Friday, 31 January 2014

♥♥हौले-हौले...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥हौले-हौले...♥♥♥♥♥♥♥♥
रात सुनसान है हौले से जरा बात करें!
चोरी चोरी चलो चुपके से मुलाकात करें!

प्यार से रंग दें जमीं और ये अम्बर हमदम,
प्यार के रंग से रोशन, ये कायनात करें!

अपनी चाहत न जले, आग में जुदाई की,
साथ मिलकर के जुदाई की चलो मात करें!

अपने दिल की ये जमीं, प्यार बिना सूखे नहीं,
रात दिन प्यार की मीठी, चलो बरसात करें!

आँख से आँख मिलें और रहें लब चुप चुप,
होके खामोश भी आपस में सवालात करें!

चाहतें देख के सीखे ये जमाना उल्फत,
प्यार से पैदा चलो अपने वो हालात करें!

"देव" ये प्यार हमें देगा, रूह की खुशियां,
आज काँटों पे भले, प्यार की शुरुआत करें!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-३१.०१.२०१४

Tuesday, 28 January 2014

♥♥तुम पिता हो मेरे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥तुम पिता हो मेरे..♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम पिता हो मेरे, रब जैसी शान धरती पर!
आपके नाम से पहचान मेरी धरती पर!
खून से अपने पसीने से मुझे सींचा है,
तुमसे हर राह है आसान मेरी धरती पर!

कभी गलती पे पिता, तुमने हमें डाँटा है!
प्यार हर हाल में पर, तुमने यहाँ बाँटा है!
तुमने हर पल ही मेरे पथ में फूल बरसाये,
चुन लिया राह से मेरी, जो अगर काँटा है!

तुमसे होठों पे है, मुस्कान मेरी धरती पर!
तुम पिता हो मेरे, रब जैसी शान धरती पर!

माँ तो माँ है के पिता भी, नहीं कम होता है!
देखके बच्चों का दुख, उसको भी गम होता है!
"देव" बच्चों को कोई, न तड़प मिले उसके,
बस यही सोच यही, उसका करम होता है!

तुमसे खुशियों की पिता खान, यहाँ धरती पर!
तुम पिता हो मेरे, रब जैसी शान धरती पर!"

...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२८.०१.२०१४ 

"
मेरे स्वर्गीय पिता स्व. रामकिशन जी को समर्पित शब्द भाव, धरती पर रब जैसा होता है पिता, पिता को नमन "

♥♥प्यार की निशानी..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥प्यार की निशानी..♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी बेचैन निगाहों को तुम सताती हो !
सामने आऊँ तो पलकों को तुम झुकाती हो!

जब नहीं मिलता मैं तुमसे तो बेक़रारी में,
मेरी तस्वीर को सीने से तुम लगाती हो!

प्यार है मुझसे तुम्हें, कहने मैं ये डर कैसा, 
नाम सुनकर के मेरा, तुम क्यूँ चौंक जाती हो!

बात मैं तेरी सहेली से, कभी करता जो,
बड़ी मायूसी में गुस्से से, मुँह बनाती हो!

कहना चाहती हो मगर लफ्ज़ नहीं फूटें तो,
अपनी ख़ामोशी से हर बात कहे जाती हो!

मुझको देने के लिए प्यार की निशानी में,
एक रुमाल पे तुम फूल को सजाती हो!

"देव" तुम दिन में मेरे घर में उजाला लाओ,
रात में चांदनी बनकर के, उतर जाती हो!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक-२८.०१.२०१४

Monday, 27 January 2014

♥♥♥तंज...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥तंज...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तोड़के दिल मेरा अब लोग हँसा करते हैं!
मेरे अपने ही मुझे तंज कसा करते हैं!

उनकी आँखों में चुभें झोपड़ी गरीबों में,
लोग दौलत का यहाँ इतना नशा करते हैं!

आज उस मुल्क की दीवार पे खूँ के छींटे,
जहाँ पत्थर में भी भगवान वसा करते हैं!

बेटा जन्मा तो लोग जश्न मनाने निकले,
और बेटी के गले फंदा कसा करते हैं!

वक़्त जब आये बुरा, तो नहीं चलती खुद की,
जाल में बाज के जैसे भी फँसा करते हैं!

उसको मिट्टी की शरारत का तजुर्बा होता,
पांव जिसके यहाँ दलदल में धँसा करते हैं!

"देव" मुझको न गिला तुमसे कोई शिक़वा है,
लोग पहले यहाँ अपनों को डसा करते हैं! "

...........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक-२७.०१.२०१४

Sunday, 26 January 2014

♥♥दो घड़ी को ही...♥♥

♥♥♥♥♥♥दो घड़ी को ही...♥♥♥♥♥♥♥♥
दो घड़ी को ही सही, वक़्त निकाला होता!  
मेरे गिरते हुए क़दमों को संभाला होता!

तेरे एहसास से ही, मुझको ख़ुशी मिल जाती,
मेरे जज़्बात को गर, तुमने जो पाला होता!

उम्र भर तेरे हुस्न की, मैं कदर करता पर,
कोयले जैसा तेरा दिल, नहीं काला होता!

नाम बेटों से भी ऊँचा वो जहाँ में करती,
तुमने बेटी को अगर शौक से पाला होता!

जिनको एहसास नहीं वो क्या समझते दुख को, 
उनके क़दमों में अगर दिल को भी डाला होता!

कमी औरों से भी ज्यादा तुम्हे लगती खुद की,
अपने दिल को जो कभी तुमने खंगाला होता!

"देव" तुम जानते क्या होती तड़प चाहत की,
तेरे दिल में भी अगर दर्द का छाला होता!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-२6.०१.२०१४

Friday, 24 January 2014

♥♥बीते हुए लम्हे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥बीते हुए लम्हे♥♥♥♥♥♥♥♥
जब भी बीते हुए लम्हों पे नजर जाती है!
ख्वाब की दुनिया पुरानी सी नजर आती है!

बड़ी मेहनत से उजालों को पनाह दी मैंने,
और हवा पल में चरागों की लौ बुझाती है!

कौन समझेगा यहाँ नाते, वफ़ा, अपनापन,
अब तो दौलत की धुंध रिश्तों पे छा जाती है!

दिन तो कट जाता है रोटी की जुगत में लेकिन,
हाँ मगर रात ये पीड़ा की ग़ज़ल गाती है!

तोड़कर दिल मेरा न उनको कोई दुख पहुंचे,
मेरे होठों से मगर आह निकल जाती है!

कैसे जीते हैं वो मुफ़लिस जरा पूछो उनसे,
जिनके आंगन में दीया और नहीं बाती है!

"देव" मैं अपनी उम्र, जिनकी याद में जीता,
क्या खबर उनको मेरी याद, कभी आती है!"

..........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-२४.०१.२०१४

Tuesday, 21 January 2014

♥♥♥ज़ख्मों की दवा...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥ज़ख्मों की दवा...♥♥♥♥♥♥♥♥
हम तो तेज़ाब से ज़ख्मों की दवा करते हैं!
तू नही तो तेरी यादों से वफ़ा करते हैं!

रात दिन तूने हमें दर्द, बद्दुआ बख्शी,
हम तेरी वास्ते लेकिन के, दुआ करते हैं!

अपनी तन्हाई में हम तेरे ख्यालों को बुला,
तेरी तस्वीर को हौले से छुआ करते हैं!

जिंदा इंसान की न हमको कदर है लेकिन,
पूजके हम भले पत्थर को खुदा करते हैं! 

किसी इंसान के ज़ज्बात को कुचलकर के,
जिस्म को लोग यहाँ जां से जुदा करते हैं!

न मिली दर्द की फसलों की हमें लागत भी,
लोग हर हाल में अपना ही नफ़ा करते हैं!

"देव" ये लोग शराबों पे रकम फूंके पर,
किसी भूखे को मगर घर से दफ़ा करते हैं!"

...........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-२१.०१.२०१४

Sunday, 19 January 2014

♥♥माँ का आँचल ...♥♥

♥♥♥♥♥माँ का आँचल ...♥♥♥♥♥
अपने हाथों से मेरे केश संवारे माँ ने!
मेरे बिगड़े हुए सब काम सुधारे माँ ने!
माँ के हाथों की छुअन में तो एक जादू है,
मेरे दामन में जड़े देखो सितारे माँ ने!  

माँ के आँचल में मेरी, रात, सहर होती है!
माँ को हर लम्हा मेरी कितनी फिकर होती है!

मेरी खुशियों को किये दुख में गुजारे माँ ने!
अपने हाथों से मेरे केश संवारे माँ ने.....

माँ मुझे प्यार बहुत, मुझको दुआ देती है!
माँ घुटन में भी मुझे देखो हवा देती है!
मेरे दुख दर्द में ममता का सहारा देकर,
मेरे हर मर्ज़ में माँ मुझको दवा देती है!

दर्द के साये मेरे सर से उतारे माँ ने!
अपने हाथों से मेरे केश संवारे माँ ने....

सारी दुनिया में नहीं, माँ सा है किरदार कोई!
नहीं देता है यहाँ, माँ की तरह की प्यार कोई!
"देव" दुनिया में अपनी माँ का दिल दुखाये जो,
उससे बढ़कर नहीं होता है, गुनहगार कोई!

जीतने को मुझे हर दांव हैं हारे माँ ने! 
अपने हाथों से मेरे केश संवारे माँ ने!"

......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१९.०१.२०१४

(अपनी माँ कमला देवी एवं माँ प्रेमलता जी को समर्पित)

Friday, 17 January 2014

♥♥बरसात का शोर...♥♥

♥♥♥♥♥बरसात का शोर...♥♥♥♥♥♥♥
प्यार तेरा मुझे बूंदो में नजर आता है!
मुझे बरसात का ये शोर बहुत भाता है!

जब भी पलकों में अपनी बूंद छुपाई मैंने,
तेरी जुल्फ़ों का बदन देखो भीग जाता है!

तेरे एहसास में डूबी हुयी बारिश पाकर,
मेरा हर दिन यहाँ अच्छे से गुजर जाता है!

जब झरोखे से गिरी बूंद तुझे छूती हैं,
तेरे चेहरे का कमल और निखर जाता है!

मैं हथेली पे तेरी जब भी रखूं बूंदों को,
गौर से देख मेरा नाम उभर आता है!

भीगी जुल्फ़ों में मेरे घर में जो देखूं तुमको,
चाँद आंगन में मेरे घर के उतर आता है!

"देव" चेहरे पे मेरे ताजगी बिखर जाये,
जब भी बरसात का लफ्ज़ों में जिकर आता है! "

.............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-१७.०१.२०१४

Thursday, 16 January 2014

♥♥♥दोस्ती...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥दोस्ती...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दोस्ती प्यार के रंगों की एक निशानी है! 
नही एहसान नहीं कोई बदगुमानी है!

कोई सौदा नहीं होता है दोस्ताने में,
दोस्ती में कोई धोखा न बेईमानी है!

दोस्त सच्चे बड़ी मुश्किल से मिला करते हैं,
दोस्ती दुनिया में कुदरत की मेहरबानी है!

उसको मिल जाये यहाँ धरती पे खुदा देखो, 
दोस्त की जिसने भी दुनिया में कद्र जानी है!

जान कुर्बान तलक दोस्तों पे कर दे जो,
दोस्ती में वही जज्बा है, वो रवानी है!

फूल सरसों के खिलें दोस्तों के चेहरे पर,
दोस्ती पाक है, अम्बर सी आसमानी है!

"देव" किस्मत ने मुझे नेक दोस्त बख्शे हैं,
दोस्ती में ही मुझे जिंदगी बितानी है!"

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१७.०१.२०१४

Wednesday, 15 January 2014

♥♥♥दीदार का हक़ ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥दीदार का हक़ ♥♥♥♥♥♥♥
दर्द मासूम है धीरे से इसे, सहला दो!
मेरे कुछ गीत सुनाकर के इसे बहला दो!

दर्द के चेहरे पे देखो है जमी धूल बहुत,
अपने एहसास की बूंदों से इसे नहला दो!

नफरतों के लिए न कोई खुले दरवाजा,
प्यार तुम चारों तरफ, इतना यहाँ फैला दो!

होने को तो यहाँ देखो हैं बहुत ही अपने,
अपने दीदार का हक़ मुझको मगर पहला दो!

जब जरुरत हो तुम्हें प्यार की हवाओं की,
अपनी दिल को मेरी बस्ती में जरा टहला दो!

ये तेरे ख्वाब मुझे रात भर हँसायेंगे,
अपना आँचल मेरी आँखों पे अगर फैला दो!

"देव" आ जायेगा पल भर में सामने तेरे,
तुम हवाओं से भी मिलने की खबर कहला दो! "

...........चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-१५.०१.२०१४

Tuesday, 14 January 2014

♥♥...बड़ी चुप चुप ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥...बड़ी चुप चुप ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिन भी खामोश था, अब रात बड़ी चुप चुप है!
आईने से भी मुलाकात बड़ी चुप चुप है!

मेरे कानों में जो घुंघरू की तरह बजती थी,
आज वो देखिये बरसात बड़ी चुप चुप है!

आदमी माने नहीं लाख भी समझाने पर,
तब से इंसानियत की जात बड़ी चुप चुप है!

जीत जाता तो मेरा जश्न मनाती दुनिया,
हो गया तनहा मैं ये, मात बड़ी चुप चुप है!

बिन दहेजों के थमी रहती यहाँ पर डोली,
घर में मुफ़लिस के, ये बारात बड़ी चुप चुप है!

नहीं मालूम हमें लेने कब चली आये,
मौत के देखो ये, सौगात बड़ी चुप चुप है!

"देव" आँखों में मेरी देख के समझ जाना,
प्यार की राह में हर बात बड़ी चुप चुप है!"

...........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-१४.०१.२०१४

Monday, 13 January 2014

♥♥दर्द की राह...♥♥

♥♥♥♥♥दर्द की राह...♥♥♥♥♥
दर्द की राह पे जब भी सहे छाले मैंने!
अपने आंसू बड़ी हिम्मत से संभाले मैंने!

नहीं लिख सकता ग़ज़ल, गीत न कहानी मैं,
सिर्फ स्याही से किये शब्द ये काले मैंने! 

उसने ही मेरी चाहतों को बेअसर बोला,
रूह तक जिसको यहाँ की थी हवाले मैंने,

सामने देखो नयी कोंपलें निकल आयीं,
तेरे एहसास जो ये ओस में डाले मैंने!
  
भर गया खुशबु से आंगन का हर कोई कोना,
फूल जो सूखे, किताबों से निकाले मैंने!

मेरी तन्हाई में ये मुझसे बात कर लेंगे,
इसीलिए रहने दिये घर में ये जाले मैंने!

"देव" दुश्मन ने कमी कोई भी नहीं की पर,
अपनी हिम्मत से यहाँ खतरे ये टाले मैंने!"

......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१३.०१.२०१४

Sunday, 12 January 2014

♥♥तुम पराये हो...♥♥

♥♥♥♥♥तुम पराये हो...♥♥♥♥♥
हाँ सही है के तुम पराये हो!
पर मेरे दिल में तुम समाये हो!

अब तो उस ख़त को मुझको दे भी दो,
जिसको अरसे से तुम छुपाये हो!

है वहम मेरा या हक़ीक़त है,
क्या मुझे दिल में तुम वसाये हो!

दूर करके मैं तुम्हें जी न सकूँ,
मेरे इतने करीब आये हो!

देखकर चाँद तुमको लगता ये,
जैसे अम्बर में मुंह छुपाये हो!

घर का दरवाजा बंद करके तुम,
मेरी ग़ज़लों को गुनगुनाये हो!

"देव" अनपढ़ मैं कुछ नहीं जानूं,
प्यार तुम ही मुझे सिखाये हो! "

......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१२.०१.२०१४

Saturday, 11 January 2014

♥♥रिश्तों की बुनियाद...♥♥

♥♥♥♥♥♥रिश्तों की बुनियाद...♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह के नूर से रिश्तों को जो निभाता है!
वो बिछड़ के भी हमें याद बहुत आता है!

नहीं कोहरा न उसे रात ये डिगा पाये, 
जिसे अँधेरे में जलने का हुनर आता है!

हाथ पे हाथ के रखने से न मिले मंजिल,
वही जीते जो यहाँ खुद को आजमाता है!

उसको आकाश भी रखता है अपने आँचल में,
अपनी उल्फत से जो दुनिया को जगमगाता है!

जिसका दिल टूट गया हो कभी मोहब्बत में,
उसको दुनिया में नहीं कुछ भी यहाँ भाता है!

उसे मालूम है रोटी की तड़प दुनिया में,
किसी भूखे के लिए जिसको तरस आता है! 

"देव" उस शख्स को हमदर्द नहीं कहता मैं,
मेरे ज़ख्मों पे नमक, जो भी गर लगाता है!"

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-११.०१.२०१४

Friday, 10 January 2014

♥♥फूल बनकर तेरे...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥फूल बनकर तेरे...♥♥♥♥♥♥♥♥
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ!
दीप बनकर तेरे कमरे में जला करता हूँ!
मुझको पहचान जरा हूँ मैं वही तो हमदम,
जो तुझे रात को ख्वाबों में मिला करता हूँ!

तो अगर रोये तो मैं भी उदास रहता हूँ!
तेरे साये की तरह तेरे पास रहता हूँ!
धूप में भी मैं तेरे साथ साथ तपकर के,
रात में चांदनी जैसा लिबास रहता हूँ! 

बनके पर्दा तेरी खिड़की का, हिला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ....

मैं तेरे गीत के एहसास की धुनों में हूँ!
कभी खुशियां कभी थोड़ी सी अनबनों में हूँ!
बनूँ तन्हाई में तेरी मैं, घडी की टिक टिक,
कभी शामिल तेरी जुल्फों की उलझनों में हूँ!

बनके परछाईं तेरे साथ चला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ....

मैं तेरे पाओं में पायल की तरह बजता हूँ!
मैं तेरे हाथ में कंगन की तरह सजता हूँ!
"देव" आँखों में तेरी बनके मैं काजल रहता,
तेरी ऊँगली में अंगूठी की तरह सजता हूँ!

अपने चेहरे से तेरी खुशबु मला करता हूँ!
फूल बनकर तेरे आंगन में खिला करता हूँ!

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१०.०१.२०१४

Thursday, 9 January 2014

♥♥♥कुंदन..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥कुंदन..♥♥♥♥♥♥♥
आंच में तपकर कुंदन बनना!
यहाँ सुगन्धित चंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना!

लक्ष्य पे अपने निश्चय करना!
सच्चाई की तुम जय करना!
सफ़र भले ही लम्बा हो पर,
धीरे धीरे तुम तय करना!

पुलकित करना हरियाली को,
तुम फूलों के कंगन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

आसमान के तारों जैसे!
जल की मधुर फुहारों जैसे!
तुम लोगों को ख़ुशी बांटना,
बनकर हसीं बहारों जैसे!

घायल के घावों को भरकर,
मानवता का वंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

किसी के दिल पे ठेस लगे न!
मन में हिंसा द्वेष जगे न!
"देव" तुम्हारे कोमल दिल में,
कोई भी आवेश जगे न!

नहीं देखना बस धनिकों को,
निर्धन का भी वंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०९.०१.२०१४

Tuesday, 7 January 2014

♥♥♥तेरे ख़त...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरे ख़त...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आंच में गम की तेरे ख़त को जलाने निकला !
अपने एहसास को मिट्टी में मिलाने निकला!

तेरी उम्मीद में जागीं जो रात भर तनहा,
अपनी उन आँखों को, कुछ देर सुलाने  निकला!

फूल फिर से न कोई, दिल को मेरी छलनी करे,
अपने दामन में यहाँ, ख़ार खिलाने निकला! 

दर्द के गहरे अँधेरे से दूर होने को,
चाँद की रोशनी मैं खुद को दिलाने निकला! 

बिना बरसात के सूखा है, जिंदगानी में,
मैं इसी वास्ते आँखों को रुलाने निकला!

तेरी नादानी थी या जानकर किया तूने,
तेरे हर जुर्म को मैं हँसके भुलाने निकला! 

"देव" एक रोज यहाँ फिर नयी सुबह होगी,
अपने दिल को ये भरोसा मैं दिलाने निकला!"

.............चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-०७.०१.२०१४

Monday, 6 January 2014

♥♥मशीनो का आदमी...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥मशीनो का आदमी...♥♥♥♥♥♥♥♥
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!
भावनाओं की फसल काटकर, शूलों का सत्कार हो रहा!
प्रेम की किरणें लुप्त हो रहीं, अब घृणा से मन ग्रसित है,
मानवता की देह पे देखो, अब घातक प्रहार हो रहा!

मिन्नत, करुणा और निवेदन, की कोई परवाह नहीं है!
सड़क पे कोई मरता लेकिन, किसी के दिल में आह नहीं है!
शीतकाल के हिम में जमकर, कोई निर्धन मर जाता है,
पर धनिकों के पास में देखो, अनुभूति की दाह नहीं है!

आज मशीनो की दुनिया में, पत्थर दिल संसार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा.....

आज आदमी अरब से ऊपर, लेकिन इंसां लुप्त हो गए!
भले पड़ोसी चीखे रोये, हम निद्रा में सुप्त हो गए!
आज वफ़ा और अपनायत के, भाव जमीं में गड़े हुए हैं,
हम रुपयों की चकाचोंध के, अंधकार में गुप्त हो गए!

बेदर्दी में आज आदमी, पत्थर दिल किरदार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!

प्रेम ग्रन्थ में प्रेम नहीं है, बस काले अक्षर दिखते हैं!
नकली सूरत मुंह पर जड़कर, लोग यहाँ सुन्दर दिखते हैं!
"देव" यहाँ कहना आसां है, लेकिन करना बड़ा ही मुश्किल,
कलमकार भी छोटे दिल से, बड़ी बड़ी बातें लिखते हैं!

आज आदमी का दुनिया में, दयाहीन किरदार हो रहा!
पीड़ा से मन आनंदित है, अश्रु से श्रंगार हो रहा!"

"
आज मशीनों की दुनिया में, इंसान लुप्त हो रहे हैं, बेशक आदमियों की भीड़ बढाकर हमने कीर्तिमान स्थापित किये हों, बेशक हमने बड़ी बड़ी इमारतें बनाकर गगन छूने का प्रयास कर लिया हो, भले ही हमने पद सँभालने के बाद बहुत बहुत बड़े व्याख्यान दे लिए हों, पर अपना दिल ही बड़ा न कर पाये, इंसान ही न बन पाये तो ये ऊंचाइयां किस काम की, तो आइये चिंतन करें और इंसान बनने का प्रयास करें! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०७.०१.२०१४

"
सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

♥♥बंदिशे...♥♥

♥♥♥♥♥बंदिशे...♥♥♥♥♥♥
प्यार पे बंदिशे लगाने को!
लोग कहते हैं ज़हर खाने को!

चाँद भी छुप गया है अम्बर में,
नहीं तारे हैं जगमगाने को!

मेरे छप्पर से रिस रहा पानी,
न जगह अब है सर छुपाने को!

गम को गीतों में कर लिया शामिल,
दर्द बाकी है गुनगुनाने को!

मान जाओ के अब न रूठे रहो,
फूल लाया हूँ मैं मनाने को!

दर्द से दिल झुलस रहा लेकिन,
नकली चेहरा है मुस्कुराने को!

मर गया मैं दफ़न हुयी चाहत,
एक सबक मिल गया ज़माने को!

तुमसे विनती है दिल नहीं तोड़ो,
कम नहीं लोग दिल दुखाने को!

"देव" तुमसे नहीं गिला शिक़वा,
है जनम मेरा दर्द पाने को!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०६.०१.२०१४

Sunday, 5 January 2014

♥♥कर्ज़दार...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कर्ज़दार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना!
कभी वो सेठ के रुपयों का कर्ज़दार बना!
नहीं दो वक़्त की रोटी भी उसके हाथों में,
कभी बीमार तो मुफ़लिस कभी लाचार बना!

सर्द रातों में न उस पर रजाई होती है!
उसके ज़ख्मों की यहाँ कब दवाई होती है!

ठण्ड से मर गया तो वो ही ईश्तहार बना!
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना....

नहीं आटा न उसे दाल मयस्सर होती!
उसके सर को नहीं तिरपाल मयस्सर होती!
"देव" एक पल के लिए चैन सुकूं पाने को,
उसको चादर न कोई शाल मयस्सर होती!

उसकी संतान कुपोषित यहाँ रह जाती है!
जिंदगी उसकी यहाँ दर्द में बह जाती है!

वो बिना ज़ुर्म के ही, देखो गुनहगार बना!
कभी नेता कभी अफसर का वो शिकार बना!"

..............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०५.०१.२०१४

Saturday, 4 January 2014

♥♥आईना देख के...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥आईना देख के...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी रोकर कभी हंसकर के, सफ़र काट लिया!
आईना देख के दुख दर्द, अपना बाँट लिया!

जिसने ज़ख्मों पे मेरे, देखो लगाया मरहम,
भीड़ से उसको अलग, मैंने यहाँ छाँट लिया!

उम्र भर जिसने उसे छाँव, यहाँ बख्शी थी,
उस लकड़हारे ने उस पेड़ को भी काट लिया!

सर छुपाने के लिए एक जरा, छप्पर भी,
इस बुरे वक़्त की दीमक ने यहाँ चाट लिया!

मेरे एहसास ने जब चाँद को, छूना चाहा,
कभी समझाया, कभी मैंने उसे डाँट लिया!

जिसने पाला था उसे, अपने खूँ पसीने से,
उसी बेटे ने गला उसका, मगर काट लिया!

"देव" कुदरत ने यहाँ आदमी, जो भेजा था,
उसे हिन्दू कभी मुस्लिम ने, यहाँ बाँट लिया!"

.............चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-०४.०१.२०१४

Friday, 3 January 2014

♥♥♥तुम्हारा ख़त...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥तुम्हारा ख़त...♥♥♥♥♥♥♥
कभी रोता है मेरा दिल कभी मुस्काया है!
गुमशुदा दिल की तलाशी में तुझे पाया है!

इसी उम्मीद में के, तेरे वापसी होगी,
ख़त किताबों में तेरा, आज तक छुपाया है!

तेरी तस्वीर से मैं रुबरु हुआ जब भी,
चाँद से बढ़के तेरा चेहरा, नजर आया है!

लोग कहते हैं मुझे तुमसे प्यार है क्यूंकि,
मेरी आँखों में तेरा अक्स, उभर आया है!

तेरे एहसास के घुंघरू मेरी बोली में हैं,
तेरे छूने से मेरा रंग, निखर आया है!

तू ही शामिल मेरी पूजा में, इबादत में तू,
मेरे आँचल में वफ़ा बनके, तू समाया है!

"देव" होने को तो दुनिया है खूबसूरत ये,
हाँ मगर दिल को मेरे, तू ही यहाँ भाया है!" 

...........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक-०३.०१.२०१४

Thursday, 2 January 2014

♥♥तेरी पाकीज़गी...♥♥

♥♥♥♥♥तेरी पाकीज़गी...♥♥♥♥♥♥♥
तू मेरे साथ है तो ये जहान मेरा है!
ये जमीं मेरी है ये, आसमान मेरा है!

जब से चाहत ने तेरी, सोच निखारी मेरी,
तब से गीता भी मेरी और कुरान मेरा है!

बचपने में जो कभी तेरे लिया गोदा था,
आज भी पेड़ पे दिल का निशान मेरा है!

भले तुझको मेरे घर आये एक अरसा हुआ,
आज भी तुझसे खिला ये, मकान मेरा है!

तेरी पाकीज़ा मोहब्बत का असर है हमदम,
तुझको पाकर बड़ा पावन ईमान मेरा है!

जिंदगी है मेरी आसान तेरे होने से,
बिन तेरे हर घड़ी बस, इम्तिहान मेरा है!

"देव" तू मेरी चुभन, मेरा दर्द समझेगा,
उस खुदा की तरह तू, इतमिनान मेरा है!"

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०२.०१.२०१४