Thursday, 31 January 2013

♥सहारा..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सहारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!
भटकी हुई कश्ती को किनारा दिया तुमने!
तुमने ही जगाईं हैं, मेरे दिल में आरजू,
मुझको कभी चंदा, कभी तारा दिया तुमने!

जीवन को मेरे, प्यार के रंगों से सजाया!
तुमने ही अँधेरे में सखी, दीप जलाया!

पतझड़ को भी जाने का, इशारा दिया तुमने!
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!

अधरों से तेरे, प्यार भरे गीत सुनूँगा!
उपवन से तेरे वास्ते, कुछ फूल चुनूँगा!
हाँ सच है सखी, रूबरू तुमसे नहीं हुआ,
पर मिलने के तुमसे, मैं सदा ख्वाब बुनूँगा!

किस्मत से मेरी "देव", ये उपहार मिला है!
जीवन में तेरे प्यार से, हर रंग खिला है!

झुकती हुई डाली का, सहारा दिया तुमने!
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-३१.०१.२०१३

Wednesday, 30 January 2013

♥प्यार का एहसास..♥♥


♥♥♥♥♥♥प्यार का एहसास..♥♥♥♥♥♥♥♥
जब से तुम्हारे प्यार का एहसास हो गया!
खुशियों से सराबोर ये, आकाश हो गया!

हमदम तेरी चाहत का, असर ऐसा हुआ है,
जैसे के अंधेरों में भी, प्रकाश हो गया!

तेरे प्यार की खुश्बू से, महकता है ये जहाँ,
जीवन से हर एक दर्द का, अवकाश हो गया!

इस प्यार ने सिखलाई है, इंसानियत मुझे,
औरों का गम भी, मुझको बड़ा खास हो गया!

है "देव" असर ये, मेरे दिल की दुआओं का,
जो दूर सा दिखता था, वही पास हो गया!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............. 
दिनांक-३०.०१.२०१३

Tuesday, 29 January 2013

♥वेदना की यात्रा..♥


♥♥♥♥♥♥♥वेदना की यात्रा..♥♥♥♥♥♥♥♥
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए!
छाया तिमिर तो धूप के शोले पिघल गए!
जिनसे रखी थी मन ने समर्थन की भावना,
वो लोग ही मुंह फेर के, हमसे निकल गए!

जीवन में हर तरफ हमें, कंटक बहुत मिले!
हम भूख से पीड़ित हुए, विरह में हम जले!
मानव हैं मगर उनको, मुझपे आई न दया,
अपनों के ही हाथों से हैं, दिन रात हम छले!

मौसम वो सभी हर्ष के, देखो बदल गए!
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए....

नयनों से भी अश्रु की धार बहने लगी है!
स्वप्नों की वो आधारशिला ढ़हने लगी है!
किन्तु मैं देखो "देव", यहाँ, हूँ अभी जीवित,
लगता है मेरी देह भी, दुःख सहने लगी है!

पीड़ा की तपती आग में, अश्रु उबल गए!
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए!"

..............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२९.०१.२०१३

Monday, 28 January 2013

♥दर्द का चेहरा.♥



♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का चेहरा.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दुनिया से अपने दर्द का चेहरा छुपा लिया! 
रोती हुई आँखों को भी, मैंने हंसा दिया!

जब से मिली है उनकी ये नूरानी मोहब्बत,
मैंने यहाँ गम से भरा, सूरज बुझा दिया!

नफरत का जहर, मुझपे नहीं करता है असर,
दिल में जो मैंने प्यार का, मंजर सजा लिया!

दिल कहता है ये झूठ है, पानी का बुलबुला,
लफ्जों को मैंने सच का, फलसफा सिखा दिया!

हिम्मत ने मेरी "देव", मुझे चाहा है इतना,
जीवन की मुश्किलों से भी, लड़ना सिखा दिया!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२९.०१.२०१३


Sunday, 27 January 2013

♥आसमान..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥आसमान..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सपने हजार दिल में है, मन में उड़ान है!
छूना हमें एक रोज, यहाँ आसमान है!

आँखों को तेरे बिन, कोई चेहरा नहीं भाता,
बिन तेरे अधूरा हूँ मैं, तू मेरी जान है!

अपनों के दिए ज़ख्म, भले भर गए लेकिन,
पर दिल पे मेरे ज़ख्म का, अब तक निशान है!

वो साथ था जब तक, तो यहाँ रहती थीं खुशियाँ,
उसके बिना ये घर नहीं, खाली मकान है!

अब "देव" मुझे डर नहीं, तन्हाई का कोई,
मेरे साथ जो यादों का, हसीं बागवान है!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२७.०१.२०१३

Saturday, 26 January 2013

♥♥जुगनू..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जुगनू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रात भर जुगनू की तरह, मैं जला करता हूँ!
अपनी तकदीर से न फिर भी गिला करता हूँ!

दर्द की आग में तपकर, ये हुनर पाया है,
फूल बनकर के मरुस्थल में, खिला करता हूँ!

है बुरा वक़्त के अपने न बदल जायें कहीं,
अपनी पहचान छुपाकर के, मिला करता हूँ!

तेरी रंजिश से कभी दिल के हुए जो टुकड़े,
आज उन टुकड़ों को, मैं फिर से सिला करता हूँ!

बड़ी मायूसी है पर "देव" नहीं हारा मैं,
वक़्त के साथ मैं, हंसकर के चला करता हूँ!"

..........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०१.२०१३






Friday, 25 January 2013

♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी के बिना, जिंदा भी यहाँ कैसे रहूँ!
कोई सुनता ही नहीं, दर्द यहाँ कैसे कहूँ!

मेरे आंसू ने मेरा हाल बताया दिल को,
दर्द होता है निगाहों को, बता कैसे बहूँ!

मैं हूँ मजलूम के फुटपाथ पे भी सो जाऊं,
भूख लगती है तो रोटी के बिना कैसे रहूँ!

एक दिन देखो मैं पिंजरे को तोड़ जाऊंगा,
बेगुनाह होके भी आखिर, मैं सजा कैसे सहूँ!

मेरा दिल कहता के "देव" चलो दूर कहीं,
होके इन्सां भला पत्थर की तरह कैसे रहूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२५.०१.२०१३

Thursday, 24 January 2013

♥खिलते गुलाब जैसा.♥


♥♥♥♥♥खिलते गुलाब जैसा.♥♥♥♥♥♥♥
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा!
लगता है चाँद जैसा ये, दीदार तुम्हारा!
बोली में हमनवा तेरी, मिश्री सी घुली है,
हरियाली सा लगता है ये, सिंगार तुम्हारा!

जीवन में जबसे प्रीत, तुम्हारी ये जगी है!
उस दिन से ये दुनिया, बड़ी सुन्दर सी लगी है!

मन को मेरे भाता है, ये किरदार तुम्हारा! 
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा...

तेरे ही ख्यालों से मेरी, रात खिली है!
हमदम तेरी खुश्बू, मेरे जीवन में घुली है!
पाया है जब से "देव" ने, ये प्यार तुम्हारा,
जिस ओर भी देखो, नई सौगात मिली है!

हमदम मेरे तूने ही मुझे, प्यार सिखाया!
हमदम तेरी चाहत ने, मेरा दर्द भुलाया!

दिल यूँ ही रहे प्यार से, गुलजार तुम्हारा!
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा!"

............चेतन रामकिशन"देव"............
(२४.०१.२०१३)

Tuesday, 22 January 2013

♥♥माँ ने तुम्हे पुकारा..♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥माँ ने तुम्हे पुकारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा!
नेता सुभाष फिर से तुम, आ जाओ अब दुबारा!
भारत को आज फिर से, जरुरत है तुम्हारी,
बंधन में जकड़ी माँ ने है, तुमको यहाँ पुकारा!

अब देश के भीतर ही जो, गद्दार बहुत हैं!
देखो सुभाष जुल्म के, किरदार बहुत हैं!

इनके लहू की फिर से, बहो दो जमीं पे धारा!
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा..

फिर से सुभाष देश का, ये हाल हो गया!
मजलूम आदमी यहाँ, बेहाल हो गया!
अफसर यहाँ, नेता यहाँ सब लूटने लगे,
निर्धन के हित का, कोष भी कंगाल हो गया!

अब देश को फिर से तेरी दरकार बहुत है!
बंधन में जकड़ी माँ को, इंतजार बहुत है!

हर पल ही तुम्हे याद, ये करता है वतन सारा!
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा!"

"
आज़ादी के महानायक, नेता सुभाष चन्द्र बॉस को नमन, और सभी से आहवान कि, आइये उनसे प्रेरणा लें और अपने स्तर से देश हित में प्रयास करें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२३.०१.२०१२ 

Sunday, 20 January 2013

♥♥सरसों के फूल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सरसों के फूल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं!
और कभी आँखों के आंसू, गालों को गीला करते हैं!

जीवनपथ में कभी पराजय, अंधकार का मौसम लाती!
और कभी खुशियों की रंगत, अंधकार को दूर भगाती!
इस जीवन की जिजीविषा में, अक्सर ऐसा होता यारों,
कभी जिंदगी हंसती है तो, कभी जिंदगी नीर बहाती!

कभी मिलन के फूल सुनहरे, मन को चमकीला करते हैं!
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं...

ये जीवन सुख-दुख की बेला, हार-जीत की उपलब्धि है!
कभी ये जीवन तंगहाल है, कभी ये जीवन समृद्धि है!
सुनो "देव" तुम उन्नत रखना, सोच हमेशा अपने मन की,
सही सोच के संग रहने से, मानव जीवन में शुद्धि है!

वो हो जाते मुक्त एक दिन, जो बंधन ढीला करते हैं!
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२१.०१.२०१३

♥चुप-चुप..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चुप-चुप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चुप-चुप है मेरा दिल, मेरे जज्बात भी चुप हैं!
आंखे भी हैं चुप-चाप, ख्यालात भी चुप हैं!

मैं किससे यहाँ शिकवा, मैं किससे गिला करूँ,
हैं लफ्ज़ भी खामोश, सवालात भी चुप हैं!

मज़बूरी मैं वो जबसे है, मजदूर बन गया,
बचपन की शरारत भी, कुराफात भी चुप हैं!

कह-कह के थक चुका हूँ मैं, किसने यहाँ सुना,
अब मेरी तबाही के वो, हालात भी चुप हैं!

मिन्नत भी उसने "देव" मेरी कर दी अनसुनी,
लगता है मेरे दर्द के, नग्मात भी चुप हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२०.०१.२०१३

Saturday, 19 January 2013

♥♥इज्ज़त..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इज्ज़त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल में वसे लोगों को निकाला नहीं करते!
इज्ज़त किसी इन्सां की उछाला नहीं करते!

मैंने यहाँ देखे हैं, कई नाम के सूरज,
जो धूप में जलकर भी, उजाला नहीं करते!

जब से मिली है चाँद से प्यारी तेरी सूरत,
हम तब से नजर चाँद पे डाला नहीं करते! 

इस देश के नेताओं की हालत तो देखिए,
अपनी ही सरजमीं को संभाला नहीं करते!

ए "देव" जिन्हें भाती है, इंसानियत है यहाँ,
वो भूल से भी मुंह कभी, काला नहीं करते!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-१९.०१.२०१३




Friday, 18 January 2013

♥अपनी वफ़ा..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥अपनी वफ़ा..♥♥♥♥♥♥♥♥
कोई दे न दे वफ़ा, खुद तो वफादार बनो!
किन्हीं बेचैन निगाहों का तुम करार बनो!

एक दिन वो भी अपने जुर्म पे पछतायेंगे,
न कभी उनकी तरह, तुम भी गुनाहगार बनो!

अपने माँ बाप को भी, तुम जो बताओ नौकर,
जिंदगी में न कभी, ऐसे मालदार बनो!

जिनकी आँखों में नहीं प्यार की कीमत कोई,
ऐसे इंसानों के हरगिज न तलबगार बनो!

"देव" एक दिन ये दरिन्दे सभी मिट जाएंगे,
ऐसे लोगों के लिए, जंग की ललकार बनो!"

...............चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१८.०१.२०१३


Thursday, 17 January 2013

♥♥विरह ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विरह ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गम की बूंदें हैं पलकों पर, अधरों पर पीड़ा की बातें!
बेचैनी में गुजर रही हैं, तुम बिन ये विरह की रातें!

नींद नहीं आती आँखों को, मैंने पूरी कोशिश की है!
हर लम्हा ही मेरे दिल ने, बस तेरी ही ख्वाहिश की है!
हमदम तेरी बोली के बिन, मेरे दिल को चैन न आए,
मेरे दिल ने बस तेरी ही, सूरत की फरमाइश की है!

बिन तेरे पतझड़ लगती हैं, मुझको सावन की बरसातें!
गम की बूंदें हैं पलकों पर, अधरों पर पीड़ा की बातें!"

..................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१७.०१.२०१३

Wednesday, 16 January 2013

♥प्रेम-स्वप्न..♥


♥♥♥♥♥प्रेम-स्वप्न..♥♥♥♥♥
सपनों का एक महल बनाया,
उसमें तेरा चित्र सजाया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया!

जब तुमको स्पर्श किया तो,
सखी लाज से तू भर आई!
अपने प्यारे नयन मूंदकर,
धीमे धीमे तू मुस्काई!
हम दोनों की अति-निकटता,
देखो बादल को भी भाई,
और वायु ने हर्षित होकर,
फूलों की खुशबु बिखराई!

हम दोनों का मिलन देखकर,
हरियाली पर यौवन आया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया....

सखी तुम्हारे प्रेम की ज्योति,
मेरे मन को उज्जवल करती!
मेरी सोच को शुद्धित करके,
मेरे भाव को निश्छल करती!
सखी तुम्हारे अपनेपन से,
"देव" में उर्जा संचारित है,
सखी तुम्हारे प्रेम की शक्ति,
जिजीविषा को प्रबल करती!

सखी तुम्हीं ने आशाओं का,
मन मंदिर में दीप जलाया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया!"
"
प्रेम, एक ऐसा सम्बन्ध है, जो दुनिया में सबसे अनमोल अनुभूति है! जहाँ परस्पर प्रेम होता है वहां, सम्बंधित पक्ष निश्चित रूप से एक दूसरे का सहयोग करते हैं, एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सुख-दुःख के भागीदार बनते हैं, तो आइये समर्पण के प्रेम के संवाहक बनें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१७.०१.२०१३

"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Tuesday, 15 January 2013

♥♥पीड़ा का गीत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा का गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!
पर अपने दिल के भावों की, हत्या भी तो कर नहीं सकता!

मैं अपने इस कोमल दिल को, आखिर क्यूँ पाषाण बनाऊं!
मैं अपने जीवित भावों को, आखिर क्यूँ बेजान बनाऊं!
अभी तलक तो किसी ने मेरे, दुख को ढ़ाढस नहीं बंधाया,
किस मुंह से फिर किसको यारों, मैं पीड़ा का गीत सुनाऊं!

लेकिन फिर भी नाकामी से, मैं जीवन में डर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता....

बड़े पास से मैंने यारों, अपने दिल को रोते देखा!
गम की काली धुंध में मैंने, अपने सुख को खोते देखो!
"देव" मैं अपने बुरे वक़्त का, आखिर हाल बताता किससे,
जिसको दर्द सुनाना चाहा, उसको चुप चुप सोते देखा!

लेकिन उनकी तरहा उनको, मैं अनदेखा कर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"..........................
दिनांक--१६.०१.२०१३

Monday, 14 January 2013

♥♥आशाओं के मोती..♥♥


♥♥♥♥आशाओं के मोती..♥♥♥
दीपक से ज्योति की खवाहिश,
सागर से मोती की आशा!
जीवन में आगे बढ़ने की,
तुम मन में रखो अभिलाषा!

ख्वाब टूटकर बिखरें बेशक,
ख्वाब सजाना बंद न करना!

दर्द से चाहें चुभन हो कितनी,
तुम मुस्काना बंद न करना!

दर्द की एक उमर होती है,
धीरे धीरे कट जाएगी,

लेकिन यारों दर्द से डरकर,
गतिशीलता मंद न करना!

मानवता को जीवित रखना,
कायम रखना प्यार की भाषा!
जीवन में आगे बढ़ने की,
तुम मन में रखो अभिलाषा!"

...चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--१५.०१.२०१३

♥लफ्जों की आवाज़♥


♥♥♥लफ्जों की आवाज़♥♥♥
लफ्जों से कुछ बयां करूँगा!
अपने हक को अदा करूँगा!
दूर भले तुम जाओ लेकिन,
मैं मिलने की दुआ करूँगा!

मैं अपने दिल में देखूंगा, 
और तेरा दीदार करूँगा!
साँझ, सवेरे मेरे हमदम,
तुझे रूह से प्यार करूँगा!

तेरी याद को, मेरे हमदम,
कभी न दिल से जुदा करूँगा!
दूर भले तुम जाओ लेकिन,
मैं मिलने की दुआ करूँगा!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--१४.०१.२०१३

Sunday, 13 January 2013

♥मेरे एहसास..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे एहसास..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ!
अपनी सहनशीलता से मैं, दर्दे-दिल को भुला रहा हूँ!
केवल हाथ मिलाने भर से, मिलन रूह का हो न पाए,
रूह से मिलने की इच्छा में, दिल से दिल को मिला रहा हूँ!

अपने दिल के एहसासों को, नहीं मारकर जीना सीखा!
अपनी आँखों के आंसू को, बूंद बूंद भर पीना सीखा!

अपनी मन की ऊष्मा से मैं, दुख के हिम को गला रहा हूँ!
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ...

एहसासों की रंग बिरंगी दुनिया, मेरे दिल को भाती!
सात समुन्दर पार भी हैं जो, उनसे मेरा मिलन कराती!
"देव" भले ही एहसासों की, दुनिया सबको रास न आए,
लेकिन रंगत एहसासों की, अपनेपन का नूर जगाती!

मैं अपने हाथों से अपने, लफ़्ज़ों का सिंगार करूँगा!
जीवन की इस तन्हाई में, एहसासों का रंग भरूँगा! 

दुख में भी हंसकर के यारों, गम का पर्वत हिला रहा हूँ!
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक--१४.०१.२०१३


♥♥जिसने मुझको..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जिसने मुझको..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कड़ी धूप में जिसने मुझको, हरियाली का नाम दिया था!
शीतलहर में उसने मुझको, ऊष्मा का उपनाम दिया था!
आज उसी व्यक्ति को मेरा, कद लेकिन बौना लगता है,
मेरे कंधे पर सर रखकर, वो जिसने विश्राम किया था!

करो निवेदन चाहें कितना, फिर भी लोग नहीं सुनते हैं!
चुभन का जिनको पता नहीं, वो भला कहाँ कांटे चुनते हैं!

आज उसी ने लूटा उपवन, वो जिसने अभिराम किया था!
कड़ी धूप में जिसने मुझको, हरियाली का नाम दिया था!"

......................चेतन रामकिशन "देव"..........................
दिनांक--१३.०१.२०१३

Friday, 11 January 2013

♥मन की भावना..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥मन की भावना..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है!
वेदना मन में हमारे, अब निरंतर हो रही है!
किन्तु मेरे मुख पे फिर भी, भाव हैं प्रसन्नता के,
हाँ सही है जिंदगी ही, भीतर ही भीतर रो रही है!

मेरे हाथों की लकीरों में, न जाने क्या लिखा है!
अब तलक तो जिंदगी में, हर घड़ी ही मन दुखा है!
जिसको मैंने आस्था से, पूजकर मानव बनाया,
आज उस मानव के भीतर, द्वेष का पत्थर दिखा है!

स्वप्न की दुनिया भी देखो, क्षण में नश्वर हो रही है!
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है..

किन्तु फिर भी जिंदगी से, युद्ध हर क्षण कर रहा हूँ!
अपनी माँ की सीख से मैं, कर्म निश दिन कर रहा हूँ!
मेरी माँ कहती है मुझसे, भाव बिन पाषाण है मन,
इसलिए शब्दों में अपने, भाव निश दिन भर रहा हूँ!

दुख से लड़कर जिंदगी, हर रोज प्रखर हो रही है!
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक--१२.०१.२०१३

Thursday, 10 January 2013

♥भारत के सैनिक..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भारत के सैनिक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं!
नाम दोस्ती का देकर हम, अत्याचार नहीं करते हैं!

किन्तु हम पाषाण नहीं हैं, जो बिन बदले के रह जायें!
हम इतने कमजोर नहीं जो, मरते दम तक शीश झुकायें!
जिस दिन सेनानायक का हम, एक इशारा प्राप्त करेंगे,
उस दिन शत्रु के घर घुसकर, हम लाशों की झड़ी लगायें!

ए दुश्मन हम अपने मुख के, दो किरदार नहीं करते हैं!
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं...

यदि यकीं है अपने बल पर, तो रण भूमि में आ जाओ!
हम भी नजर मिलायें तुमसे, तुम भी हमसे नजर मिलाओ!
यूँ कायर बनकर तुम बोलो, छुप छुप हमला करते क्यूँ हो,
यदि गरम है खून तो आकर, रणभूमि का शंख बजाओ!

हमने माँ का दूध पिया, हम डरकर हार नहीं करते हैं!
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं!"

......................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--११.०१.२०१३

♥♥दर्द का सफर...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का सफर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किससे अपना दर्द कहूँ मैं, किससे अपना हाल बताऊँ!
कैसे हंस कर झूठ मूठ का, मैं खुद को खुशहाल बताऊँ!

उसके पास नहीं है दौलत, पर उसका दिल भरा प्यार से,
आखिर ऐसे इन्सां को मैं, किस तरहा कंगाल बताऊँ!

झूठ कभी जो लिखना चाहा, कलम ने मेरे रोका मुझको,
वो कहता है मैं चादर को, किस मुंह से रुमाल बताऊँ!

मुझे पता है मुफलिस के घर, घास फूंस के छप्पर होते,
आंख मूंदकर कैसे उसको, मैं चन्दन की छाल बताऊँ!

"देव" अभी तक मेरे हिस्से, पतझड़ के ही पल आए हैं,
तुम्ही बताओ मैं पतझड़ को, कैसे गुल की डाल बताऊँ!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--०९.०१.२०१३

Wednesday, 9 January 2013

♥आँखों में पानी.♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आँखों में पानी.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम बिन सचमुच गुमसुम हूँ मैं, तुम बिन आँखों में पानी है!
तुम बिन कोई लगे न अपना, तुम बिन दुनिया बैगानी है!

तुम आँखों में, तुम सपनों में, तुम जीवन के बागवान में!
तुम ही जल में, हरियाली में, तुम ही धरती, आसमान में!
तुम जीवन की कड़ी धूप में, शीतल छाया का सुख देतीं,
तुम ही शब्द में, तुम्ही भाव में, तुम्ही कंठ में, तुम्ही गान में!

तुम बिन देखो घर आंगन में, हमदम कितनी वीरानी है! 
तुम बिन सचमुच गुमसुम हूँ मैं, तुम बिन आँखों में पानी है!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"...........................
दिनांक--०९.०१.२०१३

♥खत का पैगाम..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥खत का पैगाम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खत पे नाम लिखा था तेरा, लेकिन तुझको भेज न पाया!
मैं किस्मत की अनदेखी से, हमदम तुझसे मिल न पाया!

डर था मुझको मेरे दर्द से, भीग न जायें तेरी पलकें,
इसीलिए तो मैंने तुझको, अपना दुख भी न दिखलाया!

लगता है के इस धरती पर, मिटटी के पुतले रहते हैं,
चीख किसी मजलूम की सुनकर, कोई देखो पास न आया!

तुम आये तो हमदम मेरा, दिल भी खुश है और रूह भी,
बिना तुम्हारे मेरा चेहरा, एक पल को भी न मुस्काया!

"देव" सुनो तुम मेरी माँ से, बढ़कर कोई नहीं है मुझको,
और किसी की दुआ से मैंने, जन्नत जैसा सुख न पाया!"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक--०९.०१.२०१३

♥♥शीश .♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शीश .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!
मगर यहाँ के नेता फिर भी, अंधे बहरे हो जाते हैं!

एक सैनिक का निर्ममता से, 
कत्ल भी इनको नहीं रुलाता! 
वो तो रखते छुरी बगल में,
और हम रखते मित्र का नाता!
मित्र बताकर धोखा देना,
आखिर कैसा अपनापन है,
"देव" मित्रता की सीमा में,
ऐसे मंजर कभी न आता!

हम रोते  हैं करुण रुदन में, गीत खुशी का वो गाते हैं!
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक--०९.०१.२०१३

Monday, 7 January 2013

♥पीड़ा में आनंद..♥


♥♥♥पीड़ा में आनंद..♥♥
पीड़ा में आनंद तलाशा!
अपने दुख को बड़ा तराशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!

हाँ सच है मेरे अपनों को,
मेरे दुख पे तरस न आया!
जिसने जब भी चाहा मुझको,
जी भरकर के मुझे रुलाया!

एक बार भी नहीं उन्होंने,
मेरे दुख को दिया दिलासा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा...

दर्द के हाथों खंडित होकर,
बड़ा ही पीड़ित जीवन होता!
लेकिन दुख के बाद यहाँ पर,
खुशियों का नवजीवन होता!

"देव" नहीं जो पीड़ा समझे,
उनसे रखो कभी न आशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--०८.०१.२०१३

Sunday, 6 January 2013

♥अपनी नाव♥


♥♥♥♥अपनी नाव♥♥♥♥
बीते कल पर रोना छोड़ो,
नई सुबह में सोना छोड़ो,
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो!

नहीं वक्त से पीछे रहना,
नहीं वक्त से आगे आओ!
चलो वक्त से हाथ मिलाकर,
उसको अपने गले लगाओ!

नहीं हार से घबराकर के,
अपनी मंजिल खोना छोड़ा!
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो..

जात धर्म के मसले में तुम,
अपनायत पर चोट न करना!
जिससे मानवता जल जाए,
तुम ऐसा विस्फोट न करना!

"देव" जरा तुम मजलूमों के,
खून से चेहरा धोना छोड़ो!
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो!"

..........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक--०७.०१.२०१३



Saturday, 5 January 2013

♥चिमनी का धुआं..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चिमनी का धुआं..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!
उसी तरह से मानव का मन, आज बड़ा प्रदूषित लगता!

संस्कार भी सिमट रहे हैं, नैतिक शिक्षा लगे पुरानी!
आज बड़ी ही पिछड़ी लगती, सदाचार की बात सुनानी!
मर्यादा भी हुयी अधमरी, और मूल्य भी मरणासन्न हैं,
बस अपने ही हित की बातें, हर मानव को लगें सुहानी!

इस युग में तो हर मानव का, चिंतन बड़ा कलुषित लगता!
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!"

........................चेतन रामकिशन "देव"...........................
दिनांक--०५.०१.२०१३

Friday, 4 January 2013

♥पत्थर का दिल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पत्थर का दिल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश ये दिल पत्थर का होता, नहीं टूटने का डर होता!
कभी किसी के जाने पर भी, नहीं कभी ये खंडहर होता!

नहीं कभी ये तन्हाई में, चुपके चुपके अश्क बहाता!
कभी किसी के इंतजार में, अपने पलकें नहीं बिछाता!
कोई अगर जो ठोकर मारे, तो भी सह लेता हंसकर के,
कभी कहीं से छिल जाने पर, मुझको पीड़ा नहीं सुनाता!

हाँ रब से मिलकर बतलाता, यदि जमीं पर अम्बर होता!
काश ये दिल पत्थर का होता, नहीं टूटने का डर होता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--०४.०१.२०१३



Wednesday, 2 January 2013

♥♥पत्थर का खुदा..♥♥


♥♥♥पत्थर का खुदा..♥♥♥♥

कोई तो दर्द, कोई दवा बेचने चला!
कोई यहाँ पत्थर का खुदा बेचने चला!

जिसने कभी रब से मुझे माँगा था दोस्तों,
वो शख्स ही अब मेरी वफ़ा बेचने चला!

घर के सभी लोगों ने जिसे रहनुमा चुना,
वो आदमी ही घर का दीया बेचने चला!

दारू ने कैसी काई जमाई दिमाग पर,
रखवाला ही अब घर की हया बेचने चला!

लोगों ने "देव" उसका कभी सच नही समझा,
मज़बूरी में वो सच की अदा बेचने चला!"

...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक--०३.०१.२०१३

Tuesday, 1 January 2013

♥कैसे जलें चिराग.?♥


♥♥♥♥♥♥कैसे जलें चिराग.?♥♥♥♥♥♥
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!
इंसानियत का लगता है अब खेल खत्म है!

अब रूह के रिश्तों का सफर पल में छूटता!
अब ख्वाब मोहब्बत का यहाँ यूँ ही टूटता!
किससे करें गुहार के, आकर के बचा लो,
जिसको भी देखो वो ही जिंदगी को लूटता!

इंसान का इंसान से, अब मेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है....

अपराधी, दरिन्दे तो खुलेआम घूमते!
कानून के सरपंच भी मदिरा में झूमते!
कमजोर आदमी की कोई सुनता ही नहीं,
और गुंडे यहाँ सड़को पे लड़की को चूमते!

गुंडों के लिए देश की हर जेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!"

...........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक--०२.०१.२०१३