♥♥♥♥♥♥♥♥♥बंदनवार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बंदनवार सजाया मैंने, घी का दीप जलाया मैंने।
नहीं लौटकर पर तुम आये, कितना तुम्हें बुलाया मैंने।
तुमको अपनी व्याकुलता के, कितने पत्र लिखे प्रतिदिन,
तुम बिन ये नीरस जीवन है, हर क्षण ये बतलाया मैंने।
किन्तु तुमने मेरे मन की, आशाओं को तोड़ दिया क्यों।
एकाकी जीवन के पथ पर, मुझको जीवित छोड़ दिया क्यों।
तुमसे बस थोड़ी अनुभूति, थोड़ा सा अपनत्व ही चाहा,
किन्तु तुमने इसके बदले, दुख से नाता जोड़ दिया क्यों।
तुम नहीं समझे मेरी वेदना, कितना तो समझाया मैंने।
तुम बिन ये नीरस जीवन है, हर क्षण ये बतलाया मैंने ...
रिक्त है तुम बिन जीवन का वृत, त्रिज्या दुख की बड़ी हुयी है।
शब्दों से विस्तार करूँ क्या, तुम बिन मुश्किल खड़ी हुयी है।
"देव" तुम्हारी प्रतीक्षा में, दिवस रात पथरायीं ऑंखें,
लगता है कि भाग्य में तुम बिन, घनी वेदना जड़ी हुयी है ...
अब तुम समझो या न समझो, रिक्त हृदय दिखलाया मैंने।
तुम बिन ये नीरस जीवन है, हर क्षण ये बतलाया मैंने। "
.....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-३१.०३.२०१५