Tuesday, 30 December 2014

♥♥नये साल में...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नये साल में...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ। 
नये साल में अपने दिल की, बातों को सुनना चाहता हूँ। 
नये साल में हसरत है ये, नफरत मिट्टी में मिल जाये,
इसीलिए मैं मानवता के रस्ते को, चुनना चाहता हूँ। 

नहीं जानता ख्वाब हों पूरे, पर मन में विश्वास रखा है। 
अब से बेहतर कुछ करने का, साहस अपने पास रखा है। 

दुख के क्षण में भी फूलों सा, मैं जग में खिलना चाहता हूँ। 
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ... 

जो गलती इस साल हुईं हैं, उनका न दोहराव हो मुझसे। 
किसी आदमी के भी दिल में, भूले से न घाव हो मुझसे। 
"देव" जिन्होंने मेरी खातिर, अपना प्यार, दुआ बख्शी है,
उनसे मिलने और जुलने में, न कोई बदलाव हो मुझसे। 

नहीं मैं सूरज हूँ दुनिया का, भले तिमिर न हर सकता हूँ। 
लेकिन फिर भी दीपक बनकर, बहुत उजाला कर सकता हूँ। 

नये साल की नयी राह पर, ऊर्जा संग चलना चाहता हूँ। 
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ। "

....................चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक--३०.१२.२०१४

Monday, 29 December 2014

♥♥♥वजह...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥वजह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अब लोगों के दिल में, जगह नही मिलती। 
खुश होने की एक भी, वजह नहीं मिलती। 

लोग घमंडी उड़ें भले ही कितने पर,
गिर जाने पे उनको, सतह नहीं मिलती। 

साँस आखिरी जूझो मंजिल पाने को,
थक जाने से जग में, फतह नही मिलती। 

गलती अपनी हो तो माफ़ी में क्या डर,
जिद्दी बनकर देखो, सुलह नहीं मिलती। 

मुल्क लूटने को तो, सब आमादा हैं,
संसद जैसी उनमे कलह नहीं मिलती।  

वो क्या जानें तड़प, जुदाई के आंसू,
प्यार में जिनको एक पल, विरह नही मिलती। 

"देव" यहाँ कानून, अमीरों का गिरवीं,
मुफ़लिस को बिन पैसे, जिरह नही मिलती। "

...............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--३०.१२.२०१४

♥♥दुशाला...♥♥


♥♥♥♥♥दुशाला...♥♥♥♥♥♥
खोटा सिक्का चल जाता है। 
सच का सूरज ढ़ल जाता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है। 

नहीं पता भारत की नीति,
नहीं पता कैसा निगमन है। 
रहे उमर भर मारा मारा,
निर्धन का ऐसा जीवन है। 
उसके अधिकारों को लूटें,
लोग यहाँ कुछ मुट्ठी भर ही,
आँख पे पट्टी कानूनों की,
निर्धन का बस यहाँ मरन है। 

निर्धन का सच भी अनदेखा,
झूठ ठगों का चल जाता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है...

काश के निर्धन के घर दीपक,
काश उजाला उसके घर हो। 
फटे हैं कपड़े, शीत में कांपे,
काश दुशाला उसके सर हो। 
व्यवस्थाओं के कान हैं बहरे,
निर्धन की आहें नहीं सुनती,
कब तक धरती बने बिछौना,
कब तक उसकी छत अम्बर हो। 

"देव" तड़प में कटता है दिन,
रोकर उसका कल आता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है। "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--२९.१२.२०१४

Sunday, 28 December 2014

♥चंद्र खिलौना...♥



♥♥♥♥चंद्र खिलौना...♥♥♥♥♥
मन में हो जब चंद्र खिलौना। 
माँ की गोदी के बिन रोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना। 

केवल हठ हो कुछ नहीं सुनना। 
अपनी इच्छा से सब चुनना। 
टुकर टुकर देखे आँखों से,
बिन गिनते के तारे गिनना। 

माँ की लोरी सुनकर सीखा,
उसने गहरी नींद में सोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना....

चंचल चितवन और नादानी। 
भाव नहीं होते अभिमानी।  
"देव" नहीं बचपन को आती,
सोच लोभ की, न कोई हानि। 

अपने पांव के अँगठे को,
लार में अपनी बहुत डुबोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना। "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--२८.१२.२०१४

Friday, 26 December 2014

♥फूल की देह...♥


♥♥♥♥फूल की देह...♥♥♥♥♥♥
पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो। 
इन चिरागों की रोशनी तुम हो। 
तुम को छुकर के मैं महकने लगूं,
फूल की देह सी बनी तुम हो। 

आँख प्यारी हैं और सूरत भी। 
तुम सवेरे सी खूबसूरत भी। 
रूह को तेरी प्यास है हरदम,
मेरी ख्वाहिश हो और जरुरत भी। 

प्यार की सम्पदा तेरे दिल में,
सोने चांदी से भी धनी तुम हो। 

पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो...

तेरे होने से ही खिले आँगन। 
तुमको पाकर के झूमता है मन। 
"देव" ख़त तेरे प्यार के मोती,
तेरे चित्रों को चूमता है मन। 

मुश्किलों ने कभी जो घेरा तो,
ढ़ाल बन साथ में तनी तुम हो। 
पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो। 
इन चिरागों की रोशनी तुम हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--२६.१२.२०१४

Wednesday, 24 December 2014

♥♥♥प्रेम पत्र...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम पत्र...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया। 
पढ़ा तरन्नुम में जब मैंने, लफ्ज़ लफ्ज़ एक ग़ज़ल हो गया। 
आँख मूंदकर जब खोली तो, पत्र में थी तस्वीर तुम्हारी,
तुम्हे देखकर दिल बोला ये, मेरा जीवन सफल हो गया। 

पत्र तुम्हारा फूलों जैसा, मुझे सुगंधित कर देता है। 
मेरी आँखों में चाहत के, लाखों सपने भर देता है। 

तेरे लफ़्ज़ों के छूने से, मुरझाया मन नवल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया.... 

प्रेम पत्र जब चूमा मैंने, लगा के मेरे पास में तुम हो। 
तुम लफ़्ज़ों के अपनेपन में, और मेरे विश्वास में तुम हो। 
पत्र में तुमने प्रेम विजय के, भावों का जो अक्स उभेरा ,
पढ़कर ऐसा लगा हमारे, जीवन के उल्लास में तुम हो।  

पत्र की स्याही में जो तुमने, प्रेम भाव का रस घोला है। 
पत्र नही वो मानो तुम हो, जिसने खुद सब कुछ बोला है। 

प्रेम पत्र से प्रेम की किरणें, पाकर के मन धवल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया... 

मन कहता है रोज तुम्हारा, प्रेम पत्र जब मिल जायेगा। 
आज की तरह मेरा चेहरा, खिले कमल सा खिल जायेगा। 
"देव" तुम्हारे लफ्ज़ हमारे, जीवन को रौशन कर देंगे,
हम दोनों की ताक़त होगी, ग़म का पर्वत हिल जायेगा। 

पत्र थामकर श्वेत कबूतर, जब मेरे आँगन में होगा। 
पत्र रूप में प्यार तुम्हारा, जीवन के हर कण में होगा। 

प्यार वफ़ा के फूल खिले तो, छोटा आँगन महल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया। "

........................चेतन रामकिशन "देव"……..............
दिनांक--२४.१२.२०१४

Tuesday, 23 December 2014

♥♥♥योद्धा...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥योद्धा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। 
मुश्किल तो आयेंगी बिल्कुल, जीवन अगर जिया जाता है। 
बिना लड़े ही रणभूमि में, जीत नहीं मिल सकती कतिपय,
यदि जीतना चाहते हो तो, खुद को सबल किया जाता है।  

जो जीवन की रणभूमि में, दुख से हंसकर टकराते हैं। 
वही लोग इतिहास की रचना, इस दुनिया में कर पाते हैं। 

योद्धा वो है जो मरकर भी, जग में याद किया जाता है।  
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। 

दुनिया में कुछ करने वाले, नहीं हारकर चुप होते हैं। 
वो जीवन के कदम कदम पर, ऊर्जा के अंकुर बोते हैं। 
"देव" जहाँ में सबको कुदरत, नहीं रेशमी कम्बल देती,
योद्धा वो हैं जो भीतर का, ताप जगाकर दृढ होते हैं। 

जो बंजर को खोद खोद कर, कृषि भूमि कर जाते हैं। 
वही लोग तो इतिहासों में, नाम का अंकन कर पाते हैं। 

वीर वही वो जिसके द्वारा, मन को अभय किया जाता है। 
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"……..............
दिनांक--२४.१२.२०१४

♥♥♥टूट गया मन..♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥टूट गया मन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है। 
फूल दुखों की आंच में झुलसे, सूनी सूनी हर एक कली है। 
कुछ सपने हाथों में लेकर, जब भी पूरा करना चाहा,
किस्मत के संग अपनों का छल, लम्हा लम्हा मात मिली है। 

किसको दिल का हाल बताऊँ, कौन यहाँ पर दुख सुनता है। 
कौन किसे के ख्वाब यहाँ पर, अपने हाथों से बुनता है। 

मैंने चाही धूप खुशी की, पर गम की बरसात मिली है। 
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है... 

हार गया मन, रूठ गया मन, टुकड़े होकर टूट गया मन। 
लोग बढ़ गये हमे गिराके, सबसे पीछे छूट गया मन। 
"देव" जहाँ में नहीं किसी ने, मन को मेरे, मन से जोड़ा,
तन्हा होकर, गिरा अर्श से, फर्श पे गिरकर फूट गया मन। 

मन के टुकड़े देख देख कर, आँखों से आंसू बहते हैं। 
लोगों के दिल हैं छोटे पर, बड़ी बड़ी बातें कहते हैं। 

उम्र है छोटी मगर ग़मों की, बड़ी बड़ी सौगात मिली है। 
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है। "

...................चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--२३.१२.२०१४

Monday, 22 December 2014

♥♥यादों का दीपक...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥यादों का दीपक...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है। 
जो कुछ तुमने बख्शा हमको, हमने वो मंजूर किया है। 
तेरी चिट्ठी, तेरे खत को, पढ़कर मैंने रात गुजारी,
तेरे लफ़्ज़ों की ख़ुश्बू में, खुद के दिल को चूर किया है। 

भले मिले न लेकिन फिर, मेरे संग संग तुम रहती हो। 
मेरी कविता और ग़ज़ल में, भावुकता बनकर बहती हो। 

बिना तुम्हारे जीवन जीना, मैंने नामंजूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है...

अहसासों में मिल लेता हूँ, अहसासों में खो जाता हूँ। 
समझ के तकिया गोद तुम्हारी, मैं चुपके से सो जाता हूँ। 
जब आती है याद तुम्हारी, ख्वाबों के रस्ते से चलकर,
फिर तू मेरी हो जाती है और मैं तेरा हो जाता हूँ। 

बिना तुम्हारी सूरत वाला, शीशा चकनाचूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है...

तेरा प्यार है ऊष्मा जैसा, शीत की मुझको फ़िक्र नहीं है। 
मैं नहीं सुनता उन बातों को, जिनमे तेरा जिक्र नहीं है। 
"देव" जहाँ में प्यार की नदियां, जब आपस में मिल जाती हैं,
तो पत्तों, तो फूलों पर, प्यार की बूंदे खिल जाती हैं। 

सखी तुम्हारी दुआ ने मुझको, दुनिया में मशहूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है।

..................चेतन रामकिशन "देव"……..........
दिनांक--२२.१२.२०१४

Saturday, 20 December 2014

♥♥जनम जनम का प्यार...♥♥


♥♥♥♥♥जनम जनम का प्यार...♥♥♥♥♥
हर पल मैं दीदार तुम्हारा चाहता हूँ। 
जनम जनम का प्यार तुम्हारा चाहता हूँ। 

अलंकार से जैसे कविता दमक रही,
वैसे ही सिंगार तुम्हारा चाहता हूँ। 

जब मंजिल पा लूँ तो अपनी तोहफे में,
मैं बाँहों का हार तुम्हारा चाहता हूँ। 

मुझको इज़्ज़त बख्शे मौला हाँ लेकिन,
पहले मैं सत्कार तुम्हारा चाहता हूँ। 

प्यार तुम्हारा सागर मेरे शब्द नदी,
पर फिर भी आभार तुम्हारा चाहता हूँ। 

अपना खून, पसीना, मेहनत सब देकर,
सपना हर साकार तुम्हारा चाहता हूँ। 

पीड़ा, आंसू, दुख न तुमको तोड़ सके,
ताकतवर आधार तुम्हारा चाहता हूँ। 

तेरा दिलासा रोते चेहरे चुप कर दे,
मैं ऐसा किरदार तुम्हारा चाहता हूँ। 

"देव " यकीं है हर पल तुमसे वफ़ा करूँ,
और खुद को हक़दार तुम्हारा चाहता हूँ। "

.........चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक--२०.१२.२०१४

Friday, 19 December 2014

♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥



♥♥♥♥♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥♥♥♥♥
पाकीज़ा एहसास तुम्हारी चाहत के। 
लम्हे लगते ख़ास तुम्हारी चाहत के। 

दिन में दूरी रोजी की, पर शाम ढले,
हम आते हैं, पास तुम्हारी चाहत के। 

बिना तुम्हारे दुनिया फीकी लगती है,
मीठे हैं एहसास, तुम्हारी चाहत के। 

धन, दौलत, मयखाना, चांदी न सोना,
बढ़कर हैं उल्लास तुम्हारी चाहत के। 

गोद में तेरी सर रखकर के सोया तो,
मलमल थे एहसास तुम्हारी चाहत के। 

तुम राधा के रूप में, हम मोहन बनकर,
संग संग करते रास, तुम्हारी चाहत के। 

"देव " हो दिन या रात मगर न करते हैं,
लम्हे ये अवकाश तुम्हारी चाहत के। "

.........चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक--१९.१२.२०१४

Wednesday, 17 December 2014

♥♥तेजाबी बारिश...♥♥


♥♥♥♥तेजाबी बारिश...♥♥♥♥
जड़वत, जिंदा लाश बनाकर। 
मुझको जीते जी दफनाकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर। 

मानवता के कोमल तन पर,
तेजाबी बारिश करते हैं। 
अपनेपन की आड़ में देखो,
नफरत के सौदे करते हैं। 
इनको मतलब नहीं दर्द से,
जान किसी की बेशक जाये,
अपना अहम उन्हें प्यारा है,
भले तड़प कर हम मरते हैं। 

चले गये हैं, शिफ़ा किये बिन,
मेरे सारे घाव दुखाकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर ...

बलि यहाँ पर अरमानों की,
होली जलती जज्बातों की। 
उन्हें चाह मेरी चीखों की,
नहीं तलब दिल की बातों की। 
"देव" उन्हें अपना माना पर,
सिवा ग़मों के क्या पाया है,
जिनके सीने में पत्थर हो,
वो क्या कद्र करें नातों की। 

बदल गये हैं मेरे ख्वाब वो,
ताशों के जैसे बिखराकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर। "

......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--१७.१२.२०१४



Tuesday, 16 December 2014

♥बिलखती ममता...♥


♥♥♥बिलखती ममता...♥♥♥
बेसुध है, बदहाल हो गयी। 
मानो माँ कंगाल हो गयी,
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी। 

निर्मम अत्याचार हुआ है। 
जमकर नरसंहार हुआ है। 
माँ की ममता बिलख रही है,
बच्चों पर प्रहार हुआ है। 
चारों तरफ़ गूँज रही है,
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
मौला भी खामोश देखता,
मानो वो लाचार हुआ है। 

बारूदों की लपट में झुलसी,
काली उनकी खाल हो गयी। 
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी... 

दहशतगर्द भला क्या जानें,
माँ की ममता क्या होती है। 
वो जिससे जन्मे धरती पर,
वो भी तो एक माँ होती है। 
लेकिन वो क्या जानें माँ को,
जो मानव का खूं पीते हैं,
"देव" भला ये नरपिशाच कब,
मानवता के संग जीते हैं। 

फटी किताबें, उधड़े बस्ते,
मौन सभी की चाल हो गयी। 
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक--१७.१२.२०१४

Saturday, 13 December 2014

♥♥हमारे नाम का पौधा ...♥♥


♥♥♥♥♥♥हमारे नाम का पौधा ...♥♥♥♥♥♥♥♥
हमारे नाम का पौधा लगाना अपने आँगन में। 
हमारी याद में दीपक जलाना अपने आँगन में। 

जो कोई ख़्वाब मेरी डूबती आँखों ने देखा था,
उसे हाथों से तुम अपने सजाना, अपने आँगन में। 

हवाओं में तुम्हारी खुश्बू को महसूस कर लूंगा,
महकते फूल जैसे मुस्कुराना, अपने आँगन में। 

मैं भी इंसान था, गलती हजारो मैंने भी कीं थीं,
अकेले खुद को न मुजरिम बनाना, अपने आँगन में। 

मेरे खत और तस्वीरें, तेरी हमदर्द बन जायें,
उन्हें तुम चूमना, दिल से लगाना अपने आँगन में। 

यहाँ आना, चले जाना, हक़ीक़त है ये सच्चाई,
नहीं इस बात को झूठा बताना, अपने आँगन में। 

ये दुनिया बेमुरब्बत है, तुम्हे न "देव" जीने दे,
तभी तुम नाम को मेरे छुपाना, अपने आँगन में। " 

.................चेतन रामकिशन "देव"……...........
दिनांक--१४.१२.२०१४

Friday, 12 December 2014

♥♥♥डाका...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥डाका...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुफ़लिस के हक़ पे अब पड़ता डाका है। 
चूल्हा ठंडा, उसके घर में फाका है।  

अपनी छत उधड़ी, पर क़र्ज़ परायों को,
कहो तरक्की का ये कैसा खाका है। 

दफ्तर में बेख़ौफ़ लुटेरे लूट रहे,
मानो अफसर हर मुफ़लिस का आका है। 

सूखे बच्चे रोग कुपोषण का फैला,
पुष्टाहार भले घर घर में आँका है। 

काला धन आखिर कैसे परदेश गया,
मुल्क में यूँ तो कदम कदम पर नाका है। 

अरबों, खरबों हड़प के भी आज़ाद फिरें,
कानूनों से बाल से इनका बांका है। 

"देव " नज़र ये रस्ता तकते लाल हुईं,
पर किसने मुफ़लिस के घर में झाँका है।  "

...........चेतन रामकिशन "देव"……......
दिनांक--१३.१२.२०१४



Thursday, 11 December 2014

♥♥लफ़्ज़ों की स्याही...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥लफ़्ज़ों की स्याही...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरा खत जब भी देखा है, तेरा एहसास पाया है। 
तेरा चेहरा, तेरे लफ़्ज़ों की स्याही में समाया है। 

भले मैं बेवफा था या वफ़ा तुम कर नहीं पायीं,
तेरे सजदे में मेरा सर, जो तेरा दिल दुखाया है। 

भले रिश्ता नहीं बाकी जो तुमसे बात भी कर लूँ,
मगर तेरे तरन्नुम ने, मेरी ग़ज़लों को गाया है।  

बिछड़ना था अगर किस्मत, तो क्यों मिलने के पल बख्शे,
खुदा तेरी खुदाई ने भी, क्या आलम दिखाया है। 

मोहब्बत मेरी नज़रों में, नहीं हसरत नुमाईश की,
तभी टूटे हुये दिल को, यहाँ मैंने छुपाया है। 

तड़प, या दर्द या आंसू, या खुशियों के कोई तोहफे,
मुझे तुमने दिया जो भी, वो माथे से लगाया है। 

सफर तन्हा है लेकिन "देव", फिर भी काट लेता हूँ,
हुनर तुमने ही तो गिरकर के, उठने का सिखाया है। "


.................चेतन रामकिशन "देव"……...........
दिनांक--१२.१२.२०१४

Tuesday, 9 December 2014

♥♥♥सफर...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सफर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सफर धीमा सही, लेकिन चलो शुरुआत करते हैं। 
नज़र खुद पे टिकाकर, आज खुद से बात करते हैं। 

नहीं आया कोई मरहम लगाने ज़ख्म पे तो क्या,
खुले घावों पे आओ, ओस की बरसात करते हैं। 

मेरे अपनों ने ही मुझको ज़हर की सुईयां घोंपी,
नहीं दुश्मन कभी छुपकर के, मुझ पे घात करते हैं। 

चलो सबको दुआ बख्शो, नहीं रखो गिले शिकवे,
नहीं इंसानियत की, नफरतों से मात करते हैं। 

उजाला बेचने वालों कभी देखो भी उस तरफ़ा,
अँधेरे में गुजारा जो यहाँ, हर रात करते हैं। 

मेरा दामन, तेरे एहसास के, रंगों से रंग जाये,
तभी हम तेरी यादों से, हमेशा बात करते हैं। 

सुनो अब "देव" तुम होना, किसे के बाद में लेकिन,
चलो पहले खुदी से प्यार के, हालात करते हैं। "

..............चेतन रामकिशन "देव"…….......
दिनांक--१०.१२.२०१४

♥♥रिक्तता...♥♥


♥♥♥♥♥रिक्तता...♥♥♥♥♥♥♥
रिक्तता बिन तेरे बहुत होती। 
आँख भी बिन तेरे नहीं सोती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती। 

तेरे आने की राह नजरों में। 
तेरे दर्शन की चाह नज़रों में। 
तेरी धुंधली सी भी झलक न दिखे,
तो उमड़ती है दाह नजरों में। 

चाहकर भी ये अब जटिल पीड़ा,
देखो अवकाश में नहीं होती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती …

प्राण के बिन मेरा ये तन रहता। 
मौन हूँ अब मैं कुछ नहीं कहता। 
" देव " पाषाण तुमने समझा तो,
बनके जलधार मैं नहीं बहता। 

ढ़लना चाहूँ मैं तेरी प्रतिमा में,
और कोई आस अब नहीं होती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती। "

......चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--०९.१२.२०१४

Monday, 8 December 2014

♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। 
धधकते सूर्य के ऊपर भी, जब पहरा दिखाई दे। 
तुम्हें उम्मीद के दीयों से, उसको फिर जगाना है,
कोई ज्योति अगर तुमको, कभी बुझती दिखाई दे। 

अँधेरा देखकर, डरकर, सफर तय नहीं हो सकता। 
जिसे हो जीतना उसको कोई भय हो नहीं सकता! 
किसी का साथ मिल जाये तो बेहतर है सफर लेकिन,
कोई जो साथ छोड़े तो प्रलय भी हो नहीं सकता। 

भुजाओं में जो रखते बल, अकेले होके भी भारी। 
वही मौका गंवाता है, वो जिसकी सोच है हारी। 

सुनो संगीत तुम दिल का, जो दुनिया चुप दिखाई दे। 
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। "

..............चेतन रामकिशन "देव"…….......... 
दिनांक--०९.१२.२०१४

♥♥♥कविता...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥कविता...♥♥♥♥♥♥
सखी को सौंपे प्यार कविता। 
दुश्मन को अंगार कविता। 
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता। 

कविता मन में और चेतन में। 
कविता फूलों के आँगन में। 
कविता तो है भाव मखमली,
कभी जवानी और बचपन में। 

दूर दराजे फौजी को है,
माँ ममता का तार कविता ।
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता....

कविता ज्योति, कविता मोती। 
कविता  मन में खुशियां बोती। 
"देव" कविता है उजियारा,
धवल चाँद सी उज्जवल होती। 

एक दूजे को प्यार बाँचती,
चंदा में दीदार कविता। 
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता। "


........चेतन रामकिशन "देव"…….....
दिनांक--08.12.2014



Sunday, 7 December 2014

♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। 
कहने को वो चाँद से आगे निकल गया है। 
हौड़ मची है दमके, नाम, अहम उसका, 
इसीलिए इन्सां का खूं भी, निगल गया है। 

छाती चौड़ी, शब्द बड़े हैं, लेकिन छोटा दिल रखता है। 
आज आदमी अपने दिल में, नफरत की महफ़िल रखता है। 
किसी के हक़ पे डाका डाले, किसी के घर की लूटे अस्मत,
पढ़ा लिखा होकर भी मानव, अब खुद को जाहिल रखता है। 

हर दिल में तेज़ाब यहाँ पर उबल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है...

नीली स्याही लाल हो गयी, अब रंगत बदहाल हो गयी। 
बस पैसों की खातिर सबकी, बदली बदली चाल हो गयी। 
कोई किसी के दुःख में आकर, नहीं बांटता जरा दिलासा,
कोष में लाख-करोड़ों लेकिन, मानवता कंगाल हो गयी। 

पल भर में अरमान यहाँ कोई कुचल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है... 

नहीं पता है आगे का, क्या आलम होगा।  
"देव" न जाने जुर्म, कभी ये कम होगा। 
घर घर में पिस्तौल की खेती होगी तब,
हर बच्चे के हाथ में, शायद बम होगा।  

आज आदमी सच्चाई से फिसल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। "

...............चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--08.12.2014

Wednesday, 3 December 2014

♥♥♥घायल... ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥घायल... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 
ये अपने हैं या फिर दुश्मन, दुख से आँचल भर देते हैं। 
जो अक्सर दावा करते हैं, मैं उनको हूँ खून से बढ़कर,
वही लोग क्यों मेरी रूह से, इस तरह छल कर देते हैं। 

प्रेम नाम की माला जपकर जो दुनिया को दिखलाते हैं। 
वही लोग क्यों निर्ममता से, प्रेम की हत्या कर जाते हैं। 
फूलों जैसे स्वप्न दिखाकर, शहद सी बातें करने वाले,
एक पल भर में ही प्यार वफ़ा के, संबंधों को झुठलाते हैं। 

एक क्षण में ही शांत नदी में, वो कोलाहल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 

मेरी आह का, मेरी चीख का, उनको असर नहीं होता है। 
क्या मालूम हमारे तन में, उनसा रुधिर नहीं होता है। 
"देव " हमारी हथेलियों में, क्या कोई ऐसी शेष है रेखा,
जिसके पथ पर पीड़ा, दुश्मन, दुख और ज़हर नहीं होता है।  

वो मिथ्या से सुरा तलक को भी, गंगाजल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। "

....................चेतन रामकिशन "देव"……............. 
दिनांक--०४.१२.२०१४ 

Monday, 1 December 2014

♥♥फूल ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥फूल...♥♥♥♥♥♥♥♥
फूल काँटों में जब खिले होंगे। 
देखकर कितने दिल जले होंगे। 

बाद अरसे के मिलने पे हो पता,
हमसे कितने उन्हें गिले होंगे। 

वो तो मुफ़लिस है और दवा महंगी,
घाव हाथों से ही सिले होंगे।  

प्यार में दिन का हर पहर उनका,
रात को ख्वाब में मिले होंगे। 

वो यकीं चाहकर भी कर न सके,
जिनके अरमान बस छले होंगे। 

उनको मालूम क्या मोहब्बत है,
जिस्म से खून जो मले होंगे। 

"देव " अपने हैं सिर्फ वो देखो,
दर्द में साथ जो चले होंगे। "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०२.१२.२०१४ 

♥♥रस्म प्यार की......♥♥

♥♥♥♥रस्म प्यार की......♥♥♥♥
जान बूझकर खता कर रहे।
रस्म प्यार की अता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे।

प्यार नाम का भी क्या करना,
जो सूरत भी याद रहे न। 
इतना अनदेखा भी क्यों हो,
जो कोई संवाद रहे न। 
यदि निहित तुम हो नहीं सकते,
नहीं सुहाती प्यार की भाषा,
तो क्यों ऐसा ढोंग दिखावा,
जिसमे दिल आबाद रहे न।

जो चाहते थे नाम हमारा,
वही हमें लापता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे...

क्यों रिश्तों में रस्म निभानी,
क्यों चाहत की नींव गिरानी। 
क्यों देकर के झूठी खिदमत,
किसी के दिल को ठेस लगानी। 
"देव " प्यार के संग में ऐसा,
बोलो ये खिलवाड़ भला क्यों,
साथ नहीं जब दे सकते तो,
क्यों झूठी उम्मीद बंधानी।

वो क्या देंगे यहाँ सहारा,
अनुभूति जो धता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४






♥♥मुफ़लिस...♥♥

♥♥♥♥♥मुफ़लिस...♥♥♥♥♥♥
खून, पसीना बह जाता है। 
मुफ़लिस बेबस रह जाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। 

इन सरकारी दवा घरों में,
दवा नाम भर को मिलती है। 
मुफ़लिस को तो कदम कदम पर,
ये सारी दुनिया छलती है। 
मजदूरी को जाने वाले कितने,
देखो मर जाते हैं,
लावारिस में दर्ज हो गिनती,
कफ़न तलक भी कब मिलती है। 

चौथा खम्बा भी खुलकर के,
कब इनका हक़ कह पाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है …

सरकारों की अब मुफ़लिस के,
दर्द पे ज्यादा नज़र जरुरी। 
बिन छत के जो जले धूप में,
उसकी खातिर शज़र जरुरी। 
"देव" देश के मुफ़लिस की हो,
बात जात मजहब से हटकर,
प्यास उसे भी लगती देखो,
उसको भी तो लहर जरुरी। 

बिना सबूतों के वो बेबस,
कड़ी सजा भी सह जाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। "


........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४