Tuesday, 30 April 2013

♥♥प्रेम ग्रन्थ..♥♥



♥♥♥♥♥प्रेम ग्रन्थ..♥♥♥♥♥♥
प्रेम ग्रन्थ का विषय तुम्ही हो!
तुम कोमल हो, विनय तुम्ही हो!
तुम्ही चाँद की धवल चांदनी,
और सूर्य का उदय तुम्ही हो!

तुम्ही शाम हो, तुम्हीं सवेरा,
तुम्ही दिवस के हर पल में हो!
तुम्ही हमारी पथ प्रदर्शक,
तुम्ही हमारे कौशल में हो!
तुम लेखन में, तुम चिंतन में,
तुम्ही भाव की प्रखरता में,
तुम उर्जा में, तुम शक्ति में,
तुम्ही हमारे संबल में हो!

असीमित है, प्रेम तुम्हारा,
व्यापकता का वलय तुम्ही हो!
तुम्ही चाँद की धवल चांदनी,
और सूर्य का उदय तुम्ही हो..

तुम दर्शन की इच्छाओं में,
श्रवण का संगीत तुम्ही हो!
भले ही भौतिक जीवन है ये,
किन्तु मौलिक प्रीत तुम्ही हों!
"देव" तुम्हीं मेरे जीवन के,
प्रबंधन का अनुकथन हो,
तुम प्रभावी संबोधन में,
और सुरीला गीत तुम्हीं हो!

तुम्ही विजय की गौरव गाथा,
और संघर्षी अभय तुम्हीं हो!
तुम्ही चाँद की धवल चांदनी,
और सूर्य का उदय तुम्ही हो!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-३०.०४.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"












Sunday, 28 April 2013

♥♥दिल के टुकड़े .♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के टुकड़े .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी के दिल के टुकड़े करके, जिसे कोई अफसोस नहीं है!
जिसको अपने अभिमान पर, तनिक भी कोई रोष नहीं है!
ऐसे लोग कहाँ दुनिया में, दे सकते हैं प्यार मनुज को,
जिनके मन में मानवता का, किंचित भर भी कोष नहीं है!

भले ही खुद को अच्छा समझें, पर ये लोग नहीं हितकारी!
इन लोगों के अपने हित को, जब चाही मानवता मारी!

नहीं सुरक्षा दे सकता वो, जिसको खुद का होश नहीं है!
किसी के दिल के टुकड़े करके, जिसे कोई अफसोस नहीं है..

प्यार को कदमों तले कुचलकर, प्यार भरा लेखन न करना!
इस दुनिया में बुत से ज्यादा, मानवता का पूजन करना!
"देव" जहाँ में एटम बम से, लड़कर कुछ न मिल पायेगा,
अपने हित में अंधे होकर, मानव का शोषण न करना!

जो मजहब से ऊपर उठकर, मानवता साबित करते हैं!
वही लोग देखो दुनिया में, हर मानव का हित करते हैं!

कैसे कह दूँ किस्मत है ये, उन लोगों का दोष नहीं है!
किसी के दिल के टुकड़े करके, जिसे कोई अफसोस नहीं है!"

.........................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-२८.०४.२०१३



Saturday, 27 April 2013

♥♥हमारा मिलन..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥हमारा मिलन..♥♥♥♥♥♥♥♥
एक दूजे से जिस दिन हम मिल जायेंगे!
रंग हजारों दुनिया में खिल जायेंगे!
तिमिर दुखों का, जीवन से ढल जायेगा,
खुशी के दीपक, जीवन में जल जायेंगे!

तुम बन जाना भाव और मैं गीत बनूँ!
तुम गर्मी में बारिश और मैं शीत बनूँ!

हम सपनों की दुनिया नयी सजायेंगे!
एक दूजे से जिस दिन हम मिल जायेंगे...

प्रीत तुम्हारी नाजुक नर्म हथेली है!
प्रीत तुम्हारी हर पल नयी नवेली है!
"देव" तुम्हारे जैसा, जग में कोई नहीं,
सखी तुम्हारी छवि, बड़ी अलबेली है!

तुम पुस्तक, मैं लिपि तुम्हारी बन जाऊं!
मैं शिक्षक बनकर के, तुमको समझाऊं!

प्रीत की सरगम, जग को सदा सुनायेंगे!
एक दूजे से जिस दिन हम मिल जायेंगे!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२७.०४.२०१३

Thursday, 25 April 2013

♥♥गम का विलय..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम का विलय..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं भावों का सागर हूँ, मैं अपना रस्ता तय कर लूँगा!
अपने स्वर में दर्द वसाकर, मैं गीतों में लय कर लूँगा!
मुझे अकेला देख भले ही, मेरे दुश्मन मुस्काते हों,
लेकिन मैं अपने साहस से, अपने हक की जय कर लूँगा!

ये मेरा विश्वास है खुद पर, ये कोई अभिमान नहीं है! 
यूँ ही मैं संघर्ष करूँगा, जब तक तन बेजान नहीं है!

धीरे धीरे खून में अपने, गम का यहाँ विलय कर लूँगा!
मैं भावों का सागर हूँ, मैं अपना रस्ता तय कर लूँगा.....

इस जीवन की राह पे देखो, रोजाना बदलाव हुए हैं!
कभी यहाँ पर आंसू फूटे, कभी यहाँ पर घाव हुए हैं!
"देव" यहाँ पर पत्थर बनकर, अपने दिल को कुचल रहे हैं,
दर्द के झरने उमड़ उमड़ कर, देखो तो सैलाब हुए हैं!

जब अपने ही बदल गए तो, गैरों से क्या गिला करूँगा!
हाँ लेकिन मैं अब लोगों से, सोच समझकर मिला करूँगा!

धीरे धीरे सही राह पर, चलकर यहाँ विजय कर लूँगा!
मैं भावों का सागर हूँ, मैं अपना रस्ता तय कर लूँगा!"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२६.०४.२०१३




♥♥वक्त का सूरज,..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वक्त का सूरज,..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज भले ही वक्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है!
आज भले ही चाँद रात का, विरह भाव में तड़पाता है!
आज भले ये तारे मुझको, चिढ़ा रहे हों मेरी हार पर,
आज भले ही काला बादल, घना अँधेरा कर जाता है!

लेकिन मन में आशाओं के, दीप जलाने मैं निकला हूँ!
गम की भारी चट्टानों को, यहाँ हिलाने मैं निकला हूँ!

वही हारता है जीवन से, जो पीड़ा से डर जाता है!
आज भले ही वक़्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है...

आज भले ही बुरे वक़्त में, अपनों का रुख बदल गया हो!
आज भले ही बुरे वक्त में, पैर हमारा फिसल गया हो!
"देव" मगर वो पछतायेंगे, एक दिन अपनी मनमानी पर,
आज भले उनका अपनापन, मोम की तरह पिघल गया हो!

रोज दर्द के प्याले पीकर, शक्ति का वर्धन करता हूँ!
उठने की कोशिश रहती है, भले ही मैं कितना गिरता हूँ!

आग को सहते सहते एक दिन, लोहा कुंदन बन जाता है!
आज भले ही वक़्त का सूरज, मुझको केवल झुलसाता है!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२५.०४.२०१३


♥♥पत्थर का बुत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पत्थर का बुत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता!
सच की कीमत नहीं है कोई, झूठ यहाँ पर अद्भुत होता!
जिस इन्सां को आह किसी, नहीं सुनाई देती जग में,
बेशक वो दिखता हो मानव, पर वो पत्थर का बुत होता!

लोग यहाँ पर मिन्नत करके, भले तड़प कर मर भी जायें!
लेकिन पत्थर के बुत जैसे, मानव फिर भी जश्न मनायें!

बिन पानी के इस दुनिया में, कहाँ मरुस्थल सुरभित होता!
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता.....

इस दुनिया में मानवता का, लगभग सारा पतन हो गया!
बस अपना ही घर भरने का, हर मानव का जतन हो गया!
"देव" ये आलम देखके मेरा, दिल रोता है फूट फूट कर,
बस अपने ही सुख में शामिल, मानव का हर यतन हो गया!

दर्द किसी का समझ सके न, किसी की पीड़ा जान सके न!
वो इन्सां इंसान नहीं है, जो अपनायत मान सके न!

अभिमान ऐसे मानव का, एक दिन किन्तु है मृत होता!
रो रो कर आँखों में लाली, और मेरा मन विचलित होता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२५.०४.२०१३

Wednesday, 24 April 2013

♥नरमी का एहसास.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥नरमी का एहसास.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हें देखकर मेरे दिल में, नरमी के एहसास जगे हैं!
तुमसा खास नहीं है कोई, यूँ तो मेरे कई सगे हैं!

सखी चांदनी रात के जैसा, सुन्दर है सिंगार तुम्हारा!
बड़े भाग्य से मैंने पाया, इस जीवन में प्यार तुम्हारा!
"देव" तुम्हारे प्रेम की चाहत, मुझको हर पल उर्जा देती,
दूर हो लेकिन फिर भी करता, मैं मन से दीदार तुम्हारा!

सखी तुम्हारे प्रेम से मेरी, आँखों में ये ख्वाब उगे हैं!
तुम्हें देखकर मेरे दिल में, नरमी के एहसास जगे हैं...

तुम नेनों के पटल पे अंकित, छवि तुम्हारे वसी है मन में!
सखी मैं तेरे संग उड़ता हूँ, पंख पसारे नील गगन में!
तुमसे ही रौनक है घर में, तुमसे बागों की हरियाली,
तुमसे ही खुशियों के दीपक, जले सखी मेरे जीवन में!

सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, इस जीवन को पंख लगे हैं!
तुम्हें देखकर मेरे दिल में, नरमी के एहसास जगे हैं!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२४.०४.२०१३




Tuesday, 23 April 2013

♥♥प्रीत की खुश्बू.♥♥


♥♥प्रीत की खुश्बू.♥♥
जब से प्रीत तेरी पाई है!
तब से जीवन सुखदाई है!
उपवन खुश्बू से भर आया,
और तितली भी मुस्काई है!

प्रेम तुम्हारा बड़ा ही कोमल,
प्रेम तुम्हारा मनोहारी है!
तुम्हे देखकर खिले उजाला,
छवि तुम्हारी उजियारी है!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो,
लगता हर दिन त्योहारों सा,
सखी ईद सी, मीठी है तू,
तू रंगों की पिचकारी है!

सही रास्ता मुझे दिखाकर,
गलत दिशा भी समझाई है!
उपवन खुश्बू से भर आया,
और तितली भी मुस्काई है...

सखी तुम्हारे दर्शन पाकर,
मेरी हर प्रभात सुखद हो!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो,
पूनम सी हर रात सुखद हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको,
अपनेपन का दिया समुन्दर,
सखी दुआ है युगों युगों तक,
हम दोनों का साथ सुखद हो!

सखी तुम्हारा रूप देखकर,
धवल चांदनी शरमाई है!
उपवन खुश्बू से भर आया,
और तितली भी मुस्काई है!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२३.०४.२०१३

"
प्रीत-जहाँ, परस्पर प्रीत होती है, वहां जीवन, समस्याओं की कठिनता के बाद भी,
पथरीला नहीं लगता! प्रेम जहाँ होता है, वहां अभावों में जीवन पथ सरल हो जाता है!"

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
' मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Monday, 22 April 2013

♥♥तुम्हारी समझ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी समझ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी!
हाँ ये सच है बिना तुम्हारे, ये जीवन की डगर अधूरी!

मैंने तुमको मानवता के नाते, अपना मान लिया था!
साथ तुम्हारे खुश रहने का, अवसर मैंने जान लिया था!
तेरे साथ चाहता था क्यूंकि, "देव" तेरा कद था नूरानी,
मैंने तेरे अपनेपन से, इतना तो पहचान लिया था!

नहीं पता के तुमने मुझसे, क्यूँ कर ली मीलों की दूरी!
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी....

शायद रिश्तों की दुनिया ही, तुमको बड़ी अनूठी लगती!
इन रिश्तों के आगे तुमको, मानवता भी झूठी लगती!
पर मेरा दिल कहता है के, मानवता सबसे ऊपर है,
लेकिन तुमको मानवता की, डोर हमेशा टूटी लगती!

बुरे वक़्त में कब होती है, किसी के दिल की हसरत पूरी!
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी!"

...................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२२.०४.२०१३

♥♥शब्दों की कराह.♥♥




♥♥शब्दों की कराह.♥♥♥♥
शब्दों का मन कराह रहा है,
कुछ कह पाना भी मुश्किल है!
आज का मानव हुआ है दानव,
नजर मिलाना भी मुश्किल है!
कुदरत की अनुपम कृति को,
नोंच रहें हैं, काम पिपासु,
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है!

सजा मौत की सही है लेकिन,
ये बहशीपन चलेगा कब तक!
यहाँ आदमी दानव बनकर,
मानवता को छलेगा कब तक!
रोज रोज हर चौराहे पर,
नारी की अस्मत लुटती है,
नहीं पता के इस नारी को,
इज्ज़त का हक, मिलेगा कब तक!

तन पे छाले पड़े हमारे,
अब दिखलाना भी मुश्किल है!
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है....

दंड नहीं है, श्राप नहीं है,
नारी होना पाप नहीं है!
नारी तो है खिले सुमन सी,
वो दुख का संताप नहीं है!
"देव" यहाँ पर देखो अब तुम,
नर-नारी को एक नजर से,
नारी का अस्तित्व है व्यापक,
वो कोई धुंआ, भाप नहीं है!

रोम रोम में दर्द है गहरा,
बदन हिलाना भी मुश्किल है!
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२२.०४.२०१३

Sunday, 21 April 2013

♥♥गम की रात..♥♥


♥♥♥♥♥गम की रात..♥♥♥♥♥
दिल का हाल सुनाया जिसको!
अपना यहाँ बताया जिसको,
वही अँधेरा सोंप गया है,
दीपक सदा दिखाया जिसको!

काश हमारी आह समझते!
ये पथरीली राह समझते!
काश समझकर मेरे आंसू,
मेरे मन की चाह समझते!

वही गिराकर चला गया है,
मैंने सदा उठाया जिसको!
वही अँधेरा सोंप गया है,
दीपक यहाँ दिखाया जिसको...

गिला नहीं है उससे कोई,
ये किस्मत की बात है शायद!
इक दिन सूरज भी निकलेगा,
"देव" ये गम की रात है शायद!

मिला वही अनजानों जैसा,
दिल में सदा वसाया जिसको!
वही अँधेरा सोंप गया है,
दीपक यहाँ दिखाया जिसको!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२१.०४.२०१३


Tuesday, 16 April 2013


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नया उजाला..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नया दिवस है, नया उजाला, जल की ये शीतल धारा है!
निशा तिमिर की बीत चुकी है, और सूरज का उजियारा है!
वही यहाँ पर समस्याओं से, लड़ के आगे बढ़ा है एक दिन,
जिस मानव ने साहस के संग, समस्याओं को ललकारा है!

ये जीवन है यहाँ पे निश दिन, समस्याओं के पल आते हैं!
किन्तु मन में साहस हो तो, तिमिर में दीपक जल जाते हैं!

वही शांत रहता है मन से, क्रोध को जिसने भी मारा है!
नया दिवस है, नया उजाला, जल की ये शीतल धारा है....

सही बात है किस्मत का रुख, सदा यहाँ सुखमय नहीं होता!
किन्तु किस्मत से डरकर भी, जीवन का पथ तय नहीं होता!
"देव" हमे करना होगा कुछ, किस्मत कर्म नहीं करती है,
वही विजय पाता है रण में, जिसे हार का भय नहीं होता!

बस किस्मत की राह देखकर, जीवन को बरबाद न करना!
तुम औरों को दुख देकर के, अपना घर आबाद न करना!

वो क्या जंग करे जीवन से, साहस ही जिसने हारा है!
नया दिवस है, नया उजाला, जल की ये शीतल धारा है!"


....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१७.०४.२०१३
"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
" मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

(पेंटिंग साभार--प्रिय मित्र कुसुम जी!)

Monday, 15 April 2013

♥गम का तहखाना.♥


♥♥गम का तहखाना.♥♥
गम के गहरे तहखाने में!
और आंसू के मयखाने में!
अब खुशियों की नहीं तमन्ना,
डर लगता है मुस्काने में!

हवा है लेकिन घुटन बहुत है!
इन आँखों में चुभन बहुत है!
सुनो जरा हौले से छूना,
मेरे दिल में दुखन बहुत है!

दुख के बादल उमड़ रहे हैं,
गम देने को, नजराने में!

अब खुशियों की नहीं तमन्ना,
डर लगता है मुस्काने में...
अपना कहकर बनें पराये!
लोगों का रुख समझ न आये!
"देव" जिसे मलमल का समझो,
वो इन्सां ही ठेस लगाये!

बिन उसके ये दिल नहीं लगता,
उमर बीत गयी समझाने में!

अब खुशियों की नहीं तमन्ना,
डर लगता है मुस्काने में!"
..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-१५.०४.२०१३

Sunday, 14 April 2013

♥♥द्वन्द..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥द्वन्द..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
द्वन्द कभी अपनों से होता, द्वन्द कभी होता है मन से!
द्वन्द कभी होता सपनों से, द्वन्द कभी होता है तन से!

जीवन के हर पथ पर देखो, द्वन्द हमेशा होता रहता!
लाख हँसे बाहर से कोई , पर भीतर से रोता रहता!
कभी कोई अपनों से छलकर, पत्थर जैसा हो जाता है,
और कोई पत्थर होकर भी, मोम की फसलें बोता रहता!

द्वन्द कभी हो निर्धनता से, द्वन्द कभी होता धन से!
द्वन्द कभी होता सपनों से, द्वन्द कभी होता है तन से...

लेकिन द्वन्द भले हो कितना, धीरज नहीं हमें खोना है!
हमे निराशा के अंकुर को, कभी नहीं मन में बोना है!
"देव" कभी तुम द्वन्द के कारण, नहीं भटक जाना राहों से,
हमे द्वन्द से भय खाकर के, नहीं यहाँ हरगिज रोना है!

द्वन्द कभी पीछा ना छोड़े, द्वन्द सदा होता जीवन से!
द्वन्द कभी होता सपनों से, द्वन्द कभी होता है तन से!"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१५.०४.२०१३

♥♥प्रतीक्षा की घड़ी.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रतीक्षा की घड़ी.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रतीक्षा की कठिन घड़ी ये, काटे से भी कट नहीं पाती!
बिना तुम्हारे रात चांदनी, सखी मुझे अब नहीं सुहाती!
तारे गिनकर बिता रहा हूँ, कठिन रात के कठिन पहर को,
सखी मेरी आँखों को देखो, बिना तुम्हारे नींद न आती!

सखी मेरी तू आ जाया कर, बिना तुम्हारे कुछ न भाये!
नहीं सहन होती ये पीड़ा, जहर विरह का पिया न जाये!

बिना तुम्हारे ख़ामोशी है, कोयल कलरव नहीं सुनाती!
प्रतीक्षा की कठिन घड़ी ये, काटे से भी कट नहीं पाती...

मैं मज़बूरी समझ भी जाऊं, लेकिन दिल किसकी सुनता है!
रात को चाहें या दिन निकले, बस तेरे सपने बुनता है!
"देव" मेरा दिल कहता है के, एक दिन तुम आओगी मिलने,
इसी आस में सखी मेरा दिल, फूल तेरी खातिर चुनता है!

बिना तुम्हारे जान नहीं है, मेरा तन बेजान हुआ है!
सखी मेरी व्याकुल आँखों को, हर पल तेरा ध्यान हुआ है!

सखी तुम्हारे बिन आँखों की, प्यास जरा भी बुझ नहीं पाती!
प्रतीक्षा की कठिन घड़ी ये, काटे से भी कट नहीं पाती!"

...................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-१४.०४.२०१३



Saturday, 13 April 2013

♥♥भीम को नमन..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥भीम को नमन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जो शोषक वर्ग से, संघर्ष का आहवान करते हैं!
जो अपने कर्म से, मानव हितों का मान करते हैं!
जो हमको दे गए, शिक्षा यहाँ, संघर्ष की बातें,
हम ऐसे भीम का, मन से सदा सम्मान करते हैं!

अभावों में भी रहकर, ज्ञान का दीपक जलाया है!
दबे, कुचले हुए मानव को, सीने से लगाया है!

जो औरों के लिए अपनी खुशी, प्रदान करते हैं!
हम ऐसे भीम का, मन से सदा सम्मान करते हैं..

महापुरुष लोग जाति की, परिधि में नहीं होते!
महापुरुष लोग हिंसा के, कभी अंकुर नहीं बोते!
महापुरुष लोग देखो "देव" हैं, वंदन के अधिकारी,
महापुरुष लोग सच्चाई के रस्ते को, नहीं खोते!

नहीं जाति में आंकों तुम, वो सबके काम आते हैं!
हम अपने शीश को बाबा तेरे, सम्मुख झुकाते हैं!

जो खुद जलकर भी, औरों का सफर आसान करते हैं!
हम ऐसे भीम का, मन से सदा सम्मान करते हैं!"

.................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१४.०४.२०१३( भारत रत्न डॉ.भीम राव अम्बेडकर को उनकी जयंती पर नमन!"











Friday, 12 April 2013

♥♥सितारों की लड़ी..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सितारों की लड़ी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गगन के चाँद सी सुन्दर, सितारों की लड़ी हो तुम!
तुम्ही पायल की छम छम में, अंगूठी में जड़ी हो तुम!

हो मुझसे दूर मीलों पर, हमेशा पास लगती हो!
मेरे ख्वाबों का तुम देखो, जवां एहसास लगती हो!
सुनो ए "देव" मैं तुम बिन, कभी खुश हो नहीं सकता,
तुम्हीं सारे ज़माने में, मुझे बस ख़ास लगती हो!

मेरे दुख में, मेरे गम में, मेरे संग में खड़ी हो तुम!
गगन के चाँद सी सुन्दर, सितारों की लड़ी हो तुम!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१२.०४.२०१३

Thursday, 11 April 2013

♥♥मेरा वजूद..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरा वजूद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझको बतलाओ मुझे, कैसे भुलाओगे तुम!
प्यास नजरों की भला, कैसे बुझाओगे तुम!

मेरी उल्फ़त तेरे चेहरे पे, नजर आती है,
मेरी चाहत को यहाँ, कैसे छुपाओगे तुम!

मैं अभी जिंदा हूँ तो, मान भी जाऊंगा मगर,
बाद मरने के मुझे, कैसे मनाओगे तुम!

खून से अपने जो ख़त, मैंने तुम्हे लिखे थे,
हाथ कांपेंगे उन्हें, कैसे जलाओगे तुम!

"देव" ये जिस्म है मिट्टी का, सतालो लेकिन,
रूह से अपनी, नजर कैसे मिलाओगे तुम!"

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-११.०४.२०१३

Wednesday, 10 April 2013

♥♥♥व्याकुल मन...♥♥♥




♥♥♥व्याकुल मन...♥♥♥♥♥♥♥♥
कंठ भर गया रोते रोते, साथ साथ ये मन व्याकुल है!
दर्द भरा है इतना दिल में ,रोम रोम भी शोकाकुल है!
है संवेदनहीन जहाँ ये, कोई किसी का दर्द न जाने,
मेरा मनवा तड़प रहा है और मेरी आँखों में जल है!

अब कोई जज्बात न समझे, सब रहते हैं अपनी धुन में!
नहीं पिघलता पत्थर का दिल, भले निवेदन करो रुदन में!

लोग यहाँ मदिरा को देखो, कहते हैं के गंगाजल है!
कंठ भर गया रोते रोते, साथ साथ ये मन व्याकुल है....

ऐसी दौलत का क्या करना, जिसका मन सम्पन्न नहीं हो!
भूख की कीमत उससे जानो, जिसके घर में अन्न नहीं हो!
कभी जरा तुम गौर से देखो, उसकी गहरी तन्हाई को,
बिना हमारे जिस मानव का, एक पल भी प्रसन्न नहीं है!

किसे सुनायें हम हालेदिल, वक़्त किसी के पास नहीं है!
लगता है मेरी किस्मत को, ख़ुशी का लम्हा रास नहीं है!

आसमान भी आग बरसता, और यहाँ पथरीली थल है!
कंठ भर गया रोते रोते ,साथ साथ ये मन व्याकुल है....

जो पत्थर बनकर के खुश हैं, उनको मोम नहीं भाता है!
कभी किसी का दर्द देखकर, उन को तरस नहीं आता है!
"देव" यहाँ पर जिस मानव के, मन में होती है मानवता,
वो मानव ही जनमानस के दर्द का, साथी बन पाता है!

मानवता के नाते जिस दिन, तुम मानव से प्यार करोगे!
वो दिन ऐसा होगा जब तुम, खुशियों का दीदार करोगे!

इस दुनिया में प्रेम की दौलत, मानो रेशम और मलमल है!
कंठ भर गया रोते रोते ,साथ साथ ये मन व्याकुल है! "

"
पीड़ा- ये सच है कि पीड़ा से कोई भी अछूता नहीं, किन्तु पीड़ा के मायने तब कहीं अधिक बढ़ जाते हैं, जब सामने वाला ऐसा व्यक्ति हमे पीड़ा देता है, जिस पर हम बहुत यकीन और नेह रखते हों, तो आइये जरा चिंतन करते हुए, किसी को दर्द कम से कम देने की कोशिश करें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१०.०४.२०१३













Tuesday, 9 April 2013

♥♥काश समझते मेरे मन.♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥काश समझते मेरे मन.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश समझते मेरे मन को, काश मेरे दिल को पढ़ पाते!
न ही मुझसे दूरी करते, न ही मुझसे नजर चुराते!

बिना मेरा दिल पढ़े भला तुम, कैसे मेरे भाव समझते!
अपनेपन के भावों के बिन, कैसे मेरे घाव समझते!
"देव" अगर तुम इक अक्षर भी, पढ़ लेते मेरी चाहत का,
तो तुम मेरे दर्द समझकर, आँखों का सैलाब समझते!

मुझे गिराकर तुम यूँ हमदम, अगली सीढ़ी न चढ़ जाते!
काश समझते मेरे मन को, काश मेरे दिल को पढ़ पाते!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०९.०४.२०१३

Monday, 8 April 2013

♥♥तन्हा रात .♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तन्हा रात .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
फिर से तन्हा रात आ गयी, चुपके चुपके रोना होगा!
जबरन अपनी आंख मूंदकर, हमको फिर से सोना होगा!

नहीं पता था प्यार में हमको, दर्द मिलेगा इतना सारा,
गुमसुम गुमसुम होगा ये दिल, चैन भी अपना खोना होगा!

नहीं कोई गिरते इन्सां को, यहाँ सहारा देता यारों,
अपने ही कंधे पर हम को, अपना ये तन ढ़ोना होगा!

तुमसे कोई गिला नहीं है, नहीं शिकायत मुझको कोई,
शायद मेरी किस्मत में ही, ये सब देखो होना होगा!

"देव" न कोई पढ़ ले मेरी, रोनी सूरत के लफ्जों को,
दिन निकले से पहले अपनी, सूरत को फिर धोना होगा!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०८.०४.२०१३




Friday, 5 April 2013

♥♥मेरी ख्वाहिश..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी ख्वाहिश..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सारी दुनिया जीत के मैंने, नहीं सिकंदर बनना चाहा!
मजलूमों का खून बहाकर, नहीं धुरंधर बनना चाहा!
बस ऐसा बनना चाहा के, जिसे देखकर दुनिया खुश हो,
हसरत रखी सदा झील की, नहीं समुन्दर बनना चाहा!

जिस मानव के जीवनपथ में, अच्छाई की लय होती है!
उस मानव की इक दिन देखो, सारे जग में जय होती है!

न आंधी की मुझे तमन्ना, नहीं बबंडर बनना चाहा!
सारी दुनिया जीत के मैंने, नहीं सिकंदर बनना चाहा...

न दौलत की हसरत दिल में, न महलों के जैसा घर हो!
सदा रहे जीवित मानवता, गलत काम से मुझको डर हो!
"देव" मैं अपनी नजरों को बस, मिला सकूँ खुद की नजरों से,
मेरी इच्छा नहीं कभी भी, मेरे क़दमों में अम्बर हो!

सच की राह पे चलने वाले, भले ही कुछ पीड़ा पाते हैं!
लेकिन इक दिन आता है जब, सच के लम्हें मुस्काते हैं!

न चाहत है तलवारों की, न ही खंजर बनना चाहा! 
सारी दुनिया जीत के मैंने, नहीं सिकंदर बनना चाहा!"

.................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-०५.०४.२०१३

Wednesday, 3 April 2013

♥♥फुर्सत.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥फुर्सत.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज दर्द के गलियारों से, दो पल फुर्सत के लाया हूँ!
खुली हवा में सांसें ली हैं और जी भर के मुस्काया हूँ!

फुर्सत के इन दो लम्हों का, मंजर देखो बड़ा ही प्यारा!
नदियाँ मुझसे मिलने दौड़ीं, हरियाली ने मुझे दुलारा!
"देव" हमेशा इन लम्हों की, याद रहेगी मेरे दिल को,
इन छोटे से दो लम्हों ने, मन से दुख का बोझ उतारा!

आज मिली है इतनी फुर्सत, गिरकर देखो उठ पाया हूँ!
आज दर्द के गलियारों से, दो पल फुर्सत के लाया हूँ!"

...................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०३.०४.२०१३


Tuesday, 2 April 2013

♥♥मखमल का दिल.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मखमल का दिल.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पत्थर जैसी इस दुनिया में, मखमल का दिल ढूंढ रहा हूँ!
जिसकी ठंडक दिल को भाए, ऐसा आँचल ढूंढ रहा हूँ!

आसमान में मार धुँयें की, और रसायन पानी में है,
मैं गंगा के पानी में ही, अब गंगा जल ढूंढ रहा हूँ!

बिन पानी के जिन खेतों की, फसलें देखो झुलस रही हैं,
आज उन्ही खेतों की खातिर, गीला बादल ढूंढ रहा हूँ!

कौन कौन है ऐसा जिसने, इस जनता को नहीं छला हो,
आज सियासी भारत का मैं, इक ऐसा दल ढूंढ रहा हूँ!

"देव" नहीं सुनता है कोई, इस दुनिया में दर्द किसी का,
इसीलिए तो अपने दुख का, अब खुद ही हल ढूंढ रहा हूँ!"

...................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०३.०४.२०१३



♥♥कंठ की प्यास.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कंठ की प्यास.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्यास कंठ की बुझ न पाई, बिन छाया के जला पथ में! 
लोग ठोकरें मार रहे हैं, पत्थर बनकर ढला हूँ पथ में!

जब जी चाहा मुझे रुलाया, करुण निवेदन भी ठुकराया, 
बिना तुम्हारे आंखें रोयीं, बिना तुम्हारे दिल मुरझाया!
फिर भी तुमसे गिला नहीं है, "देव" नहीं रंजिश है कोई,
किस्मत में जो लिखा होगा, वो सब मेरे हिस्से आया!

जिसको मैंने अपना माना, उसी के हाथों छला हूँ पथ में!
प्यास कंठ की बुझ न पाई, बिन छाया के जला पथ में!"

.................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-०२.०४.२०१३

Monday, 1 April 2013

♥♥ताजमहल पर..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ताजमहल पर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ताजमहल पर लिखा सबने, लेकिन मैं तुम पर लिखूंगा!
मैं मुफ़लिस का दर्द देखकर, अपनी आंखे तर लिखूंगा!

जब भी दर्द मिला है मुझको, मेरी माँ ने मुझे संभाला,
इसीलिए मैं माँ के दिल को, ममता का इक घर लिखूंगा!

जुर्म बढ़ गया इतना सारा, बेटी घर से निकल न पाए,
उस बेटी के नाजुक दिल का, सहमा सहमा डर लिखूंगा!

जिस दुनिया को देखा न हो, उस दुनिया में ले जाते हैं,
मैं अपने प्यारे ख्वाबों को, किसी परी के पर लिखूंगा!

झूठ बोलकर "देव" किसी से, अपनायत की चाह नहीं है,
सच्ची चाहत के सजदे में, बेशक अपना सर लिखूंगा!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०१.०४.२०१३