Monday, 4 March 2013

♥परिस्थति..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥परिस्थति..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!
बस प्रभाव जमाने भर को, मिथ्या को प्रयुक्त न करना!
इस दुनिया में हर व्यक्ति ही, मार्ग सफलता का चाहता है,
किन्तु अपनी तृष्णा में तुम, नैतिकता को लुप्त न करना! 

समरसता से रहना सीखो, मधुर सुरीला गान बनो तुम!
जिसे देखकर मन पुलकित हो, इक ऐसे इंसान बनो तुम!

कभी सफलता की इच्छा में, अपना मन अभियुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

न तन से सम्बन्ध रखो तुम, मन से मन का नाता जोड़ो!
नहीं समझता जो मानवता, उस व्यक्ति से मिलना छोड़ो!
इस जीवन का अर्थ सार्थक, उसी दशा में संभव होगा,
तुम औरों को सीख से पहले, अपने जीवन का रुख मोड़ो!

कभी किसी को पीड़ा देकर, तुम सुख के अवसर न पाना!
बड़ी खुशी पायेगा मनवा, किसी के दुख में साथ निभाना!

इस आधुनिक परिवेश में, मर्यादा उन्मुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना...

अपने पढ़े-लिखे मन से तुम, काम कोई छोटा न मानो!
बिन मेहनत के कुछ नहीं मिलता, इस युक्ति की कीमत जानो!
"देव" निराशा में रहने से, बस जीवन कुंठित होता है,
तुम मन में आशायें भर कर, अपनी मंजिल को पहचानो!

एक दिन में ही कुछ नहीं मिलता, इसीलिए संतोष करो तुम!
नहीं डिगो तुम लक्ष्य से अपने, न ही मन में रोष करो तुम!

भूले से भी इस युक्ति को, तुम मन से आमुक्त न करना!
तुम विपरीत परिस्थतियों में, अपना साहस सुप्त न करना!"

"
जीवन-कभी दुख, कभी पीड़ा, कभी विरह तो कभी दंड, किन्तु जीवन की इन दशाओं में, साहस, मेहनत और आत्मविश्वास की युक्ति से जीवन को गतिशीलता मिलती है, तो आइये जीवन को गतिशील बनायें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०३.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Sunday, 3 March 2013

♥♥मेरी तस्वीर.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी तस्वीर.♥♥♥♥♥♥♥♥
तस्वीर मेरी दिल में, वसाकर तो देखिये!
तुम प्यार का एक दीप, जलाकर तो देखिये!

जलती हुए आँखों को भी, मिल जाएगी ठंडक,
तुम गीत के यहाँ, प्यार के गाकर तो देखिये!

हिन्दू नहीं, मुस्लिम, तुम्हें इन्सान मिलेगा,
नफरत की ये दीवार, गिराकर तो देखिये!

दिल भी करार पायेगा और रूह भी सुकूं,
रोटी किसी भूखे को, खिलाकर तो देखिये!

न "देव" घुटन दिल में, कोई अपने रहेगी,
तुम सच को यहाँ, सच ही बताकर तो देखिये!"
...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-०३.०३.२०१३

Friday, 1 March 2013

♥रूह के आंसू..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥रूह के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में नमी, दिल में दुखन होने लगी है!
गम इतना है के, रूह मेरी रोने लगी है!

मरते हुए इन्सां को, बचाता नहीं कोई, 
इंसानियत भी लगता है, के सोने लगी है!

बारूद से धरती की कोख, भरने लगे सब,
मिट्टी भी अपनी गंध को, अब खोने लगी है!

आँखों में अँधेरा है, हाथ कांपने लगे,
लगता है उम्र मेरी, खत्म होने लगी है!

एक कौम को गद्दार यहाँ, "देव" क्यूँ कहो,
हर कौम ही अब खून से, मुंह धोने लगी है!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-०१.०३.२०१३



Thursday, 28 February 2013

♥♥तौर-तरीका.♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तौर-तरीका.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं अपने हाथों से अपने, ख्वाब नहीं तोड़ा करता हूँ!
भले दर्द है पर खुशियों की, आस नहीं छोड़ा करता हूँ!
इस दुनिया में तनहा रहना, बेहतर है झूठी चाहत से,
इसीलिए झूठे लोगों से, साथ नहीं जोड़ा करता हूँ!

यही हमारा तौर-तरीका, इसी तरह मैं जी पाता हूँ!
सीने में गम रखकर भी मैं, साँझ सवेरे मुस्काता हूँ!

जो न समझे मानवता को, उससे मुंह मोड़ा करता हूँ!
मैं अपने हाथों से अपने, ख्वाब नहीं तोड़ा करता हूँ....

जिनको अपने सुख की इच्छा, जिनको अपनी खुशियाँ प्यारी!
उनसे तो दूरी अच्छी है, नहीं चाहिए उनकी यारी!
इस दुनिया की भीड़ में देखो, "देव" उसी का नाम हुआ है,
जिसने अपने लक्ष्य की खातिर, गलत काम की इच्छा मारी!

मैं विरह में रहता हूँ पर, मिलन की आशा नहीं त्यागता!
साथ हमेशा चलूँ वक्त के, आगे-पीछे नहीं भागता!

कभी किसी प्यासे के घर का, घड़ा नहीं फोड़ा करता हूँ!
मैं अपने हाथों से अपने, ख्वाब नहीं तोड़ा करता हूँ!"

.................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२८.०२.२०१३


Wednesday, 27 February 2013

♥ए प्यारे आजाद..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ए प्यारे आजाद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में फिर आंसू आए, पढ़ कर तेरी को कुर्बानी को!
ए प्यारे आजाद है तुम पे, नाज हर एक हिंदुस्तानी को!

आजादी की खातिर तुमने, अंग्रेजों को सबक सिखाया!
दमन हजारों भी सहकर के, अपना मस्तक नहीं झुकाया!
"देव" नहीं जन्मा है कोई, फिर आजाद के जैसा इन्सां,
जिसने अपनी मौत को चुनकर, भारत माँ का मान बढाया!

एक पल को भी सहा न तुमने, अंग्रेजों की बेमानी को!
आँखों में फिर आंसू आए, पढ़ कर तेरी को कुर्बानी को!"

.................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२७.०२.२०१३

(सजल नयनों के साथ, चंद्रशेखर आजाद को नमन, अनवरत...)

Tuesday, 26 February 2013

♥♥माँ(प्यार का सागर)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ(प्यार का सागर)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
इस दुनिया के संबंधो में, माँ से बढ़कर कोई नहीं है!
माँ अपने बच्चों से पहले, एक पल को भी सोई नहीं है!
माँ के दिल जैसा दुनिया में, नहीं दयालु है कोई दिल,
माँ बच्चों का दर्द देखकर, अपनी धुन में खोई नहीं है!

बिन माँ के बच्चों से पूछो, माँ की कीमत क्या होती है!
इस धरती पर, इस दुनिया में, ईश्वर जैसी माँ होती है!

वो बच्चों के दुख को समझे, अपने दुख में रोई नहीं है!
इस दुनिया के संबंधो में, माँ से बढ़कर कोई नहीं है...

माँ की लोरी सा दुनिया में, कोई मीठा गान नहीं है!
बड़ी सरल है माँ की ममता, बिंदु भर अभिमान नहीं है!
"देव" कभी तुम भूले से भी, माँ के आंसू नहीं बहाना,
जिसको माँ का अदब नहीं हो, वो कोई इन्सान नहीं है!

माँ बच्चों की खातिर जलती, जैसे अंधियारे में ज्योति!
माँ की ममता उपवन जैसी, माँ की ममता सच्चा मोती!

माँ ने देखो अपने मन में, फसल लोभ की बोई नहीं है!
इस दुनिया के संबंधो में, माँ से बढ़कर कोई नहीं है...

माँ को सब बच्चे प्यारे हैं, माँ के मन में द्वेष नहीं है!
माँ के मन न भेद-भाव हैं, उसके मन आवेश नहीं है!
माँ शक्ति है, माँ भक्ति है, माँ पूजा के फूलों जैसी,
मेरे मन में माँ से बढ़कर, कोई इच्छा शेष नहीं है!

माँ के बिन है दुनिया सूनी, माँ जीवन की संवाहक है!
माँ बच्चों की सहयोगी है, माँ बच्चों की निर्वाहक है!

माँ ने बच्चों के आंसू से, अपनी सूरत धोई नहीं है!
इस दुनिया के संबंधो में, माँ से बढ़कर कोई नहीं है!"

"
माँ-एक ऐसा शब्द जो मात्र दो अक्षरों का युग्म है, किन्तु उसका अर्थ महाकाव्यों में भी समाहित नहीं हो सकता! इतना प्रेम, की वो सागर की तरह अमापनीय हो! जगत के संबंधों में, सर्वोत्तम माँ, तो आइये माँ को नमन करें..!"

................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२७.०२.२०१३

(ये रचना मेरी माँ कमला देवी एवं माँ प्रेमलता जी को समर्पित)


Sunday, 24 February 2013

♥शब्द(मेरी आवाज)♥


♥♥♥♥♥शब्द(मेरी आवाज)♥♥♥♥♥♥♥
ये शब्द मेरे दर्द की, आवाज बन गए!
ये शब्द मोहब्बत का, नया साज बन गए!
इन शब्दों की दौलत से, मुझे प्यार बहुत है,
ये शब्द ही कल में थी, यही आज बन गए!

देते हैं खुशी तो ये, कभी आंख को पानी!
बिन इनके अधूरी है ये, जीवन की कहानी!

ये शब्द मेरी जिंदगी का, नाज़ का बन गए!
ये शब्द मेरे दर्द की, आवाज बन गए...

ये शब्द हैं गीतों में, सजे हैं ये गज़ल में!
ये शब्द निराशा में, कभी होते हैं बल में!
इन शब्दों से वाचन है "देव", इनसे ही लेखन,
ये शब्द ही सच में तो, यही होते हैं छल में!

शब्दों ने यहाँ प्यार का, एहसास लिखा है!
शब्दों ने ही देखो यहाँ, इतिहास लिखा है!

ये शब्द चांदनी का, नया ताज बन गए!
ये शब्द मेरे दर्द की, आवाज बन गए!"

........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-२४.०२.२०१३

Friday, 22 February 2013

♥लफ्जों का बदन..♥


♥♥♥♥♥♥♥लफ्जों का बदन..♥♥♥♥♥♥♥♥
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!
लगता है रवि प्रेम का, अब ढ़लने लगा है!
एक पल में ही लग जाती हैं, लाशों की कतारें,
फिर रंज का एहसास यहाँ, पलने लगा है!

लगता है बड़ा गहरा है, ये दहशत का दौर है!
जिस ओर भी देखो वहीँ, नफरत का शोर है!

इन्सान ही इन्सान को अब, छलने लगा है!
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!"

खूंखार जानवर है वो, इन्सान नहीं है!
इंसानियत का जिसको, कोई धयान नहीं है!
दहशत के दीवानों, जरा एक बात तो सुनो,
तुम जिसको मारते हो वो, बेजान नहीं है!

"देव" तरस इनको, कभी आता नहीं है!
लगता है इन्हें चैन, अमन, भाता नहीं है!

अब कैसा चलन, मौत का ये चलने लगा है!
बारूद से लफ्जों का बदन, जलने लगा है!"





...........चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक-.०२.२०१३

♥♥कागज की नाव..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥कागज की नाव..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ!
कुछ फूल नए फिर से, खिलाने का मन हुआ!
बरसात ने बचपन की मुझे, याद दिलाई,
कागज की नाव फिर से, चलाने का मन हुआ!

बारिश से मेरे मन की अगन, शीत हो गयी!
लगता है के बारिश से मुझे, प्रीत हो गयी!

नैनों में नए स्वप्न, सजाने का मन हुआ!
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ..

बरसात में बूंदों के, ये मोती बिखर गए!
बरसात में सूखे हुए, तालाब भर गए!
बरसात से आई है "देव", मन में ताजगी,
बरसात में पेड़ों के भी, चेहरे निखर गए!

हाँ सच है ये, बरसात का मौसम तो नहीं है!
पर रोक लें हम इसको, इतना दम तो नहीं है!

बरसात से फिर हाथ, मिलाने का मन हुआ!
बरसात में फिर भीग के, आने का मन हुआ!"

.........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२३.०२.२०१३

Wednesday, 20 February 2013

♥विरह का वनवास..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विरह का वनवास..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़ा ही पीड़ित करता मन को, विरह का ये वनवास!
नहीं पता कब पूरी होगी, सखी मिलन की आस!
गिन गिन कर मैं बिता रहा हूँ, अपने दिन और रात,
नहीं पता तुम कब आओगी, सखी हमारे पास!

बिना तुम्हारे नीरसता है, मन भी हुआ अधीर!
बिना तुम्हारे इन आँखों से, झर झर बहता नीर!

नहीं पता कब उज्जवल होगा, ये मन का आकाश!
बड़ा ही पीड़ित करता मन को, विरह का ये वनवास..

मैंने देखा विरह में होती, गति समय की मंद!
न भाती है शीतल वायु, न मिलता आनंद!
बिना तुम्हारे "देव" हुए हैं, शब्द हमारे मौन,
नहीं रचित होती है कविता, न बनता है छंद!

तुम बिन उपवन मुरझाया है, सूख गए सब फूल!
बिना तुम्हारे जीवन पथ पर, मुझको चुभते शूल!

नहीं पता कब पतझड़ हरने, आएगा मधुमास!
बड़ा ही पीड़ित करता मन को, विरह का ये वनवास!"

..........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२०.०२.२०१३

Tuesday, 19 February 2013

♥ईमान...♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥ईमान...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खुद से नजर मिलाना भी, आसान न रहा!
जिन लोगों का जिन्दा यहां, इमान न रहा!

मिलते हैं मुझे यूँ तो, बहुत आदमी लेकिन,
इस दुनिया में शायद कोई, इंसान न रहा!

मुजरिम को रिहाई यहां, पीड़ित को सजा है,
लगता है के भगवान भी, भगवान न रहा!

जो पालते हैं उनको ही, मिलती हैं ठोकरें,
माँ बाप का अब इतना भी, अहसान न रहा!

रोता है आज "देव", ये भारत भी देखकर,
आजाद, भगत सा कोई, कुरबान न रहा!"

...........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२०.०२.२०१३

Monday, 18 February 2013

♥♥♥वचन..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वचन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दुख में विचलित न होने का, खुद से एक वचन करना है!
जीवन में आगे बढ़ने का, हर क्षण हमें जतन करना है!
रणभूमि में बिन साहस के, नहीं विजय के अवसर आते,
यदि विजेता बनना है तो, भय का हमें दमन करना है!

ये सच है कोई अजेय नहीं, किन्तु जीवन से क्यूँ डरना!
नित जीवन में नए द्रश्य हैं, कभी है सागर, कभी है झरना!

अपने मन की शीतलता से, दुख का ताप शमन करना है!
दुख में विचलित न होने का, खुद से एक वचन करना है...

सदाचार पर बल देना है, अनुशासन को अपनाना है!
प्रेम के सुन्दर फूल खिलाकर, सारे जग को महकाना है! 
इस जीवन को "देव" न किन्तु, निहित नहीं बस खुद में करना,
इस दुनिया को सही गलत का, अंतर हमको समझाना है!

विकसित होने की इच्छा में, नैतिकता पे मार न करना!
हिंसा में अंधे होकर के, मानवता पे वार न करना!

जात-धर्म से ऊपर उठकर, मन से यहाँ मिलन करना है!
दुख में विचलित न होने का, खुद से एक वचन करना है!"

......................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-१९.०२.२०१३

♥जीवन के मायने..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन के मायने..♥♥♥♥♥♥♥♥
नहीं फूलों सा है जीवन, यहाँ कांटे भी होते हैं!
कभी हँसते हैं फूलों से, कभी विरह में रोते हैं!
मगर तुम हार न जाना, कभी पीड़ा से डरकर के,
वो ठंडी छाँव पाते हैं, जो एक दिन बीज बोते हैं!

जो अपने स्वार्थ में, औरों का सुख नीलाम करते हैं!
कहाँ वो याद आते हैं, जो ऐसा काम करते हैं!

ये ऐसे लोग तो धरती पे, केवल बोझ होते हैं!
नहीं फूलों सा है जीवन, यहाँ कांटे भी होते हैं...

कभी जीवन में खुशियों की, हसीं सौगात मिलती है!
कभी जीवन में इन्सां को, ग़मों की रात मिलती है!
हमेशा "देव" ये जीवन, किसी को सुख नहीं देता,
कभी हम जीत जाते हैं, कभी पर मात मिलती है!

पराजित हो के भी मन में, जो अपने जोश भरते हैं!
वही कुछ कर दिखाते हैं, जो कुछ संकल्प करते हैं!

वहीँ इन्सां हैं जो औरों के, दुख में साथ रोते हैं!
नहीं फूलों सा है जीवन, यहाँ कांटे भी होते हैं!"

.............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१८.०२.२०१३

Sunday, 17 February 2013

♥निर्धन की मायूसी..♥


♥♥♥♥♥♥निर्धन की मायूसी..♥♥♥♥♥♥♥
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!
और दफ्तरों में लेते हैं, बाबु अफसर घूस!
देश के नेता लूट-लूट कर, भर रहे अपना कोष,
निर्धन जनता तड़प रही है, गर्मी हो या पूस!

मेरे देश के अब तो हुए हैं, बहुत बुरे हालात!
गम के बादल घिर आए हैं, हुई अँधेरी रात!

पता नहीं के रहेगा कब तक, हाल यूँ ही मनहूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस..

निर्धन के जीवन में खिलते, बस कागज के फूल!
निर्धन के तन पे चिथड़े हैं और सूरत पे धूल!
निर्धन जन का जीवन स्तर, है इतना बदहाल,
उसके नंगे पांवों में तो, दुःख के चुभते शूल!

निर्धन जन के दर्द पे जाता, नहीं किसी का ध्यान!
देश का निर्धन ऐसे जीता, जैसे हो बेजान!

सब देते हैं दर्द उसे, कोई देता नहीं खुलूस!
घोटालों की चीत्कार है, जनता है मायूस!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१८.०२.२०१३


♥जीवन का जुआ..♥


♥♥♥♥♥♥♥जीवन का जुआ..♥♥♥♥♥♥♥
है हार कभी जीत, ये जीवन तो जुआ है!
हर रोज जिंदगी में, नया खेल हुआ है!

पर फिर भी मुझे, जिंदगी से डर नहीं लगता,
मेरे साथ में हर दम ही, मेरी माँ की दुआ है!

लोगों को अब तो भाने लगी, मेरी लिखावट,
तेरे प्यार ने जबसे मेरे, लफ्जों को छुआ है!

दिल से मेरे ज़ख्मों के, निशां जाते नहीं हैं,
हमला मेरे दिल पे यहाँ, अपनों का हुआ है!

मैं खुद से नजर, "देव" मिलाता हूँ बेहिचक,
मेहनत से अपनी मैंने, ये आकाश छुआ है!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-१७.०२.२०१३

Saturday, 16 February 2013

♥शब्दों के मोती.♥


♥♥♥♥शब्दों के मोती.♥♥♥♥
आँखों में कुछ सपने बुनकर,
अपने मन की बोली सुनकर,
फिर से एक कविता लिखता हूँ,
मैं शब्दों के मोती चुनकर!

नहीं पता के इस कविता में,
कौनसा रस है, अलंकार है!
नहीं पता के इस कविता का,
जीवन कितना यादगार है!
नहीं पता के इस कविता में,
कितनी खामी और कमी है,
नहीं पता के इस कविता का,
लेखन कितना असरदार है!

किन्तु फिर भी मुझे चमकता,
शब्दों में आशा का दिनकर!
फिर से एक कविता लिखता हूँ,
मैं शब्दों के मोती चुनकर!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१६.०२.२०१३

Friday, 15 February 2013

♥प्यार का बसंत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का बसंत..♥♥♥♥♥♥♥♥
पीले फूलों की खुश्बू है, बरस रही बरसात!
बारिश की बूंदें लाईं हैं, खुशियों की सौगात!
चलो बसंती हो जायें हम, इन फूलों के संग,
बारिश की प्यारी बूंदों से, कहेंगे दिल की बात!

सखी मुझे हर मौसम में, भाये तेरा साथ!
मुझे कभी न तन्हा करना, नहीं छुड़ाना हाथ!

सखी तेरे ही प्रेम से हर्षित, हैं मेरे दिन रात!
पीले फूलों की खुश्बू है, बरस रही बरसात..

उपवन देखो खिले खिले हैं, धुली वनों की देह!
सखी कभी न कम करना तुम, अपना ये स्नेह!
सुख दुख के हम तुम साथी हैं, प्रेम है अपना "देव",
बड़े भाग्य से मिलता जग में, प्रेम का ये स्नेह!

बारिश में तो और भी प्यारा, लगे तुम्हारा रूप!
तुम छाया हो प्रकृति की, नैसर्गिक स्वरूप!

तेरे साथ से बन जाती है, देखो बिगड़ी बात!
पीले फूलों की खुश्बू है, बरस रही बरसात!"

...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-१६.०२.२०१३

Thursday, 14 February 2013

♥अंतर्मन का ध्यान.♥


♥♥♥अंतर्मन का ध्यान.♥♥♥
अंतर्मन का ध्यान तुम्हीं हो!
अधरों की मुस्कान तुम्हीं हो!
जो ह्रदय को झंकृत कर दे.
ऐसा सुन्दर गान तुम्हीं हो!

तुम अम्बर के तारों जैसी!
शीतल किन्ही फुहारों जैसी!
तुम्हें देखकर कहता हूँ मैं,
तुम हो मधुर बहारों जैसी!

तुम्ही "देव" की पथ-प्रदर्शक,
सही-गलत का ज्ञान तुम्हीं हो!
जो ह्रदय को झंकृत कर दे.
ऐसा सुन्दर गान तुम्हीं हो!"

.....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१४.०२.२०१३

Tuesday, 12 February 2013

♥एहसान ..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥एहसान ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दौलत से कभी प्यार को, पाया नहीं जाता!
एहसान मोहब्बत में, जताया नहीं जाता!

पढ़ लेते हैं वो मेरी, निगाहों में दर्द को,
चाहकर भी यहाँ दर्द, छुपाया नहीं जाता!

चुन चुन के मैंने लफ्ज, सजाए हैं गीत में,
चोरी का गीत मुझसे तो, गाया नहीं जाता!

न याद रखें वो, मेरी तस्वीर को लेकिन,
पर रूह के रिश्तों को, भुलाया नहीं जाता!

हर कोई नहीं "देव" है, हमदर्द यहाँ पर,
दुनिया को अपना दर्द, सुनाया नहीं जाता!"

..........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-१२.०२.२०१३


Monday, 11 February 2013

♥प्यार की धारा..♥


♥♥♥♥♥♥♥प्यार की धारा..♥♥♥♥♥♥♥♥
न मन में तेरे खोट है, न दिल में बदी है!
अच्छाई भी जिन्दा हैं सखी, तू जो यदि है!
जब भी तुझे देखा, मेरा चेहरा चमक उठा,
तू प्यार की धारा से भरी,कोई नदी है!

ये तेरी मोहब्बत, मेरे दिल का करार है!
बारिश की बूंद जैसी, तू रिमझिम फुहार है!

तुझसे ही मेरी जिंदगी से, फूलों से लदी है!
न मन में तेरे खोट है, न दिल में बदी है!"

.........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-११.०२.२०१३

Sunday, 10 February 2013

♥दमकती धूप..♥


♥♥♥♥♥♥दमकती धूप..♥♥♥♥♥♥♥♥
सूरज का उजाला है, दमकती ये धूप है!
जीवन कभी सुन्दर, कभी होता कुरूप है!
किन्तु कभी जीवन से, कोई खेद न करना,
हँसना कभी, रोना यही, जीवन का रूप है!

फूलों की त्वचा है, कभी दुख का पठार है!
जीवन में सुनामी, कभी सुख की बहार है!

जीवन का सदा ऐसा ही, होता स्वरूप है!
सूरज का उजाला है, दमकती ये धूप है..

जीवन कभी एक अंश पे, स्थिर नही होता!
जीवन सदा उल्लास का, सागर नहीं होता!
जीवन में "देव"आती हैं, उलझन नई नई,
जीवन सदा तारों भरा, अम्बर नहीं होता!

खोना कभी पाना, यही जीवन की गति है!
जीवन में कभी हर्ष, कभी दुख की क्षति है!

जीवन कभी सूखा, कभी देखो अनूप है!
सूरज का उजाला है, दमकती ये धूप है!"

..........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक-११.०२.२०१३

Saturday, 9 February 2013

♥प्रेम का आत्मसात..♥


♥♥♥♥♥♥प्रेम का आत्मसात..♥♥♥♥♥♥
एहसास में मैं तुमसे, मुलाकात करूँगा!
हाथों में लेके हाथ, मैं तुमसे बात करूँगा!
चाहे हो मुझसे दूर, तुम हजारों मील पर,
मैं तेरे लिए प्रेम की, बरसात करूँगा!

हँसना कभी, रोना कभी, होता है प्यार में!
पाना कभी, खोना कभी, होता है प्यार में!

तेरी याद से रौशन मैं, हर एक रात करूँगा!
एहसास में मैं तुमसे, मुलाकात करूँगा..

तेरी ही मोहब्बत से, ये एहसास पले हैं!
कुछ कांटे भी मिलें हैं, तो कुछ फूल खिले हैं!
चाहत को अपनी "देव", दबा मैं नहीं सकता,
मुझको तेरी चाहत से , ये जज्बात मिले हैं!

एहसास की दुनिया का , सफ़र खुशगवार है!
ये सच है तुमसे मिलने को, दिल बेकरार है!

मिलते ही तुमसे, तुमको आत्मसात करूँगा
एहसास में मैं तुमसे, मुलाकात करूँगा!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-०९.०२.२०१३

Friday, 8 February 2013

♥निर्धन के अश्रु.♥


♥♥♥♥♥♥♥♥निर्धन के अश्रु.♥♥♥♥♥♥♥♥
बचपन बिलख रहा है, जवानी भी रो रही है!
मेरे देश में निर्धन की दशा, ऐसी हो रही है!
सुनता नहीं कोई भी यहाँ, इनके दर्द को,
कानून भी चुप-चाप है, सत्ता भी सो रही है!

मरते हुए निर्धन को, दवा मिल नही पाती!
न जल उसे मिलता है, हवा मिल नहीं पाती!

निर्धन की जिंदगी, बड़ी गुमनाम हो रही है!
बचपन बिलख रहा है, जवानी भी रो रही है....

निर्धन के हित में, कोई न आवाज उठाये!
है कौन जो निर्धन को गले, अपने लगाये!
निर्धन का दर्द "देव", नहीं कोई समझता,
बेशक कोई निर्धन, यहाँ दुख अपना सुनाये!

निर्धन की वेदना यहाँ, सुनता नहीं कोई!
निर्धन के पथ से शूल भी, चुनता नहीं कोई!

निर्धन की जिंदगी, यहाँ नीलाम हो रही है!
बचपन बिलख रहा है, जवानी भी रो रही है!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-०८.०२.२०१३

Wednesday, 6 February 2013

♥दूरियां..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥दूरियां..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम भले ही मेरी नजरों से, दूर जाते हो!
मुझको दिन रात मगर, याद बहुत आते हो!

तेरी आँखों में भी, आंसू की बूँद दिखती हैं,
फिर भी न जाने मुझे, इतना क्यूँ सताते हो!

तुम जो आते हो तो, अँधेरा चला जाता है,
दीप बनकर के मेरे दिल में, जगमगाते हो!

तुमको नफरत है अगर, मेरे नाम से तो फिर,
मेरी तस्वीर को सीने से, क्यूँ लगाते हो!

इतना तो "देव" की, आँखों को पता है हमदम,
तुम भी गीतों को मेरे, दिल से गुनगुनाते हो!"

..........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०६.०२.२०१३

Tuesday, 5 February 2013

♥मेरा आपा.. ♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरा आपा.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पतझड़ कभी, सावन कभी, बारिश ने भिगोया!
पर मैंने कभी हार के, आपा नहीं खोया!

गम की तपन से दिल मेरा फौलाद हो गया,
अश्कों ने कहा फिर भी मगर, मैं नहीं रोया!

हाँ सच है शराफत से, मुझे कुछ न मिल सका,
पर मैंने कभी जुल्म का, अंकुर नहीं बोया!

चिथड़ों में भी जीता रहा, तड़पा भी भूख से,
पर मैं किसी इन्सान को, ठग कर नहीं सोया!

ए "देव" पापियों की, भीड़ बढ़ गयी इतनी,
गंगा ने भी गुस्से में कोई, पाप न धोया!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-०५.०२.२०१३

♥प्रीत की डोर..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत की डोर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर!
सखी बांध ली जबसे मैंने, तेरी प्रीत की डोर!
तिमिर मिटा है जीवन पथ से, हुआ नया प्रकाश,
सखी तुम्हारा प्रेम है जैसे, नयी नवेली भोर!

सखी तुम्हारी प्रीत है अद्भुत, सुन्दर है व्यवहार!
सदा ही मुझको प्रेरित करते, सखी तेरे उद्गार!

सखी तुम्हारा है प्रेम है व्यापक, नहीं है कोई छोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर......

सखी तुम्हारे प्रेम से मेरे, स्वप्न हुए साकार!
सखी तुम्हारा प्रेम है जैसे, कुदरत का उपहार!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मुझको, दिए खुशी के फूल,
सखी तुम्हारे प्रेम है जैसे, नदियों की जलधार!

सखी बड़ा ही प्यारा लगता, मुझे तेरा संवाद!
सखी तुम्हारे प्रेम से भूला, मैं तो सभी विवाद!

दृश्य बड़ा ही मनभावन है, वन में नाचे मोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर.....

सखी तुम्हारी अनुभूति है, हर क्षण मेरे संग!
सखी तुम्हारे प्रेम से मिलते, इन्द्रधनुष के रंग!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, "देव" हुए प्रसन्न,
सखी तुम्हारे प्रेम से मिलती, मन को सदा उमंग!

सखी तुम्हारे प्रेम का मिलना, बड़े भाग्य की बात!
सखी तुम्हारे प्रेम से हर्षित, मेरे दिन और रात!

सखी तुम्हारी भावुकता से, मन भी हुआ विभोर!
न ही मन में रुदन है कोई, न ही कोई शोर!"

"
प्रेम-जब परस्पर समर्पण के साथ ह्रदय में स्फुट होता है, तो निश्चित रूप से सकारात्मकता की प्राप्ति होती है! प्रेम की दीप्ति से, मन के अंधकार दूर हो जाते हैं, तो आइये इस दीप्ति को ग्रहण करें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०२.२०१३

(मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित)
सर्वाधिकार सुरक्षित..

Monday, 4 February 2013

♥सुगन्धित फूल..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सुगन्धित फूल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सुगन्धित फूल के जैसी, मेरे दिल को लुभाती हो!
मेरी आँखों में सपनों की, नयी दुनिया वसाती हो!

मधुर हो तुम मधु जैसी, बड़ी कोमल हो रेशम सी!
हो गंगाजल सी तुम पावन, सखी सुन्दर हो झेलम सी!
तुम्हारा रूप है जैसे, दमकती लालिमा कोई,
अमावस थम गईं सारी, सखी तुम रात पूनम सी!

बड़ा आराम मिलता है, मुझे हँसना सिखाती हो!
सुगन्धित फूल के जैसी, मेरे दिल को लुभाती हो!"

................चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक-०४.०२.२०१३

Friday, 1 February 2013

♥♥सपने..♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सपने..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रंग-बिरंगे गुब्बारों से, कुछ सपने आँखों में आते!
कभी किसी में आंसू बिखरें, कभी किसी में हम मुस्काते!

सपनों की दुनिया में बेशक, कभी धूप तो, कभी है छाया!
जो जीवन से दूर हुए हैं, इन सपनों ने उन्हें मिलाया!
शबनम की बूंदों के जैसे, सपने सचमुच ही प्यारे हैं,
इसीलिए तो इन आँखों से, सपनों का संसार रचाया!

कभी विरह की तान छेड़ते, कभी मिलन के दोहे गाते!
रंग-बिरंगे गुब्बारों से, कुछ सपने आँखों में आते!"

....................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०१.०२.२०१३ 

Thursday, 31 January 2013

♥सहारा..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सहारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!
भटकी हुई कश्ती को किनारा दिया तुमने!
तुमने ही जगाईं हैं, मेरे दिल में आरजू,
मुझको कभी चंदा, कभी तारा दिया तुमने!

जीवन को मेरे, प्यार के रंगों से सजाया!
तुमने ही अँधेरे में सखी, दीप जलाया!

पतझड़ को भी जाने का, इशारा दिया तुमने!
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!

अधरों से तेरे, प्यार भरे गीत सुनूँगा!
उपवन से तेरे वास्ते, कुछ फूल चुनूँगा!
हाँ सच है सखी, रूबरू तुमसे नहीं हुआ,
पर मिलने के तुमसे, मैं सदा ख्वाब बुनूँगा!

किस्मत से मेरी "देव", ये उपहार मिला है!
जीवन में तेरे प्यार से, हर रंग खिला है!

झुकती हुई डाली का, सहारा दिया तुमने!
गमगीन जिंदगी को सहारा दिया तुमने!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-३१.०१.२०१३

Wednesday, 30 January 2013

♥प्यार का एहसास..♥♥


♥♥♥♥♥♥प्यार का एहसास..♥♥♥♥♥♥♥♥
जब से तुम्हारे प्यार का एहसास हो गया!
खुशियों से सराबोर ये, आकाश हो गया!

हमदम तेरी चाहत का, असर ऐसा हुआ है,
जैसे के अंधेरों में भी, प्रकाश हो गया!

तेरे प्यार की खुश्बू से, महकता है ये जहाँ,
जीवन से हर एक दर्द का, अवकाश हो गया!

इस प्यार ने सिखलाई है, इंसानियत मुझे,
औरों का गम भी, मुझको बड़ा खास हो गया!

है "देव" असर ये, मेरे दिल की दुआओं का,
जो दूर सा दिखता था, वही पास हो गया!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............. 
दिनांक-३०.०१.२०१३

Tuesday, 29 January 2013

♥वेदना की यात्रा..♥


♥♥♥♥♥♥♥वेदना की यात्रा..♥♥♥♥♥♥♥♥
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए!
छाया तिमिर तो धूप के शोले पिघल गए!
जिनसे रखी थी मन ने समर्थन की भावना,
वो लोग ही मुंह फेर के, हमसे निकल गए!

जीवन में हर तरफ हमें, कंटक बहुत मिले!
हम भूख से पीड़ित हुए, विरह में हम जले!
मानव हैं मगर उनको, मुझपे आई न दया,
अपनों के ही हाथों से हैं, दिन रात हम छले!

मौसम वो सभी हर्ष के, देखो बदल गए!
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए....

नयनों से भी अश्रु की धार बहने लगी है!
स्वप्नों की वो आधारशिला ढ़हने लगी है!
किन्तु मैं देखो "देव", यहाँ, हूँ अभी जीवित,
लगता है मेरी देह भी, दुःख सहने लगी है!

पीड़ा की तपती आग में, अश्रु उबल गए!
संध्या हुई तो वेदना के दीप जल गए!"

..............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२९.०१.२०१३

Monday, 28 January 2013

♥दर्द का चेहरा.♥



♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का चेहरा.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दुनिया से अपने दर्द का चेहरा छुपा लिया! 
रोती हुई आँखों को भी, मैंने हंसा दिया!

जब से मिली है उनकी ये नूरानी मोहब्बत,
मैंने यहाँ गम से भरा, सूरज बुझा दिया!

नफरत का जहर, मुझपे नहीं करता है असर,
दिल में जो मैंने प्यार का, मंजर सजा लिया!

दिल कहता है ये झूठ है, पानी का बुलबुला,
लफ्जों को मैंने सच का, फलसफा सिखा दिया!

हिम्मत ने मेरी "देव", मुझे चाहा है इतना,
जीवन की मुश्किलों से भी, लड़ना सिखा दिया!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२९.०१.२०१३


Sunday, 27 January 2013

♥आसमान..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥आसमान..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सपने हजार दिल में है, मन में उड़ान है!
छूना हमें एक रोज, यहाँ आसमान है!

आँखों को तेरे बिन, कोई चेहरा नहीं भाता,
बिन तेरे अधूरा हूँ मैं, तू मेरी जान है!

अपनों के दिए ज़ख्म, भले भर गए लेकिन,
पर दिल पे मेरे ज़ख्म का, अब तक निशान है!

वो साथ था जब तक, तो यहाँ रहती थीं खुशियाँ,
उसके बिना ये घर नहीं, खाली मकान है!

अब "देव" मुझे डर नहीं, तन्हाई का कोई,
मेरे साथ जो यादों का, हसीं बागवान है!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२७.०१.२०१३

Saturday, 26 January 2013

♥♥जुगनू..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जुगनू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रात भर जुगनू की तरह, मैं जला करता हूँ!
अपनी तकदीर से न फिर भी गिला करता हूँ!

दर्द की आग में तपकर, ये हुनर पाया है,
फूल बनकर के मरुस्थल में, खिला करता हूँ!

है बुरा वक़्त के अपने न बदल जायें कहीं,
अपनी पहचान छुपाकर के, मिला करता हूँ!

तेरी रंजिश से कभी दिल के हुए जो टुकड़े,
आज उन टुकड़ों को, मैं फिर से सिला करता हूँ!

बड़ी मायूसी है पर "देव" नहीं हारा मैं,
वक़्त के साथ मैं, हंसकर के चला करता हूँ!"

..........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०१.२०१३






Friday, 25 January 2013

♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥पत्थर के इन्सां..♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी के बिना, जिंदा भी यहाँ कैसे रहूँ!
कोई सुनता ही नहीं, दर्द यहाँ कैसे कहूँ!

मेरे आंसू ने मेरा हाल बताया दिल को,
दर्द होता है निगाहों को, बता कैसे बहूँ!

मैं हूँ मजलूम के फुटपाथ पे भी सो जाऊं,
भूख लगती है तो रोटी के बिना कैसे रहूँ!

एक दिन देखो मैं पिंजरे को तोड़ जाऊंगा,
बेगुनाह होके भी आखिर, मैं सजा कैसे सहूँ!

मेरा दिल कहता के "देव" चलो दूर कहीं,
होके इन्सां भला पत्थर की तरह कैसे रहूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-२५.०१.२०१३

Thursday, 24 January 2013

♥खिलते गुलाब जैसा.♥


♥♥♥♥♥खिलते गुलाब जैसा.♥♥♥♥♥♥♥
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा!
लगता है चाँद जैसा ये, दीदार तुम्हारा!
बोली में हमनवा तेरी, मिश्री सी घुली है,
हरियाली सा लगता है ये, सिंगार तुम्हारा!

जीवन में जबसे प्रीत, तुम्हारी ये जगी है!
उस दिन से ये दुनिया, बड़ी सुन्दर सी लगी है!

मन को मेरे भाता है, ये किरदार तुम्हारा! 
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा...

तेरे ही ख्यालों से मेरी, रात खिली है!
हमदम तेरी खुश्बू, मेरे जीवन में घुली है!
पाया है जब से "देव" ने, ये प्यार तुम्हारा,
जिस ओर भी देखो, नई सौगात मिली है!

हमदम मेरे तूने ही मुझे, प्यार सिखाया!
हमदम तेरी चाहत ने, मेरा दर्द भुलाया!

दिल यूँ ही रहे प्यार से, गुलजार तुम्हारा!
खिलते गुलाब जैसा है, ये प्यार तुम्हारा!"

............चेतन रामकिशन"देव"............
(२४.०१.२०१३)

Tuesday, 22 January 2013

♥♥माँ ने तुम्हे पुकारा..♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥माँ ने तुम्हे पुकारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा!
नेता सुभाष फिर से तुम, आ जाओ अब दुबारा!
भारत को आज फिर से, जरुरत है तुम्हारी,
बंधन में जकड़ी माँ ने है, तुमको यहाँ पुकारा!

अब देश के भीतर ही जो, गद्दार बहुत हैं!
देखो सुभाष जुल्म के, किरदार बहुत हैं!

इनके लहू की फिर से, बहो दो जमीं पे धारा!
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा..

फिर से सुभाष देश का, ये हाल हो गया!
मजलूम आदमी यहाँ, बेहाल हो गया!
अफसर यहाँ, नेता यहाँ सब लूटने लगे,
निर्धन के हित का, कोष भी कंगाल हो गया!

अब देश को फिर से तेरी दरकार बहुत है!
बंधन में जकड़ी माँ को, इंतजार बहुत है!

हर पल ही तुम्हे याद, ये करता है वतन सारा!
तुमको सलाम दिल से है, तुमको नमन हमारा!"

"
आज़ादी के महानायक, नेता सुभाष चन्द्र बॉस को नमन, और सभी से आहवान कि, आइये उनसे प्रेरणा लें और अपने स्तर से देश हित में प्रयास करें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२३.०१.२०१२ 

Sunday, 20 January 2013

♥♥सरसों के फूल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सरसों के फूल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं!
और कभी आँखों के आंसू, गालों को गीला करते हैं!

जीवनपथ में कभी पराजय, अंधकार का मौसम लाती!
और कभी खुशियों की रंगत, अंधकार को दूर भगाती!
इस जीवन की जिजीविषा में, अक्सर ऐसा होता यारों,
कभी जिंदगी हंसती है तो, कभी जिंदगी नीर बहाती!

कभी मिलन के फूल सुनहरे, मन को चमकीला करते हैं!
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं...

ये जीवन सुख-दुख की बेला, हार-जीत की उपलब्धि है!
कभी ये जीवन तंगहाल है, कभी ये जीवन समृद्धि है!
सुनो "देव" तुम उन्नत रखना, सोच हमेशा अपने मन की,
सही सोच के संग रहने से, मानव जीवन में शुद्धि है!

वो हो जाते मुक्त एक दिन, जो बंधन ढीला करते हैं!
सरसों जैसे फूल खुशी के, जीवन को पीला करते हैं!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२१.०१.२०१३

♥चुप-चुप..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चुप-चुप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चुप-चुप है मेरा दिल, मेरे जज्बात भी चुप हैं!
आंखे भी हैं चुप-चाप, ख्यालात भी चुप हैं!

मैं किससे यहाँ शिकवा, मैं किससे गिला करूँ,
हैं लफ्ज़ भी खामोश, सवालात भी चुप हैं!

मज़बूरी मैं वो जबसे है, मजदूर बन गया,
बचपन की शरारत भी, कुराफात भी चुप हैं!

कह-कह के थक चुका हूँ मैं, किसने यहाँ सुना,
अब मेरी तबाही के वो, हालात भी चुप हैं!

मिन्नत भी उसने "देव" मेरी कर दी अनसुनी,
लगता है मेरे दर्द के, नग्मात भी चुप हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-२०.०१.२०१३

Saturday, 19 January 2013

♥♥इज्ज़त..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इज्ज़त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल में वसे लोगों को निकाला नहीं करते!
इज्ज़त किसी इन्सां की उछाला नहीं करते!

मैंने यहाँ देखे हैं, कई नाम के सूरज,
जो धूप में जलकर भी, उजाला नहीं करते!

जब से मिली है चाँद से प्यारी तेरी सूरत,
हम तब से नजर चाँद पे डाला नहीं करते! 

इस देश के नेताओं की हालत तो देखिए,
अपनी ही सरजमीं को संभाला नहीं करते!

ए "देव" जिन्हें भाती है, इंसानियत है यहाँ,
वो भूल से भी मुंह कभी, काला नहीं करते!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-१९.०१.२०१३




Friday, 18 January 2013

♥अपनी वफ़ा..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥अपनी वफ़ा..♥♥♥♥♥♥♥♥
कोई दे न दे वफ़ा, खुद तो वफादार बनो!
किन्हीं बेचैन निगाहों का तुम करार बनो!

एक दिन वो भी अपने जुर्म पे पछतायेंगे,
न कभी उनकी तरह, तुम भी गुनाहगार बनो!

अपने माँ बाप को भी, तुम जो बताओ नौकर,
जिंदगी में न कभी, ऐसे मालदार बनो!

जिनकी आँखों में नहीं प्यार की कीमत कोई,
ऐसे इंसानों के हरगिज न तलबगार बनो!

"देव" एक दिन ये दरिन्दे सभी मिट जाएंगे,
ऐसे लोगों के लिए, जंग की ललकार बनो!"

...............चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१८.०१.२०१३


Thursday, 17 January 2013

♥♥विरह ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विरह ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गम की बूंदें हैं पलकों पर, अधरों पर पीड़ा की बातें!
बेचैनी में गुजर रही हैं, तुम बिन ये विरह की रातें!

नींद नहीं आती आँखों को, मैंने पूरी कोशिश की है!
हर लम्हा ही मेरे दिल ने, बस तेरी ही ख्वाहिश की है!
हमदम तेरी बोली के बिन, मेरे दिल को चैन न आए,
मेरे दिल ने बस तेरी ही, सूरत की फरमाइश की है!

बिन तेरे पतझड़ लगती हैं, मुझको सावन की बरसातें!
गम की बूंदें हैं पलकों पर, अधरों पर पीड़ा की बातें!"

..................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१७.०१.२०१३

Wednesday, 16 January 2013

♥प्रेम-स्वप्न..♥


♥♥♥♥♥प्रेम-स्वप्न..♥♥♥♥♥
सपनों का एक महल बनाया,
उसमें तेरा चित्र सजाया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया!

जब तुमको स्पर्श किया तो,
सखी लाज से तू भर आई!
अपने प्यारे नयन मूंदकर,
धीमे धीमे तू मुस्काई!
हम दोनों की अति-निकटता,
देखो बादल को भी भाई,
और वायु ने हर्षित होकर,
फूलों की खुशबु बिखराई!

हम दोनों का मिलन देखकर,
हरियाली पर यौवन आया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया....

सखी तुम्हारे प्रेम की ज्योति,
मेरे मन को उज्जवल करती!
मेरी सोच को शुद्धित करके,
मेरे भाव को निश्छल करती!
सखी तुम्हारे अपनेपन से,
"देव" में उर्जा संचारित है,
सखी तुम्हारे प्रेम की शक्ति,
जिजीविषा को प्रबल करती!

सखी तुम्हीं ने आशाओं का,
मन मंदिर में दीप जलाया!
सखी तुम्हारे दर्शन करके,
मेरा कोमल मन मुस्काया!"
"
प्रेम, एक ऐसा सम्बन्ध है, जो दुनिया में सबसे अनमोल अनुभूति है! जहाँ परस्पर प्रेम होता है वहां, सम्बंधित पक्ष निश्चित रूप से एक दूसरे का सहयोग करते हैं, एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सुख-दुःख के भागीदार बनते हैं, तो आइये समर्पण के प्रेम के संवाहक बनें..."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१७.०१.२०१३

"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Tuesday, 15 January 2013

♥♥पीड़ा का गीत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा का गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!
पर अपने दिल के भावों की, हत्या भी तो कर नहीं सकता!

मैं अपने इस कोमल दिल को, आखिर क्यूँ पाषाण बनाऊं!
मैं अपने जीवित भावों को, आखिर क्यूँ बेजान बनाऊं!
अभी तलक तो किसी ने मेरे, दुख को ढ़ाढस नहीं बंधाया,
किस मुंह से फिर किसको यारों, मैं पीड़ा का गीत सुनाऊं!

लेकिन फिर भी नाकामी से, मैं जीवन में डर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता....

बड़े पास से मैंने यारों, अपने दिल को रोते देखा!
गम की काली धुंध में मैंने, अपने सुख को खोते देखो!
"देव" मैं अपने बुरे वक़्त का, आखिर हाल बताता किससे,
जिसको दर्द सुनाना चाहा, उसको चुप चुप सोते देखा!

लेकिन उनकी तरहा उनको, मैं अनदेखा कर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"..........................
दिनांक--१६.०१.२०१३

Monday, 14 January 2013

♥♥आशाओं के मोती..♥♥


♥♥♥♥आशाओं के मोती..♥♥♥
दीपक से ज्योति की खवाहिश,
सागर से मोती की आशा!
जीवन में आगे बढ़ने की,
तुम मन में रखो अभिलाषा!

ख्वाब टूटकर बिखरें बेशक,
ख्वाब सजाना बंद न करना!

दर्द से चाहें चुभन हो कितनी,
तुम मुस्काना बंद न करना!

दर्द की एक उमर होती है,
धीरे धीरे कट जाएगी,

लेकिन यारों दर्द से डरकर,
गतिशीलता मंद न करना!

मानवता को जीवित रखना,
कायम रखना प्यार की भाषा!
जीवन में आगे बढ़ने की,
तुम मन में रखो अभिलाषा!"

...चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--१५.०१.२०१३

♥लफ्जों की आवाज़♥


♥♥♥लफ्जों की आवाज़♥♥♥
लफ्जों से कुछ बयां करूँगा!
अपने हक को अदा करूँगा!
दूर भले तुम जाओ लेकिन,
मैं मिलने की दुआ करूँगा!

मैं अपने दिल में देखूंगा, 
और तेरा दीदार करूँगा!
साँझ, सवेरे मेरे हमदम,
तुझे रूह से प्यार करूँगा!

तेरी याद को, मेरे हमदम,
कभी न दिल से जुदा करूँगा!
दूर भले तुम जाओ लेकिन,
मैं मिलने की दुआ करूँगा!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--१४.०१.२०१३

Sunday, 13 January 2013

♥मेरे एहसास..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे एहसास..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ!
अपनी सहनशीलता से मैं, दर्दे-दिल को भुला रहा हूँ!
केवल हाथ मिलाने भर से, मिलन रूह का हो न पाए,
रूह से मिलने की इच्छा में, दिल से दिल को मिला रहा हूँ!

अपने दिल के एहसासों को, नहीं मारकर जीना सीखा!
अपनी आँखों के आंसू को, बूंद बूंद भर पीना सीखा!

अपनी मन की ऊष्मा से मैं, दुख के हिम को गला रहा हूँ!
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ...

एहसासों की रंग बिरंगी दुनिया, मेरे दिल को भाती!
सात समुन्दर पार भी हैं जो, उनसे मेरा मिलन कराती!
"देव" भले ही एहसासों की, दुनिया सबको रास न आए,
लेकिन रंगत एहसासों की, अपनेपन का नूर जगाती!

मैं अपने हाथों से अपने, लफ़्ज़ों का सिंगार करूँगा!
जीवन की इस तन्हाई में, एहसासों का रंग भरूँगा! 

दुख में भी हंसकर के यारों, गम का पर्वत हिला रहा हूँ!
मैं जीवन में उम्मीदों का दीपक, फिर से जला रहा हूँ!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक--१४.०१.२०१३


♥♥जिसने मुझको..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जिसने मुझको..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कड़ी धूप में जिसने मुझको, हरियाली का नाम दिया था!
शीतलहर में उसने मुझको, ऊष्मा का उपनाम दिया था!
आज उसी व्यक्ति को मेरा, कद लेकिन बौना लगता है,
मेरे कंधे पर सर रखकर, वो जिसने विश्राम किया था!

करो निवेदन चाहें कितना, फिर भी लोग नहीं सुनते हैं!
चुभन का जिनको पता नहीं, वो भला कहाँ कांटे चुनते हैं!

आज उसी ने लूटा उपवन, वो जिसने अभिराम किया था!
कड़ी धूप में जिसने मुझको, हरियाली का नाम दिया था!"

......................चेतन रामकिशन "देव"..........................
दिनांक--१३.०१.२०१३

Friday, 11 January 2013

♥मन की भावना..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥मन की भावना..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है!
वेदना मन में हमारे, अब निरंतर हो रही है!
किन्तु मेरे मुख पे फिर भी, भाव हैं प्रसन्नता के,
हाँ सही है जिंदगी ही, भीतर ही भीतर रो रही है!

मेरे हाथों की लकीरों में, न जाने क्या लिखा है!
अब तलक तो जिंदगी में, हर घड़ी ही मन दुखा है!
जिसको मैंने आस्था से, पूजकर मानव बनाया,
आज उस मानव के भीतर, द्वेष का पत्थर दिखा है!

स्वप्न की दुनिया भी देखो, क्षण में नश्वर हो रही है!
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है..

किन्तु फिर भी जिंदगी से, युद्ध हर क्षण कर रहा हूँ!
अपनी माँ की सीख से मैं, कर्म निश दिन कर रहा हूँ!
मेरी माँ कहती है मुझसे, भाव बिन पाषाण है मन,
इसलिए शब्दों में अपने, भाव निश दिन भर रहा हूँ!

दुख से लड़कर जिंदगी, हर रोज प्रखर हो रही है!
भावना मन की हमारे, अब निरुत्तर हो रही है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक--१२.०१.२०१३

Thursday, 10 January 2013

♥भारत के सैनिक..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भारत के सैनिक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं!
नाम दोस्ती का देकर हम, अत्याचार नहीं करते हैं!

किन्तु हम पाषाण नहीं हैं, जो बिन बदले के रह जायें!
हम इतने कमजोर नहीं जो, मरते दम तक शीश झुकायें!
जिस दिन सेनानायक का हम, एक इशारा प्राप्त करेंगे,
उस दिन शत्रु के घर घुसकर, हम लाशों की झड़ी लगायें!

ए दुश्मन हम अपने मुख के, दो किरदार नहीं करते हैं!
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं...

यदि यकीं है अपने बल पर, तो रण भूमि में आ जाओ!
हम भी नजर मिलायें तुमसे, तुम भी हमसे नजर मिलाओ!
यूँ कायर बनकर तुम बोलो, छुप छुप हमला करते क्यूँ हो,
यदि गरम है खून तो आकर, रणभूमि का शंख बजाओ!

हमने माँ का दूध पिया, हम डरकर हार नहीं करते हैं!
हम भारत के सैनिक हैं हम, छुपकर वार नहीं करते हैं!"

......................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--११.०१.२०१३

♥♥दर्द का सफर...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का सफर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किससे अपना दर्द कहूँ मैं, किससे अपना हाल बताऊँ!
कैसे हंस कर झूठ मूठ का, मैं खुद को खुशहाल बताऊँ!

उसके पास नहीं है दौलत, पर उसका दिल भरा प्यार से,
आखिर ऐसे इन्सां को मैं, किस तरहा कंगाल बताऊँ!

झूठ कभी जो लिखना चाहा, कलम ने मेरे रोका मुझको,
वो कहता है मैं चादर को, किस मुंह से रुमाल बताऊँ!

मुझे पता है मुफलिस के घर, घास फूंस के छप्पर होते,
आंख मूंदकर कैसे उसको, मैं चन्दन की छाल बताऊँ!

"देव" अभी तक मेरे हिस्से, पतझड़ के ही पल आए हैं,
तुम्ही बताओ मैं पतझड़ को, कैसे गुल की डाल बताऊँ!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--०९.०१.२०१३

Wednesday, 9 January 2013

♥आँखों में पानी.♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आँखों में पानी.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम बिन सचमुच गुमसुम हूँ मैं, तुम बिन आँखों में पानी है!
तुम बिन कोई लगे न अपना, तुम बिन दुनिया बैगानी है!

तुम आँखों में, तुम सपनों में, तुम जीवन के बागवान में!
तुम ही जल में, हरियाली में, तुम ही धरती, आसमान में!
तुम जीवन की कड़ी धूप में, शीतल छाया का सुख देतीं,
तुम ही शब्द में, तुम्ही भाव में, तुम्ही कंठ में, तुम्ही गान में!

तुम बिन देखो घर आंगन में, हमदम कितनी वीरानी है! 
तुम बिन सचमुच गुमसुम हूँ मैं, तुम बिन आँखों में पानी है!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"...........................
दिनांक--०९.०१.२०१३

♥खत का पैगाम..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥खत का पैगाम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खत पे नाम लिखा था तेरा, लेकिन तुझको भेज न पाया!
मैं किस्मत की अनदेखी से, हमदम तुझसे मिल न पाया!

डर था मुझको मेरे दर्द से, भीग न जायें तेरी पलकें,
इसीलिए तो मैंने तुझको, अपना दुख भी न दिखलाया!

लगता है के इस धरती पर, मिटटी के पुतले रहते हैं,
चीख किसी मजलूम की सुनकर, कोई देखो पास न आया!

तुम आये तो हमदम मेरा, दिल भी खुश है और रूह भी,
बिना तुम्हारे मेरा चेहरा, एक पल को भी न मुस्काया!

"देव" सुनो तुम मेरी माँ से, बढ़कर कोई नहीं है मुझको,
और किसी की दुआ से मैंने, जन्नत जैसा सुख न पाया!"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक--०९.०१.२०१३

♥♥शीश .♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शीश .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!
मगर यहाँ के नेता फिर भी, अंधे बहरे हो जाते हैं!

एक सैनिक का निर्ममता से, 
कत्ल भी इनको नहीं रुलाता! 
वो तो रखते छुरी बगल में,
और हम रखते मित्र का नाता!
मित्र बताकर धोखा देना,
आखिर कैसा अपनापन है,
"देव" मित्रता की सीमा में,
ऐसे मंजर कभी न आता!

हम रोते  हैं करुण रुदन में, गीत खुशी का वो गाते हैं!
बेदर्दी से शीश काटकर, वीरों का वो मुस्काते हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव"...............
दिनांक--०९.०१.२०१३

Monday, 7 January 2013

♥पीड़ा में आनंद..♥


♥♥♥पीड़ा में आनंद..♥♥
पीड़ा में आनंद तलाशा!
अपने दुख को बड़ा तराशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!

हाँ सच है मेरे अपनों को,
मेरे दुख पे तरस न आया!
जिसने जब भी चाहा मुझको,
जी भरकर के मुझे रुलाया!

एक बार भी नहीं उन्होंने,
मेरे दुख को दिया दिलासा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा...

दर्द के हाथों खंडित होकर,
बड़ा ही पीड़ित जीवन होता!
लेकिन दुख के बाद यहाँ पर,
खुशियों का नवजीवन होता!

"देव" नहीं जो पीड़ा समझे,
उनसे रखो कभी न आशा!
रहा नहीं तब से जीवन में,
गम का कोहरा और कुहासा!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक--०८.०१.२०१३

Sunday, 6 January 2013

♥अपनी नाव♥


♥♥♥♥अपनी नाव♥♥♥♥
बीते कल पर रोना छोड़ो,
नई सुबह में सोना छोड़ो,
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो!

नहीं वक्त से पीछे रहना,
नहीं वक्त से आगे आओ!
चलो वक्त से हाथ मिलाकर,
उसको अपने गले लगाओ!

नहीं हार से घबराकर के,
अपनी मंजिल खोना छोड़ा!
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो..

जात धर्म के मसले में तुम,
अपनायत पर चोट न करना!
जिससे मानवता जल जाए,
तुम ऐसा विस्फोट न करना!

"देव" जरा तुम मजलूमों के,
खून से चेहरा धोना छोड़ो!
तुम अपने ही हाथों से अब,
अपनी नाव डुबोना छोड़ो!"

..........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक--०७.०१.२०१३



Saturday, 5 January 2013

♥चिमनी का धुआं..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चिमनी का धुआं..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!
उसी तरह से मानव का मन, आज बड़ा प्रदूषित लगता!

संस्कार भी सिमट रहे हैं, नैतिक शिक्षा लगे पुरानी!
आज बड़ी ही पिछड़ी लगती, सदाचार की बात सुनानी!
मर्यादा भी हुयी अधमरी, और मूल्य भी मरणासन्न हैं,
बस अपने ही हित की बातें, हर मानव को लगें सुहानी!

इस युग में तो हर मानव का, चिंतन बड़ा कलुषित लगता!
जैसे चिमनी के धुँयें से, वायुमंडल दूषित लगता!"

........................चेतन रामकिशन "देव"...........................
दिनांक--०५.०१.२०१३

Friday, 4 January 2013

♥पत्थर का दिल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पत्थर का दिल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश ये दिल पत्थर का होता, नहीं टूटने का डर होता!
कभी किसी के जाने पर भी, नहीं कभी ये खंडहर होता!

नहीं कभी ये तन्हाई में, चुपके चुपके अश्क बहाता!
कभी किसी के इंतजार में, अपने पलकें नहीं बिछाता!
कोई अगर जो ठोकर मारे, तो भी सह लेता हंसकर के,
कभी कहीं से छिल जाने पर, मुझको पीड़ा नहीं सुनाता!

हाँ रब से मिलकर बतलाता, यदि जमीं पर अम्बर होता!
काश ये दिल पत्थर का होता, नहीं टूटने का डर होता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक--०४.०१.२०१३



Wednesday, 2 January 2013

♥♥पत्थर का खुदा..♥♥


♥♥♥पत्थर का खुदा..♥♥♥♥

कोई तो दर्द, कोई दवा बेचने चला!
कोई यहाँ पत्थर का खुदा बेचने चला!

जिसने कभी रब से मुझे माँगा था दोस्तों,
वो शख्स ही अब मेरी वफ़ा बेचने चला!

घर के सभी लोगों ने जिसे रहनुमा चुना,
वो आदमी ही घर का दीया बेचने चला!

दारू ने कैसी काई जमाई दिमाग पर,
रखवाला ही अब घर की हया बेचने चला!

लोगों ने "देव" उसका कभी सच नही समझा,
मज़बूरी में वो सच की अदा बेचने चला!"

...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक--०३.०१.२०१३

Tuesday, 1 January 2013

♥कैसे जलें चिराग.?♥


♥♥♥♥♥♥कैसे जलें चिराग.?♥♥♥♥♥♥
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!
इंसानियत का लगता है अब खेल खत्म है!

अब रूह के रिश्तों का सफर पल में छूटता!
अब ख्वाब मोहब्बत का यहाँ यूँ ही टूटता!
किससे करें गुहार के, आकर के बचा लो,
जिसको भी देखो वो ही जिंदगी को लूटता!

इंसान का इंसान से, अब मेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है....

अपराधी, दरिन्दे तो खुलेआम घूमते!
कानून के सरपंच भी मदिरा में झूमते!
कमजोर आदमी की कोई सुनता ही नहीं,
और गुंडे यहाँ सड़को पे लड़की को चूमते!

गुंडों के लिए देश की हर जेल खत्म है!
कैसे जलें चिराग के अब तेल खत्म है!"

...........चेतन रामकिशन "देव".........
दिनांक--०२.०१.२०१३



Monday, 31 December 2012

♥♥साल दर साल..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥साल दर साल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एक साल के बाद दूसरा, साल तीसरा आ जाता है!
लेकिन मुफ़लिस का चेहरा कब, दो पल को भी मुस्काता है!

आसमान तो रंग जाता है, बेशक इस आतिशबाजी से,
पर मुफ़लिस के घर का दीपक, बिना तेल के बुझ जाता है!

दिल्ली जैसे बड़े शहर के, ये हालात हुए हैं अब तो,
एक औरत का चलती बस में, देखो यौवन लुट जाता है!

चलो लगाते हैं उम्मीदें, नए साल से हम फिर यारों,
क्या कुछ हमको मिलता है या रहा सहा भी लुट जाता है!

यहाँ शहीदों के शव देखो, "देव" बड़े चुपके से जलते,
और नेता की मौत पे यारों, देश का झंडा झुक जाता है!"

.......................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक--०१.०१.२०१३

Sunday, 30 December 2012

♥संग्राम( सम्मान का आहवान)♥


♥♥♥♥♥संग्राम( सम्मान का आहवान)♥♥♥♥♥♥
घर में क़ैद नहीं होना है, डरकर के इन गद्दारों से!
नहीं हारनी होगी हिम्मत, अब ऐसे अत्याचारों से!

तुमको ज्वाला बनना होगा, तुम्हे युद्ध करना ही होगा!
तुमको अपनी रगों में देखो, गर्म लहू भरना ही होगा!
यदि नहीं जागी तू अब भी, तो संग्राम नहीं हो सकता,
इसी तरह फिर चोराहे पर, तुझको यूँ मरना ही होगा!

रणभूमि में उतर जा अब तू, धार लगाकर तलवारों से!
घर में क़ैद नहीं होना है, डरकर के इन गद्दारों से....

तुमको अपनी शक्ति से अब, गौरवगाथा लिखनी होगी!
नहीं सरलता कोई समझता, दंड की भाषा लिखनी होगी!
तुम नारी हो, तुम मानव हो, तुम कोई पाषाण नहीं हो,
तुमको अब जीवित होने की, ये परिभाषा लिखनी होगी!

हमको लोहा लेना होगा, ऐसे मैले घातक किरदारों से!
घर में क़ैद नहीं होना है, डरकर के इन गद्दारों से....

न नव वर्ष मनाने भर से, ये उत्पीड़न नहीं थमेगा!
इस तरह से दुःख में रहकर, उर्जा सेतु नहीं बनेगा!
नए साल के नए दिवस में, तुम संकल्प जगाओ मन में,
नया साल का दिवस ये पहला, एक क्रांति दिवस बनेगा!

नहीं संकुचित होना है अब, "देव" नमक की बोछारों से!
घर में क़ैद नहीं होना है, डरकर के इन गद्दारों से!"

"
नारी-शक्ति का संचार करना ही होगा तुम्हे, ये राम राज नहीं है,
ये सतयुग भी नहीं है, ये तो ऐसा युग है जहाँ, मानव की शक्ल में 
भेड़िये घूमते हैं, नर पिशाच घूमते हैं..तो आइये नए साल के प्रथम दिवस को क्रन्ति उर्जा दिवस के रूप में मनाकर..शक्ति का विस्तार करें.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३१.१२.२०१२ 

"उक्त रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Friday, 28 December 2012

♥निशा की बेला..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥निशा की बेला..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निशा की बेला देखो फिर से, चिंतनशील अवस्था लाई!
कहीं हर्ष की धवल चांदनी, कहीं दुखों की स्याही छाई!

किन आँखों से सपने देखूं, और कैसे साकार करूँ मैं!
पीड़ा का ये गहरा सागर, आखिर कैसे पार करूँ मैं!
जब भी आशा रखी मैंने, भाग्य विधाता रूठ गया है,
किन्तु मानव होकर कैसे, पत्थर जैसी मार करूँ मैं!

बुरे समय में जो अपनी थी, वो शक्ति भी हुई पराई!
निशा की बेला देखो फिर से, चिंतनशील अवस्था लाई!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२८.१२.२०१२

Wednesday, 26 December 2012

♥दिवाकर.♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिवाकर.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न बनना पर्याय तिमिर का, न ही कभी निशाचर बनना!
जो दुनिया को उज्जवल कर दे, ऐसे सदा दिवाकर बनना!

दुःख की वर्षा और अश्रु को, जो अपने में मिश्रित कर ले,
तुम अपनी इच्छा शक्ति से, गहरे जल के सागर बनना! 

जब मृत्यु आएगी उसको, नहीं रोक सकते हो किन्तु,
इस जीवन का जीते जी पर, तुम न कभी अनादर बनना!

काम करो कुछ ऐसा जिससे, जन मानस भी तुम्हे सराहे,
सच की हत्या करके न तुम, झूठ का कोई समादर बनना!

घनी अमावस की रातों की, धुंध छांटकर जो आ जाये,
"देव" यहाँ इस दुनिया में तुम, ऐसे धवल सुधाकर बनना!"

......................चेतन रामकिशन "देव"............................
दिनांक-२७.१२.२०१२

Saturday, 22 December 2012

♥अजनबी मोहब्बत..♥


♥♥♥♥♥अजनबी मोहब्बत..♥♥♥♥♥♥
जिसके प्यार से मैंने घर महकाया था!
जिसकी खातिर सपना नया सजाया था!
आज वही इन्सान अजनबी बनता है,
जिसने अपने दिल में मुझे वसाया था!

शीशमहल के सारे शीशे टूट गए,
ताजमहल का रंग भी फीका लगता है!

सारी दुनिया सो जाती है पर लेकिन,
रात रात भर मेरा ये दिल जगता है!

रूह का रिश्ता पल भर में खामोश किया,
प्यार यहाँ बस मुझे किताबी लगता है!

चुभन दर्द की इतनी ज्यादा है यारों,
साँस भी तो लूँ मानो, खंजर चुभता है!

आज उसी ने "देव" अँधेरा बख्शा है,
जिसने मेरे घर में दीप जलाया था!
आज वही इन्सान अजनबी बनता है,
जिसने अपने दिल में मुझे वसाया था!"

..........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२२.१२.२०१२

Thursday, 20 December 2012

♥प्रेम की सरगम..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की सरगम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद!
सखी गीत की तुम्ही आत्मा, तुम्ही सोरठा, छंद!
क्रोध नहीं है, शोक नहीं है, नहीं नयन में नीर,
सखी तुम्हारे प्रेम से मेरे, जीवन में आनंद!

मेरे मन के अंत:कवच में, सखी तुम्हारा वास!
तुम्ही मेरी कार्य कुशलता, तुम्ही मेरा विश्वास!

सखी तुम्हारे प्रेम से दुःख भी करता है स्पंद!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद..

तुम सहचर हो, तुम शिक्षक हो, तुम्ही ज्ञान का कोष!
तुम जिह्वया का अनुकथन हो, तुम ही हो संतोष!
सखी तुम्हारे प्रेम से मन में, जीवित नही विकार,
न ही मन में दुरित भावना, न ही कोई रोष!

सखी तुम्हारे प्रेम से उज्जवल हुई हमारी रात!
सखी तुम्हारा प्रेम सरल है, नहीं कोई आघात!

सखी तुम्हारे प्रेम से मन भी करता है स्कन्द!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद..

सखी तुम्हारे प्रेम से मेरा, जीवन हुआ नवीन!
तुम सुन्दर हो, मनोहारी हो, सखी बड़ी शालीन!
सखी कभी न क्षण भर को भी, "देव" से जाना दूर,
तुम बिन मेरी दशा हो ऐसी, जैसी जल बिन मीन!

तुम्ही मन्त्र हो, तुम्ही शगुन हो, तुम्ही हमारा जाप!
सखी प्रेम से हर्षित है मन, न कोई संताप!

सखी प्रेम से हिंसा का पथ, हो जाता है बंद!
सात सुरों की सरगम हो तुम, फूलों की मकरंद!"

"
प्रेम न केवल सरगम, बनकर जीवन को आनन्दित करता है अपितु जीवन को मार्गदर्शन और शक्ति भी प्रदान करता है! प्रेम, जहाँ जिन घरों, जिन ह्रदयों में होता है, वहां लोग अभावों में भी..जीवन को प्रसन्नता के साथ व्यतीत करते हैं! तो आइये प्रेम करें...."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२१.१२.२०१२

" मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

Wednesday, 19 December 2012

♥♥♥♥विरह की पतझड़.♥♥♥



♥♥♥♥विरह की पतझड़.♥♥♥
समय विरह का जब से आया,
नयन ने हर क्षण नीर बहाया!
हुए स्वप्न भी धुंधले धुंधले,
मुख मंडल भी है मुरझाया!

निशा हर्ष की लुप्त हुयी है,
और दिवस में दुख की छाया!
भरी दुपहरी में सूरज ने,
अग्नि बनकर मुझे जलाया!

रंग बिरंगे उपवन में भी,
कोई सुमन मन को न भाया!
जिस तुलसी को पूजा तुमने,
उस पौधे पर पतझड़ आया!

नहीं सुहाते मिलन गीत अब,
कंठ ने दुख का राग सुनाया!
तेरी याद ने मेरे मन को,
साँझ सवेरे सखी रुलाया!

अपने घर आ जाओ वापस,
करुण भाव से तुम्हे बुलाया!
हुए स्वप्न भी धुंधले धुंधले,
मुख मंडल भी है मुरझाया!"

....(चेतन रामकिशन "देव")...१९.१२.२०१२....

Sunday, 16 December 2012

♥खुशनुमा माहौल..♥♥


♥♥♥♥♥♥खुशनुमा माहौल..♥♥♥♥♥♥♥
प्यार का खुशनुमा माहौल मुझे भाता है!
हर जगह तेरा ही हमदम ख्याल आता है!
प्यार जैसी नहीं दुनिया में दवा कोई भी,
प्यार में आदमी नफरत को भूल जाता है!"

....(चेतन रामकिशन "देव")...१६.१२.२०१२.....

Saturday, 15 December 2012

♥सुनहरा प्यार..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सुनहरा प्यार..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जन्मदिवस पर माँ ने मुझको प्रेषित किया दुलार!
आप सभी मित्रों ने मुझको दिया ह्रदय से प्यार!

इतना सारा प्यार मिला के, आंख मेरी भर आई!
आप सभी में दिखती मुझको, ईश्वर की परछाई!

माँ का वंदन करता हूँ मैं, मित्रों का आभार!
जन्मदिवस पर माँ ने मुझको प्रेषित किया दुलार!"

.......(चेतन रामकिशन "देव")...१६.१२.२०१२.....

Wednesday, 12 December 2012

♥शब्दों की डोर..♥

♥♥♥♥♥♥♥शब्दों की डोर..♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्द से शब्द की एक डोर बना देंगे हम!
अपनी आवाज को पुरजोर बना देंगे हम!

अपने भावों को हकीक़त का आवरण देकर,
दर्द की रात को भी भोर बना देंगे हम!

हमको इतना तो यकीं अपने होंसले पर है,
गम के एहसास को कमजोर बना देंगे हम!

किसी भी मुल्क की ताकत है नौजवानों से,
अपने भारत को भी सिरमौर बना देंगे हम!

"देव" धुल जाएगी ये दिल से काई नफरत की,
प्यार की वर्षा को घनघोर बना देंगे हम!"

..........चेतन रामकिशन "देव".............(१२.१२.२०१२)


Tuesday, 11 December 2012

♥मेरा वतन..♥


♥♥♥♥♥♥♥मेरा वतन..♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरा ये मुल्क मेरा वतन बेहतरीन है!
कश्मीर भी सुन्दर है, उड़ीसा हसीन है!

गंगा के साथ बहती है, यमुना भी यहाँ पर,
पूजा के फूल जैसी ये पावन जमीन है!

चन्दन की खुश्बू से है ये माहौल खुशनुमा,
आवोहवा देखो यहाँ ताजातरीन है!

झरने यहाँ देते हैं, मोहब्बत की ताजगी,
और देखो हिमालय की बरफ महजबीं है!

मस्जिद में यहाँ "देव" नमाजी की इबादत,
मंदिर में पुजारी कोई भक्ति में लीन है!"

..........चेतन रामकिशन "देव".............(११.१२.२०१२)

Sunday, 9 December 2012

♥गम की उथल-पुथल..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम की उथल-पुथल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ये सच है के इस जीवन में, गम की उथल-पुथल होती है!
लेकिन अपने मन की हिम्मत, हर मुश्किल का हल होती है!

वही लोग इस जीवन पथ में, देखो मंजिल को पाते हैं,
जिनकी अपने लक्ष्य की खातिर, हर पल सोच अटल होती है!

होने को तो लोग बहुत हैं, नहीं मगर उम्दा हर कोई,
उम्दा लोगों की ख्वाहिश तो, निर्मल और अछल होती है! 

जो दुनिया में मानवता के, दीप जलाते हैं जीवन भर,
उनसे रौशन आसमान हो, उनसे जगमग थल होती है!

"देव" मुझे अपनी चाहत पर, यकीं है देखो खुद से ज्यादा,
चोट मुझे लगती है लेकिन, उसकी आंख सजल होती है!"

......................चेतन रामकिशन "देव"........................

♥प्रेम की अनुभूति..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की अनुभूति..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास!
सात समुंदर पार भी होकर तू लगती है पास!
तेरी निशानी में दिखता है सखी तुम्हारा रूप,
मेरे गीत में, मेरे छंद में, सखी तुम्हारा वास!

हर्षित मन की अनुभूति में रहे तुम्हारी प्रीत!
मेरे दुख में धेर्य बंधाते, तुम मुझको मनमीत!

तेरे प्रेम से दमक रहे हैं, जल, भूमि, आकाश!
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास..

तेरे ध्यान से खिल जाते हैं, फूलों के भी रंग!
तेरी याद में दिखलाती है, तितली बड़ी उमंग!
मेरी सखी तू दूर भी रहकर नहीं "देव" से दूर,
दिवस तुम्हारे साथ है मेरा, निशा तुम्हारे संग!

दूर है अपनी देह भले ही पर मन तो है एक!
प्रेम के निश्चल भाव ये देखो, सखी बड़े ही नेक!

सखी एक दिन रंग लायेगा, अपना ये विश्वास!
जब से मन को बना लिया है सखी तेरा आवास!"
.................चेतन रामकिशन "देव"..................

Saturday, 8 December 2012

♥प्यार के फूल..♥



♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार के फूल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने दिल से जरा नफरत को भुलाते रहिए!
प्यार के फूल जमाने में खिलाते रहिए!

दर्द भी देखो नहीं अपना दिल दुखाएगा,
प्यार की लोरी से हर गम को सुलाते रहिए!

आज है हार तो कल जीत भी मिल जाएगी,
दिया उम्मीद का तुम दिल में जलाते रहिए!

खुद की भी कमियां तुम्हें दिखने लगेंगी यारों,
अपनी आंखें जरा शीशे से मिलाते रहिए!

एक दिन "देव" वो वापस जरुर आयेंगे,
प्यार के साथ मगर उनको बुलाते रहिए!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............



Thursday, 6 December 2012

♥इक ख्वाब नया..♥


♥♥♥♥♥♥♥इक ख्वाब नया..♥♥♥♥♥♥
दर्द को क्यूँ भला कमजोरी बनाया जाये!
अपनी हिम्मत से चलो दर्द मिटाया जाये!

क्या हुआ जो ये मेरा ख्वाब टूटकर बिखरा,
चलो इक ख्वाब नया फिर से सजाया जाये!

आज के नेता तो रहते इसी फिराक में बस,
कौन से मुद्दे पे जनता को लुभाया जाये!

कब कहाँ मिलता है नफरत से ज़माने में कुछ,
आओ इक दीप मोहब्बत का जलाया जाये!

"देव" जिन लोगों ने बख्शी हमे आज़ादी है,
उनके सजदे में चलो सर को झुकाया जाये!"

.............चेतन रामकिशन "देव"...............






Wednesday, 5 December 2012

♥हुनर..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हुनर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी में चलो कोई हुनर इजाद करो!
न यूँ मायूसी में तुम जिंदगी बर्बाद करो!

जो तुम्हे दे के गया गम के अँधेरे यारों,
क्यूँ भला ऐसे रकीबों को कभी याद करो!

दर्द को बहने दो आँखों से आंसुओं की तरह,
क्यूँ उदासी से भला, जिंदगी नाशाद करो!

तुम यहाँ सीखो अंधेरों में उजाला करना,
न अँधेरे से कहीं जाने की फरियाद करो!

तेरे गम "देव" जिंदगी से चले जायेंगे,
अपने जज्बात तपाकर के जो फौलाद करो!

...........चेतन रामकिशन "देव"............

♥♥नया जनम..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नया जनम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नहीं मिले इस जनम में तो क्या, जनम कई अगले आने हैं!
अपनी रूहें मिल जाएँगी, अपने दो दिल मिल जाने हैं!

नए जनम में हम तुम सजनी, एक दूजे के बन जायेंगे!

न कोई मज़बूरी होगी, न घरवाले ठुकरायेंगे!
हम दोनों भी पंख लगाकर, छुएंगे इस नील गगन को,
जीवन पथ रेशम सा होगा, फूल खुशी के खिल जायेंगे!

नए जनम में मेरी सजनी, दीप मिलन के जल जाने हैं!

नहीं मिले इस जनम में तो क्या, जनम कई अगले आने हैं!"

..........................चेतन रामकिशन "देव"..........................