Friday, 26 September 2014

♥♥जिद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥♥♥
जिद पे इतनी उतर रहे हैं वो। 
प्यार करके मुकर रहे हैं वो। 

जिनको उड़ने का इल्म बख़्शा था,
उनके ही पर क़तर रहे हैं वो।  

मेरे दिल को ही कह रहे पत्थर,
हद से अपनी गुजर रहे हैं वो। 

बेगुनाही ने मुझको थाम लिया,
सूखे पत्तों से झर रहे हैं वो। 

जिनकी छाँव में धूप रोकी थी,
उनमे तेज़ाब भर रहे हैं वो। 

कितने मज़लूमों को था मार दिया,
मौत से अपनी डर रहे हैं वो। 

"देव" खाली ही हाथ जाना है,
लूट क्यों इतनी कर रहे हैं वो। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-२७.०९.२०१४ 

Saturday, 20 September 2014

♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।
प्रेम जब आत्मा से होगा तो, बाद मरकर भी न ख़तम होगा। 
श्रंखला दीप की जला लेंगे, मन में उलझन न कोई तम होगा,
हाँ मगर टूट जायेंगी लड़ियाँ, प्रेम का भाव जब छदम होगा। 

मन के सम्बन्ध में न टूटन हो, भावनाओं का रूप खिल जाये!
जब अँधेरे दुखों के घेरें तो, प्रेम की जगती धूप मिल जाये। 

ओस की बूंद को उठालें चलो, मन का सूखा लिबास नम होगा!
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा …

छोड़कर साथ न चला करते, और न खुद का ही भला करते।
प्रेम होता है जिनके मध्य यहाँ, वो नहीं झूठ से छला करते।
त्याग के रंग में समाहित हों, दीपमालाओं से जला करते,
हाँ मगर जिनको प्रेम है ही नहीं, घाव पे अम्ल वो मला करते। 

प्रेम का नाम तो सभी लें पर, प्रेम का मर्म सब नहीं जानें। 
हाथ बाहर से तो मिला लें पर, आत्मा का मिलन नहीं मानें।  

"देव" जो प्रेम से छुओगे तो, तन शिलाओं का भी नरम होगा।
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।" 

......................चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२१.०९.२०१४ "



Wednesday, 17 September 2014

♥♥प्यार के पंख...♥♥

♥♥♥♥♥♥प्यार के पंख...♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे मिलने का मन हुआ जब से। 
पंख शब्दों में लग गए तब से। 

तेरी आँखों से न बहें आंसू,
ये दुआ मांगता हूँ मैं रब से।  

तेरी सूरत से ये नज़र न हटे,
खूबसूरत है तू बहुत सब से।

आज तक छोड़कर गयीं तो गयीं,
दूर न जाना तुम कहीं अब से। 

अपनी रूहें घुली मिलीं ऐसे,
मानो रिश्ता है अपना ये कब से। 

हर जनम में मिलें इसी तरह,
यही दरख़्वास्त मेरी है रब से। 

"देव" शब्दों के पंख प्यारे हैं,
चूमना चाहूँ मैं इन्हे लब से। "   

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१७.०९.२०१४

Tuesday, 16 September 2014

♥♥माँ का ख़त..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का ख़त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!
माँ के शब्दों को सौंपकर मुझको, माँ के एहसास से मिलाता है!
मेरे चोखट पे एक दस्तक दे, पास अपने मुझे बुलाता है!
न गलत काम तुम कभी करना, माँ की तरह मुझे सिखाता है!

हर घड़ी साथ मेरे रहता है, माँ न भेजा मेरा हिफाज़त को। 
माँ की तरह ही माफ़ करता है, मेरी छोटी बड़ी शरारत को!

दूर रहती है मेरी माँ मुझसे, खत मगर उसको पास लाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ के शब्दों के नूर से हर पल, मेरे संग साथ में उजाला है!
यूँ तो रिश्ते हजार हैं लेकिन, माँ का एहसास ही निराला है!
अपने बच्चों की राह की कांटे, माँ ही हंसकर के सिर्फ चुनती है!
अपने सब काम छोड़कर माँ ही, अपने बच्चों का दर्द सुनती है!

माँ की प्यारी सी ये छुअन पाकर, देखो फूलों का रंग खिलता है!
पैसे, रूपये से और दौलत से, न कहीं प्यार माँ का मिलता है!

याद में माँ की रो पड़ी आँखें, ख़त मुझे देखो चुप कराता है! 
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ ने मंजिल की ओर जाने को, माँ ने मुझको बहुत पढ़ाने को!
अपने आपे से दूर भेजा है, ख्वाब मेरे सभी सजाने को!
"देव" जब माँ की याद आती है, खत यही खोलकर के पढ़ता हूँ!
माँ ने सिखलाया अग्रसर होना, अपनी मंजिल की ओर बढ़ता हूँ!

माँ की आँखों में एक चमक होगी, मेरे सपनों में जब गति होगी!
अपनी ममता पे गर्व होगा उसे, जब कभी मेरी प्रगति होगी!

माँ के आँचल की याद आने पर, ख़त मुझे हौले से सुलाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है! "

"
माँ-एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी उपमा/तुलना/पर्याय अगर है तो वो माँ ही है, माँ की ममता से भरा दिल भले ही अपनी संतान को, कुछ समय के लिए आँखों से दूर करता है, मगर वो हर घडी, हर पल अपनी संतानों के लिए धड़कता है, तो आइये ऐसे किरदार माँ को हृदय से प्रणाम करें।  "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-17.09.2014 

" अपनी दोनों प्रिय माताओं को समर्पित रचना।"


Monday, 15 September 2014

♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥


♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥♥
ख़त पुराने तलाश लेने दो!
अपना खोया लिबास लेने दो!

कल मैं सूरत को मांजने में था,  
आज दिल को तराश लेने दो। 

फिर महल ख़्वाब का बनायेंगे,
ताख में रखे ताश लेने दो!

कल का सूरज हमे मिले न मिले,
आज जी भरके के साँस लेने दो!

दिल के दीये को कब जलाना पड़े,
साथ अपने कपास लेने दो!

खूं जहाँ पर बहा शहीदों का,
मुझको उस थल की घास लेने दो!

"देव" दौलत से जो नहीं मिलती,
वो दुआ माँ की, ख़ास लेने दो! "

........चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१६.०९.२०१४

Friday, 12 September 2014

♥♥♥तेरा कद...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥तेरा कद...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरे न होने से पड़ता है, मुझको फ़र्क़ बहुत,
रूह हूँ मैं जो अगर, तू भी जान जैसा है!

तेरे क़दमों के लिए, बन गया हूँ मैं धरती,
तेरा कद दिल में मेरे, आसमान जैसा है!

तुमसे मिलकर ही खिले हैं, ये फूल चाहत के,
तेरा साया ये किसी, बागवान जैसा है!

तू ही आई है, मेरे घर में रौशनी लेकर,
बिन तेरे घर ये मेरा, बस मकान जैसा है!

नफरतों के जो मसीहा हैं, उनको देखेंगे,
मैं हूँ तलवार अगर, तू म्यान जैसा है!

हर जन्म में हो मिलन, तुमसे ही दुआ है मेरी,
बिन तेरे मेरा सफर, बस थकान जैसा है!

"देव" तुमसे ही बताया, है अपना हर सुख दुख,
तेरा आँचल ही सुकूं के, जहान जैसा है! " 

............चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-१३.०९.२०१४  

♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥



♥♥♥♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥♥♥♥♥
कोई अफ़साना नहीं है, ये हक़ीक़त देखो,
रोज ही भूख से बच्चों की मौत होती है!

सर पे छप्पर भी नहीं, पेट में नहीं रोटी,
मुफ़लिसी देश में चीखों के साथ रोती है!

कब दरिंदा कोई बेटी को उठा ले जाये,
माँ इसी डर से यहाँ जागकर के सोती है!

लोग बदले हैं, बदलते हैं, बदलते होंगे,
ऐसे धोखे से कहाँ रूह, ये खुश होती है!

झूठ को सच भी बोल दूँ, तो सच नही मरता,
झूठ की दुनिया की तो, शीशे की तरह होती है!

रंग, दौलत से, ही कोई बड़ा नहीं बनता,
यहाँ अच्छाई तो उल्फत से बुनी होती है!

"देव" उस शै को दुआ एक भी नहीं मिलती,
आदमी काटके जो, खूं से फसल बोती है! "

...........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१२.०९.२०१४ 

Thursday, 11 September 2014

♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥


♥♥♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥♥♥
सिलसिला है हसीं मोहब्बत का, 
मुझसे मिल जाओ, मुझसे जुल जाओ!

हर तरफ ही प्यार की ही खुशबु हो,
इन हवाओं में यार घुल जाओ!

मेरी गलती पे मांग लूंगा क्षमा,
तुम भी थोड़ा सा गर पिघल जाओ!

लड़खड़ाना मैं बंद कर दूंगा,
तुम भी हमदम अगर संभल जाओ!

इस उजाले से हो जहाँ रौशन,
आओ दीये की तरह जल जाओ!

मेरी बेचैनी को क़रार मिले,
देखकर मुझको तुम मचल जाओ!

"देव" दुख दर्द मुझसे बांटो तुम,
एक सहेली की तरह खुल जाओ! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-१२.०९.२०१४  

Wednesday, 10 September 2014

♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥



♥♥♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥♥♥
मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ!
जब कविता को मुझसे मिलना हो,
मन को उसके समक्ष करता हूँ!

ये कविता है प्रेमिका जैसी!
ये कविता है चन्द्रिका जैसी!
रंग भर देती अक्षरों में जो,
ये कविता है तूलिका जैसी!

योग्यता इतनी हैं भरी जिसमें,
उसको वंदन से यक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

प्रेम की बारिशों सी बरसी है!
मेरे आँगन की एक तुलसी है!
ये कविता है इस तरह अपनी,
मेरी पीड़ा में साथ झुलसी है!

देख कविता के इस समर्पण को,
आंसुओं से मैं अक्ष भरता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

ये कविता सदा ही पावन हो!
हर कलमकार का धवल मन हो!
"देव" आशाओं के जलें दीपक,
न तिमिर से भरा कोई क्षण हो!

एक बढ़ाई तो है बहुत ही कम,
मैं तो प्रसंशा लक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ! "

(नक्ष-अंकित/लेखन, यक्ष-देवयोनि/विशेष, अक्ष-नयन/आँखे, लक्ष-लाख )

" कविता, जब आत्मा और हृदय से अंकित होती है, तो वो प्रेरणा बन जाती है, कविता
किसी की बपौती नहीं, कविता तो हृदय के मूल तत्वों में निहित होती है, जो हृदय के भावों से, अंकित नहीं होती, वो तुकांत/अतुकांत गठजोड़ तो हो सकता है, पर कविता कभी नहीं, तो आइये कविता का सम्मान हृदय से करें! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-११.०९.२०१४  

"
सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Tuesday, 9 September 2014

♥न दीया है...♥♥

♥♥♥♥न दीया है...♥♥♥♥♥
न दीया है न और बाती है!
ये अँधेरा ही उनका साथी है!
जागकर रात मुफ़लिसों की कटे,
भूख में नींद किसको आती है!

तंगहाली में सांस भारी है!
जिंदगी बिन दवा के हारी है!
छीन लेते ले हैं, हक़ गरीबों का,
ऐसा आलम है, लूटमारी है!

लूटने वाले हैं यहाँ पर खुश,
और मुफ़लिस की जान जाती है!

न दीया है न और बाती है...

कोई सरकार न सुने उसकी,
सबको बस अपना होश रहता है!
"देव" मुफ़लिस की जिंदगी है कठिन,
न उम्मीदें, न जोश रहता है!

हर कोई दुश्मनी रखे हमसे,
जिंदगी इस कदर सताती है!

न दीया है न और बाती है....

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९.०९.२०१४  ०

Sunday, 7 September 2014

♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥


♥♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥♥
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया!
एक था प्यार से भरा जो दिल,
अपने हाथों से खुद ही तोड़ दिया!

तुमको अश्क़ों की धार दिखलाई!
अपनी बेचैनी तुमको बतलाई! 
तुमने नफरत से ही मगर देखा,
प्यार की दुनिया तुमने ठुकराई!

जिस कलाई को थामते थे कभी,
आज उसको ही यूँ मरोड़ दिया...

वक़्त का आईना दिखाकर के!
जा रहे तुम नज़र चुराकर के!
तुमको खुशियां हजार मिलती हों,
क्या पता मेरा दिल जलाकर के!

दर्द में मैं बिलख रहा था मगर,
तुमने मरहम का जार फोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया...

अब चलो फैसला लिया है ये,
तेरे दर पर न लौट आएंगे!
"देव" पत्थर का, कर लिया दिल को,
रात दिन कितनी चोट खाएंगे!

प्यार की जो नदी उमड़ती थी,
उसको सूखे के, साथ जोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०८.०९.२०१४

Friday, 5 September 2014

♥♥रूह का सलाम..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥रूह का सलाम..♥♥♥♥♥♥♥♥
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ!
तेरे सजदे में सुबह और शाम लिखता हूँ!
तेरी सूरत में मुझे प्यार, वफ़ा दिखती है,
इसीलिए रूह का तुझको सलाम लिखता हूँ!

देखकर तुझको मेरे दिल को चैन मिलता है!
तेरे होने से ही खुशियों का, फूल खिलता है!

तुझको कुदरत का हसीं एक ईनाम लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ....

छोटी छोटी तेरी ऊँगली को, थाम लूंगा मैं!
बिना फेरों के तुम्हें अपना मान लूंगा मैं!
"देव" तुमने ही सिखाई है मोहब्बत मुझको,
अपने होठों से सदा तेरा नाम लूंगा मैं!

तेरे दीदार से उम्मीद, अदब मिलता है!
तेरे होने से ही जीवन का, सबब मिलता है!

दूर होकर भी मैं तुझको अमाम* लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ! "

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०६.०९. २०१४  

अमाम*----प्रत्यक्ष

♥ गुरु का कद...♥

♥♥♥♥ गुरु का कद...♥♥♥♥♥
धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु!
एक से हैं गुरु की आँख में हम,
ऐसी सौगात से भरे हैं गुरु!

साल भर, उम्र भर नमन उनको!
सौंप दें आओ बाल मन उनको!
प्रेम की रौली से तिलक जड़कर,
देते सम्मान का सुमन उनको!

अपने आँचल में दुख मेरा लेकर,
मुझको खुशियों से आ भरें हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....


आज गुरुओं का मान करना है!
उनको झुककर प्रणाम करना है!
"देव" गुरुओं से ज्ञान को पाकर,
हमकों दुनिया में नाम करना है!

बिन गुरु के नहीं दिखे मंजिल,
लक्ष्य की सोच से भरे हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....

धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०५.०९. २०१४  

Thursday, 4 September 2014

♥♥शब्द की संगिनी..♥♥

♥♥♥♥शब्द की संगिनी..♥♥♥♥♥
शब्द की संगिनी बने कविता!
रूह की रोशनी बने कविता!
भाव मन पर असर करें ऐसे,
प्रेम की भाषिनी बने कविता!

काव्य होगा तो मन धवल होगा!
मन में एहसास का कमल होगा!
शब्द गूंजेंगे आसमानों में,
ओज भावों में फिर नवल होगा! 

रंग फूलों का है खिल गया है सुनो,
नम्रता, नंदिनी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता....

काव्य होगा तो गीत भी होंगे!
प्रेम होगा तो मीत भी होंगे!
"देव" ये शब्द तो हैं सतरंगी,
लाल, सुरमई ये पीत भी होंगे!

भावनाओं की बांसुरी की धुन,
आस्था की नमी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता,
रूह की रोशनी बने कविता! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०४.०९. २०१४

Tuesday, 26 August 2014

♥♥वक़्त के साथ...♥♥


♥♥♥♥वक़्त के साथ...♥♥♥♥
वक़्त के साथ जो बदल जाता!
तो मुझे याद वो नहीं आता!

अपने दिल को जो तोड़ लेता मैं,
प्यार का दीप फिर न जल पाता!

किसको फुर्सत थी मेरा दर्द सुने,
कौन चाहत के फूल बिखराता!

जी तो सकता हूँ इन दवाओं से,
चैन तुम बिन मुझे नहीं आता!

कोई तुमसे नहीं मिला मुझको,
जो मेरे दिल को ख्वाब दिखलाता!

तुमने चाहा ही न कभी दिल से,
वरना चाहत का फूल खिल जाता!

"देव" तुमसे नहीं गिला, शिकवा,
जो न किस्मत में, वो न मिल पाता!

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२७.०८. २०१४





Saturday, 23 August 2014

♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥

♥♥♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥♥♥
दर्द का फिर इलाज़ ढूँढेंगे!
अपना हंसमुख मिजाज़ ढूँढेंगे!

कल तलक जो हमें न मिल पाया,
उसको शिद्दत से आज ढूँढेंगे!

जो चकाचोंध में हुआ है गुम,
हम वो खोया लिहाज़ ढूँढेंगे!

आदमी-आदमी से मिल जाये,
प्यार का वो जहाज ढूँढेंगे!

हिन्दू, मुस्लिम हों, सिख, ईसाई एक,
ऐसा खिलता समाज ढूँढेंगे!

हारकर जीतने का दम न मरे,
जोश का वो रियाज़ ढूँढेंगे!

"देव" रिश्ता यहाँ जुड़े दिल से,
एक दमकता रवाज ढूँढेंगे! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२४.०८. २०१४






Sunday, 17 August 2014

♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥

♥♥♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥♥♥
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी!
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!
ढ़ल गई सारी अमावस पल में,
चांदनी मानो कोई खिलने लगी!

प्रेम का रंग हो यदि गहरा!
अपना मन भी हो बस वहीँ ठहरा!
कितनी तड़पन की बात हो जाये,
भेंट करने पे जब लगे पहरा!

श्याम भी भेंट को हुए आतुर,
राधिका भी वहां मचलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम कर्तव्य की लड़ाई में!
राधिका शोक की लिखाई में!
धार अश्रु की फूटती ही रही,
न ही आराम था दवाई में!

राधिका श्याम के प्रण के लिए,
उनके रस्ते से दूर चलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम, राधा का साथ टूटन पे,
राधिका फूट फूट रोने लगी!
श्याम भी हो गए बहुत बेबस,
राधिका मौन रूप होने लगी!

प्रेम की एक ये अमर गाथा,
देखो इतिहास को बदलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी,
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!"

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१७.०८. २०१४ 

Wednesday, 13 August 2014

♥प्रेम सम्पदा..♥

♥♥♥♥प्रेम सम्पदा..♥♥♥♥♥♥
अनुभूति विस्थापित कर दूँ!
प्रेम को कैसे बाधित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ!

क्यों तोडूं विश्वास किसी का,
क्यों भूलूँ एहसास किसी का,
क्यों मैं क्षण में खंडहर कर दूँ,
खिला हुआ आवास किसी का!

क्यों मिथ्या की संरचना को,
शब्दों से सत्यापित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ...

उसे बदलना है वो बदले,
नहीं बदलना मुझको आता!
बस उससे ही मेल है मन का ,
नहीं दूसरा मुझको भाता!
"देव" मेरे नयनों में अब तक,
बस उसका ही चित्र वसा है,
धवल आत्मिक प्रेम सम्पदा,
नहीं शरीरों का बस नाता!

प्रेम भावना के पत्रों को,
क्यों कर मैं सम्पादित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१३ .०८. २०१४  


Monday, 11 August 2014

♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥

♥♥♥♥♥♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥♥♥♥♥♥♥
मैं ज़ख्मों पे नमक फिर से, लगाकर देख लेता हूँ!
तुम्हारी याद का लम्हा, उठाकर देख लेता हूँ!

मेरी किस्मत, मेरी तक़दीर ने तो कुछ नहीं बख्शा,
लकीरें हाथ की अब आजमाकर, देख लेता हूँ!

सिसकते दर्द के कांटे, बदन पे जब भी चुभते हैं,
ग़मों की चांदनी मैं तब, बिछाकर देख लेता हूँ!

यहाँ इंसान बहरे हैं, गुहारें सुन नहीं पाते,
बुतों को दर्द अब अपना, सुनाकर देख लेता हूँ!

सुकूं जब रूह को न हो, हो ठहरी बेबसी दिल में,
ग़ज़ल मैं फिर तेरी एक, गुनगुनाकर देख लेता हूँ!

मिलन की चाह हो लेकिन, तेरे बदलाव का आलम,
तेरा रस्ता, तेरा कूचा, भुलाकर देख लेता हूँ!

कहीं पायल की रुनझुन हो, तेरे आने की उम्मीदें,
मैं एक अरसे से सूना घर, सजाकर देख लेता हूँ!

लगे तू चाँद सा मुखड़ा, अमावस चीर आएगा,
मैं अपनी रात फिर, बाहर बिताकर देख लेता हूँ!

तुम्हें सब कुछ बताया है, नहीं तुम "देव" झुठलाओ,
मैं बिखरे लफ्ज़ के टुकड़े, मिलाकर देख लेता हूँ! "

 .................चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१२ .०८. २०१४ 

Saturday, 9 August 2014

♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥

♥♥♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥♥♥♥
प्यार में सादगी तुम्ही से है!
फूल में ताजगी तुम्ही से है!

आशिकी तुम हो, जुस्तजु मेरी,
मेरी दीवानगी तुम्ही से है!

राह देखी क्यों तुम नहीं आईं,
दिल को नाराजगी तुम्ही से है!

देख कर तुमने जो चुराई नज़र,
तब से हैरानगी तुम्ही से है!

मैं बहकता हूँ सिर्फ तेरे लिए,
मेरी आवारगी तुम्ही से है!

बिन तेरे नींद भी नहीं आती,
आँख मेरी जगी तुम्ही से है!

"देव" दुनिया तो मतलबी है बस,
रूह मेरी सगी तुम्ही से है!"

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९ .०८. २०१४

♥♥दर्द का काल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का काल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं!
एक अरसे तक नहीं बदलते, पीड़ा के ऐसे मौसम हैं!
जिसकी मर्जी वही दर्द दे, आह कोई न सुनता मेरी,
लगता है सबकी नजरों में, पत्थर के बुत जैसे हम हैं!

पत्थर का दर्जा देकर के, तुमको क्या कुछ मिल पायेगा!
एक दिन देखो झूठ का पर्दा, इन आँखों से हट जायेगा!

सुन लेता हूँ हौले हौले, दर्द भरे सारे आलम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं...

क्यों लोगों को अपने दुख के, सिवा कुछ नहीं दिख पाता है!
क्यों शायर का कलम आजकल, नहीं हक़ीक़त लिख पाता है!
"देव" आईने में वो अपनी, शिक़न देखकर घबरा जाते,
मगर मेरे दिल के टुकड़ों का, ढ़ेर उन्हें न दिख पाता है!

बुरा वक़्त है इसीलिए तो, मेरी कुछ सुनवाई नहीं है!
इसीलिए तो हवा आजतक, ख़ुशी का झोंका लाई नहीं है!

झूठ का चेहरा उजला उजला, सच के मानों बुरे करम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं! "

.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०९ .०८. २०१४

Thursday, 7 August 2014

♥♥खून पसीना..♥♥

♥♥♥♥♥खून पसीना..♥♥♥♥♥
खून पसीना बहुत बहाया!
तब जाकर के जीना आया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया!

सब उपहास उड़ाने वाले,
नहीं दर्द की बातें जानें!
भूख प्यास से व्याकुल दिन और,
नहीं किसी की रातें जानें!

ठोकर खाकर गिरा कभी जब,
किसी ने मुझको नहीं उठाया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

साथ किसे के न देने से,
हाँ तन्हाई तड़पाती है!
मगर आंसुओं की ये धारा,
हमको जीना सिखलाती है!

देख हमारे इस साहस को,
ढ़लता उपवन भी मुस्काया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

अपने गम से मिला तजुर्बा ,
और पीड़ा ने सोच सुधारी !
"देव" होंसला जगा लिया तो,
नहीं सांस लगती है भारी!

सीख गया काँटों पे चलना,
नहीं आग से मैं घबराया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०८ .०८. २०१४

Monday, 4 August 2014

♥♥मुफ़लिसी♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मुफ़लिसी♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !
मुफ़लिस के भूखे बच्चे को, कोई रोटी नहीं खिलाता !
आँख से आंसू बहते रहते, चीख चीख कर दिल रोता है,
करते हैं दुत्कार उसे सब, गले से नहीं कोई लगाता!

मुफ़लिस के नन्हे बच्चों को, बाल श्रम करना पड़ता है!
भूख प्यास में आंसू पीकर, पेट यहाँ भरना पड़ता है!

घोर उदासी है सूरत पर, न वो हँसता, न मुस्काता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !

बिना दवा के मर जाता है, दवा बहुत महंगी मिलती है!
घोर वेदना सहता है वो, नहीं ख़ुशी कोई मिलती है!
"देव" वतन में मुफ़लिस को, एक घर तक नहीं मयस्सर होता,
नहीं अँधेरा छंट पाता है, नहीं कोई ज्योति खिलती है!

क़र्ज़ में डूबे मुफ़लिस की बस, अंतिम आस यही होती है!
किसी पेड़ पे या खम्बे पे, उसकी लाश रही होती है!

मुफ़लिस के पथरीले पथ पर, कोई रेशम नहीं बिछाता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता ! "

....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-०५ .०८. २०१४


हम तुम जब एक

♥♥हम तुम जब एक♥♥♥
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे!
सखी डूब जाना तुम मुझमें,
हम भी तुझमें खो जायेंगे!
धवल चांदनी का वो पर्दा,
आसमान में लहराएगा,
एक दूजे की नजदीकी में,
हम चुपके से सो जायेंगे!

प्यार के मीठे सपने होंगे,
शोर शराबा थम जायेगा!
हम दोनों के प्यार के देखो,
हसीं सिलसिला बन जायेगा!

हम सपनों में मिलन भाव के,
नव अंकुर को बो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे। ...

बीच रात में आँख खुले तो,
गीत प्यार का तुम दोहराना!
नाम मेरा लेकर हौले से,
सखी नींद से मुझे जगाना!
हम दोनों फिर प्यार वफ़ा की,
बातों का एहसास करेंगे,
मैं भी साथ रहूँगा तेरे,
तुम भी मेरा साथ निभाना!

खूब पड़ेगी प्यार की बारिश,
बादल सुरमई हो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे! "


......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-०४ .०८. २०१४


Sunday, 3 August 2014

♥प्रेम भावना..♥

♥♥♥
♥♥♥♥प्रेम भावना..♥♥♥♥
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
मेरे नयनों की ज्योति हो,
तुम ऊर्जा हो मेरे तन की!

स्वप्नों में तुम ही आती हो!
गीत प्रेम का तुम गाती हो!
फूलों सी देह तुम्हारी,
घर आँगन को महकाती हो!

बस तुमको ही छूना चाहूँ,
तुम भावुकता आलिंगन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

प्रेम मुक्त है हर सीमा से,
सागर के जैसा गहरा है!
सब जिज्ञासा शांत हो गयीं,
मन जब से तुमपे ठहरा है!

तुम पावन हो गंगाजल सी,
न नीति हो प्रलोभन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

विरह भाव का विष पीकर भी,
मैंने तुमको याद किया है!
यदि नहीं प्रत्यक्ष रहे तुम,
सपनों में संवाद किया है!

तेज मेरे चेहरे का तुमसे,
तुम्ही चपलता अंतर्मन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

फिर से मेरे पथ आओगे,
यही सोच प्रतीक्षा करता!
"देव" मिलन की व्याकुलता में,
अश्रु से आँचल को भरता!

न कोई समकक्ष तुम्हारे,
यथा योग्य तुम अभिनन्दन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "

प्रेम-जिसके प्रति होता है, अनेकों, असीम, अपार अनुभूतियाँ उसके लिए हृदय में उत्पन्न होती हैं,
प्रेम की लहरों को, किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता, प्रेम की भावनायें कभी मंद नदी सी स्थिर तो कभी सुनामी जैसी गतिमान होती हैं, तो आइये प्रेम की इस जल धारा का पान करें "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०८.२०१४







Saturday, 2 August 2014

♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नज़र आते नहीं अब तो, मुझे अब दोस्त वो अपने,
जो मेरी आह सुनकर के, बहुत बेचैन होते थे!

हजारों दोस्त दिखते हैं, मगर हैं नाम के केवल,
कहाँ हैं दोस्त वो, जो दुःख मैं मेरे साथ रोते थे!

नहीं कोई कपट मन में, नहीं छल, न ही लालच था,
मोहब्बत के नए पौधे, सभी जो साथ बोते थे !

चलो एक रस्म का दिन है, निभाकर देख लेते हैं,
कहीं गुम हो गए, जो उम्र भर को साथ होते थे!

नहीं होली, न दिवाली, नहीं वो ईद, न लोहड़ी,
चुके वो दौर जो त्यौहार में, संग साथ होते थे!

कसम टूटी, वफ़ा झूठी, यहां कुछ दिन का किस्सा है,
नहीं वो दोस्त जो, जो वादे वफ़ा संग में पिरोते थे!

चलो अब हारकर मैं, "देव " सच ये ओढ़ लेता हूँ,
पुराना दौर था जिसमें, बड़े दिल सबके होते थे! "

..................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०३.०८. २०१४


♥बिन तेरे..♥

♥♥♥♥♥♥बिन तेरे..♥♥♥♥♥♥
प्यार में मेरे क्या गलत पाया!
तुमने क्यों प्यार मेरा ठुकराया!

मेरी आँखों में आ गए आंसू,
तुमने जब गैर मुझको बतलाया!

बिन तेरे अब तो बस उदासी है,
हर तरफ दर्द का धुआं छाया!

सारे एहसास हैं तुम्हारे लिए,
अपनी चाहत का रंग दिखलाया!

चिट्ठियां मैंने तो लिखीं थीं बहुत,
खत तेरा एक भी नहीं आया!

यूँ तो हर साल ही लगा मेला,
मुझको बिन तेरे कुछ नहीं भाया !

"देव" आ जाओ ग़र सुना हो तो,
प्यार का गीत मैंने दोहराया! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०२.०८. २०१४




Sunday, 27 July 2014

♥♥प्यार की दस्तक..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार की दस्तक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो!
मुझे जगाकर शर्माती हो, सकुचाती हो तुम डरती हो!
मैं जब तेरा हाथ थामकर, लफ्ज़ प्यार के कहता हूँ तो,
आँख मूंदकर तुम भी मुझको, अपनी बाँहों में भरती हो!

सावन की इस रात में जब भी, ख्वाब सखी तेरा आता है!
तो तेरी खुशबु से मेरा, सारा आँगन भर जाता है!

मैं भी जान लुटाऊं तुम पर, और तुम भी मुझपे मरती हो!
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो...

सखी तुम्हारे ख्वाबों में मैं, रात रात भर खोना चाहूँ !
इसीलिए सब काम छोड़कर, मैं जल्दी से सोना चाहूँ !
ख्वाबों में मिलने जुलने पर, पाबन्दी कोई नहीं होती,
इसीलिए तो प्रेम नदी में, खुद को बहुत डुबोना चाहूँ !

सखी यकीं है ख्वाब हमारा, एक दिन पूरा हो जायेगा!
प्रेम की उजली धूप खिलेगी, मिलन हमारा हो जायेगा!

दुआ साथ की मैं भी करता, दुआ मिलन की तुम करती हो!
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो! "

...................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२७.०७ २०१४




Friday, 25 July 2014

♥♥दर्द इतना है...♥♥



♥♥♥♥♥♥♥दर्द इतना है...♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द इतना है संभाले से संभलता कब है!
कोई हमदर्द मेरे साथ में चलता कब है!

तार टूटे, ये झुके खम्भे, गवाही देते,
मुफलिसों के यहाँ एक बल्ब भी जलता कब है!

कुर्सियां हैं वही, बस आदमी बदल जाते,
कोई बदलाव का सूरज ये, निकलता कब है!

जिसके सीने में है दिल की, जगह रखा पत्थर,
बाद मिन्नत के भी देखो, वो पिघलता कब है!

सब तमाशाई हैं देखे हैं, सर कटी लाशें,
खून पानी है मगर उनका, उबलता कब है!

कोई झुग्गी, न झोपड़ी, है खुला अम्बर बस,
उम्र बीती है मगर, दौर बदलता कब है!

दिन निकलते ही यहाँ "देव" दिल सुलग जाये,
दर्द जिद्दी है, दवाओं से भी ढलता कब है! "  

...........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०७ २०१४

♥♥♥प्यार का आँगन..♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का आँगन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है!
मेरे घर लौट आने तक, पलक अपनी बिछाती है!
मेरे बहते पसीने को, वो पौंछे अपने आँचल से,
थकन को भूलकर अपनी, ख़ुशी से मुस्कुराती है!

समर्पण भाव ये तेरा, सखी अभिभूत करता है!
मेरे दिल हर घड़ी तुझको ही, बस अनुभूत करता है!

गुजारा हंसके करती है, नहीं शिक़वा जताती है! 
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है...

जहाँ पर प्यार होता है, वो आँगन आसमानी है!
परस्पर दर्द में बहता, जहाँ आँखों में पानी है!
सुनो तुम "देव" ऐसे आदमी का साथ न रखना,
वो जिसने सिर्फ दौलत तक ही, अपनी सोच मानी है!

जो निश्छल मन से, भावों का यहाँ सत्कार करते हैं!
यही वो लोग हैं जो, आत्मा से प्यार करते हैं!

जो बनकर प्यार की खुशबु, हवा के साथ आती है! 
सवेरे जब मैं जाता हूँ, तिलक मुझको लगाती है! "

...............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२५.०७ २०१४


Thursday, 24 July 2014

♥संभलना आ गया ..♥


♥संभलना आ गया ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!
चुपा लेता हूँ दिल को, आँख पर भर आईं हैं लेकिन!
किसी से प्यार करना भी, गुनाह अब हो गया शायद ,
खुदा बोलें मोहब्बत को, बहुत रुसवाईं हैं लेकिन!

सिसकती आँख से आंसू, बहे जाते हैं गालों पर!
क्यों गुमसुम हो गए हैं, यहाँ सच के सवालों पर!

है दिल रोता ये खुशियां, झूठ की दिखलाईं हैं लेकिन!
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!

गुनाह अपना मेरा सर डाल भी, शर्मिंदगी कब है!
वो बाहर से हैं सुन्दर, रूह में पाकीज़गी कब है!
सुनो हम "देव" टूटे दिल के, टुकड़ें जोड़ कर लाये,
नहीं धड़कन है पहले सी, भला वो ताज़गी कब है!

अँधेरी रात का पर्दा, वही चाहते उजालों पर!
वो जिनके होठ सिलते हैं, यहाँ सच के सवालों पर!

है जलता दिल भले आँखों में, बूंदे आईं हैं लेकिन!
संभलना आ गया ठोकर, बहुत ही खाईं हैं लेकिन!

..................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२४.०७ २०१४

Wednesday, 23 July 2014

♥♥♥गम के निशां..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम के निशां..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!
कुछ अपनों ने मेरे दिल के, टुकड़े देखो खूब उछाले!
अपने टूटे दिल की हालत, देख यकीं होता है मुझको,
प्यार उन्हीं को मिलता जग में, जो होते हैं किस्मतवाले!

आह सुने न कोई किसी की, कोई किसी का दुख न जाने!
मिन्नत कितनी भी कर लो पर, नहीं निवेदन कोई माने!

दर्द की पथरीली राहों पर, चलकर देखो पड़े हैं छाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले...

जिसको अपना समझा जाये, वही मिटाने को निकला है!
मानवता और अपनेपन में, आग लगाने को निकला है!
"देव" नहीं मालूम जहाँ में, दिल की इज़्ज़त शेष रहेगी,
जिससे दिल का रिश्ता जोड़ा, वही जलाने को निकला है!

धन, दौलत के मंसूबों में, अपनेपन को मार दिया है!
कुछ लोगों ने आड़ प्यार की, लेकर के व्यापार किया है!

कल तक पावन कहता था जो, आज मुझी में दोष निकाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!"

...................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-२३.०७ २०१४

Tuesday, 22 July 2014

♥♥टूटे पत्ते ♥♥


♥♥♥♥टूटे पत्ते ♥♥♥♥
टूटे पत्ते, सूखी डाली!
कदम कदम पर है बदहाली!
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!

उम्मीदों का दर्पण टूटा,
आशाओं की कड़ियाँ टूटीं!
अब जीवन है तनहा तनहा,
प्यार वफ़ा की लड़ियाँ टूटीं!

ढली चांदनी हंसी ख़ुशी की,
ग़म की छाई अमावस काली!
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!

मेरे मन के हर कोने में,
दर्द बहुत होता रोने में!
"देव" डरातीं बिछड़ी यादें,
डर लगता है अब सोने में! 

रिक्त हुयी हाथों की रेखा,
लगे दूर से भले निराली! 
चलने को मैं चलता हूँ पर,
पथ सूना है, मंजिल खाली!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२२.०७ २०१४

Monday, 21 July 2014

♥♥सखी तुम्हारा प्यार..♥♥


♥♥सखी तुम्हारा प्यार..♥♥

हर लम्हा दीदार जरुरी!
सखी तुम्हारा प्यार जरुरी!
जीवन में हर्षित रहने को,
संग तेरे घर द्वार जरुरी!

तेरे साथ ही कदम बढ़ाना,
तेरे साथ हंसना मुस्काना,
मेरी गलती को तू आंके,
सही गलत का पाठ पढ़ाना!

जीवन पथ में सही दिशा को,
तेरी सीख के तार जरुरी!
जीवन में हर्षित रहने को,
संग तेरे घर द्वार जरुरी !

कभी तू जीते, कभी मैं हारूं,
तेरे साथ में, पंख पसारुं!
"देव" तुम्हारा हाथ पकड़ कर,
अपना लेखन यहाँ सुधारूं!

प्यार शब्द में रब दिखता है,
है इसका सत्कार जरुरी!
जीवन में हर्षित रहने को,
संग तेरे घर द्वार जरुरी!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२१.०७ २०१४

Sunday, 20 July 2014

♥♥सच की तपस्या..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सच की तपस्या..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है!
उनको हिंसा ही भाती है, जिन्हें प्रेम का ज्ञान नहीं है!
जो अपने उद्देश्य लोभ में, छल करता है मानवता से,
वो सब कुछ हो जाये बेशक, लेकिन वो इंसान नहीं है!

मानवता के चिन्हों पर चल, जो सबका हित कर जाते हैं !
वही लोग देखो दुनिया में, मरकर भी न मर पाते हैं! 

खुद की खातिर जी लेना ही, नेकी की पहचान नहीं है!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है...

फूलों की ख़्वाहिश है सबको, काँटों पे चलना न चाहें!
चाहत रखें उजालों की पर, दीपक बन जलना न चाहें!
बिना कर्म के ही मिल जाये, दुनिया की सारी धन दौलत,
नहीं धूप में बहे पसीना, नहीं शीत में गलना चाहें!

लेकिन सिर्फ ख्यालों में ही, महल देखने से नहीं मिलते!
बिन मेहनत के इस दुनिया में, ख्वाबों के गुलशन नहीं खिलते!

बाहर ढोंग करेंगे घर में, परिजन का सम्मान नहीं हैं!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है....

जो नफरत की आग में जलकर, विष के गोले बरसाते हैं!
ऐसे दुर्जन जन लोगों के, नहीं दिलों में वस पाते हैं!
"देव" जहाँ में लाख, करोड़ों यहाँ आदमी फिरते हैं पर,
बिना दया और प्रेम भाव के, नहीं वो इन्सां बन पाते हैं!

केवल अख़बारों में छपकर, हमदर्दी का नाम करेंगे!
और हक़ीक़त में वो देखो, जग में काला काम करेंगे!

बस थोथी बातें कर देना, पीड़ा का अवसान नहीं है!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है!"

.....................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-२१.०७ २०१४ 

♥♥दरिंदगी..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥दरिंदगी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह बेचैन बहुत दिल को तड़प होती है!
देख के ऐसे नज़ारे, ये नज़र रोती है!

वो दरिंदे यहाँ औरत को लूट कर मारें,
और खाकी यहाँ गूंगों की तरह सोती है!

अपने मतलब के लिए खून तक बहा दे जो,
आदमी की यहाँ फितरत ही बुरी होती है!

कोई कानून नहीं देता दरिंदों को सजा,
कब्र में भी वो यही सोच कर के रोती है!

लाश नंगी थी यहाँ, उसका बन गया धंधा,
आज दीवार पे हर, वो ही टंगी होती है!

जानवर सा है आदमी, है दरिंदा, बहशी,
उसकी सूरत भले मासूम, भली होती है!

"देव" ये दर्द है इतना के, क्या बताऊँ मैं,
मेरे शब्दों को भी मुझ संग, ये दुखन होती है! "

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२०.०७ २०१४



Saturday, 19 July 2014

♥♥♥जरा आ जाओ...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥जरा आ जाओ...♥♥♥♥♥♥♥♥
चाँद आकाश में गुमसुम है, जरा आ जाओ!
बुझते दीपों में जरा रोशनी जगा जाओ!

बिन तेरे एक भी लम्हा नहीं कटता मेरा,
मैं जिधर देखूं, मुझे तुम ही तुम नज़र आओ!

मैं भी चाहता हूँ कलम, पाये तवज्जो मेरी,
मेरे लफ्जों में ग़ज़ल बनके, तुम समां जाओ!

देखकर हमको कसे तंज, जमाना न कोई,
मुझको तुम ऐसे जहाँ में, जरा लेकर जाओ!

तेरी चूड़ी की खनक, आज तलक याद मुझे,
अपनी चूड़ी को निशानी में मुझे दे जाओ!

ये जहाँ इतना बड़ा, तुम बिना अधूरा है,
एक लम्हे को भी न छोड़कर, मुझे जाओ!

"देव" तुमसे है लगन है , दिल मेरे जज़्बातों की,
अपना एहसास मेरी सांस में पिरो जाओ! "

...............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-१९.०७ २०१४



Friday, 18 July 2014

♥♥पीड़ा का भंडारण..♥♥


♥♥♥पीड़ा का भंडारण..♥♥♥
मन पीड़ा से भरा हुआ है!
ज़ख्म पुराना हरा हुआ है!
अपनायत से दर्द मिला और,
दिल अपनों से डरा हुआ है!

कोमल दिल को छलनी करके,
कुछ अफ़सोस नहीं होता है!
क़त्ल दिलों का करके देखो, 
उनको रोष नहीं होता है!
मानवता की हत्या करके,
हत्यारे वो बन जाते हैं,
लेकिन फिर भी कानूनों में,
उनका दोष नहीं होता है!

झूठ हो रहा सब पे हावी,
और सच मानों मरा हुआ है!
अपनायत से दर्द मिला और,
दिल अपनों से डरा हुआ है...

बीच डगर में छोड़ा करते!
लोग दिलों को तोड़ा करते!
जिनको अपना कहते उनका,
नाम ग़मों से जोड़ा करते!
बस अपने मतलब की खातिर,
करते हैं झूठी हमसफ़री,
मतलब पूरा हो जाने पर,
अपने रुख को मोड़ा करते!

"देव" इसी आलम ने देखो,
मन आवेशित करा हुआ है!
अपनायत से दर्द मिला और,
दिल अपनों से डरा हुआ है!"

.....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१८.०७ २०१४


Monday, 14 July 2014

♥♥अपनों की वफ़ा ..♥♥


♥♥♥♥♥♥अपनों की वफ़ा ..♥♥♥♥♥♥♥♥
पत्थरों जैसा मेरे दिल को, वो बताते हैं!
मेरे अपने भी वफ़ा इस तरह निभाते हैं!

मेरी आँखों से टपकते हैं खून के आंसू,
दिल के टुकड़े हैं के, रस्ते में बिखर जाते हैं!

आईना भी मेरी सूरत को भूलना चाहे,
लोग तो लोग हैं, पल भर में बदल जाते हैं!

मुझे पे इलज़ाम लगते हैं, कोसते हैं वो,
हम मगर फिर भी चरागों की लौ जलाते हैं!

जिसको जाने की थी जिद, दूर वो गया हमसे,
ये अलग बात के हम, उसको याद आते हैं!

उनको मुश्किल में भी, होती नहीं कमी कोई,
मरते दम जो ईमां, हर घड़ी निभाते हैं!

"देव" हमसे क्या शिकायत, क्या करेंगे शिकवा,
बेवफ़ाई के जो गुल, उम्र भर खिलाते हैं! " 

..............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-१५ .०७ २०१४

♥♥प्यार की छाँव..♥♥


♥♥♥♥♥♥प्यार की छाँव..♥♥♥♥♥
प्यार की छाँव का असर होगा!
अपने ख़्वाबों का एक घर होगा!

कोई दुख तुझको जब करे तन्हा,
मेरे कंधे पे तेरा सर होगा!

तुम जुदाई की बात मत करना,
न बिछड़ने का कोई डर होगा!

प्यार भर देंगे हम हर एक घर में,
देखो कितना हसीं शहर होगा!

ग़म के पत्थर नहीं गिराएंगे,
तू जो जीवन का हमसफ़र होगा!

कोई नफरत न जीत पायेगी,
जब तलक प्यार में बसर होगा!

"देव" चाहत के सिलसिले की तरफ,
अपना दिन रात, हर पहर होगा! "

......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-१४.०७ २०१४

Saturday, 12 July 2014

♥♥वजूद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥वजूद...♥♥♥♥♥♥♥♥
खुद को अपना वजूद दिखलाया!
दर्द से जीतना हमें आया!

पंख मेरे भले ही टूटे पर,
मैंने आकाश को न झुठलाया!

ख़्वाहिशें सब नहीं मिला करतीं,
ये सबक अपने दिल को सिखलाया!

रूह है अब भी चाँद सी सुन्दर,
ग़म ने हर रोज चाहें झुलसाया!

तेरे आने से आ गयी खुशबु,
जैसे बगिया में फूल खिल आया!

टूटे पत्तों को हाथ में लेकर,
दिल को पेड़ों का दर्द बतलाया !

"देव" चाहत में क्या कमी मेरी,
उनके हिस्से का भी ज़हर खाया! "

......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-१३.०७ २०१४

Friday, 4 July 2014

♥♥प्रेम के मोती..♥♥


♥♥♥♥प्रेम  के मोती..♥♥♥♥♥
प्रेम के मोतियों की माला है!
देखो हर ओर बस उजाला है!

सात जन्मों तलक नहीं छूटे,
मैंने चाहत का रंग डाला है!

मेरे लफ्जों में आ गयी खुशबु,
मानो खत तेरा आने वाला है!

देखकर तुझको दिल मचल जाये,
तेरा अंदाज़ ही निराला है!

तूने समझा है दर्द को मेरे,
मुझको तूफान से निकाला है!

मेरी आँखों में झांककर देखो,
प्यार अरसे से मैंने पाला है!

"देव" जुल्फों की छाँव देते तुम
धूप ने जब भी तन उबाला है! "

......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-०४.०७ २०१४

Thursday, 3 July 2014


"
ख़ून बहे न मज़लूमों का, हर कोई ख़ुशहाल रहे बस,
मंदिर, मस्जिद, गिरजा, द्वारा, हर इंसा की दुआ यही हो! "

.......................चेतन रामकिशन "देव".........................

दिनांक-०४.०७ २०१४

Tuesday, 1 July 2014

♥♥तालुकात..♥♥


♥♥♥♥♥♥तालुकात..♥♥♥♥♥
नाम के तालुकात करते हैं!
लोग मतलब की बात करते हैं!

मेरी तरफ़ा नहीं किसी की नज़र,
हम जो सड़कों पे रात करते हैं!

मेरे हिस्से का ग़म मुझे दे दो,
हम सफर साथ साथ करते हैं!

मेरे हर्फों की लाल सी सूरत,
खून से हम दवात करते हैं!

अपने अश्क़ों की गर्म नदियों से,
प्यास को अपनी मात करते हैं!

अपने दुश्मन को माफ़ करके हम,
उसके सर अपना हाथ करते हैं!

"देव" डरता है दिल मोहब्बत से,
इसीलिए एहतियात करते हैं! "

......चेतन रामकिशन "देव"......... 
दिनांक-०२.०७ २०१४


Thursday, 26 June 2014

♥♥प्रेम की धवनि..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की धवनि..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हर दिशा प्रकाशमय है, प्रेम की करतल ध्वनि है!
एक क्षण भी भंग न हो, प्रेम की ऐसी धुनी है!
मैंने तेरी भावना को, कर लिया खुद में निहित जब,
हर घड़ी, दिन रात मैंने, प्रेम की सरगम सुनी है!

प्रेम से पल्लव सुमन का, प्रेम से नदियों की कल कल!
आत्मा कर दे धवल जो, प्रेम है ऐसा मधुर जल!

मैं तेरी खातिर बना और तू मेरे संग को बनी है! 
हर दिशा प्रकाशमय है, प्रेम की करतल ध्वनि है...

भेंट न सम्मुख हुयी पर, मन से मन का आसरा है!
मैं तेरा आकाश हूँ और तू हमारी ये धरा है!
तेरे मन है प्रेम पूरित, तेरी बोली है सुकोमल,
तूने मेरे मन कलश में, प्रेम का सागर भरा है!

मन से मन का साथ पाना, देखो तो कितना सुखद है!
न ही सीमा, न ही बंदिश और न कोई भी हद है!

प्रेम के धागों से हमने, रेशमी आशा बुनी है!
हर दिशा प्रकाशमय है, प्रेम की करतल ध्वनि है....

प्रेम के पंखों से उड़कर, हम घड़ी हम पास होंगे!
इस हवा में और गगन में, प्रेम के एहसास होंगे!
"देव" मन में रागिनी सी, बांसुरी सी तुम ही तुम हो,
प्रेम की सरगम बजे जब, हर जगह उल्लास होंगे!

प्रेम की किरणें रजत सी, रात को शोभित करेंगी!
मन, वचन को शुद्ध करके, प्राण को मोहित करेंगी!

मैं तेरे जीवन का साथी, तू हमारी संगिनी है!
हर दिशा प्रकाशमय है, प्रेम की करतल ध्वनि है! "

...............चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२७.०६.२०१४  

Friday, 13 June 2014

♥♥उम्मीदों की डाली..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥उम्मीदों की डाली..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आशाओं के फूल खिलेंगे, उम्मीदों की डाली होगी !
वक़्त परीक्षा लेता है फिर, आँगन में खुशहाली होगी!
हार जीत तो इस जीवन की, गतिशीलता का हिस्सा है,
कभी अँधेरा घेरेगा तो, कभी यहाँ दीवाली होगी!

मायूसी के साथ जिंदगी, जीकर के भी क्या पाओगे!
बिन हिम्मत के ठोकर खाकर, तुम राहों में गिर जाओगे!

वो सुन्दर होकर नहीं सुन्दर, जिसकी नियत काली होगी!
आशाओं के फूल खिलेंगे, उम्मीदों की डाली होगी ...

सपनों को भी पंख लगेंगे, बस थोड़ा संतोष करो तुम!
अपने हाथों गलत नहीं हो, बस इतना सा होश रखो तुम!
"देव" जहाँ में धनिकों को तो, हर कोई दिल में रखता,
लेकिन निर्धन की खातिर भी, अपने बाहुपोश रखो तुम!

प्यार, वफ़ा के दीप हमारे, दिल में जिस दिन जल जायेंगे! 
उस दिन देखो नफ़रत वाले, सारे सूरज ढल जायेंगे!

दर्द वही समझे औरों का, आँख में जिसके लाली होगी!
आशाओं के फूल खिलेंगे, उम्मीदों की डाली होगी ! "

.................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक-१४.०६.२०१४ 

♥♥धुंधली लकीरें..♥♥

♥♥♥♥♥धुंधली लकीरें..♥♥♥♥♥♥
हर ख़ुशी दूर हमसे निकली हुयी!
हाथ की हर लकीर धुंधली हुई!

गम के सूरज ने आंच दी इतनी,
दिल की धरती भी आज उबली हुयी!

खून के रिश्तों में भी प्यार नहीं,
आज देखो फ़िज़ा है बदली हुयी!

पांव दलदल में फंस गए मेरे,
बर्फ दुख की है, आज पिघली हुयी!

साथ एक ने भी न सहारा दिया,
जिंदगी जब भी मेरी फिसली हुयी!

गम की किरणों ने भेद कर ही लिया,
अब दुआओं की ढाल पतली हुयी!

"देव" दिल का इलाज़ करते पर,
आत्मा तक भी पायी कुचली हुयी!"

......चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक- १३.०६.२०१४ 

Thursday, 12 June 2014

♥♥बदलते आदमी..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥बदलते आदमी..♥♥♥♥♥♥♥
आसां नहीं है इतना, कैसे तुम्हें भुला दूँ!
कैसे मैं प्यार वाले, वो खत सभी जला दूँ!  
दिल कहता है के उसको, तुम ढूंढकर के लाओ,
पर जो बदल गया है, कैसे उसे बुला दूँ! 

जीना है अब तो तन्हा, खुद को सिखा रहा हूँ!
ग़म पी रहा हूँ खुद ही, आँसू सुखा रहा हूँ!

अरमां जो हैं मचलते, कैसे उन्हें सुला दूँ!
आसां नहीं है इतना, कैसे तुम्हें भुला दूँ...

जी लूंगा तंग होकर, सांसों की इस कमी में!
कर लूंगा कंठ गीला, एहसास की नमी में!
अब "देव" किसको अपना, समझेंगे जिंदगी में,
जब प्यार ही नहीं है, बाकि जो आदमी में!

एहसास की मोहब्बत, पल में नकार डाली!
झोली में मेरी तुमने, जीवन की हर डाली!

हिम्मत है तोड़ डाली, कैसे कदम चला दूँ!
आसां नहीं है इतना, कैसे तुम्हें भुला दूँ! "

...........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक- १२.०६.२०१४

Wednesday, 11 June 2014

♥जिंदगानी को...♥

♥♥♥♥जिंदगानी को...♥♥♥♥♥
जिंदगानी को जब निभायेंगे!
थोड़ा खोयेंगे, थोड़ा पायेंगे!

कुछ तो हिस्से में अपने आयेगा,
जब भी किस्मत को आजमायेंगे!

आज मायूस हैं तो कैसा गिला,
एक दिन हम भी खिलखिलायेंगे !

हाँ यक़ीनन सज़ा मिलेगी बहुत,
दिल किसी का जो हम दुखायेंगे!

होगा खुश हमसे वो खुदा देखो,
किसी रोते को जो हँसायेंगे! 

जिसने ठुकराके दिल मेरा तोड़ा,
एक दिन उनको याद आयेंगे! 

"देव" रूहानी अपना नाता हो,
जिस्म की चाह को भुलायेंगे! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- १२.०६.२०१४

♥♥तुमको देखा तो..♥♥

♥♥♥♥♥तुमको देखा तो..♥♥♥♥♥
मेरे सीने में दिल धड़कने लगा!
तुमको देखा तो प्यार जगने लगा!

तेरी जुल्फों की ये नमी छुकर,
धूप में भी गगन बरसने लगा!

तेरी खुश्बू हवा के साथ घुली, 
बागवां, मेरा घर महकने लगा!

तेरे लफ़्जों की बांसुरी सुनकर,
मेरा सूना सा घर चहकने लगा!

तूने हाथों से जो छुआ मुझको,
मेरा रंग रूप भी निखरने लगा!

तुझमें ज्योति है देखकर तुझको,
ये अँधेरा भी रुख बदलने लगा!

"देव" नफ़रत की आग कैसे रहे,
प्यार बारिश में जब बिखरने लगा! "

.......चेतन रामकिशन "देव"….…
दिनांक- ११.०६.२०१४

Tuesday, 10 June 2014

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नदी हमारे मन में बहती, और धारा थल पे दिखती है!
प्रेम भरे जल के अणुओं से, गतिशील जीवन लिखती है!

जल जीवन है, और बिन जल के जीवन ये मुश्किल होता!
और जहाँ प्रेम के हाथों, हर नफ़रत का हल होता है!

जल धारा की नमी धरा पर, हरियाली का सुख लिखती है!
नदी हमारे मन में बहती, और धारा थल पे दिखती है! "

...................चेतन रामकिशन "देव"….….................
दिनांक- १०.०६.२०१४
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

Sunday, 8 June 2014

♥♥♥♥प्रेम संगति..♥♥♥♥

♥♥♥♥प्रेम संगति..♥♥♥♥
प्रेम के ज्ञान से रहित हूँ मैं!
हाँ मगर तुममें ही निहित हूँ मैं!
मुझको सिखलाना प्रेम के आख़र,
नया अंकुर हूँ, नव उदित हूँ मैं!

भूल हो जाये तो क्षमा करना!
तुम गलत बात को मना करना!
रूठकर मुझसे दूर न जाना,
मेरे सपनों को तुम बुना करना!

तेरे हित को मैं वंदना करता,
न ही घृणित, हूँ न अहित हूँ मैं!

प्रेम के ज्ञान से रहित हूँ मैं!
हाँ मगर तुममें ही निहित हूँ मैं....

प्रेम का तुमसे ज्ञान पाने को!
तेरे वंदन में सर झुकाने को!
कितना उत्सुक हूँ क्या बताऊँ तुम्हे,
तेरे संग संग कदम बढ़ाने को!

दोष हो सकते हैं बहुत मुझमे,
नव रचित काव्य सा सृजित हूँ मैं!

प्रेम के ज्ञान से रहित हूँ मैं!
हाँ मगर तुममें ही निहित हूँ मैं...

द्वेष की गंध दूर कर देना!
प्रेम की तुम सुगंध भर देना!
"देव" हाथों से मुझको छूकर के,
मुझमें चंदन का तुम असर देना!

मन से चाहा है सत्यता में तुम्हें,
न ही मिथ्या हूँ, न कथित हूँ मैं!

प्रेम के ज्ञान से रहित हूँ मैं!
हाँ मगर तुममें ही निहित हूँ मैं! "


"
कोई-कहता है प्रेम स्वत: आ जाता है, कोई कहता है प्रेम स्वयं हो जाता है, सही बात है, प्रेम हो जाता है, आ जाता है, पर प्रेम का एक पक्ष ऐसा भी है जिसमें प्रेम पुलकित तो हो जाता है, पर कोमल मन को प्रेम का गहरा अर्थ पता नहीं होता, वो उड़ना चाहता है मगर ज्ञान नहीं होता, ऐसे में उसे मिलने वाली प्रेम संगति-प्रेम पूर्ण बना देती है,  और प्रेम के पुष्प सुगंध बिखेरने लगते हैं, तो आइये प्रेम करें! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-09.06.2014 

"सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

(चित्र साभार-गूगल)

Wednesday, 4 June 2014

♥♥पीड़ा की चादरपोशी..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा की चादरपोशी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!
जीवन के सब लम्हातों पर, पीड़ा की चादरपोशी है!
किसकी खता बताऊँ अब मैं, मुझको कुछ भी समझ न आये,
गलती मेरी, या कुदरत की, या मेरी किस्मत दोषी है!

ज़ख्म हो गया इतना गहरा, खुद हाथों से सिया गया न!
बिना जुर्म के सजा मिली है, पक्ष हमारा सुना गया न!

आह किसी की कोई सुने न, जाने कैसी बेहोशी है!
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!

अपनी आँखों में अश्क़ों की, नमी उन्हें दिखलाई मैंने!
अपनी पीड़ा और बेचैनी रो रोकर बतलाई मैंने!
"देव" मगर जब किसी ने मेरे, दर्द को नहीं सहारा बख्शा,
तब खुद को तन्हा रहने की, ये आदत सिखलाई मैंने!

उनके बिन जीना मुश्किल था, उनको कितना बतलाया था!
उनके बिन मेरे जीवन में, फूल ख़ुशी का मुरझाया था!

लगता है मेरी किस्मत भी, दुख ने ही पाली पोसी है!
खून नसों में जमा जमा है, आँखों में भी ख़ामोशी है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"….…….........
दिनांक- ०५.०६.२०१४  

Tuesday, 3 June 2014

♥कैसी मोहब्बत?..♥

♥♥♥♥♥♥♥कैसी मोहब्बत?..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जाने अब कैसी मोहब्बत वो, निभाने आया!
तोड़कर दिल मेरा वो अपना बताने आया!

मैंने पाला था जिसे खून और पसीने से,
वो सज़ा मौत की मुझको ही सुनाने आया!

अपनी मिन्नत, न तड़प, खुद का दर्द याद नहीं,
मेरे सीने से कभी दिल जो चुराने आया!

जो हक़ीक़त के लिए जान पे खेला कल तक,
आज दौलत के लिए, सर वो झुकाने आया!

मेरे जीते जी नहीं, जिसने की कदर मेरी,
मेरे मरने पे वो काँधे को लगाने आया!

दिन में देता रहा इज़्ज़त का भरोसा लेकिन,
रात में वो ही मुझे, नोंच के खाने अाया! 

"देव" लूटा है मुझे, उसने तसल्ली से मगर,
आज अख़बारों में घर मेरा सजाने आया! "

..........चेतन रामकिशन "देव"….……
दिनांक- ०३.०६.२०१४

Thursday, 29 May 2014

♥♥हम जैसे लोग..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥हम जैसे लोग..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रिश्ता न तोड़ देना, तुम हमसे एक पल में,
हम जैसे लोग दिल से, बरसों नहीं निकलते!

दिल में दर्द है भारी, आँखों में एक जलन है,
वरना तो सर्दियों में, आंसू नही उबलते!

मिन्नत करो उसी से, सीने में जिसके दिल है,
पत्थर से लोग देखो, बिल्कुल नहीं पिघलते!

होता न प्यार तुमसे, होती जो न मोहब्बत,
तो भूल से भी दिल के, अरमां नहीं मचलते! 

वो नाम के थे अपने, शायद वजह यही हो,
वरना वो देख मुझको, बचकर नहीं निकलते!

नियत में खोट होगा, उस आदमी की शायद,
वरना ज़मीर वाले, ऐसे नहीं फिसलते!

हमको न "देव " समझो, तुम अपने ही तरह का,
हम लोग प्यार वाले गुल को, नहीं मसलते!" 

.............चेतन रामकिशन "देव"….………
दिनांक- ३०.०५.२०१४

♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की मुफ़लिसी ..♥♥♥♥♥♥♥♥
फुर्सत मिली कभी तो, पूछेंगे जिंदगी से!
हमने था क्या बिगाड़ा, जो दुख मिला सभी से!

सिक्के भी और सोना, चाँदी भी है बहुत पर,
कैसे करें गुजारा खुशियों की, मुफ़लिसी से!

रिश्ते भी आज झूठे, एहसास कुछ नहीं है,
हम भी नहीं करेंगे, अब प्यार ये किसी से!  

हर रोज जीते जी ही, मरना पड़ा हमे तो,
फिर खौफ कैसे खाते, हम यार ख़ुदकुशी से!

जिसको था दिल से चाहा, उसने ही दिल को तोड़ा,
अब पार कैसे पायें, हम ग़म से, बेबसी से!

सूरत को देखकर ख़ुश, आंसू ने हमको दे दें,
गुमनाम हैं तभी हम, डरते हैं हम ख़ुशी से! 

माना के "देव" मुझसे, गलती हुई थी लेकिन,
खायेंगे अब न  धोखा, जज़्बात में किसी से! "

.............चेतन रामकिशन "देव"….…......
दिनांक- २९.०५.२०१४

Wednesday, 28 May 2014

♥♥मैं हूँ पत्थर..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मैं हूँ पत्थर..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी हसरत, मेरे एहसास मुझमें रहने दो!
मैं हूँ पत्थर के मुझे दर्द यहाँ सहने दो!

बांध टूटेगा तो आयेगी सुनामी कोई,
इसीलिए आँखों से मेरी ये अश्क़ बहने दो!

मैं सही हूँ ये मेरा दिल भी जानता है सुनो,
सारी दुनिया को जो कहना है, उसे कहने दो!

लोग महफ़िल में बड़े ही सवाल करते हैं,
मुझे तन्हा मुझे गुमनाम जरा रहने दो!

मेरे चेहरे पे खिंची दर्द की लकीरों से,
वास्ता आखिरी पल तक हमारा रहने दो!

ये महल तुम ही रखो, तुमको ही मुबारक हों,
मुझे माँ बाप का छोटा सा घर वो रहने दो!

"देव" उम्मीद है ये तुम मुझे मिलोगे कभी,
फ़ासला अपने दरम्यान भले रहने दो! "

.........चेतन रामकिशन "देव"……..
दिनांक- २९.०५.२०१४

Tuesday, 27 May 2014

♥प्यार का दीया...♥

♥♥♥♥♥प्यार का दीया...♥♥♥♥♥
एक दीया का प्यार का जलाने दो!
सारी नफरत को भूल जाने दो!

हाथ से हाथ तो मिले हैं बहुत,
दोस्ती दिल से अब निभाने दो!

हार से बढ़के क्या मिलेगा सुनो,
अपनी तक़दीर आज़माने दो!

कर दें इनकार वो है उनकी रज़ा,
हाले-दिल उनको तुम बताने दो!

नींद एक पल में पास आएगी,
माँ को लोरी तो गुनगुनाने दो!

गूंजे आँगन में हर घड़ी खुशियाँ,
घर में बेटी को खिलखिलाने दो!

"देव" उनको नज़र लगे न कोई,
अपने दिल में उन्हें छुपाने दो!"

.......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २८.०५.२०१४

♥♥प्रेम साधना..♥♥♥


♥♥♥♥♥प्रेम साधना..♥♥♥♥♥
न ही शत्रु हो न विनाशक हो!
भावनाओं की तुम उपासक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

जब से तुमसे मिलन हुआ मेरा,
आत्मा तुममें लीन रहती है!
एक नदी प्रेम से भरी मेरे,
मन के आँगन में रोज बहती है!

मेरी वृद्धि के तुम हो सहयोगी,
न ही कंटक हो, न ही बाधक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

न ही छल, न ही तुम अभिमानी,
न ही हिंसा की बात करती हो!
मेरी सुबह को तुम उजाला दे,
हर्ष भावों से रात करती हो!

तुम सिखाती हो सत्य की बातें,
न ही मिथ्या का तुम कथानक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!

तुम समर्पित हो तुम, तुम दयालु हो,
तुमसे आशाओं को गति मिलती!
"देव" मैं कुछ नहीं तुम्हारे बिना,
तुमसे मन को मेरे मति मिलती!

प्रेम से पूर्ण है तुम्हारी छवि,
न निराशा की तुम सहायक हो!
प्रेम को सिद्ध कर दिया तुमने,
तुम तपस्वी हो, तुम ही साधक हो!"

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक- २७.०५.२०१४


"
प्रेम, केवल ढाई अक्षरों में सिमट जाने वाला तत्व नहीं, अपितु व्यापक है, प्रेम सम्बंधित पक्षों में, जब समर्पण भाव के साथ निहित होता है, तो प्रेम आत्मीय अवस्थाओं में साधना का रूप ले लेता है, परन्तु इस साधना को वही प्रेम तपस्वी पूर्ण कर पाते हैं, जो प्रेम के वास्तविक मूल्यों से परिचित होते हैं, जो  प्रेम को ढाई अक्षरों मात्र में नहीं अपितु व्यापक अर्थों में देखते हैं, तो आइये प्रेम करें "


" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये कविता मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Sunday, 25 May 2014

♥टूटे दिल के बिखरे टुकड़े ♥

♥♥♥टूटे दिल के बिखरे टुकड़े ♥♥♥
मिन्नतें उम्र भर मैं करता रहा!
ख्वाब आँखों मैं जिनके भरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा!

खून के रिश्तों का ही अपनापन,
दिल के रिश्तों का कोई नाम नहीं!

प्यार के बदले मिल रही नफरत,
अब वफ़ा का कोई ईनाम नहीं!

उनको फुर्सत नहीं दवाओं की,
दर्द मेरा यहाँ उभरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा...

मैं भी इंसान हूँ नहीं पत्थर,
दर्द मेरे भी दिल को होता है!

मेरी आँखे भी हैं अभी जिन्दा,
आंसूओं का रिसाव होता है!

 "देव" कैसे यकीन हो सच का,
अब तलक तो हर एक मुकरता रहा!
देखते वो रहे तमाशा यहाँ,
दिल मेरा टूट कर बिखरता रहा! "

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- २६.०५.२०१४  

Saturday, 24 May 2014

♥अक्स तुम्हारा..♥

♥♥♥♥अक्स तुम्हारा..♥♥♥♥
तुम बिन चैन नहीं आता है!
तुमसे ये कैसा नाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है!

तुम्हें देखकर मन खुश होता,
तुम्हे सोचकर दिल हँसता है,
देख तुम्हारी सूरत लगता,
मानों तुम में रब वसता है!

इन्द्रधनुष भी तेरे नाम को,
मेरे संग में लिख जाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है...

तुमने नज़रें फेरीं जबसे,
गुमसुम खोया सा रहता हूँ,
बाहर से बेशक हँसता पर,
भीतर से रोया रहता हूँ!

तुम बिना दवा असर नहीं करती,
दिल गहरे से दुख जाता है!
जिधर भी देखूं नज़र उठाकर,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है! "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २४.०५.२०१४

Friday, 23 May 2014

♥♥पीड़ा की ज्वाला...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा की ज्वाला...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर!
मेरे कंठ को गला दिया है, जहर भरा एक प्याला बनकर!
नहीं पता मेरी हत्या कर, आखिर वो कैसे जीते हैं,
मेरी देह को किया है घायल, काँटों की एक माला बनकर!

है संवेदनहीन जहाँ ये, दिल को छलनी कर देता है!
अपने हित में किसी का आँचल, दर्द दुखों से भर देता है!

अंग अंग को सुन्न कर दिया, विषधर का एक छाला बनकर! 
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर...

अपनायत की बात करें पर, चुपके से जड़ काट रहें हैं!
प्यार भरे खिलते उपवन को, वो नफरत से पाट रहे हैं!
"देव" बड़ी आशायें लेकर, मैंने जिनको अपना माना, 
लोग वही शत्रु की तरह, नाम हमारा छांट रहे हैं! 

घाव हैं गहरे, खून रिसा है, पीड़ा का व्यापक स्तर है! 
तेज़ाबों का बादल ऊपर, नीचे शूलों का बिस्तर है!

जीवन मेरा हुआ है खंडहर, दुख लिपटा है जाला बनकर!
मेरे जीवित तन को फूंका, कुछ अपनों ने ज्वाला बनकर!"

.................चेतन रामकिशन "देव"….....................
दिनांक- २४.०५.२०१४ 

Thursday, 22 May 2014

♥♥तुम्हे देखकर...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हे देखकर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी!
पर तुम मिलने न आयीं तो, आँखों से बरसात हो गयी!
एक एक लम्हा तुम्हे पुकारा, बेचैनी के हालातों में,
नहीं पलटकर देखा तुमने, ऐसी भी क्या बात हो गयी!

क्या रंजिश है, क्यों गुस्सा हो, मुझको समझ नहीं आता है!
बिना तुम्हारे मेरा चेहरा, सुबक सुबक कर मुरझाता है!

खुशियों की ख्वाहिश थी लेकिन, पीड़ा की सौगात हो गयी!
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी...

तुम बिन धड़कन मंद हो गयी, सुनना कहना सब भूला हूँ!
बिना तुम्हारे एक पल को भी, जिन्दा रहना मैं भूला हूँ! 
"देव " तुम्हारे साथ ने मुझको, मंजिल का पथ दिखलाया था,
बिना तुम्हारे टूट गया मैं, मुश्किल को सहना भूला हूँ! 

मुझे तुम्हारे प्यार की ताक़त से, जीने का बल मिलता है!
मुझे तुम्हारे प्यार की ताक़त से, मुश्किल का हल मिलता है!

लेकिन तुमने साथ दिया न, जीती बाज़ी मात हो गयी !
तुम्हे देखकर दिन निकला था, तुम्हे सोचकर रात हो गयी! "

......................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२१.०५.२०१४

♥शूलों का रोपण..♥

♥♥♥♥शूलों का रोपण..♥♥♥♥
क्षण भर में आरोपित करते!
गलत तथ्य को पोषित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते!

खुद को गंगाजल औरों को,
मदिरा से सम्बोधित करते!
किसी मनुज की कर्मठता को,
क्षण भर में अवरोधित करते!
बस अपने आदेश सुनाते,
बिना पक्ष औरों का जाने,
पीड़ा के गहरे शब्दों को,
हर क्षण वो उद्बोधित करते!

आरोपों की अग्नि से वो,
जल जीवन अवशोषित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते....

किन्तु सबको एक रंग में ही,
रंग देना भी न्याय नहीं है!
बस अपने को गंगा कहना,
नीतिगत अध्याय नहीं है!
"देव" समय जब करवट लेता,
तो पर्वत भी गिर जाते हैं!
दिवसों, घंटों चाहने वाले,
लोग यहाँ पर फिर जाते हैं!

नहीं पता वो रक्त से कैसे,
अपने मन को शोधित करते!
किसी मनुज के कोमल मन पर,
शूल हजारों रोपित करते! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- २३.०५.२०१४

Tuesday, 20 May 2014

♥♥♥मन का अपराध..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन का अपराध..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को!
बिना तुम्हारे कैसे भर लूँ, मैं विरह के इन घावों को!
तुमने बेहद आसानी से, मेरे प्यार को ठुकराया है,
तुम्ही बताओ कैसे तोडूं, अपने हाथों से ख्वाबों को!

भले प्यार के पथ पे मैंने, दर्द बहुत गहरा पाया है!
लेकिन मन ने चाहा तुमको, मेरे दिल ने अपनाया है!

झेल रहा हूँ अपने दिल पर, मैं पीड़ा के प्रभावों को!
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को...

किसी की चाहत में रंग जाना, क्या मन का अपराध यही है!
किसी के ख्वाबों में खो जाना, क्या मन का अपराध यही है!
"देव" अगर कांटे बनते हम, तो दुनिया को रास न आते,
फूल यहाँ बनकर खिल जाना, क्या मन का अपराध यही है!

अगर मैं हूँ अपराधी तो फिर, सज़ा मुझे तुम ऐसी देना !
इस दुनिया से प्यार वफ़ा के, नाम को भी तुम दफ़ना देना!

नहीं रोक सकता हाथों से, मैं अश्क़ों के सैलाबों को! 
सोच पे ताला कैसे डालूं, बंद करूँ कैसे भावों को! "

..............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२१.०५.२०१४ 

Sunday, 18 May 2014

♥तेरी आँखों से..♥

♥♥♥♥♥तेरी आँखों से..♥♥♥♥♥
तेरी आँखों से हमें प्यार मिले!
तेरी आवाज़ से क़रार मिले!

तेरी ज़ुल्फ़ों में बूंद पानी की,
जैसे सावन भरी फुहार मिले!

बिन तेरे जिंदगानी पतझड़ थी,
तेरे आने से हर बहार मिले!

अपनी छत पर जो तुम चली आओ,
चांदनी रात को निखार मिले!

देखकर तुमको ऐसा लगता है,
तेरा दीदार बार बार मिले!

बस दुआ फूल की तुम्हारे लिए,
न ही उलझन, न कोई ख़ार मिले!

"देव" तुझको नज़र से छू लूँ जब,
सारा आलम ये खुशगवार मिले!"

..........चेतन रामकिशन "देव".......... 
दिनांक-१९.०५.२०१४

Saturday, 17 May 2014

♥♥बेगुनाही की सज़ा..♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेगुनाही की सज़ा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!
क्या मेरी आँखों का बहता झरना तुमको नजर न आया!
क्यों बस अपनी अपनी कहकर, मुझको ये इलज़ाम दिया है,
एक पल को भी मेरा ये दिल, इस सदमे से उभर न पाया!

क्यों मानवता मरी मरी है, कोई दिल की नहीं सुन रहा!
सब रस्ते में कंकर फेंके, कोई कांटे नहीं चुन रहा!

दवा तलक भी न दी उसने, और दुआ भी कर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया.....

लोग यहाँ औरों को कीचड़, खुद को गंगाजल कहते हैं!
बस अपने को कहें सार्थक, औरों को निष्फल कहते हैं!
"देव" जहाँ में जिनकी नीति, होती है बस खुदगर्जी की,
वही लोग सच्चे इन्सां की, निर्मलता को छल कहते हैं!

घाव दिए हैं शब्द बाण से, जो जीवन भर नही भरेंगे!
सबक मिला है आज हमे ये, अब अपनायत नहीं करेंगे!

कितना घातक जहर ये देखो, अमृत से भी मर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१८.०५.२०१४  

Friday, 16 May 2014

♥♥लड़ाई भूख से..♥♥

♥♥♥♥लड़ाई भूख से..♥♥♥♥
लड़ाई भूख से लड़ने लगे हैं!
परिंदे शाख़ से उड़ने लगे हैं!

नशे का दौर ऐसा आ गया के,
नए पत्ते भी अब सड़ने लगे हैं!

मेरे दुश्मन हैं जाने दोस्त हैं वो,
जो आंसू आँख में जड़ने लगे हैं!

हैं हरकत नौजवानों की घिनोनी,
बड़े भी शर्म से गड़ने लगे हैं!

जो बिगड़ा वक़्त तो टूटे सितारे,
वो राजा पैर तक पड़ने लगे हैं!

वफ़ा का खाद पानी न मिला तो,
ख़ुशी के फूल सब झड़ने लगे हैं!

नज़र में "देव" क्यों हैं सरफिरे वो,
जो सच की बात पे अड़ने लगे हैं!"

.......चेतन रामकिशन "देव"……  
दिनांक-१७.०५.२०१४

Thursday, 15 May 2014

♥♥किसी के दिल पे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥किसी के दिल पे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
बस इलज़ाम लगाने वाले, अपनी गलती क्या मानेंगे!
वो जिनकी आँखों को दिखता, बस नफ़रत का काला धुआं,
आखिर ऐसे लोग किसी की, चाहत को क्या पहचानेंगे!

बिना जुर्म के सजा मिले तो, मन को गहरा दुख होता है!
आँखों से बहती है धारा, उतरा उतरा मुख होता है!

मुझको ज़हर पिलाने वाले, खून को मेरे क्या छानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!

इस दुनिया का हाल यही है, चकित नहीं हूँ इस मंजर से!
लोग यहाँ चाहत को काटें,  कभी कुल्हाड़ी और खंजर से!
"देव" हमारे अपनेपन को, इल्ज़ामों का नाम दिया है,
इसीलिए अब चाहत छोड़ी, हमने इल्ज़ामों के डर से!

बस अपने में गुम होकर के, जो अपना जीवन जीते हैं!
कहाँ भला वो लोग जहाँ में, ज़ख्म किसी का कब सीटें हैं!

चीर के रखदूं मैं दिल भी पर, वो क्या सच को सच मानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!  "

...................चेतन रामकिशन "देव"…......................
दिनांक-१५.०५.२०१४

Sunday, 11 May 2014

♥♥माँ की छुअन..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की छुअन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!
हर संतान की खातिर माँ के, मन मेँ एक जैसी समता है!
नहीं जानती है माँ छल को, नहीं फरेबी माँ की बातें,  
माँ के मन में सहनशीलता की, देखो व्यापक क्षमता है!

माँ अपने बच्चों के हित में, अपना सुख भी त्यागा करती!
और बच्चों की नींद की ख़ातिर, रात रात भर जागा करती!

बच्चों को नाखुश देखे तो, खून यहाँ माँ का जमता है!
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!

गंगाजल सा पावन मन है, न क़ोई ईर्ष्या होती है!
माँ के आँचल में हर लम्हा, प्यार, वफ़ा, ममता होती है!
वो जो अपने हित की खातिर, गला घोट देती ममता का,
ऐसी औरत कभी रूह से, नहीं जरा भी माँ होती है! 

माँ केवल सम्बन्ध नहीं है, और माँ केवल नाम नहीं है!
माँ की कीमत नहीं है कोई, और ममता का दाम नहीं है!

बच्चों के घर न आने तक, माँ का तो जीवन थमता है!
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!

माँ सिखलाती कलम चलाना, माँ सिखलाती पैदल चलना!
माँ की हिम्मत में शामिल है, तिमिर में दीपक जैसे जलना!
"देव " जहाँ में रिश्ते नाते, माँ से बढ़कर हो नहीं सकते,
इसीलिए तुम एक पल को भी, माँ से नजरेँ नहीं बदलना!

जीवन का अाधार है माँ से, माँ के बिन दुनिया खाली है! 
माँ बच्चों को खुश्बू देती, माँ तो फ़ूलों की डाली है!

दुआ हजारों दे बच्चोँ को, प्यार नहीं माँ का थकता है ! 
छुअन है माँ की कोमल कोमल, अमृत के जैसी ममता है!"


................चेतन रामकिशन "देव"………………
दिनांक-११.०५.२०१४ 
  
( मेरी ये रचना दोनों माताओं माँ कमला देवी एवं प्रेमलता जी को समर्पित 

Sunday, 4 May 2014

♥माँ का आँचल ...♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का आँचल ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!
जो अपने आशीष भेजकर, संतानों में भरती बल है!
इस दुनिया में ढूंढे से भी, नहीं हमे मिल सकता देखो,
जितना पावन, जितना कोमल, इस दुनिया में माँ का दिल है!

माँ के दिल की करो वंदना, माँ के दिल की करो इबादत!
माँ के दिल में प्यार वफ़ा है, माँ के दिल में नहीं तिज़ारत !

माँ का दामन प्यार भरा है और माँ की ममता निश्छल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!

हर संतान उसे प्यारी है, नहीं किसी को कमतर आंके!
सही गलत का भेद कराती, संतानों के दिल में झांके!
कभी बेटियों की चोटी की, माँ अच्छे से करे सजावट,
और कभी बेटों की खातिर, वो गिरते बटनों को टांके!

आशाओं की जोत जलाती, अपनी संतानों के मन में!
निश दिन ईश्वर से कहती है, ठेस लगे न उनके तन में!

माँ की बोली शहद सी मीठी, माँ का मुखड़ा बड़ा धवल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!

माँ अपनी संतान का गुस्सा, हँसकर के टाला करती है!
अपना दुख और भूख भूलकर, बच्चों को पाला करती है!
"देव" जहाँ में माँ के दिल सा, बड़ा नहीं कोई दिल होता,
मा संतानों के क़दमों में, अपना सुख डाला करती है!

माँ की कोई जात नहीं है, न शहरी न ही देहाती!
मा का मज़हब बस ममता है, न कोई दीवार उठाती!

माँ की ममता सुर्ख गुलाबी, माँ की ममता श्वेत कमल है!
दूध भरा जिसके आँचल में, और जिसका मन गंगाजल है!"


"
माँ-एक चरित्र जिसका जन्म हुआ है ममता का प्रेषण करने के लिये, माँ के अपनत्व क निर्धारण हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्धिस्ट एवं अन्य के आधार पर नहीं,  अपितु ममता के आधार पर होता है, माँ के प्रखर स्वरूप को नमन "

.....चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-०४.०५.२०१४ 


Saturday, 3 May 2014

♥♥♥हमराज़...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हमराज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमसे गुजरा हुआ कल था, हो तुम्ही आज मेरे!
तुमसे एक बात तलक, मैंने न छुपाई है,
तुम ही अंजाम मेरा हो, तुम्ही आगाज़ मेरे! 

जानकर भी मेरे हालात, क्यूँ शिकायत है!
तुमको मालूम है जबकि, तु मेरी चाहत है!

तुमसे लफ्जों की चमक, और तुम हो साज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!

तुमको सपनो का पता, तुमको ख्वाहिश का पता!
तुमको मुझपर जो हुई, हर किसी साज़िश का पता!
और तुमसे क्या छुपाऊँ, हो रूह तुम मेरी,
तुमको जीवन में हुयी दर्द की बारिश का पता!

मुझसे नाराज़ भी रहकर, क्या भला पाओगे!
क्या मेरा घर, मेरी तस्वीर, तुम जलाओगे!

तेरे सजदे में झुक सर, तुम हो सरताज मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!

मेरा हर एक कदम साथ तेरे चलता है!
तुमसे मिलने को मेरा दिल भी तो मचलता है!
"देव" ये बात अलग है, कोइ मजबूरी हो,
वरना दिल मेरा भी, यादों में तेरी जलता है!

मेरी धरती भी तुम्ही, और तुम ही अम्बर हो! 
मेर आँगन हो तुम्ही और तुम मेरा घर हो!

तुमसे त्यौहार मेरे और तुम रिवाज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!"

"
प्रेम-के पथ में जब वो क्षण आते हैं जब, एक पक्ष दूसरे पक्ष के हर व्यवहार, हर कार्य, हर अनुभूति से परिचित होते भी संदेह की अवस्था लाता है तो वहां दूसरे पक्ष को पीड़ा मिलती है, हलांकि प्रथम पक्ष के संदेह जताने की पीछे प्रेम ही होता है मगर उसका स्वरूप उसे पीडा के रूप में प्रतिस्थापित कर देता है, और ये दशा प्रेम सबंधों के खंडित होने की अवस्था तक भी पहुँच जाती है, चूँकि प्रेम सम्बन्धित पक्षों के समर्पण क विषय है तो आइये चिन्तन करेँ! "


...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०३.०५.२०१४ 


Friday, 2 May 2014

♥♥बारूद..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बारूद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जिस्म बारूद बना इसको तुम सुलगने दो!
मेरे जज़्बात मेरे दिल में आग लगने दो!

मैं जो तड़पूँ तो मेरे मुंह को बंद कर लेना,
क्यों पड़ौसी को मेरी चीख से तुम जगने दो!

तुम तो कातिल हो तुम्हें दर्द से क्या मतलब है,
दिल को सीने से अलग करके तुम सुबकने दो!

सर्द मौसम में दवाओं का काम कर देंगे,
मेरे अश्कों को जरा तुम यहाँ भभकने दो!

मेरे हाथों में बनी थी जो प्यार की रेखा,
ग़म के तेज़ाब से तुम उसको जरा गलने दो!

बंदिशों में ही रहा जब तलक रह ज़िंदा,
बाद मरने के मेरी रूह को बहकने दो!

"देव" तुमसे न गिला और न शिकवा कोई,
बन्द आँखों से मुझे तय ये सफ़र करने दो!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०२.०५.२०१४


Wednesday, 30 April 2014

♥♥मजदूर के आंसू ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मजदूर के आंसू  ♥♥♥♥♥♥♥
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!

हर सियासी इन्हे छलने का काम करता है!
झूठे आंसू से भरोसा का, नाम करता है!
इनका मालिक भी नहीं देता है मेहनत है धन,
उनका सुख, चैन तलक वो नीलाम करता है!

चूल्हा ठंडा है बहुत भूख की अगन सहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता...

बिना रोटी के वो ज़िंदा भी भला कैसे रहे!
वो भी इन्सान है आखिर वो जुल्म कितना सहे!
"देव" कोई न सुने उसकी आह और चीखें,
फिर भला किसपे यक़ीं, किससे यहॉँ दर्द कहे!

उसकी आँखों से आंसुओं का समंदर बहता! 
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०१.०५.२०१४

" मई दिवस पर मजदूरों को नमन "

♥♥दोस्त बनकर♥♥

♥♥♥♥♥दोस्त बनकर♥♥♥♥♥
दोस्त बनकर जो पास आते हैं!
दुश्मनी फिर वही निभाते हैं!

सर छुपाने को जिसने बख़्शी जगह,
उसके के घर को वो जलाते हैं!

कोई तड़पे, कोई कराहे मगर,
लोग कब किसके काम आते हैं!

जाने वो कैसे रौंदते दिल को,
हम तो सुनकर के काँप जाते हैं!

मेरी तक़दीर की कमी शायद,
हम तो साहिल पे डूब जाते हैं!

जिसने पाला था जिसने पोसा था,
लोग उसका भी खूँ बहाते हैं!

"देव" मुझसे न मिल अकेले में,
लोग चर्चा में बात लाते हैं!" 

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४

Tuesday, 29 April 2014

♥सवेरे की धूप....♥♥

♥♥♥♥सवेरे की धूप....♥♥♥♥
धूप बन जायें हम सवेरे की!
रोक दें चाल हम अँधेरे की!

घोंसला रखके के कोशिशें कर लूँ,
पंछियों के नए वसेरे की!

मेरी हसरत है कुछ नया करना,
सीमा तोड़ी है बंद घेरे की!

पेड़ की छाँव सा सुकून लगे,
तेरी जुल्फों के उस घनेरे की!

आओ पहले तुम्हें अंगूंठी दूँ,
बात बाकी है सात फेरे की!

इस ज़माने को न बताना कभी,
राज की बात तेरे मेरे की!

"देव" ये जिंदगी की सूरत है,
कभी मंजिल, पड़ाव, डेरे की!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४ 

Sunday, 27 April 2014

♥♥तुम्ही शामिल दुआओं में..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥तुम्ही शामिल दुआओं में..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!
तुम्ही ने फूल बरसाये, मेरे जीवन की राहों में!
तुम्ही को देखना चाहूं, तुम्ही को सोचता रहता,
तुम्ही ने चैन बख़्शा है, मेरे दुख में, कराहों में!

तुम्ही उम्मीद की किरणों का सूरज लेके आती हो!
तुम्ही फिर चांदनी बनकर, जहाँ में खिलखाती हो!

तुम्हारा हाथ मैं थामूं, तुम्हे भर लूँ मैं बाहों में!
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!

तुम्ही आकाश में तारों की तरह, जगमगाती हो!
तुम्ही मेरे तरन्नुम में, ग़ज़ल बनकर समाती हो!
तुम्ही को देखकर के "देव" मुझको चैन आता है,
तुम्ही फूलों की क्यारी बनके, मेरा घर सजाती हो 

तुम्ही शब्दों की धड़कन में, कलम के नूर में तुम हो!
तुम्ही चन्दन तिलक, रोली, सखी सिंदूर में तुम हो!

सदा ऐसे ही तुम रखना, मुझे अपनी पनाहों में!
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!

.....................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२७ .०४.२०१४ 

Saturday, 26 April 2014

♥♥ठहराव...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ठहराव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलम थमेगा तो ठहराव बहुत होगा!
अश्क़ों का खारा सैलाब बहुत होगा!

फूल नहीं बरसाना मेरे दामन पर,
छिल जायेगा तन ये घाव बहुत होगा!

टाट लपेटो रिसते खूँ को रोको तुम,
गिरा जमीं पर तो फैलाव बहुत होगा!

आज ही अपना कफ़न खरीदा मंदे में,
कल महंगाई बढ़ी तो भाव बहुत होगा!

मैं जिन्दा हूँ लेकिन दाम चवन्नी है,
लेकिन उनका बुत नायाब बहुत होगा! 

ग़म की आग में झुलसी मेरी जवानी पर,
सब कहते हैं, हाँ रुआब बहुत होगा!

"देव" मेरे रुख़सत होने पर मत रोना,
तुझे रोशनी को महताब बहुत होगा!"

........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०४.२०१४ 

Friday, 25 April 2014

♥♥नफ़रत का ताबीज़...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥नफ़रत का ताबीज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता!
कौनसा ऐसा लम्हा होता, जिस दिन मुझको ग़म नही मिलता!
नफ़रत का ताबीज़ पहनकर, लोग करें उल्फ़त की बातें,
लेकिन इन झूठी बातों से, प्यार, वफ़ा को दम नहीं मिलता!

प्यार की बातें लगें खोखली, यदि यकीं, विश्वास नहीं हो!
पास भी होकर दूर लगे वो, ग़र दिल में एहसास नहीं हो!

नफ़रत की इस धुंध में देखो, सुकूं भरा मौसम नही मिलता!
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता...

रेगिस्तानी जीवन में जब प्यार की धारा बह जाती है!
तो दुनिया की सारी नफ़रत, देखो पीछे रह जाती है!
"देव" जहाँ में सच की ताक़त, भले देर से जीते लेकिन,
मगर ईमारत झूठ की देखो, एक दिन नीचे ढ़ह जाती है!

बिना प्यार और अपनेपन के, मानवता हारी रहती है!
खुली हवा में भी दम घुटता, सांस हर एक भारी रहती है!

नफ़रत से झुलसा हर पौधा, पत्ता तक भी नम नही मिलता!
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२५.०४.२०१४

Tuesday, 22 April 2014

♥♥टूटा दिल है...♥♥

♥♥♥♥टूटा दिल है...♥♥♥♥♥
टूटा दिल है कठिन जवानी,
और आँख से बहता पानी!
हंसी ख़ुशी का मौसम लगता,
मानो कोई बात पुरानी!
किससे अपने दुख बांटू मैं,
सारी दुनिया है बेगानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी!

लेकिन फिर भी ग़म से डरकर,
मैं जीते जी मर नहीं सकता!
सारी दुनिया की तरह मैं,
दिल को पत्थर कर नही सकता!

इसीलिए अपनी किस्मत से,
न छोड़ी उम्मीद लगानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी...

सारे सपने टूट गए पर,
फिर मैंने आस रखी है!
कुछ करने की अपने दिल में,
मैंने हरदम प्यास रखी है!
"देव" तलाशा है ग़म में ही,
मैंने खुशियों की बूंदो को,
इसीलिए मैंने ये पीड़ा,
साँझ सवेरे पास रखी है!

हाँ दुनिया को समझ न पाया,
मेरे दिल की है नादानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी! "

.....चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२२.०४.२०१४ 

♥♥प्यार के चार कदम...♥♥


♥♥♥♥♥प्यार के चार कदम...♥♥♥♥♥
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!
क्या मेरी सूरत-ए-ग़म को यहाँ बदल दोगे!
क्या चरागों को जलाओगे तुम मेरी खातिर,
क्या अंधेरों को उजालों में तुम बदल दोगे!

प्यार का नाम महज, तन की प्यास होता नहीं! 
देखकर जुल्मो-सितम ये उदास होता नहीं!
प्यार की राह में कांटे भी हैं अंगारे भी,
प्यार बस फूलों का देखो लिबास होता नहीं!

क्या मेरे उजड़े बागवान को तुम जल दोगे!
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!

क्या मेरी आँख के आंसू को तुम संभालोगे!
क्या मेरे पैर से कांटो को तुम निकलोगे!
"देव" सह लोगे क्या तुम मुझसे बिछड़ना खुद का,
या मेरे प्यार में बढ़कर के, मुझे पा लोगे!

क्या मुझे चैन सुकूं का, खिला कमल दोगे!
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२२.०४.२०१४