैसे माँ की ममता हो!
किंचित भी वो भेद न रखे, प्रकृति सी समता हो!

मेरे शब्द भी छोटे पड़ते, है वो इतनी गुणवानी!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी.........................

उपलब्धि है मेरी प्रेरणा, मेरे जीवन का उपहार!
उसके बिन मैं पतझड़ हूँ,वो मेरा खिलता श्रंगार!
"देव" के मन का चिंतन है ,है भावों का दर्पण भी,
शब्दकोष में शब्द नहीं हैं,कैसे दूँ उसको आभार!

मेरी प्रेरणा इतनी अच्छी, मन में कोई विकार नहीं!
सबका हित है करना चाहती,हिंसा का उद्गार नहीं!

लाभपूर्ण है उसका दर्शन, ना मिलती किंचित हानि!
कोमल है वो रेशम जैसी, नदियों का बहता पानी!"

"मेरी प्रेरणा, ऐसी ही है! पावन, सुन्दर, सरल, मधुमयी, कोमल! चूँकि सब कुछ उसके दिशा निर्देशन से उद्धृत है! इसीलिए आज की ये रचना अपनी प्रेरणा को समर्पित कर रहा हूँ! आपको भी ऐसी ही प्रेरणा मिले, प्रकृति से यही कामना है!-चेतन रामकिशन "देव"

Sunday, 17 July 2011

♥♥प्रेम (खंडित ह्रदय)♥♥

♥♥♥♥♥♥♥प्रेम (खंडित ह्रदय)♥♥♥♥♥
"मन में अश्रुधार बह रही, ह्रदय के खंडित तार!
 जब से तूने किया है विस्मृत, मेरा सच्चा प्यार!
पथ में यूँ तो चलते फिरते, मिल जाते हैं लोग,
किन्तु तुम बिन नीरस- नीरस, हुआ मेरा संसार!

प्रेम में ह्रदय खंडना से तो, मिलता है आघात!
दिन भी पीड़ित हो जाता है, पीड़ित होती रात!

तुमने हमको दिया है साथी, पीड़ा का उपहार!
मन में अश्रुधार बह रही, ह्रदय के खंडित तार......

साथ निभाने की जीवन भर, टूट गयी सौगंध!
रक्त की धारा धीमी है , ह्रदय की कंपन मंद!
इस घातक पीड़ा का जग में, होता ना उपचार,
कितने भी प्रयास करो तुम, ना मिलता आनंद!

प्रेम के ऐसे छन करते हैं, जीवन में व्यवधान!
उत्साहों पे लगता अंकुश,धूमिल हो उत्थान!

टूट गयी मोती की माला, छूट गया श्रंगार!
मन में अश्रुधार बह रही, ह्रदय के खंडित तार......

प्रेम तो भावों का सागर है, स्वार्थ से नाता तोड़ो!
होता है अनमोल बहुत ये, इसको तुम ना छोड़ो!
जीवन में यदि प्रेम नहीं तो, "देव" भी होते पत्थर,
जीवन भर जो खंडित ना हो, ऐसा नाता जोड़ो!

प्रेम तो जीवन का निर्माता,नहीं करो अपमान!
प्रेम तो तुलसी की वाणी है, प्रेम का नाम कुरान!

प्रेम तो दीपों की माला है, नहीं कोई तलवार!
मन में अश्रुधार बह रही, ह्रदय के खंडित तार!"

"प्रेम, जीवन की आवश्यकता होती है! प्रेम, में ह्रदय खंडना से, व्यक्ति की मनोदशा प्रभावित होती है! उसके आत्म विश्वास में भी कमी आती है और वेदना से उसकी सफलता और लक्ष्य निर्धारण पर भी प्रभाव पड़ता है! तो आइये किसी को प्रेम में इस पीड़ा को देने से पहले सोचें- चेतन रामकिशन"देव"

Saturday, 16 July 2011

♥फिर दहली मुंबई ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥फिर दहली मुंबई ♥♥♥♥♥♥♥
ये मुंबई फिर से दहली है, बही है रक्त की धारा!
हुआ स्तब्ध है मानव, हुआ नम देश ये सारा!
यहाँ तो फूटते रहते हैं, अक्सर आग के गोले,
मगर सत्ता के भक्षक राख से, बनते ना अंगारा!

ये सत्ताधारी इन हमलो की, पीड़ा भूल जाते हैं!
कभी हमलो पे अंकुश को, नहीं बीड़ा उठाते हैं!

हुयी आतंक की जय है, अहिंसा गान है हारा!
ये मुंबई फिर से दहली है, बही है रक्त की धारा.....

यहाँ हमलों के दोषी भी, सुखद मेहमान से रहते!
नहीं हो सकता है उनका कुछ, इसी अभिमान में रहते!
अनेको बार इस भारत ने, ऐसे द्रश्य देखे हैं,
मगर सत्ता के भक्षक, जानकर अंजान हैं रहते!

इसी कमजोरी से आतंक, की हरियाली खिलती है!
कभी मुंबई, कभी दिल्ली,इसी अग्नि में जलती है!

मगर घटनाओं से नेता, सबक ना लेते दोबारा!
ये मुंबई फिर से दहली है, बही है रक्त की धारा.....

मधुर और प्रेम की भाषा, रटाना छोड़ना होगा!
हमे साहस से इनके व्यूह को अब तोड़ना होगा!
नहीं जागे यदि तुम "देव", तो दोहराव आएगा,
हमे इनकी तरफ शस्त्रों का, रुख अब मोड़ना होगा!

इन हमलों की वंशज, देश की कमजोर नीति है!
नहीं है देश की चिंता, वो दलगत राजनीती है!

चलो अब आग में तपकर के, हम बन जायें अंगारा!
ये मुंबई फिर से दहली है, बही है रक्त की धारा!"

"मुंबई में आतंकी हमले में मारे गए लोगों की, आत्मा की शांति की कामना करते हुए,
ऐसे नेताओं को धक्का दें, जो सियासत के लिए इस खून को भी नहीं देखते हैं!-चेतन रामकिशन "देव"

♥♥सावन (हरियाली और मिलन )♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सावन (हरियाली और मिलन )♥♥♥♥♥♥
"है फूलों पे नया यौवन, मधु वर्षा ने बिखराया!
है वायु में भी शीतलता, सरस वातावरण छाया!
चलो स्वागत करें मिलके,सभी प्रकृति के प्रेमी,
मिलन भावों से पूरित होके, सावन मास है आया!

 मयूरा नृत्य में मगनित, भ्रमर रसपान करता है!
 मिलन संयोग देता है, विरह अवसान करता है!

नए पोधे के जीवन का, नया अंकुर भी उग आया!
मिलन भावों से पूरित होके, सावन मास है आया...........

इसी सावन में झूला, झूलने की रीत होती है!
सखी के मन में, एक दूजे से गहरी प्रीत होती है!
ना कोई दोष होता है, ना कोई वर्ग का दर्पण,
सभी की छाया एक जैसी, सरल प्रतीत होती है!

सुमन से गंध ले तितली, कोयल गान करती है!
सरिता भी उमड़ करके, इसे प्रणाम करती है!

सुखद सावन के गीतों का, नया सूरज भी उग आया!
मिलन भावों से पूरित होके, श्रावण मास है आया.......

धरा भी मुस्कुराती है, गगन भी हर्ष में होता!
ये सावन और मौसम से, सदा उत्कर्ष में होता!
मधुर सावन के आनंदों से होते"देव" भी हर्षित,
इस सावन का हर छण,प्रेम के निष्कर्ष में होता!

सरस सावन में रंगों का, धनुष उत्पन्न होता है!
नहीं होता कोई अवसाद, मन प्रसन्न होता है!

धवल सी चांदनी लेके, धवल चंदा भी जग आया!
मिलन भावों से पूरित होके, श्रावण मास है आया!"


"प्रकृति, अनमोल है! वो सुखद और सुरीले छण हमे प्रदान करती है! प्रकृति की एक कड़ी का मौसम, सावन भी है! चारों और हरियाली का सुखद द्रश्य, आकाश में बनने वाले इन्द्रधनुष, मयूरा का नृत्य, मिलन की सुखद अनुभूति, नए अंकुरों का विकास- आइये सावन का स्वागत करें!-चेतन रामकिशन"देव"

Thursday, 14 July 2011

♥तुम्हारा प्रेम..... ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारा प्रेम..... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हारा नाम मुझको प्रेम का उपनाम लगता है!
तुम्हारी वाणी में कोयल का, मीठा गान लगता है!
सरल व्यवहार कि स्वामी, सरस अनुभूति के दर्शन,
नहीं मिलती कभी पीड़ा, सुखद अभिराम लगता है!

नहीं मिलती यदि तुम प्रेम का अनुभूत ना होता!
तेरे उद्गार सुनकर मन मेरा, अभिभूत ना होता!

तुम्हारा प्रेम साहसपूर्ण, उर्जावान लगता है!
तुम्हारा नाम मुझको प्रेम का उपनाम लगता है....

तुम्हारे प्रेम में निंदक विचारों से मिली मुक्ति!
तुम्हारा प्रेम देता है, हमे संघर्ष की युक्ति!
तुम्हारे प्रेम ने हमको सदा, सच्चाई ही दी है,
तुम्हारे प्रेम ने प्रदान की, मिथ्या से भी मुक्ति!

नहीं मिलती यदि तुम, प्रेम का संचार ना होता!
मेरे कंधे पे जिम्मेदारी का, अनुभार ना होता!

है तुममे रूप ईश्वर का, यही अनुमान लगता है!
तुम्हारा नाम मुझको प्रेम का उपनाम लगता है....

तुम्हारा प्रेम चिंतन में, सुखद प्रभाव रखता है!
नहीं हिंसा का दर्शन है, सदा सदभाव रखता है!
तुम्हारे प्रेम में हम "देव" के समतुल्य हो जाते,
तुम्हारा प्रेम अपनेपन का, ऐसा भाव रखता है!

नहीं मिलती यदि तुम, प्रेम का गुण गान ना होता!
मेरे जीवन से दूषित सोच का, अवसान ना होता!

तुम्हारा प्रेम आशा से भरा, आहवान लगता है!
तुम्हारा नाम मुझको प्रेम का उपनाम लगता है!"

"शुद्ध प्रेम, व्यक्ति की मनोदशा को परिवर्तित करता है! शुद्ध प्रेम, व्यक्ति के मन से, दूषित सोच और विकारों की समाप्ति करते हुए, साहस के साथ, चिंतन, मनन और संघर्ष की सोच प्रदान करता है! तो आइये इसी सोच के साथ शुद्ध प्रेम करें-चेतन रामकिशन "देव"

Sunday, 10 July 2011

♥कविता( एक शिक्षक) ♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कविता( एक शिक्षक) ♥♥♥♥♥♥♥
"कभी सागर कि गहराई, कभी शीतल सी है सरिता!
कभी पीड़ा है शूलों कि, कभी अधिवास कि ललिता!
जो शब्दों से सुशोभित हो, सदा सच भाव हो जिसमे,
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!

मनोरंजन नहीं कविता, ना फूहड़ गीत होती है!
वो साहस कि धरोहर है, ना वो निर्भीत होती है!

कभी है चन्द्र सी कोमल, कभी अग्नि की है सविता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता.....

बिना अर्थों के शब्दों का, नहीं सन्देश होती है!
सजग अनुरोध होती है, नहीं आदेश होती है!
कविता ज्ञान देती है, हमे हर स्वार्थ से उठकर,
धर्म और जात के वितरण का, ना उपदेश होती है!

नहीं अपमान है कविता, नहीं अपनाम होती है!
वो भटके को दिखाए पथ, नहीं अवसान होती है!

दृढ है सत्य वचनों सी, नहीं होती है वो पतिता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!

नहीं परतंत्र होती है, नहीं है राज दरबारी!
कविता भाव होती है, कविता मन की किलकारी!
नहीं हो भाव शब्दों में, नहीं है "देव" वो कविता,
कभी रेशम से भूमि हो, कभी होती है अभिसारी!

कविता सोच की, सदभाव की पहचान होती है!
कविता प्रेरणादायक,सदा आह्वान होती है!

कविता स्वच्छ होती है, नहीं होती है वो दुरिता!
जो शिक्षक बन के समझाए, उसी का नाम है कविता!"

"मित्रों, आज कविता पर लिखने का मन हुआ! मैंने अपने इन कुछ शब्दों में, कविता को परिभाषित किया है! -चेतन रामकिशन "देव"