Tuesday, 23 July 2013

♥♥रूठे रूठे से...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥रूठे रूठे से...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूठना बंद करो, अब तो मान जाओ तुम!
प्यार का गीत मेरे साथ, गुनगुनाओ तुम!

तेरी चुप्पी से चाँद रोये, सितारे नाखुश,
इसीलिए अब तो सखी, देखो मुस्कुराओ तुम!

तेरी खामोशी के लम्हे, मुझे नहीं भाते,
हौले हौले ही सही, लब से कुछ सुनाओ तुम!

तेरे आँचल में अपने सर को रख के सोना है,
भूलकर शिकवे गिले, पास मेरे आओ तुम!

"देव" मेरी भी निगाहों में, आयेंगे आंसू,
प्यार को अपने नहीं, इतना भी सताओ तुम!"

.............चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक-२३.०७.२०१३

  

Sunday, 21 July 2013

♥♥सिफारिश..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सिफारिश..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी बस एक झलक पाने की, ख्वाहिश की है!
चाँद से तुझको बुलाने की, सिफारिश की है!

देखते देखते राहें मैं, थक गया तेरी,
मेरी आँखों ने तेरी याद में, बारिश की है!

तेरे ऊपर मैं भला, क्यूँ कोई इल्जाम रखूं,
वक़्त ने फिर से मेरे साथ, ये साजिश की है!

जल गया मेरा जिगर, कोई तो पानी डालो,
दर्द ने फिर से मेरे दिल में, ये आतिश की है!

"देव" कुदरत से बड़ा, कोई नहीं दुनिया में,
मैंने कुदरत से ही खुशियों की, गुजारिश की है!"

..............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२१ .०७.२०१३

Saturday, 20 July 2013

♥♥चूल्हे की आग..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥चूल्हे की आग..♥♥♥♥♥♥♥♥
है अँधेरा के चलो तुम, चिराग बन जाओ!
किसी बुझते हुए चूल्हे की, आग बन जाओ!

जो यहाँ लूटते हैं देखो, मुफलिसों का हक,
उनको डस लो के चलो, ऐसे नाग बन जाओ!

भले दो रोटी मिलें, पर कमाओ इज्ज़त से,
ऐसा न हो के, यहाँ काला दाग बन जाओ!

अपने लफ्जों से नहीं, खुद ही फरमाईश हो,
तंग लोगों का जरा तुम, ईजाब* बन जाओ!

"देव" एक दिन उन्हें, हक की लड़ाई आएगी,
तुम जो सोते हुए लोगों की, जाग बन जाओ!"

..............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२०.०७.२०१३

(*-प्रार्थना/प्रस्ताव)

Friday, 19 July 2013

♥♥ख्वाबों की उड़ान..♥♥

♥♥♥♥♥♥ख्वाबों की उड़ान..♥♥♥♥♥♥♥
खोलकर अपने परों को, उड़ान भरता हूँ!
अपने टूटे हुए सपनों में, जान भरता हूँ!

न ही हिन्दू, नहीं मुस्लिम, न सिख, इसाई को,
मैं तो इंसान को, दिल से सलाम करता हूँ!

रास्ते तंग हैं और देखो सफ़र मुश्किल है,
फिर भी मैं जीतने का, इतमिनान करता हूँ! 

मेरा ये जिस्म है मिट्टी का, कब बिखर जाए,
भूल से भी न कभी, मैं गुमान करता हूँ!

उम्र की धूप ने, मुझको बना दिया बूढ़ा,
हाँ मगर होंसला, फिर से जवान करता हूँ!

मैं हूँ जैसा मैं वही, दिखता हूँ हमेशा ही,
न ही मैं ढोंग, नहीं झूठी शान करता हूँ!

"देव" ये दोस्त ही, पूंजी हैं मेरे जीवन की,
ये दुआ देते हैं, मैं जब उड़ान भरता हूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२०.०७.२०१३




♥♥कांच के ख्वाब..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥कांच के ख्वाब..♥♥♥♥♥♥♥
कांच के ख्वाब हैं, डर डर के मैं संजोता हूँ!
अपनी सूरत को अपने आंसुओं से धोता हूँ!

मुझसे कहते हैं लोग, क्या ये हो गया तुमको,
साथ दिखता हूँ मगर, साथ नहीं होता हूँ!

माँ से बढ़कर नहीं, हमदर्द कोई दुनिया में, 
माँ की लोरी को सुने बिन, मैं नहीं सोता हूँ!

जो गुनाह करते हैं वो, सोते हैं तसल्ली से,
बेगुनाह होके भी मैं, अपना सुकूं खोता हूँ!

"देव" मुश्किल है मगर, देखो नहीं नामुमकिन,
सोचकर ये ही मैं, गिरकर भी खड़ा होता हूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१९.०७.२०१३ 






Thursday, 18 July 2013

♥♥घोंसले...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥घोंसले...♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो पेड़ों पे नए, घोंसले बनाते हैं!
चलो आकाश से कुछ, तारे तोड़ लाते है!

सब्र से काम लो तुम, हार से नहीं डरना,
दीये उम्मीद के एक रोज, जगमगाते हैं!

रूह का नूर तो हर वक़्त ही कायम रहता,
हाँ मगर जिस्म यहाँ, खाक में मिल जाते हैं!

उनका ही नाम सारे, जग को रौशनी देता,
जिनके अश्कों को भी, हंसने के हुनर आते हैं!

चंद सिक्कों के लिए, खुद का ईमां मत बेचो,
लोग एक पल में ही, नजरों से उतर जाते हैं!

नहीं मंदिर, नहीं मस्जिद की जरुरत उनको,
अपने माँ बाप के आगे, जो सर झुकाते हैं!

"देव" अश्कों से मेरी, दोस्ती बड़ी गहरी,
मैं जो रोता हूँ तो ये, मुझको चुप कराते हैं!"

.........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-१९.०७.२०१३

Tuesday, 16 July 2013

♥♥रात की खामोशी..♥♥

♥♥♥♥♥♥रात की खामोशी..♥♥♥♥♥♥♥♥
रात खामोश है पर, ख्वाबों की किलकारी है!
जिंदगी जैसी भी है, मुझको बड़ी प्यारी है!

चाँद सुन्दर है, वो प्यारा है, ये हकीक़त है,
माँ की ममता तो मगर चाँद से उजियारी है!

बड़ी मासूम है, दिल प्यार से भरा उसका,
जैसे अम्बर से परी, धरती पे उतारी है!

आज दौलत के लिए, कितना गिर गया इन्सां,
भाई ने भाई को ही, आज छुरी मारी है!

नहीं जिद करना कभी, मेरे अश्क पीने की,
मेरी आँखों की झील, सच में बड़ी खारी है!

एक पल को भी कभी, हम न मिल सके लेकिन,
फिर भी मिलने की दुआ, हर घड़ी ही जारी है!

"देव" जिन लोगों को, कुदरत ने कर दिया तन्हा,
ऐसे इन्सां को हर एक सांस, बड़ी भारी है!"

..............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१६.०७.२०१३





Monday, 15 July 2013

♥♥सुबह की रोशनी..♥♥

♥♥♥♥♥सुबह की रोशनी..♥♥♥♥♥♥♥
धीरे धीरे ही सही, रात गुजर जाएगी!
रोशनी लेके सुबह, फिर से नयी आएगी!

अपने एहसास को मिटटी में जो मिला दोगे,
देखो मिटटी से भी, सौंधी सी महक आएगी!

ख्वाब टूटें तो कभी हौंसला न कम करना,
जिंदगी फिर से नए ख्वाब, देके जाएगी!

अपनी हिम्मत को कभी, तुम जो बुलंदी दोगे,
देखो उलझन के हर एक, अपना सर झुकाएगी!

"देव" जल्दी से चलो, अपने घर को चलते हैं,
बिन मुझे देखे मेरी माँ, नहीं सो पाएगी!"

..............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१५.०७.२०१३

Sunday, 14 July 2013

♥♥नया रास्ता...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥नया रास्ता...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी फिर से मुझे, रास्ता दिखाने लगी!
नयी दुनिया से मेरा, वास्ता कराने लगी!

जब भी हंसकर के, मैंने दुनिया की तरफ देखा,
सारी दुनिया मुझे अपनी सी, नजर आने लगी!

जिंदगी में नहीं मिलती हैं, हमेशा खुशियाँ,
आज ये बात मुझे देखो, समझ आने लगी!

मैंने बंजर में जो मेहनत से, बुबाई की थी,
आज उस खेत में हरियाली, लहलहाने लगी!

छोड़ दो नफरतें के, प्यार का सावन आया,
देखो कोयल भी, मोहब्बत के गीत गाने लगी!

मैं भी इन्सां हूँ मुझे, गर्भ में नहीं मारो,
छोटी सी बच्ची मुझे, पाठ ये पढ़ाने लगी!

"देव" ये माँ की दुआओं, असर ही तो है,
देखो मुश्किल मुझे, आसान नजर आने लगी!"

...............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-१५.०७.२०१३

Saturday, 13 July 2013

♥♥देह की छिलन..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥देह की छिलन..♥♥♥♥♥♥♥
शब्द से भाव का जब भी, ख्याल मिलता है!
मेरे एहसास में तब गीत नया खिलता है!

वैसे मिलते हैं सफ़र में तो हजारों साथी,
कोई कोई ही मगर, साथ सदा चलता है!

मैं यही सोच के पत्थर के पूजने निकला,
लोग कहते हैं पत्थर में, खुदा मिलता है!

नाम के तो हैं यहाँ, लाखों, हजारों सूरज,
कोई जांबाज ही दीपक की तरह जलता है!

"देव" कांटो ने मुझे कोई चुभन न बख्शी,
फूल की शाख रगड़ने से, बदन छिलता है!"


...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१४.०७.२०१३

♥♥ख्वाबों का गीत...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥ख्वाबों का गीत...♥♥♥♥♥♥♥
चांदनी रात में एक ख्वाब सजाया जाये!
तेरी तारीफ में एक गीत बनाया जाये!

इस जनम में नहीं भरता है मोहब्बत से दिल,
सात जन्मों के लिए प्यार निभाया जाये!

ये अँधेरा भी घना पल में सिमट जायेगा,
दीप उम्मीद का जो एक जलाया जाये! 

नहीं मजहब, नहीं दौलत, न सियासत कोई,
प्यार तो दुनिया में बस, प्यार से पाया जाये!

"देव" मरके भी हमे लोग, न भुला पायें,
बनके आकाश चलो, दुनिया पे छाया जाये!"

..........चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१३.०७.२०१३ 

Friday, 12 July 2013

हुनर

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हुनर हाथों में रखना है, नजर मंजिल पे लानी है!
भले तूफां में हो किश्ती, हमें साहिल पे लानी है!

भरोसे बैठकर किस्मत के, कुछ भी पा नहीं सकते!
बिना बादल बने आकाश पे, हम छा नहीं सकते!
गगन को देखना तो "देव" है, आसान पर लेकिन,
बिना साहस के तारे तोड़कर, हम ला नहीं सकते!

है जब तक जान हमको, जिंदगी हंसकर बितानी है!
हुनर हाथों में रखना है, नजर मंजिल पे लानी है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१३.०७.२०१३








Thursday, 11 July 2013

♥♥♥♥♥♥निर्धन की आह..♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥निर्धन की आह..♥♥♥♥♥♥
मजदूर पिस रहा है, कृषक भी दुखी है!
कैसे मैं कह दूँ अपना, ये देश सुखी है!

चिथड़ों में लिपटे लिपटे, इंसान हैं यहाँ!
रोटी के बिना लाखों, बेजान हैं यहाँ!
कोई भी दर्द इनका, सुनता ही नहीं है,
सब जानकर भी देखो, अंजान हैं यहाँ!

जर्जर हुए बदन हैं, अस्थि भी दिखी है!
मजदूर पिस रहा है, कृषक भी दुखी है...

इस देश के नेता तो, पथ से भटक गए!
बस लूट मार तक ही, ये तो अटक गए!
दिखने में तो लगते हैं, ये साफ आदमी,
पर ये ही गरीबों का, हर हक़ गटक गए!

निर्धन ने बिना जुर्म के ही, मौत चखी है!
मजदूर पिस रहा है, कृषक भी दुखी है...

मजदूर हो, या कृषक, या आम आदमी!
दिन रात इनकी आँखों में, रहती है नमी!
पर "देव" यूँ ही बैठके, मंजिल के नहीं मिले,
अब रंग दो लुटेरों के, तुम खून से जमीं!

अपने ही होंसले में, ये जीत लिखी है!
मजदूर पिस रहा है, कृषक भी दुखी है!"


"
भारत देश, आजादी के बहुत कम वर्षों के बाद भी, आज ऐसे मुकाम पर पहुंच चूका है, जहाँ से विश्व समुदाय उसे भ्रष्टाचार का उपमा देने में जरा भी संकोच नहीं करता, एक ओर निर्धन के घर चूल्हा फूंकने के लिए ४ लकड़ियाँ तक नहीं मिलती ओर एक तरफ लोग, इन्ही के धन, मेहनत ओर अधिकारों पर डाका डालकर, धन कुबेर बने बैठे हैं! तो आइये चिंतन करें..

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१३.०७.२०१३

Wednesday, 10 July 2013

♥♥♥बंजर में नमी.♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥बंजर में नमी.♥♥♥♥♥♥♥♥
देखो बंजर में नमी, मेरी दुआओं से हुयी!
बूँद बनकर के जो, बरसात निगाहों से हुयी!

कैसी हो सकती थी, मुफलिस की शिफा दुनिया में,
बढ़ी महंगाई से, अब दूरी दवाओं से हुयी!

झूठ का दीप, बड़ा ही गुरुर करता था,
बुझ गया जंग वो जब, सच की हवाओं से हुयी!

आज मैं फिर से बन गया हूँ, एक भला इन्सां,
मुझे तौबा जो आज, मेरे गुनाहों से हुयी!

"देव" मैं चलता हूँ, मैं गिरता हूँ, मैं उठता हूँ,
जिंदगी पूरी मेरी इन ही, अदाओं से हुयी!"

..............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-११.०७.२०१३

♥♥♥इल्जाम...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इल्जाम...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिना ही बात के, इल्जाम की बौछार करते हो!
मैं कैसे मान लूँ के तुम, मुझी से प्यार करते हो!

नहीं बदला हूँ मैं लेकिन, तुम्हें लगता है क्यूंकि तुम,
बदल कर अपनी नजरों को, मेरा दीदार करते हो!

तुम्हारा नाम तक अपनी जुबां पे, मैं नहीं लाया,
मगर बदनाम तुम मुझको, सरे बाजार करते हो!

मोहब्बत में यकीं खुद से भी, ज्यादा होता है लेकिन,
मुझे तुम डाल के पिंजरे में, बस लाचार करते हो!

नहीं मैं जानता था "देव" के, हालात ये होंगे,
यहाँ दुश्मन बनेगा वो, जिसे तुम प्यार करते हो!"

.........चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-१०.०७.२०१३

Monday, 8 July 2013

♥♥नया गीत..♥♥

♥♥♥♥♥♥नया गीत..♥♥♥♥♥♥♥
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!

पिया है जहर मैंने, जब से ये सच का,
के पहले से सुन्दर, मैं दिखने लगा हूँ!

गिरा हूँ मगर फिर से उठने की हिम्मत,
के इन बाजुओं में बचाकर रखी है!

मैं मिलता हूँ हंसकर रक़ीबों से अपने,
के मैंने तो नफरत भुलाकर रखी है!

नहीं है जरुरी के इस जिंदगी में,
खुशी ही खुशी हमको मिलती रहेगी,

इसी वास्ते मैंने अपनी हंसी में,
के पीड़ा गमों की छुपाकर रखी है!

खुशी और गमों के, मैं इन आंसुओं को,
देखो तसल्ली से, चखने लगा हूँ!

आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ..

कभी तो मिलेगी मुझे मेरे मंजिल,
हताशा में रहने से, क्या फायदा है!

पता है के जब झूठ, आये पकड़ में,
तो फिर झूठ कहने से, क्या फायदा है!

सुनो "देव" अपनी निगाहों से देखो,
निगाहें मिलाकर यहाँ पे रहो तुम,

के तुम दर्द में भी, तलाशो खुशी को,
यूँ मायूस रहने से, क्या फायदा है!

मैं शब्दों से अपने, मोहब्बत की बातें,
के सबकी हथेली पे, रचने लगा हूँ!

आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०९.०७.२०१३

Sunday, 7 July 2013

♥कठिन रास्ते..♥


♥कठिन रास्ते..♥

कठिन रास्ते हैं, 
सफर भी है मुश्किल,
मगर फिर भी चलने को जी कर रहा है!

अँधेरा घना है,
चिरागों की तरह,
मगर फिर भी जलने को जी कर रहा है!

मैं जब भी तलाशी जो लेता हूँ दिल की,
सिवा गम के कुछ भी तो मिलता नहीं है!

बहारें खुशी की नहीं आयीं अब तक,
के जीवन में गुल कोई खिलता नहीं है!

मगर फिर भी गम की,
दहकती अगन में,
के मेरा पिघलने को जी कर रहा है!

कठिन रास्ते हैं, 
सफर भी है मुश्किल,
मगर फिर भी चलने को जी कर रहा है...


गमों की ये रातें सताती हैं मुझको,
गमों के भी ये दिन भी रुलाते रहे हैं!

के अब तक तो टूटे हैं सारे ही सपने,
मगर ख्वाब हम फिर सजाते रहे हैं!

मुझे "देव" खुद से है इतनी मोहब्बत,
के मैं दर्द में भी, जिये जा रहा हूँ!

मुझे जितने आंसू दिए जिंदगी ने,
के मैं हंसके उनको, पिये जा रहा हूँ!

गमों की घुटन है,
मगर फिर भी मेरा,
के देखो मचलने को जी कर रहा है!

कठिन रास्ते हैं, 
सफर भी है मुश्किल,
मगर फिर भी चलने को जी कर रहा है!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०७.०७.२०१३


♥♥प्रेम के नियम..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम के नियम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
न परिभाषा पता प्रेम की, न ही कोई नियम जानता!
इसीलिए मैं खुद को अब तक, प्रेम के काबिल नहीं मानता!
लोग यहाँ पर प्रेम में देखो, अपने अपने पक्ष बतायें,
किसी के दिल पे क्या बीती है, कोई देखो नहीं जानता!

प्रेम समर्पण की नीति है, लोग मगर इसको न मानें!
अपनी धुन में रहें वो डूबे, भाव किसी के न पहचानें!
अपने प्रेम को उच्च समझकर, औरों को कमतर आंकेंगे!
आंख से परदे नहीं हटाकर, किसी के दिल में वो झाकेंगे!

बिना समर्पित प्रेम की मंजिल, अपने मन में नहीं ठानता!
न परिभाषा पता प्रेम की, न ही कोई नियम जानता....

यदि प्रेम के भाव समझकर, साथ साथ तुम चलकर देखो!
कभी जरुरत पड़े तो देखो, एक दूजे पे मिटकर देखो!
"देव" प्रेम का नाम बताकर, भाव बोझ प्रेषित न करना,
प्रेम हमारा अमर रहेगा, यदि रूह से मिलकर देखो!

बिना समर्पण के भावों को, प्रेम मैं हरगिज नहीं मानता!
न परिभाषा पता प्रेम की, न ही कोई नियम जानता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०७.०७.२०१३

Saturday, 6 July 2013

♥♥आशिकी♥♥

♥♥आशिकी♥♥
ये आशिकी है,
या है मोहब्बत,
नहीं पता है ये बेकरारी!

बिना तुम्हारे,
रहूँ मैं कैसे,
मुझे है आदत हुई तुम्हारी!

तुम्हे ही सोचूं,
तुम्हे ही देखूं,
तुम्हारी बातें ही कर रहा हूँ!

तुम्हारे बिन है,
तड़प बहुत ही,
के जिंदा होकर भी मर रहा हूँ!

तेरी जुदाई के,
आंसुओं ने,
है मेरी सूरत बहुत निखारी!

ये आशिकी है,
या है मोहब्बत,
नहीं पता है ये बेकरारी...

तुम्हारी चाहत नहीं मरेगी,
अटूट है तुमसे, 
मेरी चाहत!

हाँ ये भी सच है बिना तुम्हारे,
हमारे दिल को,
नहीं है राहत!

मैं "देव" लेकिन तुम्हारी धुन में,
ये अपना जीवन,
गुजारता हूँ,

उम्मीद है मेरे टूटे दिल को,
कभी तो होगी,
तेरी इनायत!

इन्हीं उम्मीदों के दम पे मैंने,
के देखो अपनी,
उमर गुजारी!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०६.०७.२०१३

♥♥हसरतों की होली..♥♥

♥♥♥हसरतों की होली..♥♥♥
क्यूँ हसरतों की जली है होली,
क्यूँ गम दीवाली मना रहे हैं!
हमारे आंसू सिसक सिसक कर,
क्यूँ दर्द की धुन सुना रहे हैं!

जो आज दिल से ये पूछा मैंने,
जरा चुभन की वजह बताओ!
क्यूँ रो रही हैं तेरी निगाहें,
है कौन सा गम मुझे दिखाओ!
मगर ये दिल सुनता ही नहीं है,
हजारों मिन्नत करो भी इससे,
जहाँ भी देखे, उदासी इसकी,
भले ही सीने में दिल छुपाओ!

क्यूँ मेरे जीवन के गुजरे लम्हे,
मुझे यूँ बेबस बना रहे हैं!
क्यूँ हसरतों की जली है होली,
क्यूँ गम दीवाली मना रहे हैं...

कई दफा ये कहा है दिल से,
न गुजरे लम्हों को याद करना!
हमेशा जीना तू जोश भरके,
ग़मों से देखो, कभी न डरना!
तू "देव" के संग, खुशी से रहकर,
भुला दे पीड़ा, भुला दे आंसू,
है जान जब तक, तू खुल के जी ले,
न जीते जी तू, यहाँ पे मरना!

तेरी हताशा को देखकर के,
इरादे मातम मना रहे हैं!
क्यूँ हसरतों की जली है होली,
क्यूँ गम दीवाली मना रहे हैं!"

...चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-०६.०७.२०१३


Thursday, 4 July 2013

♥♥तेरी तस्वीर..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी तस्वीर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज तेरी तस्वीर से मैंने, घंटों तक फिर बातें की हैं!
तुझसे मिलने को दिल तरसा, नयनों ने बरसातें की हैं!

तुझको अपने पास बिठाकर, दिल का हाल बताना चाहूँ!
बिन तेरे कितना तड़पा हूँ, मैं तुमको दिखलाना चाहूँ!
लेकिन देखो "देव" विरह की, ये बेला पूरी नहीं होती,
भले विरह के भावों को मैं, कितना भी झुठलाना चाहूँ!

तुम बिन मैंने जाग जाग कर, देखो पूरी रातें की हैं!
आज तेरी तस्वीर से मैंने, घंटों तक फिर बातें की हैं!"

....................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०४.०७.२०१३

♥♥तेरी तस्वीर..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी तस्वीर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज तेरी तस्वीर से मैंने, घंटों तक फिर बातें की हैं!
तुझसे मिलने को दिल तरसा, नयनों ने बरसातें की हैं!

तुझको अपने पास बिठाकर, दिल का हाल बताना चाहूँ!
बिन तेरे कितना तड़पा हूँ, मैं तुमको दिखलाना चाहूँ!
लेकिन देखो "देव" विरह की, ये बेला पूरी नहीं होती,
भले विरह के भावों को मैं, कितना भी झुठलाना चाहूँ!

तुम बिन मैंने जाग जाग कर, देखो पूरी रातें की हैं!
आज तेरी तस्वीर से मैंने, घंटों तक फिर बातें की हैं!"

....................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०४.०७.२०१३

Wednesday, 3 July 2013

♥♥निर्धन का गलियारा..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥निर्धन का गलियारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न छप्पर है, न आंगन है, और न घर में द्वार कोई है!
निर्धन के सपनों में देखो, न सुन्दर संसार कोई है!
यहाँ हुकूमत का हर नेता, करता अपने हित की बातें,
निर्धन का जो हित करती हो, न ऐसी सरकार कोई है!

सड़क किनारे फुटपाथों पर, निर्धन अक्सर मर जाते हैं!
और देश के नेता केवल, झूठे आंसू बिखराते हैं!

कुदरत भी मासूम को मारे, न दोषी को मार कोई है!
न छप्पर है, न आंगन है, और न घर में द्वार कोई है...

एक ही दल की बात नहीं है, सब दल ऐसा ही करते हैं!
जनता का धन लूटपाट कर, बस अपनी झोली भरते हैं!
"देव" हमें अब इन लोगों से, युद्ध की रचना करनी होगी,
इसीलिए तो हावी हैं ये, हम जो लड़ने से डरते हैं!

दमन यदि सहते जायेंगे, तो उद्धार नहीं हो सकता!
निर्धन अपने जीवन का फिर, रचनाधार नहीं हो सकता!

श्वेत वस्त्र पहनें नेता पर, न उम्दा किरदार कोई है!
न छप्पर है, न आंगन है, और न घर में द्वार कोई है!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०४.०७.२०१३

♥♥मिलेंगे हम तुम..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मिलेंगे हम तुम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
यकीं है मुझको दुआ पे अपनी, जहाँ में फिर से मिलेंगे हम तुम!
विरह के मौसम का अंत होगा, के फूल बनकर खिलेंगे हम तुम!

जुदाई हो चाहें कितनी लम्बी, मगर मिलन की न आस टूटे!
ये तन मिले ने भले ही तन से, मगर न रूहों का साथ छूटे!
मैं "देव" दिल से सदा तुम्हारा, यकीन तेरा रहेगा कायम,
कभी जो रूठें तो मान जायें, कभी न दिल की ये प्रीत रूठे!

जहाँ भी हमको दुआयें देगा, के साथ फिर से चलेंगे हम तुम!
यकीं है मुझको दुआ पे अपनी, जहाँ में फिर से मिलेंगे हम तुम!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"................................
दिनांक-०३.०७.२०१३

Tuesday, 2 July 2013

♥♥प्यार का आइना.♥♥

♥♥♥♥प्यार का आइना.♥♥♥♥♥♥
वो मेरे प्यार का, आइना तक नहीं!
ख्वाब जिसने मेरा, एक बुना तक नहीं!

फूल कागज के बस वो, दिखाता रहा,
ख़ार लेकिन कभी, एक चुना तक नहीं! 

जिसके अश्कों को, मैंने पिया रात दिन,
दर्द उसने मेरा पर, सुना तक नहीं!

वो तो अपनी सजावट में उलझा रहा,
ज़ख्म उसने मेरा एक, गिना तक नहीं!

"देव" वो प्यार मेरा, क्या समझेगा अब,
जिसने धड़कन को मेरी, सुना तक नहीं!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-०२.०७.२०१३

Monday, 1 July 2013

♥♥दो कदम.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥दो कदम.. ♥♥♥♥♥♥♥
दो कदम भी मेरे साथ चल न सके!
जो तिमिर में दीया बनके जल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके!

प्रेम का जिनके मन, कोष कोई नहीं!
दर्द देकर कहें, दोष कोई नहीं!
ऐसे लोगों को इन्सान कैसे कहूँ,
तोड़कर दिल जिन्हें रोष कोई नहीं!

रंग चाहत का मैं उनपे क्या डालता,
जो मेरे सुख में देखो, मचल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके..

दिल किसी का, दुखाकर मैं सो न सकूँ!
बीज नफरत का मैं दिल में बो न सकूँ!
"देव" ये मेरी आदत है और आरजू,
झूठ का रिश्ता मैं देखो, ढ़ो न सकूँ!

मन को उम्मीद है, कल को बदलेंगे वो,
दर्द के आज पल जो, बदल न सके!
ऐसे लोगों को कैसे मैं अपना कहूँ, 
आह सुनकर मेरी जो पिघल न सके!"

..........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-०२.०७.२०१३

Sunday, 30 June 2013

♥♥माँ( एक अनमोल शख्सियत)♥♥

♥♥माँ( एक अनमोल शख्सियत)♥♥
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं!
धरती पे माँ के जैसा, कोई खुदा नहीं!
आया जो बुरा वक़्त तो, अपने बदल गए,
माँ ऐसे वक़्त में भी, होती जुदा नहीं!

माँ है तो रोशनी है, माँ है तो खुशी है!
माँ है तो आदमी के, अधरों पे हंसी हैं!

माँ की छुअन से बढ़कर, कोई दवा नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं...

पोषण की भावना है, नेकी का पाठ है!
माँ सूर्य की लाली है, पूनम की रात है!
दुनिया की कोई उलझन, उसको न सताए,
जिस आदमी के सर पे, जो माँ का हाथ है!

माँ प्रेम की घोतक है, ममता की खान है!
बच्चों से उसकी खुशियाँ, बच्चों में जान है!

बच्चों की गलती माँ को, लगती खता नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं....

माँ है तो जिंदगी में, कोई कमी नहीं!
माँ से बड़ा न अम्बर, और ये जमीं नहीं!
सुन "देव" माँ के दिल को, कोई ठेस न देना,
माँ को यहाँ रुलाकर, कोई सुखी नहीं!

माँ प्रेम का सागर है, आशाओं की नदी!
ममता है अमर माँ की, देखो युगों, सदी!

माँ की तरह बच्चों पर, कोई फिदा नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं!"


"
माँ-एक ऐसी शख्शियत, जिसका वजूद इंसान के जीवन में, सर्वोच्च है! माँ, है तो जन्म है, माँ है तो ममता है, माँ है तो लालन, पालन, पोषण है! माँ, दुनिया में माँ का कोई विकल्प नहीं, तो आइये माँ, को नमन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०१.०७.२०१३

"मेरी ये रचना, मेरी माँ कमला देवी जी एवं प्रेम लता जी को समर्पित"
"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!




♥♥चाँद से सुन्दर..♥♥

♥♥♥♥♥♥चाँद से सुन्दर..♥♥♥♥♥
तु मिली है मुझे मेरी तकदीर से,
अच्छे लोगों की वरना कमी है बहुत!

लोग तो चाँद को, यूँ ही सुन्दर कहें,
वरना तू चाँद से भी, हसीं है बहुत!

भीगकर मेरा मन, मेरा तन झूमता,
ये मोहब्बत की बारिश, घनी है बहुत!

एक पल को भी, तू दूर जाना नहीं,
मेरी आँखों में तुम बिन, नमी है बहुत!

न सताओ मुझे, अब तो आ जाओ तुम,
रात अपने लिए ही, थमी है बहुत!

तू मिली तो मुझे, देख ऐसा लगा,
मेरी तकदीर सच में, धनी है बहुत!

"देव" तुम बिन, मुझे कुछ नहीं चाहिए,
तुमसे ही मेरी दुनिया, बनी है बहुत!"

........चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-३०.०६.२०१३

Friday, 28 June 2013

♥♥गम से डरना नहीं ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम से डरना नहीं ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गम से डरना नहीं जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे!
अपने मन के इरादों को जिन्दा रखो, एक दिन जीत पर तुम पहुँच जाओगे!

दिल न छोटा करो दर्द को देखकर, दर्द को अपनी हिम्मत बनाकर रहो!
हर गलत सोच को मन से मुक्ति दिला, रूह से अपनी नजरें मिलाकर रहो!
अपने दिल को मोहब्बत से रौशन करो, नफरतों से यहाँ कुछ भी मिलता नहीं,
तुम मिटाकर निराशा का काला तिमिर, मन में आशा का दीपक जलाकर रहो!

दर्द की आह भी देखो दब जाएगी, सब्र का गीत जो तुम यहाँ गाओगे!
गम से डरना जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे...

ख्वाब देखो नए रोशनी के लिए, तंग दिल बनके तुम देखो रहना नहीं!
अपने हक के लिए तुम करो युद्ध भी, तुम हकों का दमन देखो सहना नहीं!
"देव" दुनिया में तुमको मिले दर्द पर, तुम किसी की खुशी को नहीं लूटना,
सच के साथी बनो, सच के प्रहरी बनो, सच को भूले से भी झूठ कहना नहीं!

तुम नजर रखके मंजिल पे मेहनत करो, एक दिन सारी दुनिया पे तुम छाओगे!
गम से डरना जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे!"

.............................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२८.०६.२०१३

♥♥प्यार की कोशिश..♥♥

♥♥♥♥♥प्यार की कोशिश..♥♥♥♥♥♥
तुमको तुमसे चुराने की कोशिश में हूँ!
तुमको अपना बनाने की कोशिश में हूँ!

तुमसे मैं प्यार करता हूँ कितना सनम,
बस तुम्हें ये जताने की कोशिश में हूँ!

पढ़ लो चाहत को मेरी, निगाहों में तुम,
तुमसे नजरें मिलाने की कोशिश में हूँ!

एक अरसे से तरसा, महक के लिए,
प्यार का गुल खिलाने की कोशिश में हूँ!

"देव" तुमको किसी की नजर न लगे,
तुमको दिल में छुपाने की कोशिश में हूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२८.०६.२०१३

Thursday, 27 June 2013

♥♥♥इरादे..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इरादे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला!
बेशक ही जिंदगी में, गम है बहुत मिला!
उम्मीद है एक दिन, ये हालात बदलेंगे,
मिट जाएगा जीवन से, ये दुख का जलजला!

गम भी है, दर्द भी, यहाँ पर है खुशी भी!
आंसू हैं, बेबसी भी, चेहरे पे हंसी भी!

कांटे हों चाहें कितने, पर फूल है खिला!
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला...

यूँ बैठकर के कोई, काम होता नहीं है!
बेकार से हुनर का, दाम होता नहीं है!
तुम "देव" जरा देख लो, इतिहास की तरफ,
नाकारा आदमी का, नाम होता नहीं है!

मेहनत के भरोसे जो, अपना काम करते हैं!
ऐसे ही लोग जग में, अपना नाम करते हैं!

साहस हो इरादों में तो, पर्वत भी है हिला!
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२७.०६.२०१३

♥♥देख के तुझको.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥देख के तुझको.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देख के तुझको मेरे दिल को, खुशी मिलती है!
तेरी चाहत से मोहब्बत की, कली खिलती है!

मैंने जिस ओर भी देखा, नजर घुमाकर के,
तुम्हारे प्यार की दुनिया ही, सजी मिलती है!

जब भी देखा है मैंने, रात की गहराई में,
बस तेरे ख्वाब की, दुनिया ही वसी मिलती है!

अपने दिल में जो मैंने झांक के देखा हमदम,
तेरी सूरत की हसीं एक, परी मिलती है!

"देव" उस वक्त मेरा रंग निखर जाता है,
तेरे एहसास की जिस रोज नदी मिलती है!"

............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२७.०६.२०१३

Tuesday, 25 June 2013

♥♥विश्वास ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विश्वास  ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी!
प्यार की दूरी कितनी हो पर, है उसमें एहसास जरुरी!
मानवता के पथ पे देखो, अच्छाई इतनी आवश्यक,
जैसे भू के सिरहाने पर, होता है आकाश जरुरी!

जो बस अपने हित की सोचें, वो मानवता खाक करेंगे!
जिनके मन में पाप भरा हो, वो क्या जग को पाक करेंगे!

मानवता में एक दूजे की, पीड़ा का आभास जरुरी!
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी....

झूठ बोलकर जो औरों के, दामन को गंदा करते हैं!
जो खुद होकर झूठ के पुतले, औरों की निंदा करते हैं!
"देव" जहाँ में उन लोगों को, एक दिन पछताना होता है,
जो मुफलिस का खून बेचकर, बस अपना धंधा करते हैं!

ऐसे लोगों ने ही जग में, मानवता को क्षीण किया है!
दुनिया को अँधेरा देकर, अपना घर प्रवीण किया है!

ऐसे लोगों से दूरी को, हर पल है प्रयास जरुरी!
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी!"

..................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२६.०६.२०१३

♥♥भीग गए अल्फाज ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥भीग गए अल्फाज ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे!
बड़े भाग्य से आया हमदम, प्रेम तुम्हारा मेरे द्वारे!
मैं लफ्जों की सुन्दरता से, करता हूँ सिंगार तुम्हारा,
तेरी मांग में भरता हूँ मैं, अनुभूति के चाँद सितारे!

मन को तुमसे प्रेम बहुत है, सखी बड़ी मनभावन हो तुम!
हरियाली सी हरी भरी हो, गंगाजल सी पावन हो तुम!

सखी तुम्हारे भीतर दिखते, कुदरत के नायाब नजारे!
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे...

तेरे प्यार के एहसासों से, जीवन में खुशियाँ आती हैं!
तेरे प्यार से अंतर्मन पे, भावों की बदली छाती हैं!
"देव" तुम्हारे प्यार से मुझको, अपनायत का बोध हुआ है,
सखी तुम्हारे प्यार की कलियाँ, मेरे मन को महकाती हैं!

प्यार यहाँ कुदरत जैसा है, प्यार का कोई मोल नहीं है!
शब्दकोश में प्रेम से बढ़कर, देखो कोई बोल नहीं है!


सखी तुम्हारे प्रेम से मैंने, अपने मन के दोष निखारे!
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२५.०६.२०१३

Monday, 24 June 2013

♥♥चलें कुछ दूर...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥चलें कुछ दूर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलें कुछ दूर हाथों में पकड़कर हाथ हम दोनों!
यकीं है सात जन्मों तक, रहेंगे साथ हम दोनों!

सुबह से शाम हो जाये, सवेरा या नया आये,
करेंगे एक दूजे से सदा ही, बात हम दोनों!

तुम्हारा दर्द मेरा है, मेरा हर गम तुम्हारा है,
करेंगे अपनी आँखों से, यहाँ बरसात हम दोनों!

चलेंगे साथ मिलकर के कंटीले रास्तों पर भी,
हर एक मुश्किल दे देंगे, यहाँ पर मात हम दोनों!

तुम्हारे बिन नहीं कटता है, देखो "देव" एक भी दिन,
रहेंगे चांदनी बनकर, यहाँ हर रात हम दोनों!"

...............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२४.०६.२०१३

♥♥सच्चाई की राह...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सच्चाई की राह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है!
गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों ने भी ठुकराया है!
जो मेरी आँखों में अक्सर, सपनों के अंकुर बोता था,
आज उसी ने देखो मेरा, एक एक सपना बिखराया है!

हाँ ये सच है सच के कारण, अपनों की दूरी सहता हूँ!
माँ ने सच का पाठ पढाया, इसीलिए पर सच कहता हूँ!

तेजाबी बारिश करता है, गगन में जो बादल छाया है!
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है..

कुछ लम्हों को लहर झूठ की, भले खुशी से भर सकती है!
लेकिन इस दुनिया से देखो, नहीं हकीक़त मर सकती हो!
"देव" दिलों में सच की ताकत, सूरज बनकर करे उजाला,
लेकिन दिल में झूठ की रौनक, नहीं उजाला कर सकती है!

कागज के सुन्दर फूलों से, जीवन नहीं खिला सकते हैं!
झूठ बोलने बाले खुद से, नजरें नहीं मिला सकते हैं!

अल्प समय के बाद ही जग में, झूठ का पौधा मुरझाया है!
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है!"

...............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२४.०६.२०१३





Sunday, 23 June 2013

♥♥चांदनी के दीये..♥♥

♥♥♥♥♥चांदनी के दीये..♥♥♥♥♥
चांदनी के हजारों दीये जल गए!
आसमां में सितारों के गुल खिल गए!
प्यार की लहरें देखो मचलने लगीं,
एक दूजे से जब अपने दिल मिल गए!

प्यार से चांदनी भी, निखरने लगी!
हर तरफ रौशनी सी, बिखरने लगी!

लाज इतनी हुई है, लब सिल गए!
चांदनी के हजारों दिए जल गए...

चांदनी रात का ये मिलन खास है!
मैं तेरे पास हूँ, तू मेरे पास है!
तुमसे मिलकर मुझे "देव" ऐसा लगा,
मैं जमीं और तू मेरा आकाश है!

प्यार के सपने दिल में सजाते रहो!
प्यार जन्मों-जन्म तक निभाते रहो!

प्यार से अपने ख्वाबों के तन धुल गए!
चांदनी के हजारों दिए जल गए!"

......चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२३.०६.२०१३

♥♥दर्द की निशानी..♥♥

♥♥♥♥♥दर्द की निशानी..♥♥♥♥♥
जिंदगी से उलझकर ही रहने लगे!
आंख से आंसू दिन रात बहने लगे!

जो भी सपने सजाये थे मैंने कभी,
वक़्त की ठोकरों से वो ढहने लगे!

रौशनी ने पलटकर ही देखा नहीं,
हम अंधेरों को ही अपना कहने लगे!

प्यार में जो मिला वो निशानी समझ,
दर्द हंसकर के दिन रात सहने लगे!

वंदना जिसकी हम करते आये सदा,
उसकी धारा में जज्बात बहने लगे!

मेरे भीतर का कुंदन निखरने लगा,
हम गमों की तपिश जबसे सहने लगे!

"देव" अपनों ने मुड़कर नहीं देखा तो,
हम रकीबों को ही अपना कहने लगे!"

..........चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-२३.०६.२०१३

Thursday, 20 June 2013

♥♥दर्द की धूप... ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द की धूप... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!
दर्द की धूप में जल रहा हूँ बहुत, कोई राहत का मुझको शज़र चाहिए!
रास्ते बंद हैं सारी खुशियों के पर, फिर भी उम्मीद दिल में बची है जरा,
थोडा टुकड़ा मिले बस जमीं का मुझे, न ही चाहा के मुझको शिखर चाहिए!

रौशनी मंद है और अँधेरा घना, पर किसी से जरा भी शिकायत नहीं!
जिनको चाहा है उनको कहूँ बेवफा, मेरे दिल की मुझे ये इजाजत नहीं!

दर्द के इस सुलगते बियांबान में, एक पानी की मुझको लहर चाहिए! 
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए...

नासमझ बनके जो मुझको समझाते हैं, वो सुनेंगे दुखन क्या मेरे दर्द की!
वो यहाँ मुझको देंगे दवा क्या भला, जिसने पाई नहीं हो तपन दर्द की!
"देव" मैं अपने अश्कों को पीता रहा, उम्र के आखिरी छोर तक भी मगर,
कोई ऐसा मुझे पर नहीं मिल सका, जिसने समझी चुभन हो मेरे दर्द की!

थोड़ी हिम्मत बची है जिये जाऊंगा, अपने हाथों से मरना गवारा नहीं!
मेरी तन्हाई हर पल मेरे साथ है, क्या हुआ जो किसी का सहारा नहीं!

दर्द से लड़ जो सकूँ निहत्थे भी में, हौंसले का मुझे वो ज़हर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!"

................................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२०.०६.२०१३

Wednesday, 19 June 2013

♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!
पल भर में ही खिलती क्यारी, उजड़ के देखो खार हो गयी!
जिस मंदिर के इर्द गिर्द अरसे से, गंगाजल बहता था,
आज उसी स्थल पे देखो, खून की गाढ़ी धार हो गयी!

पलक झपकते ही कुदरत ने, सब कुछ मटियामेट कर दिया!
जिस मानव को जनम दिया था, उसका ही आखेट कर दिया!

हँसते गाते लोगों के घर, पीड़ा की झंकार हो गयी! 
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी...

हाँ ये सच है इंसानों ने, इस कुदरत का दमन किया है!
लेकिन गलती हो जाने पर, कुदरत को ही नमन किया है!
"देव" यहाँ कुदरत के आगे, नहीं किसी की चल पाती है,
कुदरत ने खिलती बगिया को, देखो उजड़ा चमन किया है!

नहीं पता के इस कुदरत का, गुस्सा जाने कब कम होगा!
नहीं पता उजड़ी बगिया का, हरा भरा कब मौसम होगा!

जिस कुदरत ने जन्म दिया था, उसकी हम पर मार हो गयी!
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१९.०६.२०१३

Tuesday, 18 June 2013

♥♥भारी सांसें.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भारी सांसें.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए!
कई दशक से चलता आया, कुछ पल को विश्राम चाहिए!
जिसके दामन में सर रखकर, मैंने दर्द बताना चाहा,
वही शख्स कहता है मुझसे, उसे दुआ का दाम चाहिए!

बिना जुर्म के ही दुनिया ने, मुझको मुजरिम बना दिया है!
मेरी पीड़ा सुने बिना ही, अपना निर्णय सुना दिया है!

बिना कत्ल के ही अब मुझको, कातिल जैसा नाम चाहिए!
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए...

नहीं चुका हूँ, नहीं थका हूँ, मैं जीवन से डरा नहीं हूँ!
मिटटी को जड़वत रोके हूँ, बेशक ही मैं हरा नहीं हूँ! 
"देव" मेरे नाजुक से दिल ने, दुनिया के सदमे झेले हैं,
इसीलिए बस मुरझाया हूँ, लेकिन मन से मरा नही हूँ!

मैंने जिसकी खातिर देखो, अपना गाढ़ा खून बहाया!
उस इन्सां ने ही दुनिया में, मेरे दिल को बहुत रुलाया!

जो आँखों को सुकूं दे सके, मुझको वो गुलफ़ाम चाहिए!
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए!"

................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१९.०६.२०१३

Monday, 17 June 2013

♥♥प्रीत के बादल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत के बादल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी!
फूलों की खुश्बू लायी है, तेरे प्यार की मधुर निशानी!
सखी जहाँ में प्रेम से बढ़कर, कोई भी सम्बन्ध नहीं है,
मरकर भी जीवित रहती है, ये रूहों की प्रेम कहानी!

मेरी किस्मत अच्छी है जो, सखी तुम्हारी प्रीत मिली है!
सखी तुम्हारी प्रीत से मुझको, हर मंजिल पे जीत मिली है!

प्रेम बिना सब कुछ सूना है, सबको है ये बात बतानी!
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी..

बिना प्रीत के कोई दौलत, किसी का आँचल भर नहीं सकती!
ये दुनिया कोशिश करके भी, जुदा रूह को कर नहीं सकती!
"देव" जहाँ में मिलना ही बस, प्यार की मौलिक शर्त नहीं है,
सखी प्रेम की नातेदारी, बिना मिले भी मर नहीं सकती!

सखी प्रेम की आंखे पाकर, जग मनभावन हो जाता है!
सखी प्रेम का धारण करके, मन भी पावन हो जाता है!

सखी हमें एक दूजे के संग, ख्वाबों की बारात सजानी!
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी!"

...................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१७.०६.२०१३

Friday, 14 June 2013

♥♥चाहत का किरदार ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चाहत का किरदार ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए!
जब भी मेरी आंखे तरसे, मुझे तेरा दीदार चाहिए!
हाँ सच है के इस दुनिया में, वक्त किसी के पास नहीं है,
भले ही मुझको एक पल देना, पर रूहानी प्यार चाहिए!

नाम प्यार का मैं नहीं करता, प्यार तुझे दिल से करता हूँ!
इसीलिए तो तेरे दुःख में, अपनी आंखे नम करता हूँ!

हाथ मैं तेरा पकड़ सकूँ जो, मुझको वो अधिकार चाहिए!
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए....

प्यार के ढाई अक्षर भर से, शपथ प्रेम की तय नहीं होती!
बिना समर्पण के दुनिया में, प्रेम भाव की जय नही होती!
"देव" जहाँ में प्यार करो तो, करना पूरी सच्चाई से,
वो चाहत किस काम की जिसमे, सच्चाई की लय नहीं होती!

प्यार से बढ़कर इस दुनिया में, कोई भी सौगात नहीं है!
प्यार तो होता है रूहानी, बस अधरों की बात नहीं है!

बिन तेरे मैं गिर जाऊंगा, मुझे तेरा आधार चाहिए!
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१४.०६.२०१३

Thursday, 13 June 2013

♥♥मेरी टहनियां...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी टहनियां...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया!
किसी ने मेरी छाल को छीला, कोई फलों को छांट ले गया!
इस दुनिया में बेदर्दी से, सभी ने मेरे दिल को काटा,
कोई ऐसा नहीं मिला जो, थोड़ा सा गम बाँट ले गया!

यूँ तो जग में बहुत मिले हैं, मुझे चाँद से दिखने वाले!
जगह जगह देखे हैं मैंने, बड़ा बड़ा सा लिखने वाले!

मैंने माँगा जिससे रेशम, वही दुखों की टाट दे गया!
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया....

कट गयीं जब से मेरी टहनियां, छाया मुझसे मुक्त हो गई!
अपनेपन की खाद मिली न, एक एक क्रिया सुप्त हो गई!
"देव" हमारी आँखों से अब, सूखे में जल बरस रहा है,
मिट गई मेरी हर एक निशानी, मेरी दुनिया लुप्त हो गई!

नहीं समझ आया पर मुझको, लोगों में बेदर्दी क्यूँ है!
जिसे चाहिए धूप खुशी की, वहां गमों की सर्दी क्यूँ है!

जो कुछ बचा खुचा था मुझमें, गम का दीमक चाट ले गया!
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया!"

...................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१४.०६.२०१३ 

Monday, 10 June 2013

♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!
एक मानव के जीवन पथ में, फूलों जैसी डगर है बेटी!
जिस आंगन में बेटी न हो वो, उस घर में रहती नीरसता,
कड़ी धूप में जलधारा की, एक मनभावन लहर है बेटी!

बेटी की तुलना बेटों से, करके उसको कम न आंको!
बेटी है बेटों से बढ़कर, कभी रूह में उसकी झांको!

वो कविता का भावपक्ष है, किसी गज़ल की बहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी...

जन्मकाल से ही बेटी को, कुदरत से ये गुण मिलते हैं!
बचपन से ही उसके मन में, नम्र भाव के गुल खिलते हैं!
बेटी के मन में बहता है, सहनशीलता का एक सागर,
नहीं आह तक करती है वो, भले ही उसके हक छिलते हैं!

बेटी तो है ज्योति जैसी, वो घर में उजियारा करती!
वो चिड़ियों की तरह चहककर, घर आंगन को प्यारा करती!

बेटे यहाँ बदल जायें पर, अपनी आठों पहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी....

आशाओं की ज्योति है वो, पूनम जैसी निशा है बेटी!
अंतर्मन को सुख देती है, कुदरत की वो दुआ है बेटी!
"देव" जहाँ में बेटी जैसा, कोई अपना हो नहीं सकता,
किसी मनुज के बिगड़े पथ की, सही सार्थक दिशा है बेटी!

बेटी है तो घर सुन्दर है, बिन बेटी के घर खाली है!
बेटी है तो खिला है उपवन, बेटी है तो हरियाली है!

हंसकर वो कुर्बानी देती, ऐसा पावन रुधिर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!"


"
बेटी-एक ऐसा चरित्र, जिसके बिना किसी मनुज का जीवन पूर्ण नही होता, जिसकी किलकारी के बिना, जिसकी चहक के बिना, कोई घर सम्पूर्ण नहीं होता, वो ऐसा चरित्र जो अपने हर सुख का दमन करते हुए, अपने परिजनों के लिए अपने रुधिर की एक एक बूंद तक कुर्बान कर देती है, तो आइये कुदरत के ऐसा अनमोल चरित्र "बेटी" का सम्मान करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०६.२०१३ 

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"


♥♥मेरे जज्बात..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे जज्बात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश मेरे जजबातों को तुम, पढ़ लेते मन की आँखों से,
फिर न तुमको रत्ती भर भी, कभी शिकायत होती मुझसे!

तुमने कैसे सोच लिया के, अदल बदल कर मैं जीता हूँ,
मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ, नहीं बनावट होती मुझसे!

तू जितना भी दर्द मुझे दे, मैं उफ तक भी नहीं करूँगा,
क्यूंकि रूहानी रिश्तों की, नहीं बगावत होती मुझसे!

नाम प्यार का भले नहीं दो, पर तू मेरा दर्द समझना,
तेरी दुआ के बिन जीवन की, नहीं हिफाजत होती मुझसे!

जो एक पल भी मिला चैन का, उससे अपनी झोली भर ली,
मानवता के नाम पे देखो, नहीं तिजारत होती मुझसे!

जो मेरा दिल कहता है मैं, उसको ज्यों का त्यों लिखता हूँ,
किसी लफ्ज के साथ झूठ की, नहीं सजावट होती मुझसे!

तूने मुझको "देव" अगर जो, कातिल अपना मान लिया तो,
खुद को फांसी लटका दूंगा, नहीं रियायत होती मुझसे!"

................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१०.०६.२०१३

Sunday, 9 June 2013

♥♥दामन के घाव.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दामन के घाव.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ!
इस दुनिया से दर्द छुपाकर, हंसकर मिलना सीख गया हूँ!
भले ही गम के तेजाबों ने, जड़ें खोखली कर दीं मेरी,
लेकिन फिर भी फूलों जैसा, जग में खिलना सीख गया हूँ!

हाँ दामन पर घाव बहुत हैं, सिलने में कुछ वक़्त लगेगा!
लगता है के मरते दम तक, गम का साया नहीं रुकेगा!

इसीलिए जल प्रपातों में, नमक सा घुलना सीख गया हूँ!
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ....

भौतिक मिलन भले न हो पर, मन से मन का मिलन जरुरी!
तुम हिंसा को ठोकर मारो, मगर प्रेम का नमन जरुरी!
"देव" जहाँ में मानवता को, चलो जरुरी कर दें इतना,
जैसी दुनिया में धरती की, खातिर देखो गगन जरुरी!

सपने शीशे के होते हैं, कुछ टूटें तो गम न करना!
और अपने मन के साहस को, तुम जीते जी कम न करना!

मैं पथरीले रस्ते पर भी, खुशी पे चलना सीख गया हूँ!
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ!"

....................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-०९.०६.२०१३

Saturday, 8 June 2013

♥♥बेदर्दी का ठोस धरातल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥बेदर्दी का ठोस धरातल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता!
बदकिस्मत लोगों के घर में, खुशी का सूरज नहीं निकलता!
इस दुनिया से तुम कितनी भी, मिन्नत करना अपनायत की,
लेकिन जिनका दिल पत्थर हो, उनका आंसू नहीं निकलता!

लोग सड़क पर घायल होकर, तड़प तड़प कर मर जाते हैं!
पर पत्थर के लोग दया की, कहाँ इनायत कर पाते हैं!

मजलूमों पर जुल्म देखकर, खून भी इनका नहीं उबलता!
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता...

सही आदमी के चेहरे पर, गम की काई चढ़ जाती है!
और पीड़ा की घनी लिखावट, नई कहानी गढ़ जाती है!
सुनो "देव" यूँ तो दुनिया में, हर इन्सां को दर्द है लेकिन,
बिना जुर्म के सजा मिले तो, चीख दर्द की बढ़ जाती है!

ये अँधा कानून किसी का, रोता मुखड़ा देख सके न!
कभी किसी के टूटे दिल का, जलता दुखड़ा देख सके न!

कभी कभी ये दर्द का मौसम, अंतिम पल तक नहीं बदलता!
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता!"

.....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०९.०६.२०१३

Friday, 7 June 2013

♥♥♥सुलगता दिल..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सुलगता दिल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो!
मेरी आँखों से तुम अब, दर्द का सैलाब गिरने दो!
जो तपता है, जो जलता है, वही कुंदन सा बन पाए,
गमों की आग में मुझको, जरा दिन रात जलने दो!

जो डरकर हार से, आँखों के सपने तोड़ देते हैं!
कहाँ हैं वो आदमी होंगे, जो जीना छोड़ देते हैं!

नया दिन फिर से निकलेगा, जरा ये रात ढलने दो!
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो...

अंधेरों से उजालों का, सफर हर रोज होता है!
कोई खुशियों का पाता है, कहीं एहसास रोता है!
सुनो हम "देव" इस दुनिया को, आखिर क्या सिखायेंगे,
वही नेकी पढाता है, यहाँ कातिल जो होता है!

अगर तुम खुद जरा संभलो, तो ये हालात बदलेंगे!
अंधेरों में भी ज्योति के यहाँ, एहसास निकलेंगे!

चलो कुछ देर को मुझको, जरा खुद से ही मिलने दो!
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-०८.०६.२०१३

Thursday, 6 June 2013

♥♥दर्द के गहरे घाव ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द के गहरे घाव ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते!
मेरे लफ्ज़ भी नहीं बिलखते, जो तुम उनका भाव समझते!
दवा से ज्यादा दुआ तुम्हारी, असर मेरे ज़ख्मों पे करती,
गर तुम मेरे दिल में शामिल, दर्द के गहरे घाव समझते!

बिन महसूस किये तुम मेरा, दर्द भला क्या सुन सकते हो! 
तुम मेरे जीवन के पथ से, कांटे कैसे चुन सकते हो!

नहीं काटते मेरी जड़ को, जो मेरा फैलाव समझते!
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते...

बहुत सरल है ये कहना के, तुम खुद को समझाकर देखो!
गला दर्द से रुंधा हो लेकिन, गीत खुशी के गाकर देखो!
इस दुनिया में "देव" किसी की, चोट तभी तुम समझ सकोगे,
जब तुम जलती धूप में तपकर, दर्द को खुद अपनाकर देखो!

ये दिल के एहसास ही तो हैं, जो दूरी को कम करते हैं!
जो गैरों की चोट देखकर, अपनी आँखों नम करते हैं!

तुम भी रोते तन्हाई में, गर अपना बरताव समझते!
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते!"

.................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०६.०६.२०१३

Tuesday, 4 June 2013

♥♥दिल के टुकड़े..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के टुकड़े..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!
और हमारे दिल के देखो, टुकड़े होकर छिटक रहे हैं!
कभी किसी से अपनेपन में, हमने सच को सच बोला तो,
वो कहते हैं मेरे सच को, हम रस्ते से भटक रहे हैं!

लगता है के हमदर्दी की, आस लगाकर भूल हो गयी!
जीवन में जो हरियाली थी, वो इक पल में शूल हो गयी!

गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों को हम खटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं.....

बड़ा बड़ा क्या लिखना जब तक, सीने में दिल बड़ा नहीं हो!
वो आंखे किस काम जिसमे, प्रेम का मोती जड़ा नहीं हो!
"देव" यहाँ पर उस मानव को, किन शब्दों से अपना लिखूं,
जो जीवन के बुरे वक़्त में, साथ हमारे खड़ा नहीं हो!

दुनिया का ये हाल रहा तो, प्यार जहाँ से मिट जायेगा!
और जहाँ से अपनेपन का, एक एक पौधा कट जायेगा!

वो क्या देंगे मुझे सहारा, हाथ जो मेरा झटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०५.०६.२०१३

♥♥गम की काली रात ..♥♥

♥♥गम की काली रात ..♥♥
गम की काली रात न आये!
ज़ख्मों की सौगात न आये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये!

एक अकेली जान हूँ आखिर,
इतना दर्द सहूँ मैं कब तक!
पलक मेरी भी छलनी होतीं,
आंसू बनकर बहूँ मैं कब तक!
दर्द के गहरे अँधेरे में,
आसपास का कुछ नहीं दिखता,
अँधेरे में सहम सहम कर,
इस तरह से रहूँ मैं कब तक!

खुशी का रस्ता देख रहा हूँ,
मगर खुशी भी हाथ न आये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये...

दुनिया लेकिन पत्थर दिल है,
दर्द किसी का कब सुन पाये!
जब होता है बुरा वक़्त तो,
अपना कोई पास न आये!
"देव" यहाँ पर जिसको मैंने,
अपने दिल का हाल बताया,
उस इन्सां को मेरी तड़प का,
हाल जरा भी समझ न आये!

मार नहीं सकता मैं खुद को,
पर जिन्दा भी रहा न जाये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये!"

...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३

Monday, 3 June 2013

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!
तन्हाई में साथ रहे जो,
कुछ ऐसे पल छांट रहा हूँ!
इस दुनिया ने भले ही मुझको,
कभी प्यार से नहीं पुकारा,
मगर मैं फिर भी इस दुनिया को,
प्यार के लम्हें बाँट रहा हूँ!

नहीं पता के सच से मुझको,
आखिर क्या हासिल होता है!
वो क्या समझे किसी के आंसू,
जिसका पत्थर दिल होता है!
और ये देखो, इस दुनिया के,
लोगों का है अजब नजरिया,
उसी को अच्छा कहते हैं सब,
जो देखो कातिल होता है!

कभी कभी भलमनसाहत पर,
मैं खुद ही डांट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ...

मुझको खुद से गिला नहीं है,
नजरें खुद से मिला रहा हूँ!
अपनी आँखों के अश्कों से,
बंजर में गुल खिला रहा हूँ!
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!

बुरे वक़्त में अपने दिल को,
सूखी शबनम बाँट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!"

...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३

♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!
मेरी आंख का बहता आंसू, कभी किसी ने पिया नहीं है!
यूँ तो मुझको बहुत मिले हैं, अपनायत दिखलाने वाले,
मगर किसी ने मेरे दर्द का, घाव जरा भी सिया नहीं है!

आसमान में चाँद देखकर, भले मेरे दिल मुस्काता है!
लेकिन झूठी हंसी का आलम, पलकों पे आंसू लाता है!

कभी किसी ने मेरे दुःख को, यहाँ भरोसा दिया नहीं है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है...

उसने ही मुंह मोड़ लिया है, जिससे मैंने आस रखी है!
वो निकला बस सूखा बादल, जिससे मैंने प्यास रखी है!
"देव" जहाँ में जिसको मैंने, हरियाली का वन समझा था,
उस इन्सां ने मेरे पथ में, गम की सूखी घास रखी है!

दर्द भरी इस तन्हाई का, वक़्त न जाने कब तय होगा!
नहीं पता के इस जीवन से, दुख का जाने कब क्षय होगा!

कभी किसी ने घने तिमिर में, यहाँ उजाला किया नही है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!"

...................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०३.०६.२०१३

Sunday, 2 June 2013

♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!
मेरे प्रेम के पंछी मन का, सखी सुनो आवास तुम्हीं हो!

मेरे मन के भावों का भी, अलंकरण तुमसे होता है,
इस जीवन में हंसी खुशी का, सखी सुनो आभास तुम्हीं हो!

ये सच है के इस जग में, अब प्रेम का वो स्थान नहीं है!
किन्तु फिर भी बिना प्रेम के, मानव का कल्याण नहीं है!

तुम्ही मिलन की अनुभूति हो, और विरह वनवास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो....

सखी लाज तेरा गहना है, छुईमुई जैसी लगती हो!
सखी हमारी प्रतीक्षा में, रात रात भर तुम जगती हो!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मेरे, सूने मन में रंग भरे हैं,
अपने कोमल हाथों पर तुम, प्रेम भरी मेहँदी रचती हो!

तुमको जबसे प्रेम किया है, मानवता मन में आई है!
सखी तुम्हारे प्रेम ने देखो, मेरी दुनिया महकाई है!

सखी तुम्हीं सावन की बारिश, सतरंगी आकाश तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो...

सखी तुम्हारे प्रेम में देखो, किंचित भी अभिमान नहीं है!
बिना प्रेम के इस जीवन में, मानव का सम्मान नहीं है!
"देव" जहाँ में प्रेम की युक्ति, करती है मिट्टी को सोना, 
इस दुनिया में प्रेम से बढ़कर, कोई मीठा गान नहीं है!

सखी तुम्हारी प्रीत ने मुझको, जिस दिन से भी गले लगाया!
तब से मेरे जीवन पथ में, खुशी का हर पल झोंका आया! 

सखी तुम्हीं शीतल जलधारा और हरियाली घास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!"


"
प्रेम-जिससे भी होता है, वो मानव, प्रेम करने वाले व्यक्तित्व में सब कुछ निहित कर देता है, वो कभी उसे प्रकृति की शीतल जल-धारा से जोड़ता है तो कभी हरियाली से, कभी चद्रमा के मुख से तो कभी कोयल की बोली से! सचमुच, प्रेम एक ऐसा विषय है, जिसके लिए सभी की अपनी अपनी परिभाषा हैं, मगर हर परिभाषा का उद्देश्य कथन प्रेम ही है, तो आइये प्रेम का अंगीकार करें!"
  

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०३.०६.२०१३
"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित."

Saturday, 1 June 2013

♥♥धुआं धुआं सा..♥♥

♥♥♥धुआं धुआं सा..♥♥♥♥
धुआं धुआं सा छंट जाने दो!
गम की खाई पट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो!

भले फिसल कर गिर जाओ तुम,
लेकिन अपने कदम बढ़ाओ!
जीवन की अंतिम साँसों तक,
अपना साहस नहीं मिटाओ!
कभी हार है, कभी जीत है,
जीवनपथ का यही नियम है,
तुम मन में आशायें लेकर,
सही दिशा में बढ़ते जाओ!

तुम नफरत की शिरा को देखो,
अपने मन से कट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो...

उम्मीदों की धवल चांदनी,
नीरसता को दूर करेगी!
और हमारी हिम्मत देखो,
हर मुश्किल को चूर करेगी!
इस दुनिया में "देव" जो हमने,
खुद को इन्सां बना लिया तो,
फिर औरों की खुशी भी देखो,
अपने मन में नूर करेगी!

अपने मन को मानवता को,
पूरी पोथी रट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०२.०६.२०१३

Friday, 31 May 2013

♥♥एहसासों का सागर.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥एहसासों का सागर.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ!
अपनी आँखों को सपनों की, एक एक सीढ़ी गिना रहा हूँ!
इस दुनिया के लोग तो देखो, मूक-बधिर जैसे बन बैठे,
इसीलिए अपनी पीड़ा को, मैं खुद को ही सुना रहा हूँ!

कुछ सपने बेशक टूटे हैं, लेकिन हार नहीं मानी है!
मैंने अपने प्रयासों में, शामिल कमियां पहचानी हैं!

न मैं अवसरवादी बनकर, कोई अवसर भुना रहा हूँ!
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ...

गम की भारी वर्षा में भी, सुख की आस नहीं खोते हैं!
जो मंजिल की चाह में देखो, मन की नींद नहीं सोते है!
"देव" वही इंसान जहाँ में, इतिहासों की रचना करते,
जो बे-संसाधन होकर भी, पथ से दूर नहीं होते हैं!

हाँ सच है के ये जीवनपथ, हर पल ही आसान नहीं है!
बिना त्याग के पर जीवन की, किंचित भी पहचान नहीं है!

अपने अधरों से कानों को, गीत विजय का सुना रहा हूँ!
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०१.०६.२०१३






  

Thursday, 30 May 2013

♥♥♥झील सी तेरी आँखे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥झील सी तेरी आँखे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी गहरी झील सी आँखों में, खोना अच्छा लगता है !
मुझे तेरे कंधे पर सर रखकर, सोना अच्छा लगता है!
तुमको छूकर, तुम्हें देखकर, मन को गहरी राहत मिलती,
सखी तुम्हारे साथ में सपनों को, बोना अच्छा लगता है!

तू सुन्दर है तन से हमदम, और मन से भी निखरी है तू!
इन फूलों पर, हरियाली पर, शबनम बनकर बिखरी है तू!

इस दुनिया में बस मुझको, तेरा होना अच्छा लगता है!
तुमको बाहों में भरकर के, हमदम सोना अच्छा लगता.."

अंगारों जैसी दुनिया में, तुम फूलों जैसी कोमल हो!
रेगिस्तानी धूप में हमदम, तुम गंगा का शीतल जल हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको, मानवता के भाव दिए हैं,
तुम उर्जा हो, तुम्ही प्रेरणा, तुम्हीं हमारे मन का बल हो!

अंतर्मन में किया उजाला, ऐसी सुन्दर ज्योति हो तुम!
और सीपी की गहराई से, मिलने वाला मोती हो तुम!

तेरी पायल की रुनझुन में, गुम होना अच्छा लगता है!
तेरी गहरी झील सी आँखों में, खोना अच्छा लगता है !"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-३१.०५.२०१३

Tuesday, 28 May 2013

♥♥गगन का सूर्य .♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गगन का सूर्य .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गगन का सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो!
मोहब्बत का दीया बनकर, जहाँ में प्यार तुम भर दो!
बनो ऐसे के दुनिया में, खुशी दे पाओ लोगों को,
जो मरकर याद आओ तुम, यहाँ खुद को अजर कर दो!

गमों की आंच में तपकर, हमें हिम्मत बढ़ानी है!
कभी हँसना है जोरों से, कभी आँखों में पानी है!

जो तुम छा जाओ दुनिया पर, चलो ऐसा हुनर कर दो!
गगन के सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो...

बनाकर दिल को पत्थर सा, नहीं इंसान बन सकते!
किसी मुफलिस के चेहरे की, नहीं मुस्कान बन सकते!
जरा तुम "देव" खुद को आईने में, झांककर देखो,
सफर काँटों के मेहनत बिन, नहीं आसान बन सकते!

कभी तुम हार के डर से, इरादे तोड़ न देना!
कभी हाथों से मेहनत के हुनर को, छोड़ न देना!

निशां बन जायें कदमों के, चलो इतना असर कर दो!
गगन के सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२९.०५.२०१३

Sunday, 26 May 2013

♥♥प्रेम-गीत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!
तुम बनकर एहसास हमारे, सखी हमारी मीत बनो तुम!
बिना तुम्हारे धूप की गर्मी, मेरे तन को जला रही है,
तुम ही छाया बनो वृक्ष की, तुम ही वर्षा, शीत बनो तुम!

इस जीवन के पथ पर देखो, जिस दिन हम तुम मिल जायेंगे!
उस दिन देखो जीवन पथ में, फूल खुशी के खिल जायेंगे!

मस्तक मेरा उठ जायेगा, यदि हमारी जीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

तुम संग नया सवेरा, साँझ खुशी से भर जाएगी!
सखी तुम्हारे रूप में देखो, कुदरत मेरे घर आएगी!
तुम जब साथ रहोगी तो फिर, मुश्किल से घबराना कैसा,
देख तुम्हारे दिव्य रूप को, मुश्किल देखो डर जाएगी!

अनुभूति के सागर तट पर, हम लहरों से मिलन करेंगे!
हम दोनों एक दूजे का दुःख, सहज भाव से सहन करेंगे!

गीत मेरा दिल को छू लेगा, यदि मेरा संगीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

प्रेम का अर्थ नहीं के इसमें, मीत का ही भूषण होता है!
प्रेम तो जग में हर मानव के, मन का आभूषण होता है!
"देव" प्रेम की खुश्बू से तुम, अपने मन को भरकर देखो,
प्रेम की युक्ति से मानव की, खुशियों का पोषण होता है!

मानवता से प्रेम का जिस दिन, देखो दीपक जल जाता है!
उस दिन हिंसा, छुआछुत का, जलता सूरज ढल जाता है!

घृणा सारी मिट जाएगी, प्रेम की व्यापक रीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!"

"
प्रेम-जहाँ परस्पर प्रेम होता है, वो प्रेम चाहें, प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, या मानव और मानव के मध्य, वहां हिंसा, घृणा, छुआछुत का कोई स्थान नहीं होता! प्रेम, जहाँ परस्पर समर्पण भाव से होता है, वहां लोग अभावों में भी अपने जीवन को हंसकर जीते हैं! तो आइये अपने मन को प्रेम से भूषित करें!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२७.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"

Friday, 24 May 2013

♥♥पत्थर की दुनिया..♥
नेक रास्ते तंग हो रहे!
प्रेम के फीके रंग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे!

दिल संवेदनहीन हो गया, 
प्रेम का धागा क्षीण हो गया!
आज आदमी इस तरह से,
अपने सुख में लीन हो गया!
लोग तड़पती देह का चेहरा,
देख के पीछे हट जाते हैं,
लगता है अब मानवता का,
स्तर बिलकुल दीन हो गया!

अपने हमको मिटा रहे हैं,
दुश्मन बेशक संग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे...

बड़ी बड़ी बातें लिखते हैं,
बड़े बड़े दावे करते हैं!
लेकिन वक़्त जरुरत पर वो,
अपना दिल छोटा करते हैं!
"देव" नहीं मालूम दुनिया का,
ऐसा आलम रहेगा कब तक,
इस दुनिया में कातिल खुश हैं,
और यहाँ पीड़ित मरते हैं!

गम के रेतीले मंजर में,
हम जलकर बदरंग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२५.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"

Thursday, 23 May 2013

♥♥प्रेम की छुअन..♥♥


♥♥♥प्रेम की छुअन..♥♥♥
प्रेम रोग का नाम नहीं है!
द्वेष भरा कोई काम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है!

प्रेम सरस है, प्रेम सुधी है!
प्रेम बड़ी अनमोल निधि है!
घृणा की काई धोने को,
प्रेम बड़ी आसान विधि है!

प्रेम बिना प्रभात अकेली,
हर्ष की सुखमय शाम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है...

छुअन प्रेम की पहुंचे मन तक,
बेशक रस्ता तन का ही हो!
प्रेम सदा रहता यादों में,
भले प्रेम क्षण भर का ही हो!
"देव" हमारे मन में तो बस,
छवि तुम्हारी वसी हुई है,
सात जनम के सपने होते,
भले प्रेम एक जन्म का ही हो!

जब से तुमको मीत चुना है,
ये जीवन नाकाम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है!"

....चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२४.०५.२०१३

♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!
तुम उल्फत के फूल बिछाकर, मेरा जीवन खास करो जो!
दूर हूँ तुमसे लेकिन फिर भी, तेरे प्यार की नजदीकी है,
मैं भी पास लगूंगा तुमको, गर मेरा एहसास करो जो!

प्रेम के अक्षर लिखने भर से, प्रेम का मानक पूर्ण नहीं है!
बिना प्रेम के कोई भी शै, दुनिया में सम्पूर्ण नहीं है!

मेरे दर्द लगेगा अपना, तुम इसका आभास करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो...

तुम चाहत की अनुभूति से, मेरे घर को रौशन कर दो!
गम की सारी तपिश मिटाकर, शीतल मेरा जीवन कर दो!
"देव" जहाँ में बिना प्यार के, खाई कोई मिट नहीं सकती,
तुम अपने हाथों से छूकर, उज्जवल मेरा ये मन कर दो!

मेरी आंख के आंसू में भी, तेरी प्रीत का नमक घुला है!
तेरे हाथ फिराने भर से, मेरे दर्द को सुकूं मिला है!

नया उजाला खिल जाएगा, प्रेम का तुम प्रकाश करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२३.०५.२०१३



Wednesday, 22 May 2013

♥♥जीवन की क्षमता ..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन की क्षमता ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन की कर्मठ क्षमता को, जो बलशाली कर जाते हैं!
जो बंजर में भी मेहनत से, इक हरियाली कर जाते हैं!
इस दुनिया में मरकर के भी, याद वही आते हैं देखो,
जो व्यक्ति अपने कर्मों से, जग खुशहाली कर जाते हैं!

जो मानवता की पीड़ा पर, दो आंसू भी नहीं बहाते!
जो गिरते इंसान को देखो, हाथ पकड़ कर नहीं उठाते!
जो बस मूक बधिर होकर के, कभी किसी का दर्द सुनें न,
जो करते हैं प्यार के दावे, प्यार को लेकिन नहीं निभाते!

ऐसे जन ही मानवता का, नाम कलंकित कर जाते हैं!
जो जीवित होते हैं लेकिन, मानवता से मर जाते हैं!
ऐसे लोगों को दुनिया में, दिल से इज्ज़त कभी मिले न,
जो बस अपने निजी स्वार्थ में, सच्चाई से डर जाते हैं!

लेकिन "देव" जमाने भर में, वही लोग अच्छे होते हैं!
जो औरों के दर्द में देखो, अपनेपन के संग रोते हैं!
जो दुनिया में अपनेपन के, भाव जगाते हैं बोली से,
जो नफरत के पेड़ काटकर, प्रेम भरे अंकुर बोते हैं!

देश की खातिर रगों में अपनी, गर्म लहू जो भर जाते हैं!
जीवन की कर्मठ क्षमता को, जो बलशाली कर जाते हैं!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२३.०५.२०१३

Tuesday, 21 May 2013

♥♥बेचैनी..♥♥



♥♥♥♥♥बेचैनी..♥♥♥♥♥♥
तुम बिन गहरी बेचैनी है,
सूना सूना घर लगता है!
बिना तुम्हारे मेरे हमदम,
मुझे तिमिर से डर लगता है!
मेरी सखी तू पल भर को भी,
खुद को मुझको दूर न करना,
बिना तुम्हारे इस जीवन पर,
गुमनामी का कर लगता है!

बिना तुम्हारे जीवन पथ का,
नहीं गुजारा होता हमदम!
बिना तुम्हारे इस दुनिया का,
नहीं सहारा होता हमदम!
बस तुझको ही सोच सोच कर,
विरह की बेला कटती हैं,
बिना तुम्हारे चाँद न मेरा,
नहीं सितारा होता हमदम!

बिना तुम्हारे बादल प्यासा,
थका थका अम्बर लगता है!
बिना तुम्हारे इस जीवन पर,
गुमनामी का कर लगता है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२१.०५.२०१३

Saturday, 18 May 2013

♥♥बदलते कलमकार...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बदलते कलमकार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!
या लगता है कलमकार ने, दर्द भूख का नहीं सहा है!
इस दुनिया में देखो वो कब, दर्द किसी का लिख पाएंगे,
जिन लोगों का लाचारी में, कोई आंसू नहीं बहा है!

प्रेम की विरह घातक है पर, मुफलिस की पीड़ा से कम है!
वो क्या सच को लिख पाएगा, जिसकी हिम्मत ही बेदम है!
उनसे आखिर रणभूमि में, लड़ने की उम्मीद क्या रखें,
नाम मौत का सुन लेने से, जिस इन्सां के घर मातम है!

वो क्या जानेंगे सपनों को, जिनका सपना ढहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है...

बड़ी बड़ी बातें करने से, पहले दिल को बड़ा बनाओ!
अपने दिल को मानवता के, जज्बातों का पाठ पढ़ाओ!
"देव" जहाँ में दौलत ही बस, नहीं शर्त अच्छा बनने की,
अच्छा इंसां बनना है तो, अच्छाई के दीये जलाओ!

वो क्या जाने ओस, धूप को, जो बिन छत के रहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१९.०५.२०१३

Wednesday, 15 May 2013

♥♥गमों की धूप...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गमों की धूप...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एहसासों की कोमलता को, पल में जब कुचला जाता है!
और गमों की धूप से जलकर, जब उपवन कुम्हला जाता है!
जब रो रो कर नयन के नीचे, काले घेरे पड़ जाते हैं,
जब काँटों के रस्ते पर भी, नंगे पग निकला जाता है!

अपने जब बेगाने बनकर, दुश्मन लोगों से मिल जाते!
तो जीवन में बिन पानी के, नए नवेले गम खिल जाते! 
दुख के कारण जब जीवन का, पल पल सदियों जैसा लगता,
जब जीवन की हंसी ख़ुशी में, ये खारे आंसू घुल जाते!

ऐसे दुख के हालातों में, जीवन पथ दुर्गम होता है!
झोली में भी नहीं सिमटता, इतना सारा गम होता है!
लेकिन फिर भी "देव" जहाँ में, जो गम देखो सह जाते हैं,
उन लोगों के जीवन में ही, कुछ करने का दम होता है!

तभी तजुर्बा मिलता जग में, जब गिरकर संभला जाता है!
एहसासों की कोमलता को, पल में जब कुचला जाता है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१५.०५.२०१३

Monday, 13 May 2013

♥♥प्रेम का ज्योति कलश..♥


♥♥प्रेम का ज्योति कलश..♥♥♥
प्रेम का ज्योति कलश सखी तुम!
नम्र भाव और सरस सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!

तुम फूलों की टहनी जैसी,
बड़ी ही नाजुक, बड़ी सरल हो!
तुम्ही हमारे भावों में हो,
तुम्हीं गीत और तुम्ही गज़ल हो!
तुम मेरे मन की दुल्हन हो,
तुम बिन कुछ भी नहीं सुहाता,
तुम्हीं वंदना हो जीवन की,
तुम ही उर्जा, तुम्ही विमल हो!

तुम ही मेरे दिल की धड़कन,
और जीवन का नफ़स सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम...

तुम मेरे मन की कविता हो,
शब्दकोष की चंचलता हो!
तुम पावन को ममता जैसी,
तुम गंगा सी निर्मलता हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको,
हर पल गहरा सुकूं दिया है,
रेगिस्तानी धूप में भी तुम,
एहसासों की शीतलता हो!

तुम ही मेरा आसमान हो,
और हमारा फ़रश सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१३.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in/ पर पूर्व प्रकाशित" 

Thursday, 9 May 2013

♥♥प्यार की सौंधी खुश्बू..♥♥♥


♥♥प्यार की सौंधी खुश्बू..♥♥♥
प्यार का एक समुन्दर हो तुम! 
चाँद के जैसी सुन्दर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम!

प्यार के हर बिंदु का तुमने, 
मुझको व्यापक ज्ञान दिया है!
मुझ मामूली मनुज को तुमने, 
एक अद्भुत सम्मान दिया है!
इस दुनिया में प्यार से बढ़कर, 
कोई पूंजी हो नहीं सकती,
तुमने मुझको कदम कदम पर, 
गहरा बल प्रदान किया है!

मेरा मनवा भीग गया है, 
प्रेम से पूरित जलधर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम...

मेरा मन का मोह तुम्हीं हो,
जीवन का आराम तुम्हीं हो!
तुम्ही सुबह का उजियारा हो,
और सुनहरी शाम तुम्ही हो!
"देव" तुम्हारे प्रेम ने मुझको,
प्रखरता से किया सुशोभित,
तुम्ही हंसी मेरे चेहरे की,
और मेरा उपनाम तुम्हीं हो!

तुम्हीं हमारी शुभ-चिन्तक हो,
और हमारी हितकर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम!"


..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०९.०५.२०१३
"
सर्वाधिकार सुरक्षित"







Wednesday, 8 May 2013

♥♥सस्ती मौत..♥♥


♥♥♥सस्ती मौत..♥♥♥♥
अंधकार गहराया सा है!
दुख का गहरा साया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,

खौफ जहन पर छाया सा है!


शायद हम सब खुश हैं देखो,
कंक्रीट के इस जंगल में!
लोग यहाँ पर अपनेपन को,
कुचल रहे देखो दंगल में!
नया दौर क्या इसीलिए है,
मानवता का अंत करें हम,
हम औरों को पीड़ा देकर,
सदा रहें अपने मंगल में!

मानवता के ऊपर देखो,
अब खतरा मंडराया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,
खौफ जहन पर छाया सा है...

अपनी वहशत में हम देखो,
मानवता को कुचल रहे हैं!
हाड़ मांस के दिल न पिघलें,
बेशक पत्थर पिघल रहे हैं!
"देव" आज के दौर से अच्छा,
गुजरा आलम ही बेहतर था,
आज लोग बस अपने सुख में,
लाचारों को मसल रहे हैं!

पढ़े लिखे भी होकर भी हमने,
खुद को पशु बनाया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,
खौफ जहन पर छाया सा है!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०९.०५.२०१३









Monday, 6 May 2013

♥♥प्यार की कुमकुम.♥♥



♥♥प्यार की कुमकुम.♥♥♥ 
तुम गर्मी में हिम जैसी हो!
वर्षा की रिमझिम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो!

पावन गंगा के जल जैसी!
तुम अम्बर के बादल जैसी!
तुम हाथों के कंगन जैसी,
तुम पैरों की पायल जैसी!

तुम मलमल की अनुभूति हो,
और तुम्हीं रेशम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो...

तुम कोमल हो, दयावान हो!
तुम वीणा की मधुर तान हो!
"देव" तुम्हीं नीलम रत्नों में,
तुम सपनों का आसमान हो!

नयी नवेली सुबह में तुम,
और निशा पूनम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०६.०५.२०१३

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"

Sunday, 5 May 2013

♥हक की आवाज..♥



♥♥♥हक की आवाज..♥♥♥ 
रुधिर शीत जब हो जाता है!
मन का साहस खो जाता है!
नाम मौत का सुनकर देखो, 
जिनका चेहरा रो जाता है!
ऐसे कहाँ लोग दुनिया में,
अपने हक की जंग लड़ेंगे,
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है!

ये कमजोरी रहेगी जब तक,
हम उद्घोष नहीं कर सकते!
सरकारों के दमन के आगे,
किंचित रोष नहीं कर सकते!
कभी यहाँ निर्धन का शोषण,
कभी किसानों की शामत हो,
पर हम गहरी नींद त्यागकर,
खुद का होश नहीं कर सकते!

वो क्या जंग लड़ेगा डरकर,
जो भूमिगत हो जाता है!
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है...

कमजोरों की सुनवाई को,
आलम बेशक कम होता है!
कोई न समझे उनके दुख को,
भले ही कितना गम होता है!
"देव" मगर हथियार से ज्यादा,
हमें जरुरत है साहस की,
क्यूंकि वो ही लड़ सकता है,
जिसके दिल में दम होता है!

वो ही दुश्मन का घर फूंके,
जो लावे सा हो जाता है!
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०६.०५.२०१३