Tuesday, 30 December 2014

♥♥नये साल में...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नये साल में...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ। 
नये साल में अपने दिल की, बातों को सुनना चाहता हूँ। 
नये साल में हसरत है ये, नफरत मिट्टी में मिल जाये,
इसीलिए मैं मानवता के रस्ते को, चुनना चाहता हूँ। 

नहीं जानता ख्वाब हों पूरे, पर मन में विश्वास रखा है। 
अब से बेहतर कुछ करने का, साहस अपने पास रखा है। 

दुख के क्षण में भी फूलों सा, मैं जग में खिलना चाहता हूँ। 
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ... 

जो गलती इस साल हुईं हैं, उनका न दोहराव हो मुझसे। 
किसी आदमी के भी दिल में, भूले से न घाव हो मुझसे। 
"देव" जिन्होंने मेरी खातिर, अपना प्यार, दुआ बख्शी है,
उनसे मिलने और जुलने में, न कोई बदलाव हो मुझसे। 

नहीं मैं सूरज हूँ दुनिया का, भले तिमिर न हर सकता हूँ। 
लेकिन फिर भी दीपक बनकर, बहुत उजाला कर सकता हूँ। 

नये साल की नयी राह पर, ऊर्जा संग चलना चाहता हूँ। 
नये साल में कुछ आशायें, कुछ सपने बुनना चाहता हूँ। "

....................चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक--३०.१२.२०१४

Monday, 29 December 2014

♥♥♥वजह...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥वजह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अब लोगों के दिल में, जगह नही मिलती। 
खुश होने की एक भी, वजह नहीं मिलती। 

लोग घमंडी उड़ें भले ही कितने पर,
गिर जाने पे उनको, सतह नहीं मिलती। 

साँस आखिरी जूझो मंजिल पाने को,
थक जाने से जग में, फतह नही मिलती। 

गलती अपनी हो तो माफ़ी में क्या डर,
जिद्दी बनकर देखो, सुलह नहीं मिलती। 

मुल्क लूटने को तो, सब आमादा हैं,
संसद जैसी उनमे कलह नहीं मिलती।  

वो क्या जानें तड़प, जुदाई के आंसू,
प्यार में जिनको एक पल, विरह नही मिलती। 

"देव" यहाँ कानून, अमीरों का गिरवीं,
मुफ़लिस को बिन पैसे, जिरह नही मिलती। "

...............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--३०.१२.२०१४

♥♥दुशाला...♥♥


♥♥♥♥♥दुशाला...♥♥♥♥♥♥
खोटा सिक्का चल जाता है। 
सच का सूरज ढ़ल जाता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है। 

नहीं पता भारत की नीति,
नहीं पता कैसा निगमन है। 
रहे उमर भर मारा मारा,
निर्धन का ऐसा जीवन है। 
उसके अधिकारों को लूटें,
लोग यहाँ कुछ मुट्ठी भर ही,
आँख पे पट्टी कानूनों की,
निर्धन का बस यहाँ मरन है। 

निर्धन का सच भी अनदेखा,
झूठ ठगों का चल जाता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है...

काश के निर्धन के घर दीपक,
काश उजाला उसके घर हो। 
फटे हैं कपड़े, शीत में कांपे,
काश दुशाला उसके सर हो। 
व्यवस्थाओं के कान हैं बहरे,
निर्धन की आहें नहीं सुनती,
कब तक धरती बने बिछौना,
कब तक उसकी छत अम्बर हो। 

"देव" तड़प में कटता है दिन,
रोकर उसका कल आता है। 
भ्रष्टाचारी रहें ताप में,
शीत में निर्धन गल जाता है। "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--२९.१२.२०१४

Sunday, 28 December 2014

♥चंद्र खिलौना...♥



♥♥♥♥चंद्र खिलौना...♥♥♥♥♥
मन में हो जब चंद्र खिलौना। 
माँ की गोदी के बिन रोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना। 

केवल हठ हो कुछ नहीं सुनना। 
अपनी इच्छा से सब चुनना। 
टुकर टुकर देखे आँखों से,
बिन गिनते के तारे गिनना। 

माँ की लोरी सुनकर सीखा,
उसने गहरी नींद में सोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना....

चंचल चितवन और नादानी। 
भाव नहीं होते अभिमानी।  
"देव" नहीं बचपन को आती,
सोच लोभ की, न कोई हानि। 

अपने पांव के अँगठे को,
लार में अपनी बहुत डुबोना। 
दुग्ध पान को माँ से लिपटे,
वो बचपन का समय सलौना। "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--२८.१२.२०१४

Friday, 26 December 2014

♥फूल की देह...♥


♥♥♥♥फूल की देह...♥♥♥♥♥♥
पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो। 
इन चिरागों की रोशनी तुम हो। 
तुम को छुकर के मैं महकने लगूं,
फूल की देह सी बनी तुम हो। 

आँख प्यारी हैं और सूरत भी। 
तुम सवेरे सी खूबसूरत भी। 
रूह को तेरी प्यास है हरदम,
मेरी ख्वाहिश हो और जरुरत भी। 

प्यार की सम्पदा तेरे दिल में,
सोने चांदी से भी धनी तुम हो। 

पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो...

तेरे होने से ही खिले आँगन। 
तुमको पाकर के झूमता है मन। 
"देव" ख़त तेरे प्यार के मोती,
तेरे चित्रों को चूमता है मन। 

मुश्किलों ने कभी जो घेरा तो,
ढ़ाल बन साथ में तनी तुम हो। 
पूर्णिमा हो के चांदनी तुम हो। 
इन चिरागों की रोशनी तुम हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--२६.१२.२०१४

Wednesday, 24 December 2014

♥♥♥प्रेम पत्र...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम पत्र...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया। 
पढ़ा तरन्नुम में जब मैंने, लफ्ज़ लफ्ज़ एक ग़ज़ल हो गया। 
आँख मूंदकर जब खोली तो, पत्र में थी तस्वीर तुम्हारी,
तुम्हे देखकर दिल बोला ये, मेरा जीवन सफल हो गया। 

पत्र तुम्हारा फूलों जैसा, मुझे सुगंधित कर देता है। 
मेरी आँखों में चाहत के, लाखों सपने भर देता है। 

तेरे लफ़्ज़ों के छूने से, मुरझाया मन नवल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया.... 

प्रेम पत्र जब चूमा मैंने, लगा के मेरे पास में तुम हो। 
तुम लफ़्ज़ों के अपनेपन में, और मेरे विश्वास में तुम हो। 
पत्र में तुमने प्रेम विजय के, भावों का जो अक्स उभेरा ,
पढ़कर ऐसा लगा हमारे, जीवन के उल्लास में तुम हो।  

पत्र की स्याही में जो तुमने, प्रेम भाव का रस घोला है। 
पत्र नही वो मानो तुम हो, जिसने खुद सब कुछ बोला है। 

प्रेम पत्र से प्रेम की किरणें, पाकर के मन धवल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया... 

मन कहता है रोज तुम्हारा, प्रेम पत्र जब मिल जायेगा। 
आज की तरह मेरा चेहरा, खिले कमल सा खिल जायेगा। 
"देव" तुम्हारे लफ्ज़ हमारे, जीवन को रौशन कर देंगे,
हम दोनों की ताक़त होगी, ग़म का पर्वत हिल जायेगा। 

पत्र थामकर श्वेत कबूतर, जब मेरे आँगन में होगा। 
पत्र रूप में प्यार तुम्हारा, जीवन के हर कण में होगा। 

प्यार वफ़ा के फूल खिले तो, छोटा आँगन महल हो गया। 
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया। "

........................चेतन रामकिशन "देव"……..............
दिनांक--२४.१२.२०१४

Tuesday, 23 December 2014

♥♥♥योद्धा...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥योद्धा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। 
मुश्किल तो आयेंगी बिल्कुल, जीवन अगर जिया जाता है। 
बिना लड़े ही रणभूमि में, जीत नहीं मिल सकती कतिपय,
यदि जीतना चाहते हो तो, खुद को सबल किया जाता है।  

जो जीवन की रणभूमि में, दुख से हंसकर टकराते हैं। 
वही लोग इतिहास की रचना, इस दुनिया में कर पाते हैं। 

योद्धा वो है जो मरकर भी, जग में याद किया जाता है।  
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। 

दुनिया में कुछ करने वाले, नहीं हारकर चुप होते हैं। 
वो जीवन के कदम कदम पर, ऊर्जा के अंकुर बोते हैं। 
"देव" जहाँ में सबको कुदरत, नहीं रेशमी कम्बल देती,
योद्धा वो हैं जो भीतर का, ताप जगाकर दृढ होते हैं। 

जो बंजर को खोद खोद कर, कृषि भूमि कर जाते हैं। 
वही लोग तो इतिहासों में, नाम का अंकन कर पाते हैं। 

वीर वही वो जिसके द्वारा, मन को अभय किया जाता है। 
मिटकर नहीं सफर तय होता, डटकर सफर किया जाता है। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"……..............
दिनांक--२४.१२.२०१४

♥♥♥टूट गया मन..♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥टूट गया मन..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है। 
फूल दुखों की आंच में झुलसे, सूनी सूनी हर एक कली है। 
कुछ सपने हाथों में लेकर, जब भी पूरा करना चाहा,
किस्मत के संग अपनों का छल, लम्हा लम्हा मात मिली है। 

किसको दिल का हाल बताऊँ, कौन यहाँ पर दुख सुनता है। 
कौन किसे के ख्वाब यहाँ पर, अपने हाथों से बुनता है। 

मैंने चाही धूप खुशी की, पर गम की बरसात मिली है। 
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है... 

हार गया मन, रूठ गया मन, टुकड़े होकर टूट गया मन। 
लोग बढ़ गये हमे गिराके, सबसे पीछे छूट गया मन। 
"देव" जहाँ में नहीं किसी ने, मन को मेरे, मन से जोड़ा,
तन्हा होकर, गिरा अर्श से, फर्श पे गिरकर फूट गया मन। 

मन के टुकड़े देख देख कर, आँखों से आंसू बहते हैं। 
लोगों के दिल हैं छोटे पर, बड़ी बड़ी बातें कहते हैं। 

उम्र है छोटी मगर ग़मों की, बड़ी बड़ी सौगात मिली है। 
दिन निकला था पीड़ाओं में, गम में मेरी रात ढ़ली  है। "

...................चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--२३.१२.२०१४

Monday, 22 December 2014

♥♥यादों का दीपक...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥यादों का दीपक...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है। 
जो कुछ तुमने बख्शा हमको, हमने वो मंजूर किया है। 
तेरी चिट्ठी, तेरे खत को, पढ़कर मैंने रात गुजारी,
तेरे लफ़्ज़ों की ख़ुश्बू में, खुद के दिल को चूर किया है। 

भले मिले न लेकिन फिर, मेरे संग संग तुम रहती हो। 
मेरी कविता और ग़ज़ल में, भावुकता बनकर बहती हो। 

बिना तुम्हारे जीवन जीना, मैंने नामंजूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है...

अहसासों में मिल लेता हूँ, अहसासों में खो जाता हूँ। 
समझ के तकिया गोद तुम्हारी, मैं चुपके से सो जाता हूँ। 
जब आती है याद तुम्हारी, ख्वाबों के रस्ते से चलकर,
फिर तू मेरी हो जाती है और मैं तेरा हो जाता हूँ। 

बिना तुम्हारी सूरत वाला, शीशा चकनाचूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है...

तेरा प्यार है ऊष्मा जैसा, शीत की मुझको फ़िक्र नहीं है। 
मैं नहीं सुनता उन बातों को, जिनमे तेरा जिक्र नहीं है। 
"देव" जहाँ में प्यार की नदियां, जब आपस में मिल जाती हैं,
तो पत्तों, तो फूलों पर, प्यार की बूंदे खिल जाती हैं। 

सखी तुम्हारी दुआ ने मुझको, दुनिया में मशहूर किया है। 
तेरी यादों के दीपक से, गम का कोहरा दूर किया है।

..................चेतन रामकिशन "देव"……..........
दिनांक--२२.१२.२०१४

Saturday, 20 December 2014

♥♥जनम जनम का प्यार...♥♥


♥♥♥♥♥जनम जनम का प्यार...♥♥♥♥♥
हर पल मैं दीदार तुम्हारा चाहता हूँ। 
जनम जनम का प्यार तुम्हारा चाहता हूँ। 

अलंकार से जैसे कविता दमक रही,
वैसे ही सिंगार तुम्हारा चाहता हूँ। 

जब मंजिल पा लूँ तो अपनी तोहफे में,
मैं बाँहों का हार तुम्हारा चाहता हूँ। 

मुझको इज़्ज़त बख्शे मौला हाँ लेकिन,
पहले मैं सत्कार तुम्हारा चाहता हूँ। 

प्यार तुम्हारा सागर मेरे शब्द नदी,
पर फिर भी आभार तुम्हारा चाहता हूँ। 

अपना खून, पसीना, मेहनत सब देकर,
सपना हर साकार तुम्हारा चाहता हूँ। 

पीड़ा, आंसू, दुख न तुमको तोड़ सके,
ताकतवर आधार तुम्हारा चाहता हूँ। 

तेरा दिलासा रोते चेहरे चुप कर दे,
मैं ऐसा किरदार तुम्हारा चाहता हूँ। 

"देव " यकीं है हर पल तुमसे वफ़ा करूँ,
और खुद को हक़दार तुम्हारा चाहता हूँ। "

.........चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक--२०.१२.२०१४

Friday, 19 December 2014

♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥



♥♥♥♥♥♥पाकीज़ा एहसास...♥♥♥♥♥♥
पाकीज़ा एहसास तुम्हारी चाहत के। 
लम्हे लगते ख़ास तुम्हारी चाहत के। 

दिन में दूरी रोजी की, पर शाम ढले,
हम आते हैं, पास तुम्हारी चाहत के। 

बिना तुम्हारे दुनिया फीकी लगती है,
मीठे हैं एहसास, तुम्हारी चाहत के। 

धन, दौलत, मयखाना, चांदी न सोना,
बढ़कर हैं उल्लास तुम्हारी चाहत के। 

गोद में तेरी सर रखकर के सोया तो,
मलमल थे एहसास तुम्हारी चाहत के। 

तुम राधा के रूप में, हम मोहन बनकर,
संग संग करते रास, तुम्हारी चाहत के। 

"देव " हो दिन या रात मगर न करते हैं,
लम्हे ये अवकाश तुम्हारी चाहत के। "

.........चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक--१९.१२.२०१४

Wednesday, 17 December 2014

♥♥तेजाबी बारिश...♥♥


♥♥♥♥तेजाबी बारिश...♥♥♥♥
जड़वत, जिंदा लाश बनाकर। 
मुझको जीते जी दफनाकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर। 

मानवता के कोमल तन पर,
तेजाबी बारिश करते हैं। 
अपनेपन की आड़ में देखो,
नफरत के सौदे करते हैं। 
इनको मतलब नहीं दर्द से,
जान किसी की बेशक जाये,
अपना अहम उन्हें प्यारा है,
भले तड़प कर हम मरते हैं। 

चले गये हैं, शिफ़ा किये बिन,
मेरे सारे घाव दुखाकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर ...

बलि यहाँ पर अरमानों की,
होली जलती जज्बातों की। 
उन्हें चाह मेरी चीखों की,
नहीं तलब दिल की बातों की। 
"देव" उन्हें अपना माना पर,
सिवा ग़मों के क्या पाया है,
जिनके सीने में पत्थर हो,
वो क्या कद्र करें नातों की। 

बदल गये हैं मेरे ख्वाब वो,
ताशों के जैसे बिखराकर। 
अपनेपन का दावा करते,
मेरे घर में आग लगाकर। "

......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक--१७.१२.२०१४



Tuesday, 16 December 2014

♥बिलखती ममता...♥


♥♥♥बिलखती ममता...♥♥♥
बेसुध है, बदहाल हो गयी। 
मानो माँ कंगाल हो गयी,
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी। 

निर्मम अत्याचार हुआ है। 
जमकर नरसंहार हुआ है। 
माँ की ममता बिलख रही है,
बच्चों पर प्रहार हुआ है। 
चारों तरफ़ गूँज रही है,
दहशतगर्दों की हठधर्मी,
मौला भी खामोश देखता,
मानो वो लाचार हुआ है। 

बारूदों की लपट में झुलसी,
काली उनकी खाल हो गयी। 
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी... 

दहशतगर्द भला क्या जानें,
माँ की ममता क्या होती है। 
वो जिससे जन्मे धरती पर,
वो भी तो एक माँ होती है। 
लेकिन वो क्या जानें माँ को,
जो मानव का खूं पीते हैं,
"देव" भला ये नरपिशाच कब,
मानवता के संग जीते हैं। 

फटी किताबें, उधड़े बस्ते,
मौन सभी की चाल हो गयी। 
दहशतगर्दों की  हठधर्मी,
खून से धरती लाल हो गयी। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक--१७.१२.२०१४

Saturday, 13 December 2014

♥♥हमारे नाम का पौधा ...♥♥


♥♥♥♥♥♥हमारे नाम का पौधा ...♥♥♥♥♥♥♥♥
हमारे नाम का पौधा लगाना अपने आँगन में। 
हमारी याद में दीपक जलाना अपने आँगन में। 

जो कोई ख़्वाब मेरी डूबती आँखों ने देखा था,
उसे हाथों से तुम अपने सजाना, अपने आँगन में। 

हवाओं में तुम्हारी खुश्बू को महसूस कर लूंगा,
महकते फूल जैसे मुस्कुराना, अपने आँगन में। 

मैं भी इंसान था, गलती हजारो मैंने भी कीं थीं,
अकेले खुद को न मुजरिम बनाना, अपने आँगन में। 

मेरे खत और तस्वीरें, तेरी हमदर्द बन जायें,
उन्हें तुम चूमना, दिल से लगाना अपने आँगन में। 

यहाँ आना, चले जाना, हक़ीक़त है ये सच्चाई,
नहीं इस बात को झूठा बताना, अपने आँगन में। 

ये दुनिया बेमुरब्बत है, तुम्हे न "देव" जीने दे,
तभी तुम नाम को मेरे छुपाना, अपने आँगन में। " 

.................चेतन रामकिशन "देव"……...........
दिनांक--१४.१२.२०१४

Friday, 12 December 2014

♥♥♥डाका...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥डाका...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुफ़लिस के हक़ पे अब पड़ता डाका है। 
चूल्हा ठंडा, उसके घर में फाका है।  

अपनी छत उधड़ी, पर क़र्ज़ परायों को,
कहो तरक्की का ये कैसा खाका है। 

दफ्तर में बेख़ौफ़ लुटेरे लूट रहे,
मानो अफसर हर मुफ़लिस का आका है। 

सूखे बच्चे रोग कुपोषण का फैला,
पुष्टाहार भले घर घर में आँका है। 

काला धन आखिर कैसे परदेश गया,
मुल्क में यूँ तो कदम कदम पर नाका है। 

अरबों, खरबों हड़प के भी आज़ाद फिरें,
कानूनों से बाल से इनका बांका है। 

"देव " नज़र ये रस्ता तकते लाल हुईं,
पर किसने मुफ़लिस के घर में झाँका है।  "

...........चेतन रामकिशन "देव"……......
दिनांक--१३.१२.२०१४



Thursday, 11 December 2014

♥♥लफ़्ज़ों की स्याही...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥लफ़्ज़ों की स्याही...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरा खत जब भी देखा है, तेरा एहसास पाया है। 
तेरा चेहरा, तेरे लफ़्ज़ों की स्याही में समाया है। 

भले मैं बेवफा था या वफ़ा तुम कर नहीं पायीं,
तेरे सजदे में मेरा सर, जो तेरा दिल दुखाया है। 

भले रिश्ता नहीं बाकी जो तुमसे बात भी कर लूँ,
मगर तेरे तरन्नुम ने, मेरी ग़ज़लों को गाया है।  

बिछड़ना था अगर किस्मत, तो क्यों मिलने के पल बख्शे,
खुदा तेरी खुदाई ने भी, क्या आलम दिखाया है। 

मोहब्बत मेरी नज़रों में, नहीं हसरत नुमाईश की,
तभी टूटे हुये दिल को, यहाँ मैंने छुपाया है। 

तड़प, या दर्द या आंसू, या खुशियों के कोई तोहफे,
मुझे तुमने दिया जो भी, वो माथे से लगाया है। 

सफर तन्हा है लेकिन "देव", फिर भी काट लेता हूँ,
हुनर तुमने ही तो गिरकर के, उठने का सिखाया है। "


.................चेतन रामकिशन "देव"……...........
दिनांक--१२.१२.२०१४

Tuesday, 9 December 2014

♥♥♥सफर...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सफर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सफर धीमा सही, लेकिन चलो शुरुआत करते हैं। 
नज़र खुद पे टिकाकर, आज खुद से बात करते हैं। 

नहीं आया कोई मरहम लगाने ज़ख्म पे तो क्या,
खुले घावों पे आओ, ओस की बरसात करते हैं। 

मेरे अपनों ने ही मुझको ज़हर की सुईयां घोंपी,
नहीं दुश्मन कभी छुपकर के, मुझ पे घात करते हैं। 

चलो सबको दुआ बख्शो, नहीं रखो गिले शिकवे,
नहीं इंसानियत की, नफरतों से मात करते हैं। 

उजाला बेचने वालों कभी देखो भी उस तरफ़ा,
अँधेरे में गुजारा जो यहाँ, हर रात करते हैं। 

मेरा दामन, तेरे एहसास के, रंगों से रंग जाये,
तभी हम तेरी यादों से, हमेशा बात करते हैं। 

सुनो अब "देव" तुम होना, किसे के बाद में लेकिन,
चलो पहले खुदी से प्यार के, हालात करते हैं। "

..............चेतन रामकिशन "देव"…….......
दिनांक--१०.१२.२०१४

♥♥रिक्तता...♥♥


♥♥♥♥♥रिक्तता...♥♥♥♥♥♥♥
रिक्तता बिन तेरे बहुत होती। 
आँख भी बिन तेरे नहीं सोती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती। 

तेरे आने की राह नजरों में। 
तेरे दर्शन की चाह नज़रों में। 
तेरी धुंधली सी भी झलक न दिखे,
तो उमड़ती है दाह नजरों में। 

चाहकर भी ये अब जटिल पीड़ा,
देखो अवकाश में नहीं होती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती …

प्राण के बिन मेरा ये तन रहता। 
मौन हूँ अब मैं कुछ नहीं कहता। 
" देव " पाषाण तुमने समझा तो,
बनके जलधार मैं नहीं बहता। 

ढ़लना चाहूँ मैं तेरी प्रतिमा में,
और कोई आस अब नहीं होती। 
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती। "

......चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--०९.१२.२०१४

Monday, 8 December 2014

♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। 
धधकते सूर्य के ऊपर भी, जब पहरा दिखाई दे। 
तुम्हें उम्मीद के दीयों से, उसको फिर जगाना है,
कोई ज्योति अगर तुमको, कभी बुझती दिखाई दे। 

अँधेरा देखकर, डरकर, सफर तय नहीं हो सकता। 
जिसे हो जीतना उसको कोई भय हो नहीं सकता! 
किसी का साथ मिल जाये तो बेहतर है सफर लेकिन,
कोई जो साथ छोड़े तो प्रलय भी हो नहीं सकता। 

भुजाओं में जो रखते बल, अकेले होके भी भारी। 
वही मौका गंवाता है, वो जिसकी सोच है हारी। 

सुनो संगीत तुम दिल का, जो दुनिया चुप दिखाई दे। 
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। "

..............चेतन रामकिशन "देव"…….......... 
दिनांक--०९.१२.२०१४

♥♥♥कविता...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥कविता...♥♥♥♥♥♥
सखी को सौंपे प्यार कविता। 
दुश्मन को अंगार कविता। 
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता। 

कविता मन में और चेतन में। 
कविता फूलों के आँगन में। 
कविता तो है भाव मखमली,
कभी जवानी और बचपन में। 

दूर दराजे फौजी को है,
माँ ममता का तार कविता ।
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता....

कविता ज्योति, कविता मोती। 
कविता  मन में खुशियां बोती। 
"देव" कविता है उजियारा,
धवल चाँद सी उज्जवल होती। 

एक दूजे को प्यार बाँचती,
चंदा में दीदार कविता। 
निर्धन के अधिकार की वाणी,
सच्ची और खुद्दार कविता। "


........चेतन रामकिशन "देव"…….....
दिनांक--08.12.2014



Sunday, 7 December 2014

♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥इक्कीसवीं सदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। 
कहने को वो चाँद से आगे निकल गया है। 
हौड़ मची है दमके, नाम, अहम उसका, 
इसीलिए इन्सां का खूं भी, निगल गया है। 

छाती चौड़ी, शब्द बड़े हैं, लेकिन छोटा दिल रखता है। 
आज आदमी अपने दिल में, नफरत की महफ़िल रखता है। 
किसी के हक़ पे डाका डाले, किसी के घर की लूटे अस्मत,
पढ़ा लिखा होकर भी मानव, अब खुद को जाहिल रखता है। 

हर दिल में तेज़ाब यहाँ पर उबल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है...

नीली स्याही लाल हो गयी, अब रंगत बदहाल हो गयी। 
बस पैसों की खातिर सबकी, बदली बदली चाल हो गयी। 
कोई किसी के दुःख में आकर, नहीं बांटता जरा दिलासा,
कोष में लाख-करोड़ों लेकिन, मानवता कंगाल हो गयी। 

पल भर में अरमान यहाँ कोई कुचल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है... 

नहीं पता है आगे का, क्या आलम होगा।  
"देव" न जाने जुर्म, कभी ये कम होगा। 
घर घर में पिस्तौल की खेती होगी तब,
हर बच्चे के हाथ में, शायद बम होगा।  

आज आदमी सच्चाई से फिसल गया है। 
इस इक्कीसवीं सदी का मानव बदल गया है। "

...............चेतन रामकिशन "देव"……............
दिनांक--08.12.2014

Wednesday, 3 December 2014

♥♥♥घायल... ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥घायल... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 
ये अपने हैं या फिर दुश्मन, दुख से आँचल भर देते हैं। 
जो अक्सर दावा करते हैं, मैं उनको हूँ खून से बढ़कर,
वही लोग क्यों मेरी रूह से, इस तरह छल कर देते हैं। 

प्रेम नाम की माला जपकर जो दुनिया को दिखलाते हैं। 
वही लोग क्यों निर्ममता से, प्रेम की हत्या कर जाते हैं। 
फूलों जैसे स्वप्न दिखाकर, शहद सी बातें करने वाले,
एक पल भर में ही प्यार वफ़ा के, संबंधों को झुठलाते हैं। 

एक क्षण में ही शांत नदी में, वो कोलाहल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। 

मेरी आह का, मेरी चीख का, उनको असर नहीं होता है। 
क्या मालूम हमारे तन में, उनसा रुधिर नहीं होता है। 
"देव " हमारी हथेलियों में, क्या कोई ऐसी शेष है रेखा,
जिसके पथ पर पीड़ा, दुश्मन, दुख और ज़हर नहीं होता है।  

वो मिथ्या से सुरा तलक को भी, गंगाजल कर देते हैं। 
दिल पे पत्थर मार मार के, मुझको घायल कर देते हैं। "

....................चेतन रामकिशन "देव"……............. 
दिनांक--०४.१२.२०१४ 

Monday, 1 December 2014

♥♥फूल ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥फूल...♥♥♥♥♥♥♥♥
फूल काँटों में जब खिले होंगे। 
देखकर कितने दिल जले होंगे। 

बाद अरसे के मिलने पे हो पता,
हमसे कितने उन्हें गिले होंगे। 

वो तो मुफ़लिस है और दवा महंगी,
घाव हाथों से ही सिले होंगे।  

प्यार में दिन का हर पहर उनका,
रात को ख्वाब में मिले होंगे। 

वो यकीं चाहकर भी कर न सके,
जिनके अरमान बस छले होंगे। 

उनको मालूम क्या मोहब्बत है,
जिस्म से खून जो मले होंगे। 

"देव " अपने हैं सिर्फ वो देखो,
दर्द में साथ जो चले होंगे। "

.....चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०२.१२.२०१४ 

♥♥रस्म प्यार की......♥♥

♥♥♥♥रस्म प्यार की......♥♥♥♥
जान बूझकर खता कर रहे।
रस्म प्यार की अता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे।

प्यार नाम का भी क्या करना,
जो सूरत भी याद रहे न। 
इतना अनदेखा भी क्यों हो,
जो कोई संवाद रहे न। 
यदि निहित तुम हो नहीं सकते,
नहीं सुहाती प्यार की भाषा,
तो क्यों ऐसा ढोंग दिखावा,
जिसमे दिल आबाद रहे न।

जो चाहते थे नाम हमारा,
वही हमें लापता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे...

क्यों रिश्तों में रस्म निभानी,
क्यों चाहत की नींव गिरानी। 
क्यों देकर के झूठी खिदमत,
किसी के दिल को ठेस लगानी। 
"देव " प्यार के संग में ऐसा,
बोलो ये खिलवाड़ भला क्यों,
साथ नहीं जब दे सकते तो,
क्यों झूठी उम्मीद बंधानी।

वो क्या देंगे यहाँ सहारा,
अनुभूति जो धता कर रहे। 
जो कहते थे मैं दिल में हूँ,
वही हमारा पता कर रहे। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४






♥♥मुफ़लिस...♥♥

♥♥♥♥♥मुफ़लिस...♥♥♥♥♥♥
खून, पसीना बह जाता है। 
मुफ़लिस बेबस रह जाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। 

इन सरकारी दवा घरों में,
दवा नाम भर को मिलती है। 
मुफ़लिस को तो कदम कदम पर,
ये सारी दुनिया छलती है। 
मजदूरी को जाने वाले कितने,
देखो मर जाते हैं,
लावारिस में दर्ज हो गिनती,
कफ़न तलक भी कब मिलती है। 

चौथा खम्बा भी खुलकर के,
कब इनका हक़ कह पाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है …

सरकारों की अब मुफ़लिस के,
दर्द पे ज्यादा नज़र जरुरी। 
बिन छत के जो जले धूप में,
उसकी खातिर शज़र जरुरी। 
"देव" देश के मुफ़लिस की हो,
बात जात मजहब से हटकर,
प्यास उसे भी लगती देखो,
उसको भी तो लहर जरुरी। 

बिना सबूतों के वो बेबस,
कड़ी सजा भी सह जाता है। 
बीमारी में घर बिक जाये,
घर का चूल्हा ढह जाता है। "


........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-३०.११.२०१४






Friday, 28 November 2014

♥♥माँ की एक छुअन...♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की एक छुअन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 
कष्ट में संतान हो तो माँ का, चैन सुकूं खोने लगता है। 
माँ तो माँ है संतानों की, सूरत में दुनिया को देखे,
नींद तभी आती है माँ को, जब बच्चा सोने लगता है। 

माँ की ममता इतनी व्यापक, लाखों सागर भर जाते हैं। 
माँ को खुशियां मिलती हैं जब, बच्चे अच्छा कर जाते हैं। 

माँ की एक छुअन भर से ही, दर्द दूर होने लगता है।  
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 

माँ कविता जैसी कोमल है, माँ गीतों जैसी प्यारी है। 
माँ लेखन की खुशबू में है, माँ उपवन है, फुलवारी है। 
माँ गौरी हो, या काली हो, फ़र्क़ नहीं पड़ता है इससे,
माँ की ममता धवल चांदनी, माँ की ममता मनोहारी है। 

माँ अपनी संतान के आंसू, बिना झिझक के पीना चाहे। 
माँ बच्चों की खुशियों में ही, अपना जीवन जीना चाहे। 

माँ खुश होती है जब बच्चा, ख्वाबों का बोने लगता है। 
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 

माँ मिथ्या के अनुसरण का, ज्ञान नहीं बच्चों को देती। 
माँ ईर्ष्या का, द्वेष का किंचित, दान नहीं बच्चों को देती। 
"देव " जहाँ में माँ से सुन्दर, कोई छवि नहीं हो सकती,
माँ भूले दुख का विष का, पान नहीं बच्चों को देती। 

माँ की आँखों में बच्चों की, सूरत हर पल ही रहती है। 
माँ को हो सम्मान सदा ही, सारी कुदरत ये कहती है। 

माँ की ऐसी ममता से तो, ज़हर-मधु होने लगता है। 
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। "


"
माँ- शब्दकोष के सभी शब्द जो प्रसंशा के लिए, सम्मान के लिए, अपनत्व के प्रयुक्त होते हों, वे समूचे शब्द माँ की ममता में निहित होते हैं, माँ के ऐसे व्यापक स्वरूप को नमन। "

" मेरी ये रचना मेरी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को सादर समर्पित। "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २९.११.२०१४ 

" "




Wednesday, 26 November 2014

♥♥♥मोम...♥♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥मोम...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब पत्थर को मोम बनाया जाता है। 
नफ़रत का हर राग भुलाया जाता है। 

हर ख़्वाहिश पूरी न होती दुनिया में,
कभी कभी खुद को समझाया जाता है। 

ऊंच नीच, दौलत की बातें दूर रहें,
दिल से दिल का मेल कराया जाता है। 

अपनी कमियां भी आँखों में आ जायें,
जब दर्पण खुद को दिखलाया जाता है। 

खुशियां आतीं घर की चोखट पे खुलकर,
जब बिटिया को भी मुस्काया जाता है। 

एक दिन देखो नज़र जहां की पड़ जाये,
प्यार को बेशक लाख छुपाया जाता है। 

"देव" उन्हें भी कद्र दोस्ती की होगी,
आज भले दुश्मन बतलाया जाता है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२६.११.२०१४

Tuesday, 25 November 2014

♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥

♥♥♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥♥♥
तुमसे मिलने जुलने का मन। 
साथ तुम्हारे चलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,
मेरा मुझमें शेष नहीं कुछ। 
तुमने कोमलता सिखलाई,
अब मन में आवेश नहीं कुछ। 

जो तेरे माकूल हो वैसे,
तेरी ख़ातिर ढ़लने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुम भावों में आये,
कविताओं के फूल खिले हैं। 
शब्द भी रहते "देव" कलम में,
एहसासों को रंग मिले हैं। 

तेरे अधरों की नरमी को,
हिम से जल में घुलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। "

......चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक-२६.११.२०१४ 

♥♥♥फासले...♥♥♥


♥♥♥♥♥फासले...♥♥♥♥♥♥
फासले पास में नहीं रखना। 
दर्द, एहसास में नहीं रखना। 

मैं पुकारूँ जो और तुम न मिलो,
खुद को वनवास में नहीं रखना।  

चाँद हो तुम, मगर कभी खुद को,
दूर आकाश में नहीं रखना। 

जो मेरा दिल कहे वो दे दो तुम,
बात कोई काश में नहीं रखना। 

लिखो, चिपकाओ और मुझे भेजो,
ख़त को अवकाश में नहीं रखना। 

पत्तियां, फूल जो तरसते रहें,
सूखा मधुमास में नही रखना। 

"देव " देरी हो पर नहीं दूरी,
खुद को प्रवास में नहीं रखना। "

......चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक-२५.११.२०१४

Sunday, 23 November 2014

♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥


♥♥♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥♥♥
माँ की गोद में रखा सर हो। 
भरा ख़ुशी से सबका घर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। 

हे! कुदरत तुमसे विनती है,
दिल लोगों का साफ़ करो तुम। 
न्याय की खातिर भटक रहा जो,
उसके संग इन्साफ करो तुम। 
ये क्या तुम आँखों को मूंदे,
लाचारों पर जुल्म देखतीं।
जो लोगों के हक़ को लूटें,
कभी न उनको माफ़ करो तुम। 

बिन रोटी के मरे न मुफ़लिस,
और न जल में घुल जहर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो...

सही कार्य का अवलोकन कर,
उसको आगे करते रहना। 
हे! कुदरत तुम शक्तिशाली,
पापी जन का बोझ न सहना। 
"देव" की तरह लोग अनेकों,
विनती तुमसे ये करते हैं,
नहीं तनिक भी निर्दोषों के,
घर को बिजली बनकर ढहना। 

इस जग को तुम ऐसा कर दो,
घर घर में बहता मधुकर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२४ .११.२०१४


Saturday, 22 November 2014

♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥


♥♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥♥
फूलों में भी गंध नहीं है। 
अब सच्ची सौगंध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। 

चटक रहे दिल शीशे जैसे,
भावुकता का मान नहीं है। 
दर्द किसी को कितना होगा,
मानो उनको ज्ञान नहीं है। 
परदे पर नाटक का मंचन,
करके पात्र बदल जाते हैं,
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा का,
अब कोई स्थान नहीं है। 

खेल रहें हैं लोग दिलों से,
कोई प्रतिबन्ध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है...

नाम की नातेदारी रखना,
अब लोगों का नया नियम है। 
तोड़ के दिल वो सोच रहे हैं,
मानो कोई सही करम है। 
"देव" न जाने क्यों लोगों के,
हाथ जरा भी नहीं कांपते,
अब अपनायत नहीं रही है,
न ही मन में बचा रहम है। 

मारके दिल लावारिस छोड़ें,
कफ़न का भी प्रबंध नहीं है। 
 क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२३.११.२०१४ 

Wednesday, 19 November 2014

♥♥साथ ग़र तेरा...♥♥

♥♥♥♥♥साथ ग़र तेरा...♥♥♥♥♥
साथ ग़र तेरा मिल गया होता। 
प्यार का दीप जल गया होता। 

हौंसला तेरे प्यार का पाकर,
ग़म का पर्वत भी हिल गया होता। 

तू जो हाथों से अपने देती शिफ़ा,
मेरा हर घाव सिल गया होता। 

बीज उल्फ़त के रोंप देतीं अगर,
फूल चाहत का खिल गया होता। 

प्यार का मुझको ऐसा देते शहद,
मेरे दिल में जो घुल गया होता।    

रौशनी लेके तेरी रंगत की,
ये अँधेरा भी ढल गया होता। 

प्यार तक़दीर में नहीं शायद,
"देव" होता तो मिल गया होता। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१९.१०.२०१४

Monday, 17 November 2014

♥♥तेरी नज़दीकी...♥♥♥


♥♥♥♥♥तेरी नज़दीकी...♥♥♥♥♥♥
रात आकाश को छुपाने लगी। 
मुझको भी तेरी याद आने लगी। 

तेरी सूरत को और दमक देने,
चांदनी फिर जमीं पे आने लगी। 

तू जो आई जो मेरी देहरी पर,
दीप की लौ भी खिलखिलाने लगी। 

तेरी नज़दीकी का असर पाकर,
जिंदगी सारे ग़म भुलाने लगी। 

हर तरफ पर फूल खिल गए जबसे,
प्यार की दुनिया तू वसाने लगी। 

हर घड़ी तेरा ही तसुव्वर है,
रूह में जब से तू समाने लगी। 

"देव" सर मेरा गोद में रखकर,
प्यार से मुझको तू सुलाने लगी। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१७.१०.२०१४ 

Saturday, 15 November 2014

♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है। 
सही मनुज भी निर्ममता से, जग में दंडित हो जाता है। 
वो जिसको एहसास नहीं हो, यहाँ प्रेम की भावुकता का,
वही यहाँ झूठे तथ्यों से, प्रेम का पंडित हो जाता है। 

प्रेम का अंकन मुखपृष्ठों पर, अंकित करना प्रेम नहीं है। 
बस अपने को श्रेष्ठ समझकर, सुरभित करना प्रेम नहीं है। 
प्रेम तो है एक भाव समर्पण, नहीं कोई ऊँचा न नीचा,
ऊपरी मन से, प्रेम पुष्प को, पुलकित करना प्रेम नहीं है। 

प्रेम नहीं वो जिसमें धन का, वंदन मंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है... 

प्रेम विषय के संदर्भों में, सबकी अपनी परिभाषा है। 
वो उतना ही प्रेम में डूबे, जिसकी जितना जिज्ञासा है। 
"देव" यहाँ पर प्रेम को कोई, महज तनों का मिलन बताये,
और किसी की विश्लेषण में, प्रेम आत्मा की भाषा है। 

वो क्या जाने प्रेम को जिसका, मूल्य घमंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है।  "

...................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-१६.१०.२०१४ 

Thursday, 13 November 2014

♥♥बाल श्रम की मज़बूरी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बाल श्रम की मज़बूरी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घरवालों के लालन पालन को, एक बच्चा श्रम करता है। 
बहन की शादी, दवा पिता की, घर के तम को कम करता है।
उसकी इच्छा भले नहीं हो, बालकपन में श्रम करने की,
पर चूल्हे की आग की खातिर, वो मेहनत का दम भरता है। 

सरकारें कहती हैं देखो, बाल श्रम पे रोक सही है। 
बच्चों का शोषण होता है, न खाता है, नहीं बही है। 
मैं भी इस सरकारी मत से सहमत हूँ पर ये कहता हूँ,
बिन पैसों के उस बच्चे के, घर में भूखी लहर रही है। 

क्या सरकारी जिम्मेदारी, बाल श्रम रुकवाने भर है। 
उस श्रमिक को मदद क्यों नहीं, जिसका भूखा प्यासा घर है। 

बाल श्रम रुकवाया जाये, पर पीड़ित का दुख हरकर के। 
बिना मदद के मर जायेंगे, रोगी बूढ़े उसके घर के। 

इसीलिए तो बाल श्रम की, वजह को पहले छांटा जाये। 
और फिर उनको प्यार वफ़ा के, खिले सुमन को बांटा जाये।   

बाल श्रम पे अंकुश का ये, सफल तभी प्रयास रहेगा। 
जब निर्धन को अन्न, दवा और खुशियों का एहसास रहेगा! "

......................चेतन रामकिशन "देव"…...................... 
दिनांक-१३.१०.२०१४

Monday, 10 November 2014

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी तस्वीर में तेरा ही अक्स दिखता है।
एक लम्हे की जुदाई से भी दिल दुखता है।
बिन तुम्हे देखे मेरा दिल भी अधूरा मैं भी,
देख के तुझको कलम गीत नये लिखता है।

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

...........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१०.१०.२०१४

Sunday, 9 November 2014

♥♥♥तुम्हारा ख्वाब...♥♥♥


♥♥♥♥तुम्हारा ख्वाब...♥♥♥♥♥♥
रात भर ख्वाब मैं सजाता रहा। 
तेरा चेहरा ही याद आता रहा। 

जब हवाओं ने मेरा हाथ छुआ,
तेरा एहसास मुस्कुराता रहा। 

तुमने अल्फ़ाज़ प्यार के जो कहे,
हौले हौले वो गुनगुनाता रहा। 

चांदनी तुमने जबसे बरसाई,
स्याह में भी मैं जगमगाता रहा। 

तेरी सूरत की जब छुपी थी झलक,
बिखरी ज़ुल्फ़ों को मैँ हटाता रहा।

हुयी सुबह न देख ले कोई,
तेरी तस्वीर को छुपाता रहा। 

"देव" ये ख्वाब अब हक़ीक़त हो,
ये दुआ लेके सर झुकाता रहा। 

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-१०.१०.२०१४





Friday, 7 November 2014

♥वेदना का जहर(मौन)..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥वेदना का जहर(मौन)..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। 
हर्ष नहीं है पास हमारे, हम दुख की सरगम गाते हैं। 
पढ़ी किताबें जितनी अब तक, उनमे ये ही लिखा हुआ है,
दुख, पीड़ा के बाद में देखो, खुशियों वाले दिन आते हैं!

इसीलिए मैं यही सोचकर, अपने आंसू पी लेता हूँ। 
तन्हा तन्हा बहुत अकेला, होकर देखो जी लेता हूँ। 

बुरे समय में देखो अपने भी, राहों से बच जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं... 

जिनको है अपमान की आदत, वो मेरा क्या मान करेंगे। 
नहीं मदद वो कर सकते हैं और न वो एहसान करेंगे। 
"देव" वो मुझको आरोपित कर, छप लें बेशक अख़बारों में,
लेकिन अपनी रूह के दुख का, वो कैसे अनुमान करेंगे। 

छोड़ दिया सब कहना सुनना, किसी से अब फरियाद नहीं है। 
उनसे अब क्या आस लगाऊँ, जिनको मेरी याद नहीं है। 

जहर वेदना का पीकर के, नींद में हम भी सो जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। "

.................चेतन रामकिशन "देव"……………..
दिनांक-०८.११.२०१४

Thursday, 6 November 2014

♥♥दिल के जज़्बात...♥


♥♥♥♥♥दिल के जज़्बात...♥♥♥♥♥
दिल के जज़्बात फिर जले क्यों हैं। 
हम सही होके भी छले क्यों हैं। 

वो तो कहते थे, प्यार मुझसे हुआ,
अजनबी बनके वो मिले क्यों हैं। 

मैं हूँ पत्थर सड़क का, चाँद हो तुम,
ख्वाब मिलने के फिर पले क्यों हैं। 

आदमी तुम हो, आदमी वो भी,
तीर, तलवार ये चले क्यों हैं। 

जिनसे जज्बात हैं उन्हें सौंपो,
होठ चुप होके, अब सिले क्यों हैं। 

पर्चियां तक तो हैं, किताबों में,
मेरे ख़त पांव के, तले क्यों हैं। 

"देव " रिश्तों का क़त्ल करके भी,
 सबकी नज़रों में वो भले क्यों हैं। "

.......चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०७ .११.२०१४ 

Tuesday, 4 November 2014

♥♥♥फैसला...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥फैसला...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एक तरफ़ा ही मुझे फैसला वो देके गया।
दर्द का मुझको यहाँ सिलसिला वो देके गया।

मैंने माँगा था सुकूं, उससे हथेली भर ही,
पर मुझे आंसुओं का जलजला वो देके गया।

मैं झुलसता ही रहा आग में ग़मों की यूँ,
न जरा भर भी मुझे होंसला वो देके गया।

पंख खोलूं तो बनें घाव मेरे दामन पर,
मुझको काँटों से भरा घोंसला वो देके गया।

"देव " हर रोज मुझे मारने की कैसी जुगत,
मौत का ऐसा मुझे, काफिला वो देके गया। "

............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-०५.११.२०१४ 

Sunday, 2 November 2014

♥ ♥चाँद पे घर....♥


♥♥♥♥♥चाँद पे घर....♥♥♥♥
गिरके संभलेंगे हमने ठाना है।
हमको मंजिल की ओर जाना है।

हार जाने से होंसला न डिगे,
चाँद पे हमको घर बनाना है।

बंदिगी, जिंदगी ये है जब तक,
जीत और हार को तो आना है।

अपने आपे से पहले सच बोलो,
रूह से अपनी क्या छुपाना है।

बाद मरके भी याद आयें जो,
नाम इतना हमें कमाना है।

क्या हुआ आज जो मिले कांटे,
कल में फूलों को खिलखिलाना है।

"देव" रोशन जहाँ ये हो जाये,
प्यार का दीप फिर जलाना है। "

......चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- ०३.११.२०१४

Wednesday, 22 October 2014

♥♥दिवाली...♥♥

♥♥♥♥♥दिवाली...♥♥♥♥♥♥♥♥
दीप घर घर जलें दिवाली पर। 
लोग दिल से मिलें दिवाली पर। 

सूरतें सबकी चाँद जैसी खिलें,
चांदनी हम मलें दिवाली पर। 

हमसफ़र हो नहीं किसी का जुदा,
साथ, संग संग चलें दिवाली पर। 

एक दिन का ही बस उजाला नहीं,
ऐसे ज़ज़्बे पलें दिवाली पर। 

मुफ़लिसों को भी मिल सके जो दवा,
घाव फिर न छिलें दिवाली पर। 

नहीं औरत को जानवर कुचले,
अश्क़ न फिर मिलें दिवाली पर। 

"देव " चाहत के साथ हो न दगा,
नहीं अरमां छलें दिवाली पर। "

...........चेतन रामकिशन "देव"……...   
दिनांक- २२.१०.२०१

Monday, 20 October 2014

♥♥♥कैसी दीवाली....♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कैसी दीवाली....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन में पीड़ा, रुधिर शीत है, निर्धन के घर कंगाली है। 
एक तरफ खरबों के मालिक, एक तरफ ये घर खाली है। 
लोग रौंदकर किसी के दिल को, यहाँ जलाते आतिशबाज़ी,
अंधियारे से घिरे करोड़ों, आखिर कैसी दीवाली है।

लोग बहुत ही निर्ममता से, क़त्ल प्यार का कर देते हैं। 
कभी किसी मासूम का जीवन, चीख-आह से भर देते हैं। 
इतना करके भी जब उनको, चैन, ख़ुशी, उल्लास नहीं हो,
तब वो देखो रूह तलक का, सौदा पल में कर देते हैं। 

दीवारों की मिट्टी उखड़ी, आँगन में भी बदहाली है।  
अंधियारे से घिरे करोड़ों, आखिर कैसी दीवाली है...

फटी हथेली, टूटी रेखा, आँखों में भी सूनापन है। 
कल भी खंडहर बने हुए थे, आज भी पतझड़ सा जीवन है। 
"देव" वो उनकी लाश तलक को भी चंदन से फूंका जाये,
उसे मयस्सर कफ़न तक नहीं, क्यूंकि वो निर्धन का तन है। 

चाँद सरीखा रूप है जिनका, भीतर से नियत काली है। 
अंधियारे से घिरे करोड़ों, आखिर कैसी दीवाली है। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"…….............
दिनांक- २१.१०.२०१


Tuesday, 14 October 2014

♥♥दूरियां....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥दूरियां....♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या मिलेगा जो दूर जाओगे। 
मुझको किस तरह से भुलाओगे। 

धूप जब तेज हो जलायेगी,
मेरे साये को ही बुलाओगे। 

अपनी गलती का इल्म होगा जब,
शर्म से सर को तुम झुकाओगे। 

मेरी मिन्नत को तुमने ठुकराया,
कैसे मंजर वो भूल पाओगे!

मेरी बर्बादी का सबब तुमसे,
रूह से अपनी क्या छुपाओगे। 

आंच का तुमपे भी असर होगा,
मेरी यादों को जो जलाओगे। 

"देव" ये प्यार न रुका अब तक,
ख़ाक तुम इसको रोक पाओगे। "


.........चेतन रामकिशन "देव"……|
दिनांक- १४.१०.२०१४

Monday, 13 October 2014

♥♥♥सामना...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥सामना...♥♥♥♥♥♥♥
रंग चाहत का जब उतरने लगे। 
प्यार का फूल जब बिखरने लगे। 
कर लो गुमनाम खुद को उस लम्हा,
सामना होना जब अखरने लगे। 

वो जिन्हे कद्र नहीं चाहत की,
उनसे उम्मीद क्यों लगाते हो। 
सोखने वो न आएंगे तो फिर,
बेवजह अश्क़ क्यों बहाते हो। 

हौंसला रखना तुम बहुत ज्यादा,
कोई अपना जो पर कतरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे....

नाम के हमसफ़र से अच्छा है,
खुद ही तन्हा सफर को तय करना। 
जब कोई हाथ न बढ़ाये तो,
मंजिलों पे खुद ही विजय करना। 

जीत जाओगे तुम यहाँ एक दिन,
दिल का अंधेरा जब निखरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे....

साथ होता तो देखो अच्छा था,
पर बिना साथ के नहीं डरना। 
"देव" मुश्किल से आदमी हो बने,
खुद में अवसाद तुम नही करना। 

गीत एक अच्छा फिर बनेगा सुनो,
मन में ख़ामोशी जब पसरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे। 
प्यार का फूल जब बिखरने लगे।"

.........चेतन रामकिशन "देव"……|
दिनांक- १४.१०.२०१४

♥♥♥परिंदा....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥परिंदा....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शाम होते ही मेरे घर को लौट आता है। 
एक परिंदा है जो मुझसे वफ़ा निभाता है। 

उसकी आवाज की बेशक मुझे पहचान नहीं,
प्यार के बोल मगर मुझको वो सुनाता है! 

उसमें दिख जाती है, उस वक़्त देखो माँ की झलक,
मुझको ठंडक के लिए, पंख जो फैलाता है। 

लोग तो मिन्नतें करके भी छीनते सांसें,
ये परिंदा है जिसे, छल न कोई आता है। 

कोई मजहब ही नहीं, सबके लिए अपना वो,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद में घर बनाता है। 

कभी तन्हाई में जो करता गुफ्तगू उससे,
अपनी पलकों को बड़े हौले से झुकाता हैं। 

"देव" उस आदमी के होंसले नहीं मरते,
वो परिंदो का हुनर, जिस किसी को आता है। "

.............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक- १३.१०.२०१४ 

Sunday, 12 October 2014

♥♥बरताब....♥♥

 ♥♥♥♥♥♥बरताब....♥♥♥♥♥♥♥
अपने बरताब याद अाने लगे। 
दर्द में हम जो तिलमिलाने लगे। 

हमको आंधी पे तब यकीन हुआ,
घर को तूफान जब हिलाने लगे। 

अपनी कमियां भी हमको दिखने लगीं,
जब नज़र खुद से हम मिलाने लगे। 

थी तपिश, आह और तड़प, चीखें,
लोग जब मेरा दिल जलाने लगे। 

मन के भीतर का न मरा रावण,
तीर दुनिया पे हम चलाने लगे!

जो गलत बात थी वो छोड़ी नहीं,
मौत को हम करीब लाने लगे। 

"देव" रखा रहा गुरुर मेरा,
लोग शव मेरा जब जलाने लगे। "

....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- १२.१०.२०१४




Saturday, 11 October 2014

♥♥फूल की पंखुरी...♥♥


♥♥♥♥फूल की पंखुरी...♥♥♥♥
फूल की पंखुरी की जैसी हो। 
तुम धरा पर परी के जैसी हो। 

आये अधरों पे प्रेम का वादन,
तुम किसी बांसुरी के जैसी हो। 

देखकर तुमको मचल जाये,
रेशमी तुम, जरी के जैसी हो।  

तेरे छूने से हो गया मैं नवल,
प्रेम की अंजुरी के जैसी हो। 

"देव" तुझसे ही मैं रचूँ कविता,
भाव की तुम झरी के जैसी हो। "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- ११ .१०.२०१४




Wednesday, 8 October 2014

♥प्रेम-अनुरोध...♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-अनुरोध...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 
स्वांस भी आती कठिनाई से, गतिशीलता हुयी है भारी।
स्पंदन भी मौन हो गया, और स्वप्न भी टूट गए हैं,
प्रेम समर्पित कर दो जो तुम, रहूँ तुम्हारा मैं आभारी। 

सखी तुम्हारे प्रेम को पाकर, प्राण हमारे जीवन पायें!
मेरे पतझड़ से जीवन में, फूल गुलाबों के खिल जायें। 

बिना प्रेम के जल से सूखी, मेरे जीवन की ये क्यारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 

सखी तुम्हारा संग मिलने से, हर्ष की छाया हो जायेगी। 
और तुम्हारे प्रेम की वर्षा, मेरे अश्रु धो जायेगी। 
तुम और मैं सब साथ चलेंगे, आशाओं की जोत जलेगी,
तिमिर की बेला इस ज्योति से, क्षण भर में ही खो जायेगी। 

सखी है तुमसे करुण निवेदन, मेरी मन की हालत जानो। 
मैं मिथ्या के वचन न बोलूं, मेरे शब्दों को पहचानो। 

मेरी मन की अनुभूति की, जमा पूंजी सब हुयी तुम्हारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 

भाव निवेदन जितने थे, सब तुमको अर्पित कर डाले। 
मैंने अपनी पीड़ाओं के, तुमको देखो दिए हवाले। 
"देव" तुम्हारा निर्णय मेरे पक्ष में आये तो अच्छा है,
नहीं तो अपने मुख जड़ लूंगा, मौन व्रत के मोटे ताले। 

अनुरोधों की सीमा होती, देरी से ये मिट जाते हैं। 
और सरस भावों के धागे, खंड खंड में बँट जाते हैं।   

चलते चलते अनुरोधों से, मैं तुमपे होता बलिहारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-०९ .१०.२०१४

"
प्रेम- एक ऐसी विवशता की दशा जब देता है तो अनुरोधों और निवेदनों के वहिस्कृत/ख़ारिज होने की आशंका बहुत पीड़ा देती है, जिस सम्बंधित पक्ष के लिए भाव पनपते हैं, उसके प्रति आसक्त होने की अवस्था में हमारा मन अनेकों निवेदनों/अनुरोधों को समर्पित करता है, मन को आशा होती है कि उसे उसकी चाह मिल जाये, परन्तु सहनशीलता की एक अवस्था भी होती है, उसके निगमन के अंतर्गत सही समय पर अनुरोधों की अपेक्षा पूरी न होना सामने वाले के लिए कष्टकारी हो जाता है, तो आइये चिंतन करें। 

"
सर्वाधिकार सुरक्षित,  मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित। "





Tuesday, 7 October 2014

♥जीने का जतन....♥

♥♥♥♥♥♥जीने का जतन....♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो हर हाल में जीने का, जतन करते हैं। 
भूल न हो के दुबारा, ये मनन करते हैं!
जैसे हम खुशियों को, अपने गले लगाते हैं,
आओ वैसे ही चलो, दुख को वहन करते हैं। 

हार आतीं हैं मगर, जीत की लगन रखना। 
खून में अपने होंसले की, तुम अगन रखना!
दर्द होता है अगर, उसकी दवा ढूंढो तुम,
अपनी नज़रों में उड़ानों का, तुम गगन रखना। 

मुश्किलों को भी चलो हँसके, सहन करते हैं। 
चलो हर हाल में जीने का, जतन करते हैं। 

हर किसी को यहाँ सब कुछ ही नहीं मिलता है। 
फूल हर रोज ही खुशियों का नहीं खिलता है। 
"देव" उम्मीद के दीये, मगर बुझाओ मत,
मन के विश्वास से, पर्वत भी यहाँ हिलता है। 

जीते जी आओ निराशा का, दहन करते हैं। 
चलो हर हाल में जीने का, जतन करते हैं। "

..........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक- ०८.१०.२०१४ 

Monday, 6 October 2014

♥♥♥अमन...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥अमन...♥♥♥♥♥♥♥♥
आदमी का हो आदमी से मिलन।
द्वेष, हिंसा का ये थमेगा चलन। 
प्रेम के फूल जब खिलेंगे यहाँ,
"देव" खिल जायेगा अपना ये वतन। 

खून मेरा हो या तुम्हारा हो,
रंजिशों में क्यों हम बहायें इसे। 
देश ये देखो हम सभी का है,
ठोकरों से क्यों हम गिरायें इसे। 

आग गर ऐसे ही दहकती रही,
बेगुनाहों का ही जलेगा बदन। 

आदमी का हो आदमी से मिलन ....

नफरतों से नहीं मिला नहीं कुछ भी,
देखो इतिहास की, गवाही है। 
गोद अम्मी की, माँ सूनी हुई,
हर तरफ चीख है, तबाही है। 

अब चलो रंजिशों को छोड़ चलो,
देश में आओ अब करेंगे अमन!

आदमी का हो आदमी से मिलन।
द्वेष, हिंसा का ये थमेगा चलन। "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०७.१०.२०१४


Sunday, 5 October 2014

♥आंसुओं की लहरें...♥


♥♥♥♥आंसुओं की लहरें...♥♥♥♥
रंग तस्वीर के सुनहरे हैं। 
घाव पर दिल में देखो गहरे हैं। 

ठोकरें मारके वो आगे बढे,
हम मगर उस जगह ही ठहरे हैं। 

दिल को देखा तो स्याह निकला वो ,
चाँद जैसे भले ही चहरे हैं। 

कैसे मुफ़लिस उन्हें बताये तड़प,
जिनपे महलों पे इतने पहरे हैं। 

आह सुनकर भी फेर लें मुंह को,
आज के लोग इतने बहरे हैं। 

उनका दिल तो बड़ा ही छोटा मिला,
जीत के जिनके सर पे सहरे हैं!

झील सूखी तो "देव" प्यासे क्यों,
मेरे घर आंसुओं की लहरें हैं। "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०५.१०.२०१४

Saturday, 4 October 2014

♥कांच का घर...♥

♥♥♥♥♥कांच का घर...♥♥♥♥♥
न ही साहिल है, न किनारा है। 
दर्द में दिल भी बेसहारा है। 

साँस लेने को भी हवा न मिली,
फिर भी इस वक़्त को गुजारा है!

जीतने को बहुत ही दिल जीते,
मेरा दिल खुद से आज हारा है। 

रात भर करवटें बदलता रहा,
हाल, बेहाल अब हमारा है। 

रौशनी पास में नहीं आई,
सामने यूँ तो चाँद, तारा है। 

दोस्ती पत्थरों से हो ही गयी,
कांच का जबके घर हमारा है!

"देव" जिनको समझ नहीं ग़म की,
उनसे मिलना भी न गवारा है।"

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०५.१०.२०१४ 

Friday, 26 September 2014

♥♥जिद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥♥♥
जिद पे इतनी उतर रहे हैं वो। 
प्यार करके मुकर रहे हैं वो। 

जिनको उड़ने का इल्म बख़्शा था,
उनके ही पर क़तर रहे हैं वो।  

मेरे दिल को ही कह रहे पत्थर,
हद से अपनी गुजर रहे हैं वो। 

बेगुनाही ने मुझको थाम लिया,
सूखे पत्तों से झर रहे हैं वो। 

जिनकी छाँव में धूप रोकी थी,
उनमे तेज़ाब भर रहे हैं वो। 

कितने मज़लूमों को था मार दिया,
मौत से अपनी डर रहे हैं वो। 

"देव" खाली ही हाथ जाना है,
लूट क्यों इतनी कर रहे हैं वो। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-२७.०९.२०१४ 

Saturday, 20 September 2014

♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।
प्रेम जब आत्मा से होगा तो, बाद मरकर भी न ख़तम होगा। 
श्रंखला दीप की जला लेंगे, मन में उलझन न कोई तम होगा,
हाँ मगर टूट जायेंगी लड़ियाँ, प्रेम का भाव जब छदम होगा। 

मन के सम्बन्ध में न टूटन हो, भावनाओं का रूप खिल जाये!
जब अँधेरे दुखों के घेरें तो, प्रेम की जगती धूप मिल जाये। 

ओस की बूंद को उठालें चलो, मन का सूखा लिबास नम होगा!
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा …

छोड़कर साथ न चला करते, और न खुद का ही भला करते।
प्रेम होता है जिनके मध्य यहाँ, वो नहीं झूठ से छला करते।
त्याग के रंग में समाहित हों, दीपमालाओं से जला करते,
हाँ मगर जिनको प्रेम है ही नहीं, घाव पे अम्ल वो मला करते। 

प्रेम का नाम तो सभी लें पर, प्रेम का मर्म सब नहीं जानें। 
हाथ बाहर से तो मिला लें पर, आत्मा का मिलन नहीं मानें।  

"देव" जो प्रेम से छुओगे तो, तन शिलाओं का भी नरम होगा।
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।" 

......................चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२१.०९.२०१४ "



Wednesday, 17 September 2014

♥♥प्यार के पंख...♥♥

♥♥♥♥♥♥प्यार के पंख...♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे मिलने का मन हुआ जब से। 
पंख शब्दों में लग गए तब से। 

तेरी आँखों से न बहें आंसू,
ये दुआ मांगता हूँ मैं रब से।  

तेरी सूरत से ये नज़र न हटे,
खूबसूरत है तू बहुत सब से।

आज तक छोड़कर गयीं तो गयीं,
दूर न जाना तुम कहीं अब से। 

अपनी रूहें घुली मिलीं ऐसे,
मानो रिश्ता है अपना ये कब से। 

हर जनम में मिलें इसी तरह,
यही दरख़्वास्त मेरी है रब से। 

"देव" शब्दों के पंख प्यारे हैं,
चूमना चाहूँ मैं इन्हे लब से। "   

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१७.०९.२०१४

Tuesday, 16 September 2014

♥♥माँ का ख़त..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का ख़त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!
माँ के शब्दों को सौंपकर मुझको, माँ के एहसास से मिलाता है!
मेरे चोखट पे एक दस्तक दे, पास अपने मुझे बुलाता है!
न गलत काम तुम कभी करना, माँ की तरह मुझे सिखाता है!

हर घड़ी साथ मेरे रहता है, माँ न भेजा मेरा हिफाज़त को। 
माँ की तरह ही माफ़ करता है, मेरी छोटी बड़ी शरारत को!

दूर रहती है मेरी माँ मुझसे, खत मगर उसको पास लाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ के शब्दों के नूर से हर पल, मेरे संग साथ में उजाला है!
यूँ तो रिश्ते हजार हैं लेकिन, माँ का एहसास ही निराला है!
अपने बच्चों की राह की कांटे, माँ ही हंसकर के सिर्फ चुनती है!
अपने सब काम छोड़कर माँ ही, अपने बच्चों का दर्द सुनती है!

माँ की प्यारी सी ये छुअन पाकर, देखो फूलों का रंग खिलता है!
पैसे, रूपये से और दौलत से, न कहीं प्यार माँ का मिलता है!

याद में माँ की रो पड़ी आँखें, ख़त मुझे देखो चुप कराता है! 
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ ने मंजिल की ओर जाने को, माँ ने मुझको बहुत पढ़ाने को!
अपने आपे से दूर भेजा है, ख्वाब मेरे सभी सजाने को!
"देव" जब माँ की याद आती है, खत यही खोलकर के पढ़ता हूँ!
माँ ने सिखलाया अग्रसर होना, अपनी मंजिल की ओर बढ़ता हूँ!

माँ की आँखों में एक चमक होगी, मेरे सपनों में जब गति होगी!
अपनी ममता पे गर्व होगा उसे, जब कभी मेरी प्रगति होगी!

माँ के आँचल की याद आने पर, ख़त मुझे हौले से सुलाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है! "

"
माँ-एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी उपमा/तुलना/पर्याय अगर है तो वो माँ ही है, माँ की ममता से भरा दिल भले ही अपनी संतान को, कुछ समय के लिए आँखों से दूर करता है, मगर वो हर घडी, हर पल अपनी संतानों के लिए धड़कता है, तो आइये ऐसे किरदार माँ को हृदय से प्रणाम करें।  "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-17.09.2014 

" अपनी दोनों प्रिय माताओं को समर्पित रचना।"


Monday, 15 September 2014

♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥


♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥♥
ख़त पुराने तलाश लेने दो!
अपना खोया लिबास लेने दो!

कल मैं सूरत को मांजने में था,  
आज दिल को तराश लेने दो। 

फिर महल ख़्वाब का बनायेंगे,
ताख में रखे ताश लेने दो!

कल का सूरज हमे मिले न मिले,
आज जी भरके के साँस लेने दो!

दिल के दीये को कब जलाना पड़े,
साथ अपने कपास लेने दो!

खूं जहाँ पर बहा शहीदों का,
मुझको उस थल की घास लेने दो!

"देव" दौलत से जो नहीं मिलती,
वो दुआ माँ की, ख़ास लेने दो! "

........चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१६.०९.२०१४

Friday, 12 September 2014

♥♥♥तेरा कद...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥तेरा कद...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरे न होने से पड़ता है, मुझको फ़र्क़ बहुत,
रूह हूँ मैं जो अगर, तू भी जान जैसा है!

तेरे क़दमों के लिए, बन गया हूँ मैं धरती,
तेरा कद दिल में मेरे, आसमान जैसा है!

तुमसे मिलकर ही खिले हैं, ये फूल चाहत के,
तेरा साया ये किसी, बागवान जैसा है!

तू ही आई है, मेरे घर में रौशनी लेकर,
बिन तेरे घर ये मेरा, बस मकान जैसा है!

नफरतों के जो मसीहा हैं, उनको देखेंगे,
मैं हूँ तलवार अगर, तू म्यान जैसा है!

हर जन्म में हो मिलन, तुमसे ही दुआ है मेरी,
बिन तेरे मेरा सफर, बस थकान जैसा है!

"देव" तुमसे ही बताया, है अपना हर सुख दुख,
तेरा आँचल ही सुकूं के, जहान जैसा है! " 

............चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-१३.०९.२०१४  

♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥



♥♥♥♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥♥♥♥♥
कोई अफ़साना नहीं है, ये हक़ीक़त देखो,
रोज ही भूख से बच्चों की मौत होती है!

सर पे छप्पर भी नहीं, पेट में नहीं रोटी,
मुफ़लिसी देश में चीखों के साथ रोती है!

कब दरिंदा कोई बेटी को उठा ले जाये,
माँ इसी डर से यहाँ जागकर के सोती है!

लोग बदले हैं, बदलते हैं, बदलते होंगे,
ऐसे धोखे से कहाँ रूह, ये खुश होती है!

झूठ को सच भी बोल दूँ, तो सच नही मरता,
झूठ की दुनिया की तो, शीशे की तरह होती है!

रंग, दौलत से, ही कोई बड़ा नहीं बनता,
यहाँ अच्छाई तो उल्फत से बुनी होती है!

"देव" उस शै को दुआ एक भी नहीं मिलती,
आदमी काटके जो, खूं से फसल बोती है! "

...........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१२.०९.२०१४ 

Thursday, 11 September 2014

♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥


♥♥♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥♥♥
सिलसिला है हसीं मोहब्बत का, 
मुझसे मिल जाओ, मुझसे जुल जाओ!

हर तरफ ही प्यार की ही खुशबु हो,
इन हवाओं में यार घुल जाओ!

मेरी गलती पे मांग लूंगा क्षमा,
तुम भी थोड़ा सा गर पिघल जाओ!

लड़खड़ाना मैं बंद कर दूंगा,
तुम भी हमदम अगर संभल जाओ!

इस उजाले से हो जहाँ रौशन,
आओ दीये की तरह जल जाओ!

मेरी बेचैनी को क़रार मिले,
देखकर मुझको तुम मचल जाओ!

"देव" दुख दर्द मुझसे बांटो तुम,
एक सहेली की तरह खुल जाओ! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-१२.०९.२०१४  

Wednesday, 10 September 2014

♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥



♥♥♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥♥♥
मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ!
जब कविता को मुझसे मिलना हो,
मन को उसके समक्ष करता हूँ!

ये कविता है प्रेमिका जैसी!
ये कविता है चन्द्रिका जैसी!
रंग भर देती अक्षरों में जो,
ये कविता है तूलिका जैसी!

योग्यता इतनी हैं भरी जिसमें,
उसको वंदन से यक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

प्रेम की बारिशों सी बरसी है!
मेरे आँगन की एक तुलसी है!
ये कविता है इस तरह अपनी,
मेरी पीड़ा में साथ झुलसी है!

देख कविता के इस समर्पण को,
आंसुओं से मैं अक्ष भरता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

ये कविता सदा ही पावन हो!
हर कलमकार का धवल मन हो!
"देव" आशाओं के जलें दीपक,
न तिमिर से भरा कोई क्षण हो!

एक बढ़ाई तो है बहुत ही कम,
मैं तो प्रसंशा लक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ! "

(नक्ष-अंकित/लेखन, यक्ष-देवयोनि/विशेष, अक्ष-नयन/आँखे, लक्ष-लाख )

" कविता, जब आत्मा और हृदय से अंकित होती है, तो वो प्रेरणा बन जाती है, कविता
किसी की बपौती नहीं, कविता तो हृदय के मूल तत्वों में निहित होती है, जो हृदय के भावों से, अंकित नहीं होती, वो तुकांत/अतुकांत गठजोड़ तो हो सकता है, पर कविता कभी नहीं, तो आइये कविता का सम्मान हृदय से करें! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-११.०९.२०१४  

"
सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Tuesday, 9 September 2014

♥न दीया है...♥♥

♥♥♥♥न दीया है...♥♥♥♥♥
न दीया है न और बाती है!
ये अँधेरा ही उनका साथी है!
जागकर रात मुफ़लिसों की कटे,
भूख में नींद किसको आती है!

तंगहाली में सांस भारी है!
जिंदगी बिन दवा के हारी है!
छीन लेते ले हैं, हक़ गरीबों का,
ऐसा आलम है, लूटमारी है!

लूटने वाले हैं यहाँ पर खुश,
और मुफ़लिस की जान जाती है!

न दीया है न और बाती है...

कोई सरकार न सुने उसकी,
सबको बस अपना होश रहता है!
"देव" मुफ़लिस की जिंदगी है कठिन,
न उम्मीदें, न जोश रहता है!

हर कोई दुश्मनी रखे हमसे,
जिंदगी इस कदर सताती है!

न दीया है न और बाती है....

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९.०९.२०१४  ०

Sunday, 7 September 2014

♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥


♥♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥♥
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया!
एक था प्यार से भरा जो दिल,
अपने हाथों से खुद ही तोड़ दिया!

तुमको अश्क़ों की धार दिखलाई!
अपनी बेचैनी तुमको बतलाई! 
तुमने नफरत से ही मगर देखा,
प्यार की दुनिया तुमने ठुकराई!

जिस कलाई को थामते थे कभी,
आज उसको ही यूँ मरोड़ दिया...

वक़्त का आईना दिखाकर के!
जा रहे तुम नज़र चुराकर के!
तुमको खुशियां हजार मिलती हों,
क्या पता मेरा दिल जलाकर के!

दर्द में मैं बिलख रहा था मगर,
तुमने मरहम का जार फोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया...

अब चलो फैसला लिया है ये,
तेरे दर पर न लौट आएंगे!
"देव" पत्थर का, कर लिया दिल को,
रात दिन कितनी चोट खाएंगे!

प्यार की जो नदी उमड़ती थी,
उसको सूखे के, साथ जोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०८.०९.२०१४

Friday, 5 September 2014

♥♥रूह का सलाम..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥रूह का सलाम..♥♥♥♥♥♥♥♥
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ!
तेरे सजदे में सुबह और शाम लिखता हूँ!
तेरी सूरत में मुझे प्यार, वफ़ा दिखती है,
इसीलिए रूह का तुझको सलाम लिखता हूँ!

देखकर तुझको मेरे दिल को चैन मिलता है!
तेरे होने से ही खुशियों का, फूल खिलता है!

तुझको कुदरत का हसीं एक ईनाम लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ....

छोटी छोटी तेरी ऊँगली को, थाम लूंगा मैं!
बिना फेरों के तुम्हें अपना मान लूंगा मैं!
"देव" तुमने ही सिखाई है मोहब्बत मुझको,
अपने होठों से सदा तेरा नाम लूंगा मैं!

तेरे दीदार से उम्मीद, अदब मिलता है!
तेरे होने से ही जीवन का, सबब मिलता है!

दूर होकर भी मैं तुझको अमाम* लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ! "

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०६.०९. २०१४  

अमाम*----प्रत्यक्ष

♥ गुरु का कद...♥

♥♥♥♥ गुरु का कद...♥♥♥♥♥
धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु!
एक से हैं गुरु की आँख में हम,
ऐसी सौगात से भरे हैं गुरु!

साल भर, उम्र भर नमन उनको!
सौंप दें आओ बाल मन उनको!
प्रेम की रौली से तिलक जड़कर,
देते सम्मान का सुमन उनको!

अपने आँचल में दुख मेरा लेकर,
मुझको खुशियों से आ भरें हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....


आज गुरुओं का मान करना है!
उनको झुककर प्रणाम करना है!
"देव" गुरुओं से ज्ञान को पाकर,
हमकों दुनिया में नाम करना है!

बिन गुरु के नहीं दिखे मंजिल,
लक्ष्य की सोच से भरे हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....

धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०५.०९. २०१४  

Thursday, 4 September 2014

♥♥शब्द की संगिनी..♥♥

♥♥♥♥शब्द की संगिनी..♥♥♥♥♥
शब्द की संगिनी बने कविता!
रूह की रोशनी बने कविता!
भाव मन पर असर करें ऐसे,
प्रेम की भाषिनी बने कविता!

काव्य होगा तो मन धवल होगा!
मन में एहसास का कमल होगा!
शब्द गूंजेंगे आसमानों में,
ओज भावों में फिर नवल होगा! 

रंग फूलों का है खिल गया है सुनो,
नम्रता, नंदिनी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता....

काव्य होगा तो गीत भी होंगे!
प्रेम होगा तो मीत भी होंगे!
"देव" ये शब्द तो हैं सतरंगी,
लाल, सुरमई ये पीत भी होंगे!

भावनाओं की बांसुरी की धुन,
आस्था की नमी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता,
रूह की रोशनी बने कविता! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०४.०९. २०१४

Tuesday, 26 August 2014

♥♥वक़्त के साथ...♥♥


♥♥♥♥वक़्त के साथ...♥♥♥♥
वक़्त के साथ जो बदल जाता!
तो मुझे याद वो नहीं आता!

अपने दिल को जो तोड़ लेता मैं,
प्यार का दीप फिर न जल पाता!

किसको फुर्सत थी मेरा दर्द सुने,
कौन चाहत के फूल बिखराता!

जी तो सकता हूँ इन दवाओं से,
चैन तुम बिन मुझे नहीं आता!

कोई तुमसे नहीं मिला मुझको,
जो मेरे दिल को ख्वाब दिखलाता!

तुमने चाहा ही न कभी दिल से,
वरना चाहत का फूल खिल जाता!

"देव" तुमसे नहीं गिला, शिकवा,
जो न किस्मत में, वो न मिल पाता!

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२७.०८. २०१४





Saturday, 23 August 2014

♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥

♥♥♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥♥♥
दर्द का फिर इलाज़ ढूँढेंगे!
अपना हंसमुख मिजाज़ ढूँढेंगे!

कल तलक जो हमें न मिल पाया,
उसको शिद्दत से आज ढूँढेंगे!

जो चकाचोंध में हुआ है गुम,
हम वो खोया लिहाज़ ढूँढेंगे!

आदमी-आदमी से मिल जाये,
प्यार का वो जहाज ढूँढेंगे!

हिन्दू, मुस्लिम हों, सिख, ईसाई एक,
ऐसा खिलता समाज ढूँढेंगे!

हारकर जीतने का दम न मरे,
जोश का वो रियाज़ ढूँढेंगे!

"देव" रिश्ता यहाँ जुड़े दिल से,
एक दमकता रवाज ढूँढेंगे! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२४.०८. २०१४






Sunday, 17 August 2014

♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥

♥♥♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥♥♥
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी!
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!
ढ़ल गई सारी अमावस पल में,
चांदनी मानो कोई खिलने लगी!

प्रेम का रंग हो यदि गहरा!
अपना मन भी हो बस वहीँ ठहरा!
कितनी तड़पन की बात हो जाये,
भेंट करने पे जब लगे पहरा!

श्याम भी भेंट को हुए आतुर,
राधिका भी वहां मचलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम कर्तव्य की लड़ाई में!
राधिका शोक की लिखाई में!
धार अश्रु की फूटती ही रही,
न ही आराम था दवाई में!

राधिका श्याम के प्रण के लिए,
उनके रस्ते से दूर चलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम, राधा का साथ टूटन पे,
राधिका फूट फूट रोने लगी!
श्याम भी हो गए बहुत बेबस,
राधिका मौन रूप होने लगी!

प्रेम की एक ये अमर गाथा,
देखो इतिहास को बदलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी,
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!"

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१७.०८. २०१४ 

Wednesday, 13 August 2014

♥प्रेम सम्पदा..♥

♥♥♥♥प्रेम सम्पदा..♥♥♥♥♥♥
अनुभूति विस्थापित कर दूँ!
प्रेम को कैसे बाधित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ!

क्यों तोडूं विश्वास किसी का,
क्यों भूलूँ एहसास किसी का,
क्यों मैं क्षण में खंडहर कर दूँ,
खिला हुआ आवास किसी का!

क्यों मिथ्या की संरचना को,
शब्दों से सत्यापित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ...

उसे बदलना है वो बदले,
नहीं बदलना मुझको आता!
बस उससे ही मेल है मन का ,
नहीं दूसरा मुझको भाता!
"देव" मेरे नयनों में अब तक,
बस उसका ही चित्र वसा है,
धवल आत्मिक प्रेम सम्पदा,
नहीं शरीरों का बस नाता!

प्रेम भावना के पत्रों को,
क्यों कर मैं सम्पादित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१३ .०८. २०१४  


Monday, 11 August 2014

♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥

♥♥♥♥♥♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥♥♥♥♥♥♥
मैं ज़ख्मों पे नमक फिर से, लगाकर देख लेता हूँ!
तुम्हारी याद का लम्हा, उठाकर देख लेता हूँ!

मेरी किस्मत, मेरी तक़दीर ने तो कुछ नहीं बख्शा,
लकीरें हाथ की अब आजमाकर, देख लेता हूँ!

सिसकते दर्द के कांटे, बदन पे जब भी चुभते हैं,
ग़मों की चांदनी मैं तब, बिछाकर देख लेता हूँ!

यहाँ इंसान बहरे हैं, गुहारें सुन नहीं पाते,
बुतों को दर्द अब अपना, सुनाकर देख लेता हूँ!

सुकूं जब रूह को न हो, हो ठहरी बेबसी दिल में,
ग़ज़ल मैं फिर तेरी एक, गुनगुनाकर देख लेता हूँ!

मिलन की चाह हो लेकिन, तेरे बदलाव का आलम,
तेरा रस्ता, तेरा कूचा, भुलाकर देख लेता हूँ!

कहीं पायल की रुनझुन हो, तेरे आने की उम्मीदें,
मैं एक अरसे से सूना घर, सजाकर देख लेता हूँ!

लगे तू चाँद सा मुखड़ा, अमावस चीर आएगा,
मैं अपनी रात फिर, बाहर बिताकर देख लेता हूँ!

तुम्हें सब कुछ बताया है, नहीं तुम "देव" झुठलाओ,
मैं बिखरे लफ्ज़ के टुकड़े, मिलाकर देख लेता हूँ! "

 .................चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१२ .०८. २०१४ 

Saturday, 9 August 2014

♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥

♥♥♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥♥♥♥
प्यार में सादगी तुम्ही से है!
फूल में ताजगी तुम्ही से है!

आशिकी तुम हो, जुस्तजु मेरी,
मेरी दीवानगी तुम्ही से है!

राह देखी क्यों तुम नहीं आईं,
दिल को नाराजगी तुम्ही से है!

देख कर तुमने जो चुराई नज़र,
तब से हैरानगी तुम्ही से है!

मैं बहकता हूँ सिर्फ तेरे लिए,
मेरी आवारगी तुम्ही से है!

बिन तेरे नींद भी नहीं आती,
आँख मेरी जगी तुम्ही से है!

"देव" दुनिया तो मतलबी है बस,
रूह मेरी सगी तुम्ही से है!"

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९ .०८. २०१४

♥♥दर्द का काल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का काल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं!
एक अरसे तक नहीं बदलते, पीड़ा के ऐसे मौसम हैं!
जिसकी मर्जी वही दर्द दे, आह कोई न सुनता मेरी,
लगता है सबकी नजरों में, पत्थर के बुत जैसे हम हैं!

पत्थर का दर्जा देकर के, तुमको क्या कुछ मिल पायेगा!
एक दिन देखो झूठ का पर्दा, इन आँखों से हट जायेगा!

सुन लेता हूँ हौले हौले, दर्द भरे सारे आलम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं...

क्यों लोगों को अपने दुख के, सिवा कुछ नहीं दिख पाता है!
क्यों शायर का कलम आजकल, नहीं हक़ीक़त लिख पाता है!
"देव" आईने में वो अपनी, शिक़न देखकर घबरा जाते,
मगर मेरे दिल के टुकड़ों का, ढ़ेर उन्हें न दिख पाता है!

बुरा वक़्त है इसीलिए तो, मेरी कुछ सुनवाई नहीं है!
इसीलिए तो हवा आजतक, ख़ुशी का झोंका लाई नहीं है!

झूठ का चेहरा उजला उजला, सच के मानों बुरे करम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं! "

.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०९ .०८. २०१४

Thursday, 7 August 2014

♥♥खून पसीना..♥♥

♥♥♥♥♥खून पसीना..♥♥♥♥♥
खून पसीना बहुत बहाया!
तब जाकर के जीना आया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया!

सब उपहास उड़ाने वाले,
नहीं दर्द की बातें जानें!
भूख प्यास से व्याकुल दिन और,
नहीं किसी की रातें जानें!

ठोकर खाकर गिरा कभी जब,
किसी ने मुझको नहीं उठाया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

साथ किसे के न देने से,
हाँ तन्हाई तड़पाती है!
मगर आंसुओं की ये धारा,
हमको जीना सिखलाती है!

देख हमारे इस साहस को,
ढ़लता उपवन भी मुस्काया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

अपने गम से मिला तजुर्बा ,
और पीड़ा ने सोच सुधारी !
"देव" होंसला जगा लिया तो,
नहीं सांस लगती है भारी!

सीख गया काँटों पे चलना,
नहीं आग से मैं घबराया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०८ .०८. २०१४

Monday, 4 August 2014

♥♥मुफ़लिसी♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मुफ़लिसी♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !
मुफ़लिस के भूखे बच्चे को, कोई रोटी नहीं खिलाता !
आँख से आंसू बहते रहते, चीख चीख कर दिल रोता है,
करते हैं दुत्कार उसे सब, गले से नहीं कोई लगाता!

मुफ़लिस के नन्हे बच्चों को, बाल श्रम करना पड़ता है!
भूख प्यास में आंसू पीकर, पेट यहाँ भरना पड़ता है!

घोर उदासी है सूरत पर, न वो हँसता, न मुस्काता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !

बिना दवा के मर जाता है, दवा बहुत महंगी मिलती है!
घोर वेदना सहता है वो, नहीं ख़ुशी कोई मिलती है!
"देव" वतन में मुफ़लिस को, एक घर तक नहीं मयस्सर होता,
नहीं अँधेरा छंट पाता है, नहीं कोई ज्योति खिलती है!

क़र्ज़ में डूबे मुफ़लिस की बस, अंतिम आस यही होती है!
किसी पेड़ पे या खम्बे पे, उसकी लाश रही होती है!

मुफ़लिस के पथरीले पथ पर, कोई रेशम नहीं बिछाता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता ! "

....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-०५ .०८. २०१४


हम तुम जब एक

♥♥हम तुम जब एक♥♥♥
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे!
सखी डूब जाना तुम मुझमें,
हम भी तुझमें खो जायेंगे!
धवल चांदनी का वो पर्दा,
आसमान में लहराएगा,
एक दूजे की नजदीकी में,
हम चुपके से सो जायेंगे!

प्यार के मीठे सपने होंगे,
शोर शराबा थम जायेगा!
हम दोनों के प्यार के देखो,
हसीं सिलसिला बन जायेगा!

हम सपनों में मिलन भाव के,
नव अंकुर को बो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे। ...

बीच रात में आँख खुले तो,
गीत प्यार का तुम दोहराना!
नाम मेरा लेकर हौले से,
सखी नींद से मुझे जगाना!
हम दोनों फिर प्यार वफ़ा की,
बातों का एहसास करेंगे,
मैं भी साथ रहूँगा तेरे,
तुम भी मेरा साथ निभाना!

खूब पड़ेगी प्यार की बारिश,
बादल सुरमई हो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे! "


......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-०४ .०८. २०१४


Sunday, 3 August 2014

♥प्रेम भावना..♥

♥♥♥
♥♥♥♥प्रेम भावना..♥♥♥♥
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
मेरे नयनों की ज्योति हो,
तुम ऊर्जा हो मेरे तन की!

स्वप्नों में तुम ही आती हो!
गीत प्रेम का तुम गाती हो!
फूलों सी देह तुम्हारी,
घर आँगन को महकाती हो!

बस तुमको ही छूना चाहूँ,
तुम भावुकता आलिंगन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

प्रेम मुक्त है हर सीमा से,
सागर के जैसा गहरा है!
सब जिज्ञासा शांत हो गयीं,
मन जब से तुमपे ठहरा है!

तुम पावन हो गंगाजल सी,
न नीति हो प्रलोभन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

विरह भाव का विष पीकर भी,
मैंने तुमको याद किया है!
यदि नहीं प्रत्यक्ष रहे तुम,
सपनों में संवाद किया है!

तेज मेरे चेहरे का तुमसे,
तुम्ही चपलता अंतर्मन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

फिर से मेरे पथ आओगे,
यही सोच प्रतीक्षा करता!
"देव" मिलन की व्याकुलता में,
अश्रु से आँचल को भरता!

न कोई समकक्ष तुम्हारे,
यथा योग्य तुम अभिनन्दन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "

प्रेम-जिसके प्रति होता है, अनेकों, असीम, अपार अनुभूतियाँ उसके लिए हृदय में उत्पन्न होती हैं,
प्रेम की लहरों को, किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता, प्रेम की भावनायें कभी मंद नदी सी स्थिर तो कभी सुनामी जैसी गतिमान होती हैं, तो आइये प्रेम की इस जल धारा का पान करें "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०८.२०१४







Saturday, 2 August 2014

♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नज़र आते नहीं अब तो, मुझे अब दोस्त वो अपने,
जो मेरी आह सुनकर के, बहुत बेचैन होते थे!

हजारों दोस्त दिखते हैं, मगर हैं नाम के केवल,
कहाँ हैं दोस्त वो, जो दुःख मैं मेरे साथ रोते थे!

नहीं कोई कपट मन में, नहीं छल, न ही लालच था,
मोहब्बत के नए पौधे, सभी जो साथ बोते थे !

चलो एक रस्म का दिन है, निभाकर देख लेते हैं,
कहीं गुम हो गए, जो उम्र भर को साथ होते थे!

नहीं होली, न दिवाली, नहीं वो ईद, न लोहड़ी,
चुके वो दौर जो त्यौहार में, संग साथ होते थे!

कसम टूटी, वफ़ा झूठी, यहां कुछ दिन का किस्सा है,
नहीं वो दोस्त जो, जो वादे वफ़ा संग में पिरोते थे!

चलो अब हारकर मैं, "देव " सच ये ओढ़ लेता हूँ,
पुराना दौर था जिसमें, बड़े दिल सबके होते थे! "

..................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०३.०८. २०१४


♥बिन तेरे..♥

♥♥♥♥♥♥बिन तेरे..♥♥♥♥♥♥
प्यार में मेरे क्या गलत पाया!
तुमने क्यों प्यार मेरा ठुकराया!

मेरी आँखों में आ गए आंसू,
तुमने जब गैर मुझको बतलाया!

बिन तेरे अब तो बस उदासी है,
हर तरफ दर्द का धुआं छाया!

सारे एहसास हैं तुम्हारे लिए,
अपनी चाहत का रंग दिखलाया!

चिट्ठियां मैंने तो लिखीं थीं बहुत,
खत तेरा एक भी नहीं आया!

यूँ तो हर साल ही लगा मेला,
मुझको बिन तेरे कुछ नहीं भाया !

"देव" आ जाओ ग़र सुना हो तो,
प्यार का गीत मैंने दोहराया! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०२.०८. २०१४




Sunday, 27 July 2014

♥♥प्यार की दस्तक..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार की दस्तक..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो!
मुझे जगाकर शर्माती हो, सकुचाती हो तुम डरती हो!
मैं जब तेरा हाथ थामकर, लफ्ज़ प्यार के कहता हूँ तो,
आँख मूंदकर तुम भी मुझको, अपनी बाँहों में भरती हो!

सावन की इस रात में जब भी, ख्वाब सखी तेरा आता है!
तो तेरी खुशबु से मेरा, सारा आँगन भर जाता है!

मैं भी जान लुटाऊं तुम पर, और तुम भी मुझपे मरती हो!
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो...

सखी तुम्हारे ख्वाबों में मैं, रात रात भर खोना चाहूँ !
इसीलिए सब काम छोड़कर, मैं जल्दी से सोना चाहूँ !
ख्वाबों में मिलने जुलने पर, पाबन्दी कोई नहीं होती,
इसीलिए तो प्रेम नदी में, खुद को बहुत डुबोना चाहूँ !

सखी यकीं है ख्वाब हमारा, एक दिन पूरा हो जायेगा!
प्रेम की उजली धूप खिलेगी, मिलन हमारा हो जायेगा!

दुआ साथ की मैं भी करता, दुआ मिलन की तुम करती हो!
मेरे दिल के दरवाजे पर, हौले से दस्तक करती हो! "

...................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२७.०७ २०१४